Handful Of Golfers Tee Off In Mt Everest Tournament In Bad Weather
A high-altitude golf tournament in the shadow of Nepal’s Mount Everest had to be called…
A high-altitude golf tournament in the shadow of Nepal’s Mount Everest had to be called…
Boris Johnson took office as British prime minister on Wednesday after an audience with Queen…
Prime Minister Narendra Modi’s Bharatiya Janata Party (BJP) was set to return to power in…
United States President Donald Trump, during the visit of Pakistan Prime Minister Imran Khan on…
देश में इस वक्त कई परिघटनाएं एक साथ पैदा हुई हैं। गुजरात से उत्तर भारतीयों को भगाया जा रहा है। महिलाएं अपने उत्पीड़न की कहानियां #MeToo के माध्यम से सुना रही हैं। इन अलग-अलग घटनाओं को समझने के लिए बीसवीं सदी के सबसे बड़े मार्क्सवादी चिंताकों में एक एरिक हॉब्सबॉम का 1996 में दिया यह व्याख्यान पढ़ना बहुत ज़रूरी है। वे बताते हैं कि कैसे हर किस्म की पहचान की राजनीति अंतत: दक्षिणपंथ को ही मदद पहुंचाती है।
इनदिनों ट्रिपल तलाक़ का मुद्दा छाया हुआ है। इससे पहले बिलकुल छाए में था। ठीक उसी तरह जिस तरह धूप लग जाने और रंग स्याह पड़ जाने का हवाला देकर औरतों को बदलती दुनिया की शिद्दत और तपिश से दूर रखा जाता है।
4 armed men enter kilometres into our territory.
If the CID reports are true, then it’s clear that there was an RSS threat to Mahatma Gandhi’s life, coming from an authority as high as RSS chief MG Golwalkar.
In March 2014, then opposition leader Mehbuba Mufti thundered in the assembly against the NC government’s use of pellet guns. She said, “Instead of their promised honey & milk, what they gave the people of Kashmir- pellet guns, chilli grenades, PSAs, arrests, disabilities and police cases”.
आज, जब एक लेखक मरा है, एक बुजुर्गवार ने खुदकुशी की है, हम तक सबसे पहले बस्तर को पहुंचाने वाले शख्स’ ने मौत के रूप में एक बार फिर गुमनामी को चुना है, तो सब चुप हैं. कोई बस्तर की अपनी किताब पर पुरस्कार लेकर चुप है, कोई बस्तर के नाम पर विदेशी अनुदान लेकर चुप है, कोई बस्तर की किताब को सीढ़ी बनाकर विदेश में बस चुका है.
यही वह वर्ष था जब रोहित की दत्तक नानी अंजनी देवी ने उन घटनाक्रमों को प्रारंभ किया, जिन्हें बाद में इस शोधार्थी ने अपने आत्महत्या नोट में गूढ़ रूप से ‘‘मेरे जीवन की घातक दुर्घटना कहा है।’’
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे अगले हफ्ते तीन दिनों की यात्रा पर भारत आएँगे। इस…
Citing their difference on gender question and patriarchy and the way their three year long struggle on this was dealt with, 11 leading members of DSU from Jawaharlal Nehru University resigned from the organization.
लोगों के संघर्षों को महज़ अपनी कहानियों और कविताओं में जगह देने से बात नहीं बनने वाली, न ही आपका पुरस्कार लौटाना जनता की अभिव्यक्ति की आज़ादी को बहाल कर पाएगा. अगर आप ऐसा वाकई चाहते हैं, तो आपको इसे जीवन-मरण का सवाल बनाना पड़ेगा. आपको नवजागरण का स्वर बनना पड़ेगा.
वीरेन डंगवाल यानी हमारी पीढी में सबके लिए वीरेनदा नहीं रहे। आज सुबह वे बरेली में गुज़र गए। शाम तक वहीं अंत्येष्टि हो जाएगी। हम उसमें नहीं होंगे। अभी हाल में उनके ऊपर जन संस्कृति मंच ने दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में एक कार्यक्रम करवाया था। उनकी आखिरी शक्ल और उनसे आखिरी मुलाकात उसी दिन की याद है। उस दिन वे बहुत थके हुए लग रहे थे। मिलते ही गाल पर थपकी देते हुए बोले, ”यार, जल्दी करना, प्रोग्राम छोटा रखना।” ज़ाहिर है, यह तो आयोजकों के अख्तियार में था। कार्यक्रम लंबा चला। उस दिन वीरेनदा को देखकर कुछ संशय हुआ था। थोड़ा डर भी लगा था।
आखिरकार नेपाल के बहुप्रतीक्षित संविधान को अंतिम रूप देने का काम 13 सितंबर से शुरू…
भोपाल में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन करने गए प्रधानमंत्री मोदी से वहां मुलाकात का वक्त मांगने वाले गैस कांड पीडि़तों के प्रति उनकी संवेदनहीन और घृणित प्रतिक्रिया से हम स्तब्ध और आक्रोशित हैं।
The recent killing of MM Kalburgi, a 78-year-old renowned Kannada writer, rationalist and scholar, is just another addition to the growing list of murders committed by fundamentalist right-wing individuals and groups.
प्रो. कलबुर्गी की ह्त्या का प्रतिवाद और श्री उदय प्रकाश और प्रो. चंद्रशेखर पाटिल द्वारा सम्मान लौटाए जाने की घोषणा का महत्व
कर्नाटक के धारवाड़ में कन्नड़ के साहित्य अकादेमी विजेता विद्वान प्रो. एम.एम. कलबुर्गी की दिनदहाड़े हत्या को एक हफ्ता भी नहीं बीता है कि लखनऊ से कुछ कलाकारों, लेखकों, पत्रकारों और कवियों समेत राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर दंगा भड़काने की कोशिश के जुर्म में एफआइआर दर्ज किए जाने की खबर आ रही है।
मैं श्री उदय प्रकाश के साहित्य, विचारों, वक्तव्यों, कार्यों, मनःस्थितियों और कार्रवाइयों पर कुछ भी नहीं कहता हूँ क्योंकि उसे भी वह उसी वैश्विक षड्यंत्र का हिस्सा मान लेंगे जो अकेले उनके खिलाफ मुसल्सल चल रहा है, किन्तु मुझे उनका यह साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाना बिलकुल समझ में नहीं आया।
अब यह चुप रहने का और मुँह सिल कर सुरक्षित कहीं छुप जाने का पल नहीं है। वर्ना ये ख़तरे बढ़ते जायेंगे।
बनारस के अख़बारों में मरने-मारने की ख़बरें हाल तक काफी कम होती थीं। एक समय था जब कुछ लोग ऐसा दावा भी करते थे कि बनारस में बलात्कार नहीं होते और लोग खुदकुशी नहीं करते।
पूर्णिमा बीत गई। सावन ढलने वाला है। देश रक्षाबंधन मना चुका। बनारस सुरक्षा बंधन मना रहा है। देखकर दिमाग चकरा गया जब हमने शुक्रवार की सुबह करीब दो दर्जन औरतों की भीड़ को नई सड़क के एक कोने में एक स्टॉल के पास जमा पाया।
बनारस और दिल्ली के बीच कई संयोग हैं। पहले भी थे, अब भी हैं, आगे भी घटते रहेंगे। कुछ संयोग हालांकि ऐसे होते हैं जिनकी ओर हमारा ध्यान सहज नहीं जाता। मसलन, कल शाम जब बनारस के अपने अख़बार गांडीव पर नज़र पड़ी तो मेरा दिमाग कौंधा।