पुलिस और जांच एजेंसियों के लिए मज़ाक है क़ानून
Jan 8, 2012 | अफ़रोज़ आलम 'साहिल'मंगलवार की रात करीब 11.30 बजे मुझे एक संदेश मिला. महताब नाम के शख्स ने कहा कि उनके चचेरे भाई को मुंबई पुलिस ने उठा लिया है. इससे ज्यादा जानकारी उनके पास नहीं थी.
मैंने तुरंत उनसे फोन पर बात की. बैचेनी की हालत में वो इतना ही बता सके कि उन्हें जानकारी मिली है कि मोहाली में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा उनका भाई एक जनवरी से मुंबई पुलिस के कब्ज़े में है और उसके परिवार में किसी को इसकी जानकारी नहीं है.
मैंने तुरंत मुंबई पुलिस और पंजाब पुलिस से संपर्क करके इस बारे में और जानकारी लेने के कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सका. अगले दिन कुछ कामयाबी हाथ लगी. कुछ पत्रकार साथियों की मदद से पता चला कि मोहाली के स्वामी परमानंद कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे चार छात्रों को एक जनवरी को पुलिस ने उनके किराए के कमरे से उठाया था. इनमें से दो को तीन जनवरी की शाम को छोड़ दिया गया और बाकी दो को मुंबई ले जाया गया है.
मैंने पुलिस से छूटकर आए अशरफ नाम के छात्र से काफी देर तक बात की, उसने बताया कि वो पढ़ाई के साथ-साथ नाइट शिफ्ट में काम भी करता है. काम के बाद जब वो सुबह करीब 6 बजे मोहाली के लालरू इलाके स्थित अपने किराए के कमरे पर पहुंचा तो देखा कि सिविल ड्रैस में करीब 15-20 पुलिसवाले उसके साथ रहने वाले अब्दुल वहाव, कमर आलम शेख और तनवीर से पूछताछ कर रहे हैं. पूछने पर उसने भी बता दिया कि वो भी साथ ही रहता है.
कुछ देर बाद चारों युवकों को करीब 15 किलोमीटर दूर खराड़ पुलिस स्टेशन ले जाया गया जहां दो दिन उनसे अलग-अलग पूछताछ होती रही. इस दौरान उठाए गए हम चारों लड़कों की आपस में कोई बात नहीं हुई. पुलिस ने उनके मोबाइल फोन और सभी दस्तावेज भी जब्त कर लिए थे.
दो दिन बाद अशरफ की कंपनी से किसी को बुलाकर उसके वहां काम करने की तस्दीक करने के बाद उसे और तनवीर को छोड़ दिया गया जबकि कमर आलम और वहाव को मुंबई पुलिस अपने साथ ले गई.
मेरे कुछ पत्रकार मित्रों ने जो जानकारी हासिल की उसके मुताबिक वहाव और कमर आलम को फर्जी नोटों के एक मामले में (एफआईआर संख्या33/11) भारतीय दंड संहिता की धाराओं 419, 420, 465, 467 और 120बी के तहत गिरफ्तार किया गया था. इन्हें मुंबई एटीएस के इंस्पेक्टर केदार पवार की देखरेख में मुंबई ले जाया गया. वहाव और कमर अभी एटीएस की हिरासत में ही हैं.
पाँच जनवरी को टॉइम्स ऑफ इंडिया, मुंबई में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक हिरासत में लिए गए दोनों छात्रों से मुंबई धमाकों के सिलसिले में पूछताछ भी की गई. जब जांच में एटीएस के हाथ कुछ नहीं लगा तो उन्हें फर्जी नोटों के केस में मुंबई पुलिस के हवाले कर दिया गया.
खैर, मैं एटीएस की जांच पर सवाल नहीं उठा रहा लेकिन इन छात्रों के हिरासत में लेने के उसके तरीके पर सवाल उठने लाजिमी है. चार दिन तक इन छात्रों को हिरासत में रखने के वाबजूद भी न एटीएस और न ही पंजाब पुलिस ने इन छात्रों के परिजनों को कोई जानकारी दी और न ही इनके मकान मालिक को.
एक और बात, यह चारों ही छात्र मूल रूप से बिहार के रहने वाले है. पिछले दो महीने से बिहार खासकर, उत्तरी बिहार के जिलों के पढ़े-लिखे मुस्लिम युवक जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं. जिस तरह दिल्ली में हुए धमाकों के बाद उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के छात्रों को आतंकी करार दिया गया था उसी तरह अब उत्तरी बिहार के छात्रों को आतंक से जोड़ा जा रहा है.
जांच एजेंसियां अभी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम युवकों को गैरकानूनी तरीके से उठाने की गलती नहीं कर सकती क्योंकि यूपी में चुनाव हैं और ऐसी हरकतों से मुस्लिम वोट सरकार के खिलाफ हो सकते हैं लेकिन बिहार में चुनाव अभी दूर हैं. ऐसे में बिहार के युवा सॉफ्ट टारगेट हैं.
उठाए गए छात्र अब बेगुनाह साबित हो चुके हैं. लेकिन जिस तरह से उन्हें गुपचुप उठाया गया और किसी को कोई जानकारी नहीं दी गई वो अपने आप में कई सवाल खड़े करता है. सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि किसी को भी हिरासत में लेते वक्त पुलिस को उसके परिजनों को तुरंत सूचना देनी चाहिए और यदि वो दूसरे राज्य में रहते हैं तो आठ घंटे के भीतर सूचना देनी चाहिए. हिरासत में लेने के 24 घंटे बाद कोर्ट में पेश करना भी जरूरी होता है लेकिन इस मामले में मुंबई एटीएस और पंजाब पुलिस ने ऐसा कुछ भी करना जरूरी नहीं समझा.
यानि इस मुल्क में जांच एजेंसियां जब चाहें तब तमाम कानूनों को ताक पर रख कर किसी भी मुस्लिम युवक को पूछताछ के लिए उठा सकती हैं. इसमें कोई शक नहीं कि हमारे देश में पुलिस और जांच एजेंसियों के हाथों में ताकत है और ताकत जो चाहे कर सकती है लेकिन अब वक्त आ गया है जब हमें और भी जागरूक हो जाना चाहिए.
वक्त का तकाजा है कि देश के मुसलमान अहिंसक और लोकतांत्रिक तरीके से अपने हकों की लड़ाई लड़े. यदि आपके किसी भी जानने वाले के साथ ऐसा होता है या आपकी जानकारी में ऐसा कोई भी मामला आता है तो खामोश न बैठे. ये पुलिस का अख्तियार है कि वो किसी भी वारदात की जांच करे लेकिन वो जांच अपने तरीके से नहीं कर सकती, कानून में जांच की भी एक तय प्रक्रिया है जिसमें पुलिस और जांच एजेंसिया बंधी हुई हैं.
यदि ऐसा लगे कि पुलिस या किसी भी एजेंसी ने उस दायरे को लांघा है तो तुरंत सूचना के अधिकार क़ानून का इस्तेमाल करना चाहिए और उस बारे में तमाम जानकारी हासिल करनी चाहिए. सवाल करेंगे तो पुलिस अधिक जिम्मेदार बनेगी और बेगुनाह वेबजह परेशान होने से बचेंगे. यदि आप आज अपना हक नहीं मांगेंगे या और किसी के साथ हुई ज्यादती पर सवाल नहीं करेंगे तो कल आपका भी नंबर आ सकता है.
चलते-चलते ये और बता दूं कि वहाव और कमर आलम अभी भी मुंबई पुलिस की हिरासत में हैं, और वो बेगुनाह हैं. एटीएस ने उन्हें अगली 10 तारीख को कोर्ट में पेश करके छोड़ देने का वादा किया है. लेकिन बुध को उनका पहला इम्तेहान था जो छूट गया है. अब उनके एक साल को कोई नहीं लौटा सकता. हममे से किसी और के साथ ऐसा हो उससे पहले ही हमें अपने हक के सवाल करने शुरु कर देने चाहिए.