दुमशुदा वफ़ादारों का खुला पत्र

Oct 2, 2013 | Pratirodh Bureau

कार (सेवा) चलाने वालों, कार चलवाने वालों और कार की पिछली सीटों पर बैठकर इंसान होने का दावा करने वालों की ताज़ा बयानबाज़ियों के मद्देनज़र हमारा यह ज़रूरी फ़र्ज़ बनता है कि दो पैर पर खड़े, अल्फ़ नंगे लेकिन कपड़ों-लत्तों में लिपटे लोगों को उनकी असली जगह दिखा दी जाए और इसीलिए हम, जो कि किसी एक पार्टी, झंडे या विचार की लंगोटी को अपनी आंखों पर चश्मे के माफ़िक बांधे नहीं फिरते, अपना पत्र इन दो पैरों पर चलने वालों के लिए जारी करते हैं.

साथियों, जब से इंसान का इतिहास धरती पर क़ायम है, उससे पहले से हम धरती पर मौजूद हैं. इधर जंबू द्वीप वाले बताते हैं कि इंसान बनाने से पहले ही शिव ने भैरव को कोतवाली का काम दे रखा था. हम उस ज़माने में कार न होने की वजह से भैरव को लाने, ले जाने का काम करते थे. भैरव काला था, इंद्र और उसके अय्याश दोस्तों को पसंद नहीं था. लेकिन वफ़ादार था. इसलिए हम भैरव के साथ खड़े हुए. बिना इस बात की परवाह किए कि अपनी अय्याशियों और घमंड में डूबा इंद्र हमें क्या कहेगा या हमारे खिलाफ़ किस किस्म की चालें चलेगा.

इसके बाद दो पैरों की एक नस्ल तैयार हुई. इनको धरती पर भेजने के वक्त से ही इनमें जाहिलियत कूट-कूटकर भरी पड़ी थी. इस जाहिलियत से इन्हें बाहर निकालने के लिए हमने इनसे दोस्ती की. इतिहास साक्षी है कि पिछले तकरीब़न 50 हज़ार साल से हम इंसान के दोस्त हैं. गाय, बैल, बकरियों से दोस्ती तो बाद की चीज़ें हैं. असली और पहले प्यार हम ही थे. इस प्यार को हम आजतक बदस्तूर निभाते आ रहे हैं. मालिक के लिए जान दी. तेरी मेहरबानियां जैसी फ़िल्म की स्क्रिप्ट दी. युधिष्ठिर को स्वर्ग तक का रास्ता दिखाया. स्वर्ग गए भी लेकिन वहाँ की कारगुज़ारियां रास न आईं इसलिए बुत बन गए. एक बुत हमारी आज भी वहां क़ायम है. ख़ैर, बुत की परवाह बुत परस्त करें. हम हद-अनहद से परे हैं. इस तरह के ख़्वाब इंसानों को ही आते रहे और वो उन्हें हक़ीक़त मानकर कभी मक्का तो कभी मथुरा बनाते रहे. हम इन तमाम दकियानूसी खयालों को अनदेखा कर इंसान के साथ खड़े रहे. हमने इनके लिए शिकार किए. इन्होंने शिकार का अव्वल खुद खाया, बचा हुआ हमारे लिए छोड़ा. हमने इनको चोरियों, डकैतियों, तस्करियों से बचाया. इनकी रखवाली की. इन्हें सिखाया कि केवल थोड़े से प्यार के बदले पूरी ज़िंदगी कैसे किसी के लिए वफ़ादार रहकर बिता दी जाती है.

अफ़सोस कि हमारी इस वफ़ादारी को कई बार बेवकूफी समझा गया. हमारा ग़लत फायदा उठाया गया. इंसान ने हमारे प्यार को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. दास प्रथा कहाँ से आई… अरे, जब पहली बार वफ़ादारी के बावजूद किसी कुत्ते के गले में रस्सी या जंजीर पड़ी, दास प्रथा शुरू हो गई. इंसानी नस्ल के ऐसे हरामखोरों को इसमें मज़ा आने लगा और धीरे-धीरे उन्होंने पट्टा पहनाकर, जंजीरों में जकड़कर रखने को रस्म बना लिया. इसके शिकार हम भी हुए और कई इंसान भी हुए. ये क्रम आज भी बदस्तूर जारी है. आदमी खुद तो वफ़ादार रह न सका. इस बेईमानी की नीयत ने उसे शक-संदेह दिया और इसीलिए इंसान अब हर दोस्त, जानवर, पेड, फसल, ज़मीन, नदियां, गाड़ी, मकान, सबको ताले लगाकर, पकड़कर और जकड़कर रखने लगा.

आदमी अपनी बेवकूफ़ियों के सिलसिले में यहीं नहीं रुका. उसने हमारी वफ़ादारी को गाली समझा. इनके समाज को देखो- जो वफादार है, वो कुत्ता है, बेवकूफ़ है. किसी को गाली देनी हो तो- कुत्ते के बच्चे, कुत्ते के पिल्ले, कुत्ते की औलाद, कुत्ते. कोई शातिर हो तो- बहुत कुत्ती चीज़ है तू. राजधर्म का मायने- जो कुत्ते की तरह दुम हिलाएं, उनपर हुक्म चलाओ. सिनेमाई गुस्सा देखना हो तो भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ चुके धर्मेंद्र को देखिए- कुत्ते, मैं तेरा ख़ून पी जाउंगा. किसी को बद्दुआ दो तो- तू कुत्ते की मौत मरेगा, मारा जाएगा. नारीवादी नारा भी सुन लीजिए- हर पुरुष कुत्ता होता है. किसी महिला पर चरित्रहीनता का तालेबानी आरोप मढ़ा जाता है तो उसे कुतिया कह दिया जाता है. हरामखोरी की इंतहां हो तो- कुत्तेपने से बाज़ आओ, कुत्ते तूने अपनी जात दिखा दी. सोसाइटी की दीवार पर पेशाब करने वालों के नाम फ़तवा- देखो कुत्ता मूत रहा है. मतलब हद है यार. कमाल की दुनिया है. सबसे वफ़ादार को सबसे बुरा बना दिया. अरे, जंगल के रास्तों पर चलते पाषाणकालीन आदमी के साथ खड़े होने से आपके घरों, महानगरों, गांवों, हवाईअड्डों, सरकारी जलसों, चौराहों, गलियों की हिफ़ाज़त तक का काम हमारा है. हमने अपनी निष्ठा नहीं नहीं खोई. कभी किसी कुत्ते को आदमी का बच्चा होने की गाली नहीं दी. न ही कारों के पहियों पर लिखा- देखो, आदमी मूत रहा है.

निरीहों को कुत्ता समझना बंद कब होगा. दलितों, महिलाओं, ग़रीबों, यतीमों, अल्पसंख्यकों, कमज़ोरों को बदस्तूर कुत्ता समझा जा रहा है. कुत्तों ने ऐसा क्या किया है. न तो दंगे करे या करवाए. न संप्रदाय के नाम पर समाज को बांटा. संघर्ष भी हुए तो वहां जहाँ किसी ने अतिक्रमण की कोशिश की. वरना आप अपने इलाके रहें, हम अपने इलाके रहें. ज़रूरत पर मिलते जुलते रहें पर अनाधिकार चेष्टा न करें. इंसान से पैने दांत और पंजे होते हुए भी हमने न तो किसी को सलीबों पर बांधकर मारा, न लोगों को ज़हर दिया. परमाणु परीक्षण नहीं किए. तोप-टैंक इजात नहीं किए. तलवारें, पिस्तौलें हम न बनाते हैं और न ऐसा कोई इरादा है. अपना सिर छिपाने के लिए कहीं भी किसी कोने रह लिए. इसके लिए न तो पहाड़ तोड़े, न नदियों को रेत से पाट कर महल खड़े किए. ठीक है कि हमने स्कूल नहीं खोले पर ज्ञान हमें आदमी से बेहतर है. इंसान अभी भी कुत्तों से बहुत कुछ सीख सकता है, कुत्तो को इंसान से कुछ भी सीखने की ज़रूरत नहीं है.

तुम्हारी फ़ौजें, पुलिस, अफ़सरशाही… सब बेईमानी और मक्कारी से भरी हैं. नेताओं ने अपने मतलब के लिए लोगों को लड़ाया है. आदमी अपने फायदे के लिए आदमी को ही बेचता रहा है. कभी काल कोठरियों में, कभी गैस चैंबरों में, कभी युद्ध के मैदानों में, कभी धर्म की सभाओं में, मजहबी नारों में, कभी विज्ञान की नज़र से दुनिया को देखने के खिलाफ तो कभी सबके एक बराबर और एक जैसे होने की मान्यताओं के ख़िलाफ़ तुम केवल ख़ुदगर्ज़, बेईमान और स्वार्थी बने रहे, एक क्षण को भी कुत्ते नहीं बन सके.

हम जानते हैं कि अंग्रेज़ी में पपी कह देने से आपकी नीयत में रेशा भर नहीं बदला है. हम और हमारे जैसे निरीह प्राणियों को आप कुत्ते के बच्चे से ज़्यादा कुछ नहीं समझते और इस समझ के पीछे एक पूरी साजिश है, सोच है, गंदा दिमाग है, बदनियती है. इस देश में इंसान से ज़्यादा कुत्ते सड़कों पर मारे जाते हैं. उनकी परवाह करने वाला, संख्या गिनने वाला या न्याय दिलाने वाला कोई नहीं. हम चेतावनी देते हैं कि अव्वल तो कुत्तों की हत्या को अगंभीर न माना जाए और दूसरे यह कि आदमी और कुत्ते के बीच के फर्क को पहचानिए. किसी पहचान, नाम, समुदाय या कौम को कुत्ता समझने से पहले, उसे कुत्ता बुलाने से पहले, कुत्ता कहने से पहले खुद से पूछिए कि क्या आप इंसान हैं या कुत्ते. अगर आप कुत्ते नहीं हैं तो वे भी कुत्ते नहीं हैं, इंसान हैं. इंसानों से इंसानियत की तरह पेश आइए. यानी जैसा आप अपने लिए चाहते हैं, वैसे.

और हां, कुत्ता होना कोई बुरी बात नहीं है. काश आदमी अपनी ज़िंदगी में कुछ तो कुत्ता बन पाता. ऐसा मुमकिन होता तो सोच और समझ आपको इंसान बना देती. बनना-बनाना है तो पहले खुद कुत्ते बनिए. एक असली कुत्ते.

आदमी कहीं के.