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कतील को जांच एजेंसियों ने इसलिए मारा

Jun 13, 2012 | राजीव यादव

बाटला हाउस में मारे गए संजरपुर, आजमगढ़ के लोगों की जो तस्वीर हमारी आंखों और सीनों में एक अरसे से चुभ रही थी, बिहार के दरभंगा का बाढ़ समेला गांव उसकी हूबहू तस्वीर बन गया है. दहशतगर्दी के नाम पर कत्ल का यह सियासी दौर हमारे सामने है.

 
जिस तरह संजरपुर आजमगढ़ के दो लड़को का बटला हाउस में तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल और मुख्यमंत्री शीला दिक्षित की मैजूदगी में ठण्डे दिमाग से कत्ल, चार को गायब और तीन अन्य को जेलों में कत्ल की आहट सुनने को मजबूर कर दिया है, ठीक वही हालात बाढ़ समेला के हैं. जहां के कतील अहमद सिद्किी की पुणे की यर्वदा जेल में हत्या, गौहर अजीज खुमैनी और कफील अख्तर जेल में और पिछली 13 मई से सउदी अरब से फसीह महमूद का अपहरण कर उसे ना जाने किन हालात में भारतीय राज्य ने रखा है.
 
कुछ दिनों पहले दरभंगा जाने पर कई सवाल हमारे सामने आए, जिनके आलोक में बात की जाय तो कतील के कातिलों की शिनाख्त की दिशा में पहुंचा जा सकता है. कतील के कत्ल की साजिश को समझने के लिए उसकी गिरफ्तारी और पूछताछ के विभिन्न पहलुओं पर खुले दिमाग से बात करनी होगी. कतील सिद्किी की हत्या और फसीह महमूद का अपहरण दोनों कडि़यां एक दूसरे से जुड़ी हैं. क्योंकि पिछले दिनों समाचार माध्यमों से जो भी खबरें आईं उसमें कतील भी एक आधार था फसीह मामले में. कितना सच्चा-कितना झूठा यह देखना भी नसीब नहीं हो पाया कतील को. दरभंगा, समस्तीपुर, मधुबनी समेत बिहार के सीमावर्ती जिलों में तकरीबन तीन सालों से विभिन्न प्रदेशों की एटीएस, एनआईए, क्राइम ब्रांच, खूफिया विभाग की तमाम एजेंसियों के साथ बिहार पुलिस के सहयोग से इडियन मुजाहिदीन के नए स्लीपिंग माड्यूल के बतौर प्रमुख रुप से दरभंगा को स्थापित और प्रचारित किया गया. आज जिस एनआईए को लेकर केंद्र सरकार माहौल बनाए हुए है, दरअसल इंडियन मुजाहिदीन के इस माड्यूल को खड़ा करने में उसकी अहम भूमिका है.
 
दरभंगा के स्थानीय लोगों ने यहां के लोगों के पकड़े जाने की वजह के रुप में एक बात कही कि विकास वैभव जो दरभंगा के एसपी थे के यहां से जाने के बाद यहां से गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरु हुआ. लोगों का कहना था कि विकास वैभव इस समय एनआईए में हैं और उन्होंने यहां रहते हुए यहां की स्थानीय पुलिस और खुफिया की मदद से लड़कों को फंसाने का खाका तैयार कर लिया था.
 
कत्ल से 18 दिन पहले अपनी पत्नी फातिमा से हुयी बातचीत में कतील ने अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी. जिसके बाद कतील के भाई शकील ने अपने ममेरे भाई अफरोज, जो धारावी में बैग बेचने का काम करते हैं, को फोन करके कतील से मिलने के लिए कहा. अफरोज कतील से मिलने के लिए जब पुणे जेल गए तो वहां बताया गया कि उन्हें मुंबई ले जाया गया है. जब वे मुंबई एटीएस के पास पहुंचे तो वहां कहा गया कि कतील को पुणे भेज दिया गया है, आठ जून को न्यायालय में उनकी पेशी है. और आठ जून वो तारिख है जिसकी सुबह में कतील की हत्या कर दी गई. कतील के पिता भी कह चुके हैं कि पांच जून को उसको दिल्ली की अदालत में पेश करना था पर उसे पेश नहीं किया गया.
 
इन बातों से एक बात तो स्पष्ट है कि कतील अपने परिवार वालों से फोन पर हिरासत के दौरान बातचीत करता था. दरअसल कतील ही नहीं इस दौरान दरभंगा से पकड़े गए तकरीबन सभी लड़के अपने घर वालों से फोन पर जांच एजेंसियों के सहयोग से बात करते थे. जिस दरम्यान हम दरभंगा गए थे उस दरम्यान यहां के कई लड़कों को बैंगलोर पूछताछ के लिए ले जाया गया था. और उसी वक्त जांच के लिए इन लड़कों को यहां (दरभंगा) लाया भी गया था और उसके बाद भी कई बार बैंगलोर की जांच एजेंसियां यहां आती रहीं.
 
सवाल यहां अहम है कि आखिर जांच एजेंसियां आतंकवाद जैसी बड़ी घटना के आरोपियों को फोन की व्यवस्था क्यों मुहैया करा रही थीं. हमें यहां बैगलोर के एक जांच अधिकारी जिसका नाम गोपाल है का मोबाइल नम्बर 09448162936 भी प्राप्त हुआ. इस मोबाइल नम्बर से अक्सरहां परिवार वालों से बात कराई जाती थी. ऐसा आतंकवाद के नाम पर पकड़े गए विभिन्न परिवार वालों ने हमें बताया. और यह भी बताया कि लड़के कहते हैं कि हम पुलिस के गवाह बन जाएंगे या जो सेल वाले कहेंगे वो मान जाएंगे तो हम जल्द रिहा कर दिए जाएंगे.
 
दरअसल आज भारत की विभिन्न जांच एजेंसियों के सामने एक बड़ा सवाल है, इंडियन मुजाहिदीन के अस्तित्व को स्थापित करना. क्योंकि इंडियन मुजाहिदीन के अस्तित्व पर लगातार सवाल उठते रहे हैं और इसे कुछ मानवाधिकार संगठन गृह मंत्रालय और जांच एजेंसियों द्वारा बनाया गया कागजी संगठन मानते रहे है. एजेंसियां दरभंगा से उठाए गए कई लड़कों को गवाह बनाने की कोशिश कर रही थीं. जांच एजेंसियंा अपनी थ्योरी में आईएम के दरभंगा माड्यूल के केन्द्रक के बतौर कतील को स्थापित करना चाहती थीं. आईएम की थ्योरी को स्थापित करने और पिछले दिनों फसीह महमूद के सवाल में फंसती एजेंसियों ने कतील को मारकर पूरी प्रक्रिया को एक दूसरी दिशा में मोड़ने का प्रयास किया है. यह आशंका तब और बढ़ जाती है जब कतील के परिवार वालों के अनुसार उसे पांच और आठ जून को न्यायालय में पेश करना था पर पेश नहीं किया गया. इस दौरान के पूरे हालात पर नजर डालें तो कतील ही वो व्यक्ति था जिसके बयान के आधार पर विभिन्न लड़कों को गिरफ्तार किया गया था. इस दरम्यान फसीह महमूद का मामला अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उठ रहा था और सरकार समेत जांच एजेंसियां इस बात का जवाब देने से लगातार भाग रही हैं. फसीह महमूद मामले में सुप्रिम कोर्ट में पड़े हैबियस कार्पस पर डेट पर डेट पड़ रही है. ऐसे में देखा जाय तो सरकार की बेचैनी और कतील पर जांच एजेंसियों के दबाव का वक्त एक ही था.
 
इन हालात में हमें कतील की गिरफ्तारी से लेकर उसकी हत्या तक के विभिन्न पहलुओं पर जांच एजेंसियों की भूमिका को जांचना होगा. दरभंगा में जब हमनें कतील के पिता जफीरुद्ीन को फोन किया कि हम लोग दरभंगा आए हैं और आपसे मिलना चाहते हैं तो उन्होंने कहा कि हम आप लोगों से आकर मिल लेते हैं. दूसरे दिन हुई मुलाकात में उन्होंने बताया कि आप लोगों का फोन आने के बाद सेल वालों का फोन आया कि जाओ मिल लो पर कुछ बताना नहीं. कतील के पूरे परिवार का फोन लंबे समय से सर्विलांस पर लगा है. कतील के पिता ने बताया कि हाल में बैग्लोर पुलिस आयी थी तो उसने उनसे पूछा कि लड़का क्या करता था तो मैंने कहा कि क्रिकेट खेलता था, खेत-पाथर जाता था और पढ़ाई करता था और क्या करेगा? जांच एजेंसियां परिवार वालों को यह आश्वासन देती थीं कि वैसे ही उठा लिया कोई गलती नहीं की बस गलती की फिराक में था. जेल में मुलाकात के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि दिल्ली में था तो बहु मिलने के लिए जाती थी, मैंने एक बार टिकट कटवाया, लेकिन पता चला कि सेल उसे बैंगलोर ले गया है. फिर कटवाया हूं अगर दिल्ली आ जाएगा तो मुलाकात होगी. उन्होंने यह भी बताया कि कतील जब बैग्लोर में था तो उसने मां से बात की थी. फोन पर उसकी पत्नी ने कहा था कि मां की तबीयत खराब है तो उसने फोन किया था. ऐसे में यह जरुरी हो जाता है कि फोन पर हुई बातचीत का ब्योरा सरकार जारी करे, क्योंकि इस बातचीत से जांच एजेंसियों की पूरी आपराधिक भूमिका उजागर हो जाएगी. यह एक महत्वपूर्ण सवाल है जो कतील के कत्ल की जांच की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कारक बन सकता है.
 
दरअसल इस क्षेत्र के बहुत सारे लड़के दक्षिण भारत में तकनीकी शिक्षा लेने के लिए जाते हैं. पिछले दिनों सउदी अरब से उठाए गए फसीह महमूद की गिरफ्तारी के पीछे भी यही कारक है. पिछले दिनों फसीह की पत्नी निखत परवीन से मुलाकात के दौरान उनका भोला सवाल और साथ में उसका जवाब भी था, जो चिदम्बरम की प्रेस वार्ता को लेकर उन्होंने कहा कि जब उन्हें मालूम हैं कि वो कहा हैं तो आखिर क्यों नहीं वो बताते? फसीह के बारे में पूछने पर वो उनके बैग्लोर की पढ़ाई के बारे में और किस तरह से उनको सउदी में नौकरी मिली इसका ब्योरा देने के साथ ही जब फसीह में परीक्षा में बैक होने पर बात आती हैं तो वे थोड़ी सी मुस्कुराहट के साथ बताती हैं कि ये सब उन्हें भी अब मालूम चला.
 
बहरहाल, सवाल यह है कि आखिर दंरभगा के लड़कों का बैंगलोंर जाना कैसे एक षडयंत्र हो सकता है? षडयंत्र तो एटीएस कर रही है कि पिछले दिनों जब कतील को उसके गांव बाढ़ समेला लाया गया और उसकी मां गुलशन आरा से पूछा गया कि क्या इमरान आया था उनके मना करने पर भी उनसे साइन करवा लिया गया कि इमरान आया था. दरअसल पुलिस के मुताबिक इमरान ही यासीन भटकल है. दरभंगा के इस दौरे में कई और महत्वपूर्ण जानकारियां मिलीं. यह भी बात सामने आई कि कतील के चचा के लड़को के साथ भी पूछताछ की जा रही है, जो कोलकाता में रहते हैं. जहां तक सवाल कतील की गिरफ्तारी का है तो लंबे समय से उसके यहां पूछताछ के नाम पर चोरी-छिपे पुलिस आती-जाती रही है. जिसका स्थानीय स्तर पर सहयोग उसके थाना क्योटी की बिहार पुलिस करती थी. गिरफ्तारी के कुछ दिनों पहले भी उसके यहां पुलिस ने दबिश दी थी. विभिन्न जांच एजेन्सियों ने पूछताछ के नाम पर आगे पूरी पटकथा लिखी फिर कतिल को पकड़ा. आज जो बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार कहते फिर रहे हैं कि उनके यहां के लड़कों को बाहर की पुलिस उठा ले जा रही है, दरअसल ये सफेद झूठ है. नितीश को बताना चाहिए कि आखिर विभिन्न थानों की पुुलिस इन गिरफ्तारियों में बाहर की एजेंसियों के साथ क्यों जाती है? कतील के पिता बताते हैं कि जब एक बार पुलिस उनके घर आई और वो नहीं थे तो उन्होंने घर आने पर क्योटी थाने के थानाध्यक्ष शेर सिंह यादव को फोन किया कि क्या बात है तो उन्होंने कहा कि वे फिलहाल बैंगलोर एटीएस के साथ दरभंगा में हैं. एक बार शेर सिंह के साथ ही कोलकाता की पुलिस भी आई थी.
 
पिता बताते हैं कि 19 नवंबर 2011 को नबी करीम, दिल्ली में जब कतील बेटे को दिखाने डाक्टर के पास एक रिक्शे से जा रहे थे और पीछे के रिक्शे पर उनकी पत्नी और साले भी थे तभी आटो सवार कुछ लोगों ने आटो से आकर उसका अपहरण कर लिया. पत्नी ने देखा कि उन लोगों ने एक व्यक्ति जिसका नाम शम्स आलम था जो देवरा बंधौली, दरभंगा का था के पहचनवाने पर कतील को उठाया. जिसके बाद पत्नी ने थाने में जाकर शिकायत किया तो थाने वालों से शम्स आलम ने कहा कि ‘सेल’ वाले उठाए हैं. बाद में 22 नवंबर 2011 को कतील को आनन्द विहार से गिरफ्तार करने का दावा किया गया. पिता जफीरुद्दीन कहते हैं कि सेल ने कतील के पास नाइन एमएम की पिस्तौरल और दो लाख रुपए फर्जी मिलने का दावा किया था. वे सवाल के अंदाज में कहते हैं कि आप ही बताइए कोई अपने बेटे की दवा लेने ये सब ले के जाएगा. स्थानीय क्योटी थाना की पुलिस द्वारा कतील की गिरफ्तारी से पहले और बाद में गांव वालों से कहा गया और परिवार को बदनाम करने की कोशिश की गई कि ये लोग नोट छापते हैं. जफीरुद्दीन कहते हैं कि मैंने खेत बेचकर घर बनाया, उसे पढ़ने के लिए भेजा और आज तक घर का प्लास्टर नहीं हो पाया और पुलिस कह रही है कि वो नोट छापता था. 
 
दरभंगा के लोग आज उस श्रेणी में आ गए हैं जिन्हें न्याय तो दूर न्याय पाने की मांग पर उनके जीने के अधिकारों को भी राज्य नहीं देना चाहता. कुछ एक दिनों में फसीह के भारतीय राज्य द्वारा अपहरण किए जाने को एक महीने होने जा रहे हैं. भारतीय राज्य ने अग्रेंजी राज्य की तर्ज पर ऐसे मुस्लिम बहुल इलाकों का चयन कर उन पर आतंक का ठप्पा लगाया है, जिनके लोगों के मारे जाने पर सवाल करने की इजाजत नहीं है. आजमगढ़, भटकल, कन्नूर के साथ अब बिहार के सीमावर्ती जिले दंरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर समेत रांची अब उसके निशाने पर है.

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