Skip to content
Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Primary Menu Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us
  • Arts And Aesthetics

प्रेमचंद का साहित्य और उनके स्त्री पात्र

Dec 11, 2011 | गोपाल प्रधान

 विवादों के कारण ही सही प्रेमचंद का साहित्य फिर से ज़ेरे बहस है. दलित साहित्य के लेखकों ने उनके साहित्य को सहानुभूति का साहित्य कहा है. लेकिन स्त्री लेखन की ओर से अभी कोई गंभीर सवाल नहीं उठाया गया है. पहले एक आरोप जरूर प्रेमचंद के स्त्री चित्रण लगाया गया था कि इसमें मनोवैज्ञानिक गहराई नहीं है. हाल में एकाध लेख ऐसे देखने में आए जिनमें कहा गया था कि कुल के बावजूद प्रेमचंद स्त्री चित्रण में सामंती नैतिकता के घेरे को तोड़ नहीं पाते हैं. उचित होगा कि हम प्रेमचंद के स्त्री चित्रण के सही परिप्रेक्ष्य और उद्देश्य को समझें.

 
प्रेमचंद को किसानों का चितेरा बहुतेरा कहा गया है. लेकिन उनके उपन्यासों के स्त्री पात्र भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं. उनके ये सभी पात्र बेहद जीवंत और सकर्मक हैं. इन पात्रों के ज़रिए प्रेमचंद स्त्री की सामाजिक भूमिका को रेखांकित करते हैं. उनके स्त्री पात्रों की मुखरता और निर्णय लेने की क्षमता प्रत्यक्ष है. आखिर प्रेमचंद को ऐसी स्त्रियों के सृजन की प्रेरणा कहाँ से मिल रही थी? 
 
जब प्रेमचंद अपने उपन्यास लिख रहे थे तो 1857 को साठ सत्तर बरस ही बीते थे. 1857 के बारे में चाहे इतिहास के दस्तावेजों के जरिए देखें या जनश्रुतियों के आधार पर बात करें, स्त्रियों की भूमिका बहुत ही निर्णायक और नेतृत्वकारी दिखाई पड़ती है. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई अथवा लखनऊ की बेगम हजरत महल महज प्रतीक हैं उन हजारों बहादुर स्त्रियों की जिनकी जिंदगी घर की चारदीवारी के भीतर ही कैद नहीं थी. यह परिघटना हमें इस आम विश्वास पर पुनर्विचार के लिए बाध्य करती है कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत में स्त्रियाँ सामाजिक जीवन में मौजूद ही नहीं थीं. 
 
असल में 1857 की पराजय के बाद जब अंग्रेजों का शासन अच्छी तरह स्थापित हो गया तभी विक्टोरियाई नैतिकता के दबाव में स्त्री की घरेलू छवि को सजाया सँवारा गया. लेकिन घरों में कैद होने के बावजूद हिंदी क्षेत्र की स्त्रियों के दिमाग से अपने इन लड़ाकू पूर्वजों की याद गायब नहीं हुई थी. घर के भीतर की कैद और बाहरी दुनिया में अपनी भूमिका निभाने की चाहत के बीच द्विखंडित ये पढ़ाकू स्त्रियाँ ही प्रेमचंद के उपन्यासों की पाठक थीं.
 
आयन वाट ने उपन्यास के बारे में कहा है कि इस विधा को उसके पाठकों की रुचि और चाहत ने बेहद प्रभावित किया. प्रेमचंद के इन पाठकों ने उनसे ऐसे स्त्री पात्रों का सृजन कराया जो महानायक तो नहीं थीं लेकिन सामान्य सामाजिक जीवन में भी स्वतंत्र भूमिका निभाती दिखाई पड़ती हैं. अंग्रेजों पर चाकू चलाने वाली कर्मभूमि की बलात्कार पीड़िता से लेकर मालती जैसी स्वतंत्रचेता स्त्री तक प्रेमचंद के स्त्री पात्रों की विद्रोही चेतना किसी भी लेखक के लिए ईर्ष्याजनक है. सही बात है कि प्रेमचंद पर भी विक्टोरियाई नैतिकता का असर दिखाई पड़ता है और यह उनके युग का अंतर्विरोध है. फिर भी वे अपने समय के लिहाज से काफी आगे बढ़े हुए हैं. इस मामले में कुछ आधुनिक नारीवादी धारणाओं की चर्चा करना उचित होगा.
 
नारीवादी चिंतक जर्मेन ग्रीयर ने पुरुष और स्त्री देह की तुलना करते हुए साबित किया है कि दोनों के शरीर में बहुत अंतर नहीं है. स्त्री के स्तन उभरे होने और पुरुष के दबे होने के बावजूद दोनों में उत्तेजना और संवेदनशीलता समान ही होती है. यही बात लिंग के बारे में भी सही है. स्त्री का जननांग भीतर की ओर तथा पुरुष का बाहर की ओर होता है. इन्हें छोड़कर पुरुष और स्त्री में कोई बुनियादी भेद नहीं है. प्रेमचंद ने नारीवादी साहित्य पढ़ा हो या नहीं अपने सहज बोध और स्वतंत्रता संग्राम में स्त्रियों की भागीदारी के आधार पर कम से कम अपने उपन्यासों में उन्होंने ऐसी स्त्रियों का सृजन किया जो निर्णायक भूमिका में खड़ी हैं.
 
वैसे तो उनके सभी उपन्यासों में स्त्रियों के चित्र बहुत भास्वर हैं लेकिन तीन उपन्यास \\\’सेवासदन\\\’ , \\\’निर्मला\\\’ और \\\’गबन\\\’ तो पूरी तरह स्त्री समस्या पर ही केंद्रित हैं. सेवासदन उपन्यास को अगर ध्यान से पढ़ें तो शुरुआती सौ डेढ़ सौ पृष्ठ पूरी तरह से परिवार की धारणा पर एक तरह का कथात्मक विमर्श हैं. सुमन एक घरेलू स्त्री और उसके सामने रहनेवाली वेश्या भोली. परिवार में सुमन को निरंतर घुटन का अहसास होता रहता है और इस संस्था की सीमाएँ उसके सामने भोली की स्वच्छंदता के साथ जिरह के जरिए खुलती जाती हैं. तालस्ताय की तरह ही परिवार प्रेमचंद के चिंतन का बड़ा हिस्सा घेरता है. निर्मला में भी यह संकट ही उपन्यास के तीव्र घटनाक्रम को बाँधे रखता है. अंतत: गोदान में आकर वे इसका एक उत्तर सहजीवन की धारणा में खोज पाते हैं. उल्लेखनीय है कि परिवार की सुरक्षा स्त्री मुक्ति की राह में एक बड़ी बाधा है.
 
प्रेमचंद के लिए वेश्यावृत्ति स्त्री का नैतिक पतन नहीं बल्कि एक सामाजिक संस्था है. इसे गबन की पात्र जोहरा के प्रसंग से भी समझा जा सकता है. यह बात ही बताती है कि प्रेमचंद सामंती नैतिकता की सीमाओं का अतिक्रमण कर सकते थे.  
 
गबन में उनकी मुख्य चिंता जालपा को उस अंतर्बाधा से मुक्त करने की है जो उसे \\\’बधिया स्त्री\\\’ बनाए रखती है. पति के पलायन के साथ उसे इसकी व्यर्थता का अहसास होता है और एक झटके में वह इस अंतर्बाधा से आजाद हो जाती है. यह आजादी उसे उसकी सामाजिक सार्थकता की ओर ले जाती है. यहीं प्रेमचंद अपने समय की सीमाओं को भी तोड़ देते हैं. 
 
अकारण नहीं कि सुमन और जालपा जैसी तर्कप्रवण स्त्रियों के तीखे सवालों के सामने तत्कालीन सामाजिक सुधार आंदोलन के नेता वकील साहबान निरुत्तर हो जाते हैं. उनके ये सभी साहसी पात्र अपने पाठकों के मन में दबी आकांक्षाओं को जैसे मूर्तिमान कर देते हैं. वे क्या किसी को अपने साहित्य के जरिए सामाजिक भूमिका में उतार सके? यह प्रश्न साहित्य से थोड़ा अधिक की माँग है. साहित्य का कर्तव्य अपने समय के अंतर्विरोधों को वाणी देना है. उनका समाधान साहित्येतर प्रक्रम है.
 
गौरतलब है कि अगर प्रेमचंद स्त्री मनोविज्ञान की गहराई में उतरते या उसकी देह तक ही महदूद रहते तो शायद वह भी नहीं कर पाते जो उन्होंने किया. आखिर आज का स्त्री लेखन अपनी कुल साहसिकता के बावजूद एक भी जीवंत और याद रह जाने लायक पात्र का सृजन नहीं कर पा रहा है तो उसे आत्मावलोकन करना चाहिए और इस पुरोधा से टकराते हुए प्रेरणा लेनी चाहिए.
 

Continue Reading

Previous जनकवि नागार्जुन की स्मृति में…
Next भारतीय साहित्य और प्रगतिशील आंदोलन की विरासत

More Stories

  • Arts And Aesthetics
  • Featured

मैं प्रेम में भरोसा करती हूं. इस पागल दुनिया में इससे अधिक और क्या मायने रखता है?

1 year ago PRATIRODH BUREAU
  • Arts And Aesthetics

युवा मशालों के जल्से में गूंज रहा है यह ऐलान

1 year ago Cheema Sahab
  • Arts And Aesthetics
  • Featured
  • Politics & Society

CAA: Protesters Cheered On By Actors, Artists & Singers

1 year ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • As Migrants Flee Cities, Concerns About Covid Surge In Villages
  • Not Even Fear Of Covid Can Disrupt Protest, Say Agitating Farmers
  • US Defends Navy Ship’s Navigational Rights Inside India’s EEZ
  • George Floyd Autopsy: Doctor Stands By Homicide Conclusion
  • Gyanvapi Mosque: UP Waqf Board To Challenge ASI Survey Order
  • Police Clamp Curbs On Media Coverage Of Kashmir Gunbattles
  • Govt. To Review Covid Vaccines After Blood Clot Warning
  • ‘Climate Change, Rich-Poor Gap, Conflict Likely To Grow’
  • ‘Onus Is On Men’: Imran’s Ex-Wife On His ‘Vulgarity’ Rape Remark
  • Rallies, Religious Gatherings Aggravate Worst Covid Surge
  • Compensate Farmers For Crop Damage By Animals: Tikait
  • Myanmar Activists Hold Shoe Protests, Another Celebrity Held
  • 7 Arrested After Climate Protesters Target Barclays London HQ
  • Foundation Laid For ‘Memorial’ To Farmers Who Died During Protests
  • UK Variant Found In 80% Of Covid Cases In Punjab: Health Minister
  • Amnesty International Says Russia May Be Slowly Killing Navalny
  • “Time Has Come”: Tikait Warns Of Farmers’ Tractor Rally In Gujarat
  • Next Four Weeks ‘Very, Very Critical’ In Covid Battle: Health Official
  • Anti-Maoist Ops Stepped Up After 22 Police Killed In Ambush
  • Climate Change Shrinks Marine Life Richness Near Equator: Study

Search

Main Links

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us

Related Stroy

  • Featured

As Migrants Flee Cities, Concerns About Covid Surge In Villages

5 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Not Even Fear Of Covid Can Disrupt Protest, Say Agitating Farmers

5 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

US Defends Navy Ship’s Navigational Rights Inside India’s EEZ

8 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

George Floyd Autopsy: Doctor Stands By Homicide Conclusion

10 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Gyanvapi Mosque: UP Waqf Board To Challenge ASI Survey Order

1 day ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • As Migrants Flee Cities, Concerns About Covid Surge In Villages
  • Not Even Fear Of Covid Can Disrupt Protest, Say Agitating Farmers
  • US Defends Navy Ship’s Navigational Rights Inside India’s EEZ
  • George Floyd Autopsy: Doctor Stands By Homicide Conclusion
  • Gyanvapi Mosque: UP Waqf Board To Challenge ASI Survey Order
Copyright © All rights reserved. | CoverNews by AF themes.