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ऑकुपाई वॉलस्ट्रीट के दौरान स्लावोज जिजेक का भाषण

Dec 17, 2011 | Pratirodh Bureau

न्यूयार्क में बेरोजगारी और कॉरपोरेट लूट के खिलाफ ‘आकुपाई वालस्ट्रीट’ आंदोलन कई देशों में फैल चुका है. 17 सितंबर, 2011 को अमेरिका में शुरू हुए इस आंदोलन की मेनस्ट्रीम मीडिया ने अनदेखी की. आंदोलन तेजी से बढ़ने लगा तो इसका कवरेज भी हुआ, लेकिन साथ में आंदोलन के नेतृत्व और प्रासंगिकता पर सवाल उठाया जाने लगा. 9 अक्टूबर 2011 को आंदोलन के समर्थन में न्यूयार्क के जकोटी पार्क में स्लोवानिया के दार्शनिक स्लावोज जिजेक ने प्रदर्शनकारियों के समक्ष भाषण देते हुए कुछ इन्ही सवालों पर अपने विचार रखा.

 
भाषण का हिंदी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है.
 
———————————————————–
 
वो कहते हैं कि हम असफल किस्म के लोग हैं. लेकिन सही मायने में यह बात तो वाल स्ट्रीट वालों पर लागू होती है. उन्हे हमारे पैसे से उबारा गया. वे हमें समाजवादी कहते हैं. लेकिन यहां तो समाजवाद हमेशा से अमीरों का रहा. वे यह भी कहते हैं कि हमें निजी संपत्ति की कद्र नहीं है. लेकिन मैं कहता हूं कि अगर हम पूरे हफ्ते दिन रात उनकी निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाएंगे तो भी वे उससे कहीं ज्यादा 2008 के आर्थिक संकट में हमारी गाढ़ी कमाई नाश कर चुके हैं.
 
वे कहते हैं कि हम स्वप्नर्शी हैं. लेकिन सही मायने में भी वे ही स्वप्नदर्शी हैं जो मानते हैं कि स्थितियां हमेशा ऐसी ही जस की तस रहेंगी. हम स्वप्नदर्शी तो नहीं हैं. लेकिन हां अब हम उनके दिखाए जाने वाले सपनों से जाग रहे हैं. जो अब उनके लिए दु:स्वप्न में बदल रहा है.
 
हम कुछ भी नष्ट नहीं करते. हम तो एक व्यवस्था कैसे नष्ट होती है इस बात के गवाह बन रहे हैं.
 
कार्टून फिल्मों के उस मशहूर दृश्य से आप सभी परिचित होंगे जिसमें एक बिल्ली ढलान पर पहुंचती है फिर फिसलना शुरू करती है. बिना यह जाने कि नीचे गड्ढा है. जबतक वह नीचे देखे तबतक तो काम तमाम हो चुका होता है और वह नीचे गिर चुकी होती है. हम उन वाल स्ट्रीट वालों को खबरदार कर रहे हैं कि “अरे! नीचे देखों”! 
अप्रैल 2011 के मध्य में चीन सरकार ने टेलिविजन, फिल्मों और उपन्यासों से उन कथाओं या कवरेज पर रोक लगा दी जिसमें वैकल्पिक याथार्थ या समय के लाने की बात की गई हो. चीन के मामले में तो यह अच्छा संकेत है. लोग विकल्पों का सपना देख रहे हैं और जिन्हे सपने देखने से रोका जा रहा है. लेकिन यहां रोक लगाने की जरूरत नहीं है. यहां तो सत्ता ने सपने देखने की क्षमता का ही दमन कर दिया है. उन फिल्मों को याद करिए जिसमें दुनिया के अंत की कल्पना होती है और जिन्हे हम अक्सर देखते हैं. एक उल्कापिंड आता है और पूरे जीव जगत को नष्ट करता है. कुछ भी हो आप पूंजीवाद के नष्ट होने की कल्पना नहीं कर सकते.
 
तो आखिर हम लोग यहां कर क्या रहे हैं?  चलिए मैं आपको साम्यवादी दौर से जुड़ा का एक पुराना चुटकुला सुनाता हूं. एक व्यक्ति को पूर्वी जर्मनी से काम करने के लिए साइबेरिया भेजा गया. वह जानता था कि उसके पत्रों पर नजर रखी जाएगी. इसलिए उसने अपने दोस्तों से कहा कि हम लोग कूट भाषा में बात करेंगे. तुम लोगों को अगर मैं नीले रंग की स्याही वाली चिट्ठी भेजूं तो समझना कि जो भी मैं बता रहा हूं वह सब सही है. लेकिन अगर मैं लाल रंग की स्याहू से लिखूं तो इसका मतलब समझना कि वह सब झूठ है. एक महीने बाद उसके दोस्तों को उसने पहला पत्र भेजा. सब कुछ नीले रंग से लिखा था. उसने लिखा कि “यहां सब कुछ बहुत बढ़िया है. गोदाम खाने की चीजों से भरा है. सिनेमा हाल में पश्चिम की बेहतरीन फिल्मे हैं. भव्य और ऐशोआराम वाले अपार्टमेंट्स हैं. जिस आजादी को हम चाहते थे वह भी भरपूर मात्रा में है. लेकिन जो चीज नहीं है वह है ‘लाल स्याही’ .जो हमारी गैर स्वतंत्रता को व्यक्त करने वाली भाषा है.
 
हमें जिस तरह से स्वंतत्रता के बारे में बोलना सिखाया गया वह दरअसल स्वतंत्रता को ही छूठा साबित करता है-जैसे आतंकवाद के खिलाफ युद्ध आदि. हम यहां यही महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं.आप लोग लाल स्याही बांट रहे हैं.
इसमें एक खतरा भी है. आप खुद के प्रति वशीभूत मत होइए. मानता हूं कि हमारे पास अच्छा समय है. लेकिन याद रखिए कि केवल उत्सव हमेशा बनावटी और सस्ता लगता है. लेकिन तब क्या होगा जब हम सामान्य दिनचर्या में लौट आएंगे. क्या तब कोई बदलाव आ चुका रहेगा. मैं नहीं चाहता कि आप इन दिनों को ऐसे याद रखें कि “ओह हम नौजवान थे और वे दिन भी काफी सुहाने थे”. याद रखिए कि हमारा मूल संदेश  है कि “ हमें विकल्पों के बारे में सोचने की स्वतंत्रता दी गई है” अगर कहीं से यह प्रतिबद्धता या नियम टूटता है तो हमे बेहतरीन दुनिया में नहीं रह पाएंगे. आगे का रास्ता बहुत लंबा है. हकीकत में हमें बहुत से कठिन सवालों से टकराना है. हम जानते हैं कि हमें क्या नहीं चाहिए. लेकिन हम चाहते क्या हैं? कौन से सामाजिक संगठन इस पूंजीवाद को दरकिनार करेगा?हम किस तरह का नेतृत्व चाहते हैं?
 
याद रखिए. समस्या भ्रष्टाचार या लालच की नहीं है. समस्या तो इस व्यवस्था में है. जो आपको भ्रष्ट होने के लिए बाध्य कर देती है. यहां केवल दुश्मनों से ही नहीं आपको उन झुठे दोस्तों से भी सतर्क रहने की जरूरत है जो इस बदलाव की प्रक्रिया को शुरुआत में ही कमजोर करने की कोशिश में लग गए हैं.
 
ये लोग इसे नैतिक और बिना नुकसान पहुंचाने वाले विरोध में बदलने की कोशिश कर रहे हैं. वे इसे ठीक वैसे ही बना देना चाहते हैं जैसे बिना कैफीन वाली कॉफी, बिना अल्कोहल वाली बीयर और बिना फैट वाली आइस्क्रीम.
 
यह एक डिकैफिनेटेड प्रक्रिया है. आज हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां कोक कैन को रिसाइकिल करने, या दान में कुछ डॉलर देने या फिर स्टारबक्स कैफिचिनो खरीदने के बाद अगर कीमत का एक फीसदी तीसरी दुनिया के भुखमरी के शिकार बच्चों तक पहुंचना हमें सुखद ऐहसास दिलाने के लिए काफी होता है.
 
नौकरी और प्रताड़ना की आउटसोर्सिंग हुई उसके बाद हमारे प्रेम संबंध भी विवाह कराने वाली एजेंसियों से आउटसोर्स हुई. हम लंबे समय से देख रहे हैं कि हमारी राजनितिक गतिविधियों भी अब आउटसोर्स होने लगी. हमें यह सब वापस चाहिए.
 
अगर कम्यूनिस्ट होने का मतलब 1990 में पतन होने वाली व्यवस्था है तब तो हम कम्यूनिस्ट नहीं है.याद रखिए वही कम्यूनिस्ट आज के क्रुर और सबसे योग्य पूंजीवादी हैं. आज अमेरिकी पूंजीवाद के मुकाबले चीन का पूंजीवाद ज्यादा गतिशील हो चुका है,जिसे कि लोकतंत्र की दरकार तक नहीं है. इसका मतलब हुआ कि जब आप पूंजीवाद की आलोचना करते हैं तो अपने आपको इस तरह ब्लैकमेल मत होने दीजिए कि लगने लगे कि आप लोकतंत्र के भी विरोधी हैं. पूंजीवाद और लोकतंत्र के बीच का वैवाहिक रिश्ता खत्म हो चुका है. यह सबकुछ संभव है.
आप नजर डालिए आज कौन सी चीजें हमें ज्यादा संभव लगती हैं? मीडिया जो बताता है वही. एक ओर तो टेक्नॉलॉजी और सेक्स्यूलिटी में सब कुछ संभव  लगता है. आप चांद की यात्रा कर सकते हैं. बायोजेनिटिक्स आपको अमर बना सकती है. जानवरों के साथ सेक्स या कई ऐसी दूसरी चीजें आज संभव बताई जा रही हैं. लेकिन जरा समाज और अर्थव्यवस्था की तरफ तो देखिए. जैसे यह मानलिया गया है कि इस क्षेत्र में कुछ भी संभव नहीं है. आप चाहते हैं कि अमीरों पर थोड़ा सा टैक्स बढ़ा दिया जाय. इसके जवाब में वे कहते हैं कि यह बिल्कुल संभव नहीं है. प्रतिस्पर्धा कम हो जाएगी.  जब आप स्वास्थ्य सेवाओँ के लिए ज्यादा पैसा चाहते हैं तो वे कहते हैं कि“यह असंभव है और इसका मतलब सर्वसत्तावादी राज्य(टोटलटेरियन स्टेट) में  तब्दील होना है. 
  
दुनिया में कुछ न कुछ गलत तो जरूर हो रहा है. आपसे अमर होने का वादा किया जाता है लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं पर थोड़ी रकम नहीं बढ़ाई जा सकती. हमें प्राथमिकताएं तय करने की जरूरत है. हम बहुत आय्याशी से भरा जीवन नहीं चाहते.  लेकिन हम बेहतर जीवन स्तर चाहते हैं. हम इस अर्थ में कम्यूनिस्ट हैं कि हम आमलोगों की परवाह करते हैं. चाहे वह प्रकृति के संबंध में हो या बैद्धिक संपदा के निजीकरण या बायोजेनिटिक्स से जुड़ी बात हो. हम केवल इन्ही चीजों के लिए और केवल इन्ही बातों के लिए संघर्ष करना चाहिए.
 
साम्यवाद नाकाम हुआ, लेकिन आम लोगों की मुश्किलें तो ज्यों कि त्यों रहीं. वे लगातार आपको बता रहे हैं कि हम अमेरिकन नहीं हैं. लेकिन वे दकियानुस रूढ़िवादी जो दावा करते हैं कि वे असली अमेरिकन हैं उन्हे कुछ याद दिलाना चाहता हूं- ईसाई होने का क्या अर्थ है? पवित्र आत्मा. लेकिन पवित्र आत्मा क्या चीज है? यह विश्वास करने वालों का एक समतावादी समुदाय ही तो है जो एक दूसरे से प्रेम करते हैं. यह उनकी अपनी स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी भी है. इस लिहाज से पवित्र आत्मा तो यहां आप लोगों में है. वहां वाल स्ट्रीट में  नहीं जो पगान (प्राचीन धार्मिक विश्वास) को मानने वाले हैं और जो ईशनिंदक मुर्तियों के पुजारी हैं. अभी जिस चीज की जरूरत है वह है संयम. मैं केवल एक बात से डरता हूं कि एक दिन हम लोग अपने-अपने घर चले जाएंगे. साल में एक बार मिलेंगे,बीयर पीते हुए भावुकता में याद करेंगे कि “ यहां हमने कितना अच्छा समय गुजारा”. अपने आप से वादा करिए कि ऐसा नहीं होने देंगे. हम जानते हैं कि लोग अक्सर इच्छा तो रखते हैं लेकिन सचमूच उसको पाना नहीं चाहते. जो वास्तव में आप पाना चाहते हैं… जो इच्छा है उसे सचमूच पाने से बिल्कुल मत डरिए.
 
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.   
 
(इस भाषण का अनुवाद नूतन मौर्या ने किया है.)

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