विकास की बलिवेदी पर: पहली किस्त
इस साल अक्षय तृतीया पर जब देश भर में लगन चढ़ा हुआ था, बारातें निकल…
इस साल अक्षय तृतीया पर जब देश भर में लगन चढ़ा हुआ था, बारातें निकल…
उस दिन हम लोग तीन साढ़े तीन सौ रहा होगा… महिला और पुरुष। पहले धरना में जुट के न हम लोग यहां आए थे। उसके बाद जब वहां आए तो कोई फोन के माध्यम से कह दिया। अब नाम नहीं बता पाएंगे… सब लगे हैं जासूसी में… उनको कमीशन मिल रहा है न भाई। तो कोई फोन के माध्यम से कह दिया उनको।
मरने पर मजबूर करना/ किसी की उम्र नहीं बढ़ाता/ न ही खेतों में सहवास से,/ अच्छी होती है फसल/ न गंगा नहाने से, / धुलते हैं पाप/ न जीतने से,/ सही साबित होता है युद्ध
(बीते मार्च की आखिरी तारीख को उत्तराखण्ड के रामनगर स्थित बीरपुर लच्छी गांव में चल रहे आंदोलन से लौटते वक्त ‘नागरिक’ अखबार के संपादक मुनीष और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के महासचिव प्रभात ध्यानी पर खनन-क्रेशर माफिया ने जानलेवा हमला किया था। इसके बाद दिल्ली में एक बड़ा प्रदर्शन हुआ और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी ने एक बैठक रखी जिसमें तय हुआ कि एक तथ्यान्वेषी दल गांव में जाकर हालात का जायज़ा लेगा।
‘मैं हार सकता हूँ , बार – बार हार सकता हूँ लेकिन हार मान कर बैठ नहीं सकता हूँ ।’ लोहिया की पत्रिका ‘जन’ के संपादक ओमप्रकाश दीपक ने कहा था। नारायण देसाई ने कोमा से निकलने के बाद के तीन महीनों में अपनी चिकित्सा के प्रति जो अनुकूल और सहयोगात्मक रवैया प्रकट किया उससे यही लगता है कि वे हार मान कर नहीं बैठे , अन्ततः हार जरूर गये। आखिरी दौर में हम जो उनकी ‘सेवा’ में थे शायद हार मान कर बैठ गये।
वहाबीवाद का पोषक सऊदी अरब विश्व का सबसे मह्त्वपूर्ण और प्रभावी मुस्लिम देश है, यहाँ…
चर्चों पर हमले, ‘घर वापसी’ के रूप में चालबाजी से भरे धर्मांतरण, हिंदू धर्म को बचाने के लिए अनेक बच्चे पैदा करने के उपदेशों और मुसलमानों पर लगातार हमलों और उनको अपमानित करने जैसे कदमों की एक लंबी फेहरिश्त में, विकास-केंद्रित भाजपा ने अब अपने हिंदुत्व के पिटारे से ‘पवित्र गाय’ को भी इसमें जोड़ दिया है. 3 मार्च को महाराष्ट्र सरकार को इसके उस कठोर विधेयक पर राष्ट्रपति की सहमति मिल गई, जिसमें गाय और इसके वंश की न सिर्फ हत्या करने पर बल्कि किसी भी रूप में उनके मांस को रखने पर भी सजा का प्रावधान है.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से 23 मार्च 2015 को शहीदी दिवस पर अखबारों में विज्ञापन छपा जिसमें शहीद-ए-आज़म भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की साझा तस्वीर है। इस तस्वीर में भगत सिंह को फिर से पगड़ी पहना कर क्रांतिकारी चेतना को कम करने की एक बार फिर से साजिश रची गई है। यह क्रांतिवीर का अपमान है क्योंकि भगत सिंह पूरे देश के शहीद हैं।
उमेश डोभाल की याद में आयोजित इस समारोह में आने का अवसर पा कर मैं काफी गर्व का अनुभव कर रहा हूं। बहुत दिनों से पौड़ी आने की इच्छा थी। 1980 में जब मैंने समकालीन तीसरी दुनिया का प्रकाशन शुरू किया था उस समय से ही यहां राजेन्द्र रावत राजू से मेरी मित्रता शुरू हुई जो काफी समय तक बनी रही। उनके निधन के बाद यह जगह मेरे लिए अपरिचित सी हो गयी और फिर धीरे-धीरे यहां से संबंध् कमजोर पड़ता चला गया।
(प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दस महीने में पहली ऐसी कामयाबी मिली है जो वाशिंगटन में…
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और वरिष्ठ माओवादी नेता बाबूराम भट्टराई ने कहा है कि नेपाल में राजनीतिक स्थिरता का होना भारत के लिए बहुत आवश्यक है और भारत सरकार इस बात को समझती है, इसीलिए वह नेपाल के संविधान निर्माण समेत अन्य आंतरिक मामलों में कोई दख़ल नहीं दे रही तथा एक स्थिर और टिकाऊ शासन व संविधान के लिए नेपाल को पूरा सहयोग भी दे रही है। भट्टराई प्रवासी नेपालियों के संघ के एक कार्यक्रम में भारत आए थे जिस दौरान उन्होंने दिल्ली में पत्रकारों व राजनीतिक कार्यकर्ताओं के एक समूह को संबोधित करते हुए बुधवार को यह बात कही।
The student occupation at the University of Amsterdam speaks to a deepening crisis of higher…
दिल्ली में 24 फरवरी 2015 का दिन बहुत नाटकीय रहा। मीडिया में जो दिखाया गया, वह सड़क पर नहीं था। जो सड़क पर था, उसे कैमरे कैद नहीं कर पा रहे थे। इसकी दो वजहें थीं, जैसा मुझे समझ में आया। जैसा कि मीडिया में प्रचारित था कि यह आंदोलन अन्ना का है और जंतर-मंतर से चलाया जा रहा है, उसी हिसाब से दिन में बारह बजे के आसपास जब मैं जंतर-मंतर पहुंचा तो वहां अपने मंच पर अन्ना मौजूद नहीं थे।
उनको बचपन से ऐसा ही देखा है. सुबह की शाखा के बाद दर-दर पर्चे बांटते. स्वदेशी का नारा लगाते. गीत दोहराते, चोखा-बाटी कार्यक्रम और वनवासी कार्यक्रम में शामिल होते. मैदान साफ करते, बुहारते-संवारते. बड़े पैसेवालों के वाहन सजाते. वे फूल भी खुद तोड़कर लाते थे.
क्या आप विलास सोनवणे को जानते हैं? कल दिल्ली में उनका एक व्याख्यान था। विषय था ”धर्मांतरण की राजनीति”। विलास पुराने एक्टिविस्ट हैं, कोई चार दशक पहले तक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में हुआ करते थे। बाद में इन्होंने लाल किताबों के दायरे से बाहर निकलकर समाज में काम करना शुरू किया।
मुरुगन ने किसी प्रथा पर कोई मूल्य निर्णय नहीं दिया है, अच्छा या बुरा नहीं कहा है, उन्होंने सिर्फ एक कोमल कहानी कही है जो एक समाज में जन्मी है. उस समाज की कुछ प्रथाएं और मान्यताएं हैं जो उस समाज में जी रहे लोगों के जीवन से लिपटी हैं,
हम एक ऐसे समय में खड़े हैं जब सहजता का नाम तक असहिष्णु होता जा रहा है. जब प्रगति के घोड़े सबसे तेज़ भागते दिखाए जा रहे हैं, हम आक्रामक और असहिष्णुताओं के प्राचीर बन गए हैं. एक कविता…
एक प्रधान सेवक के द्वारा अपने मालिक के अस्पताल के उदघाटन पर दिए गए गौरवमयी शल्यचिकित्सकीय अतीत के उद्धरणों को समर्पित कविता… सर्जरी
Eminent citizens, in an open letter to Prime Minister, Mr. Narendra Modi has urged him to call for a Review and Discussion on Sardar Sarovar Dam in the National Interest.
A team of CPI(ML) Liberation activists visited the affected areas of Trilokpuri and other areas…
साथ पढ़े कितने ही दोस्त अमरीका जाकर रहने लगे. कुछ बस गए. कुछ बसने की कोशिश में हैं. कोई बुराई नहीं. पर आजकल भारतीयता की किताब से सबक याद करा रहे हैं. देश के भगोड़े जब कथित राष्ट्रभक्ति की लुटिया से शौंचते नज़र आते हैं तो हंसी आती है. उन्हें समर्पित एक कविता…
भारत में 16 मई के बाद की परिस्थितियों में जो कुछ घटता-चलता दिख रहा है, उससे लोग भी प्रभावित हैं और इसीलिए कविता भी. कविता अपने समय के सच को कहती है. ऐसी ही एक कविता- नया शासनादेश.
इस फ़िल्म में कश्मीर केवल वैसे ही है जैसे खादी चोरों की बैठक में गांधी का चित्र. इस्तेमाल करो और किनारे लगाओ. जो लोग इस फ़िल्म के आधार पर निर्देशक या उनके उस्ताद के बारे में कोई बड़ी राय बना रहे हैं, मेरे खयाल से वे लोग रेत में पानी खोद रहे हैं.