कौन हैं आबिद हुसैन शेख, क्या बस एक मुसलमान?
Jan 2, 2012 | भंवर मेघवंशीभीलवाड़ा जिले में मांडल कस्बे के निवासी है 45 वर्षीय आबिद हुसैन शेख, दो बार निरंतर वे अंजुमन सदर मांडल रह चुके है तथा जिले की विभिन्न उर्स कमेटियों के भी सदस्य रहे है, उन्होंने 2005 में मांडल में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान प्रशासन के साथ मिलकर सौहार्द्र बनाने के लिए काम किया है. वर्ष 2006-07 में वे पीयूसीएल के सदस्य भी रहे है, उन्होंने कर्इ मौकों पर कौमी एकता के लिए आयोजित कार्यक्रमों तथा भजन संध्याओं में भी शिरकत की तथा सदैव हिंदू-मुस्लिम एकता व आपसी भार्इचारे के लिए काम किया है.
वे अनुसूचित जाति जनजाति अल्पसंख्यक एकता मंच के जिलाध्यक्ष है तथा उन्होंने गत वर्ष वंचित वर्गों के लिए भीलवाड़ा जिले में आयोजित \\\’सामाजिक न्याय यात्रा का भी संयोजन किया. होटल व्यवसाय से जुड़े आबिद हुसैन शेख ने हाल ही में फेसबुक पर आपत्तिजनक सामग्री के प्रकाशन के बाद बिगड़े माहौल के दौरान भीलवाड़ा तथा उदयपुर जिले में प्रशासन को शांति का वातावरण तैयार करने में अहम भूमिका निभार्इ. उन्होंने आसींद, मांडल, जहाजपुर, सांगानेर तथा भीलवाड़ा जिले के कर्इ क्षेत्रों में हुर्इ सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं के वक्त भी सकारात्मक एवं निष्पक्ष भूमिका अदा की.
अभी 19 दिसंबर 2011 की मंगला चौक भीलवाड़ा की घटना के पश्चात भी उन्होंने सौहार्द्र और भार्इचारे के लिए ही पृष्ठभूमि तैयार की तथा पुलिस ज्यादती के खिलाफ आवाज उठार्इ. हालांकि उन्होंने पापुलर फ्रंट आफ इंडिया द्वारा आयोजित रैली व ज्ञापन में आम मुस्लिम की तरह भूमिका निभार्इ लेकिन उनका पीएफआर्इ जैसे संगठनों से कोर्इ जुड़ाव नहीं है.
आबिद हुसैन शेख ने विगत 15 वर्षों से दलितों, आदिवासियों तथा अल्पसंख्यकों के सामाजिक, राजनीतिक एवं लोकतांत्रिक हकों के लिए मुखर आवाज उठार्इ है तथा उनकी छवि एक उदारवादी, समझदार और सुलह समझौता करने वाले मुसिलम नेता की रही है. उन्होंने जिले में जातिगत उत्पीड़न, साम्प्रदायिक तनाव व महिला उत्पीड़न, सांप्रदायिक तनाव व महिला उत्पीड़न के मुददे भी उठाए है.
अभी भी उनकी भूमिका पुलिस द्वारा मुस्लिम युवाओं पर की गर्इ ज्यादती के खिलाफ आवाज उठाने की ही रही है लेकिन चूंकि पुलिस को उनकी मानवाधिकार संरक्षक की भूमिका रास नहीं आर्इ, इसलिए 24 दिसंबर 2011 को भीमगंज थाना में दर्ज मुकदमा 13311 में रासुका के तहत जबरन नामजद कर दिया और अब पुलिस उनके पीछे पड़ी हुर्इ है, बार-बार पुलिस उनके घर जा रही है तथा उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है, जो कि सरासर अन्याय है और यह मानव अधिकार कार्यकर्ताओं का खुला दमन है, जिसे तुरंत रोका जाना जरूरी है.