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बटला हाउस के मृत युवकों की लाश पर राजनीति

Jan 16, 2012 | अफ़रोज़ आलम 'साहिल'

19 सितंबर की सुबह जामिया नगर के बटला हाउस इलाक़े में पुलिस ने फर्जी इनकाउंटर (बल्कि इसे फर्जी इनकाउंटर के बजाए हत्याकांड कहना ज़्यादा मुनासिब रहेगा, लोग मेरे विचार सहमत हों या ना हों, पर मैं तो इसे हत्याकांड ही मानता हूं, क्योंकि हमारे पास इसे हत्याकांड कहने के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं) के बाद अब पहली बार उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव हो रहे हैं. चुनावी मौसम में अब बटला हाउस हत्याकांड में मारे गए युवकों की लाशों पर राजनीति की जा रही है. 

 
दिग्विजय सिंह के बयान के बाद उसकी चर्चा राजनीतिक गलियारों में फिर से होने लगी है. लेकिन इन नेताओं का उद्देश्य राजनीति से ज़्यादा कुछ भी नहीं है. अगर हम अपने नज़रिए से देखते हैं तो इस मामले पर अब तक केवल राजनीति ही हुई है जो आज भी जारी है. इस मामले के तीन वर्षों बाद आज भी कई निर्दोष बच्चे जेल की सलाख़ों में बंद हैं और उनके घर वाले उनकी जीवन की भीख मांग रहे हैं. मगर कौन है जो मासूमों और लाचार घर वालों की आवाज़ सुन सके. हाँ! इतना ज़रूर है कि दो मासूम लड़कों की लाश को सीढ़ी बनाकर स्टेज पर खड़े ज़रूर होते हैं और वह स्टेज भी इन्हीं निर्दोष मासूमों के कंधों पर बनी होती है जो जेल की सलाख़ों में बंद हैं. कितनी दुखद बात है कि सारी सच्चाई सामने आ जाने के बाद भी मानवाधिकार की बात करने वाले ठेकेदार या हमारे मिल्ली व सियासी रहनुमा,  जिन्होंने इन मासूमों की लाशों पर खड़े होकर अपना कद ऊँचा करने की कोशिश की थी आज खामोश बैठे है.
 
शुरू से ही विवादों में रही इस घटना को समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी मुस्लिम मतदाताओं का रुख अपनी ओर करने के लिए कर रही हैं. दोनों ही पार्टियां खुद को मुसलमानों की हितैषी पार्टी बताने के लिए लगी हुई हैं. 11 जनवरी को आजमगढ़ के शिबली कॉलेज में आमसभा कर रहे राहुल गांधी का जब विरोध हुआ तो दिग्विजय सिंह तुरंत बचाव में आ गए. मीडिया के सामने आकर दिग्विजय सिंह ने बयान जारी कर दिया कि बटला हाउस इनकाउंटर फर्जी था. दिग्विजय सिंह ने कहा, मैं हमेशा मानता रहा हूँ कि यह इनकाउंटर फर्जी था, मैंने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से भी इस बारे में बात की लेकिन वह जांच के लिए तैयार नहीं हुए.
 
दिग्विजय सिंह के बयान देते ही गृहमंत्री पी चिदंबरम ने सफाई देते हुए कहा कि बटला हाउस इनकाउंटर सही था. मौक़ा मिलते ही भाजपा भी चुनावी मैदान में कूद पड़ी. एमसी शर्मा की बहादुरी का गुणगान करते हुए भाजपा ने कहा कि इनकाउंटर को फर्जी बताना मोहन शर्मा की शहादत की तौहीन है.
 
दुख की बात यह है कि हमारी राजनीतिक शक्तियां बटला हाउस हत्याकांड में मारे गए लोगों की लाशों पर राजनीति तो कर रही हैं लेकिन कोई भी न्यायिक जांच की मांग नहीं कर रहा. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को मुसलमानों के वोट चाहिए,भाजपा को हिन्दू वोट चाहिए. गृहमंत्री नहीं चाहते कि उनकी पुलिस पर कोई भी सवालिया निशान उठे. बटला हाउस हत्याकांड में मारे गए युवकों की लाशों पर मंच सज चुका है. वोट का खेल जारी लेकिन कई सवाल हैं जो जवाब चाहते हैं.
 
सबसे पहला सवाल दिग्विजय सिंह से… आप देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल में महत्वपूर्ण पद पर होते हुए भी केवल बयान ही दे रहे हैं. क्या आपका ज़मीर आपसे सवाल नहीं करता कि आपके बयान अब सबूतों की रोशनी में साबित होने चाहिए . क्यों नहीं आप जूडिसियल जांच की मांग कर रहे हैं? और आप इतने ही मजबूर हैं तो छोड़ दीजिए कांग्रेस और बना लीजिए खुद की अपनी पार्टी ताकि इस देश में कभी किसी निर्दोष का क़त्ल न हो और मुसलमान न्याय की लड़ाई में हर समय आपके साथ खड़ा हो सके.
 
अब अगला सवाल भाजपा से… आप बटला हाउस हत्याकांड को जायज़ मानते हैं तो मानते रहिए. लेकिन कम से कम एमसी शर्मा के मौत की जांच की मांग तो करें. ऐसा भी हो सकता है कि वह किसी षड्यंत्र का शिकार हुए हों. जब गुजरात में सोहराबुद्दीन और इशरत जहां केस फर्जी हो सकता है,  तो दिल्ली में बटला हाउस एनकाउंटर फ़र्ज़ी क्यों नहीं? क्या केवल इसलिए कि गुजरात में भाजपा की सरकार है और दिल्ली में कांग्रेस की? और आप यह क्यों नहीं सोचते कि एक शहीद की शहादत पर लगने वाला दाग भी सदा के लिए धूल जाएगा. और पूरी दुनिया के मुसलमान उनके शहादत को सलाम करेंगे.
 
आरटीआई द्वारा बटला हाउस हत्याकांड से जुड़ी जानकारी निकालने में दो साल का समय लग गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट सबसे महत्वपूर्ण है. आरटीआई द्वारा बाहर आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट बटला हाउस इनकाउंटर पर कई सवाल खड़े करती है. सबसे गंभीर सवाल एमसी शर्मा की मौत पर हैं. जो व्यक्ति गोली लगने के बाद अपने पैरों पर चलकर चार मंजिल इमारत से उतर कर नीचे आया और कहीं भी एक कतरा खून भी न गिरा हो, और जो मीडिया रिपोर्ट के अनुसार शाम पांच बजे तक बिल्कुल खतरे से बाहर हो तो उसकी शाम सात बजे अचानक मौत कैसे हो गई? अगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट की बात करें तो उसके अनुसार इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के बारे में रिपोर्ट का कहना है कि बाएं कंधे से 10 सेंटीमीटर नीचे और कंधे से 8 सेमी ऊपर घाव के बाहरी भाग की सफाई की गई. 
 
शर्मा को 19 सितंबर 2008 में L-18 में घायल होने के बाद निकटतम अस्पताल होली फैमिली में भर्ती कराया गया था. उन्हें कंधे के अलावा पेट में भी गोली लगी थी. रिपोर्ट के अनुसार पेट में गोली लगने से खून का ज्यादा स्राव हुआ और यही मौत का कारण बना. अब फिर यह सवाल उठता है कि जब शर्मा को 10 मिनट के अन्दर चिकित्सीय सहायता मिल गई थी और संवेदनशील जगह (Vital part) पर गोली न लगने के बावजूद भी उनकी मौत कैसे हो गई? कैसे उनके शरीर से 3 लीटर खून बह गया. सवाल यह भी है कि मोहन चंद शर्मा को गोली किस तरफ से लगी, आगे या पीछे से. क्योंकि आम जनता की तरफ से इस तरह की भी बातें आई थीं कि शर्मा पुलिस की गोली का शिकार हुए हैं. इस मामले में फारेंसिक एक्सपर्ट का जो बयान है वह क़ाबिले क़बूल नहीं है. और पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी इसे स्पष्ट करने में असमर्थ है,क्योंकि होली फैमली अस्पताल जहां उन्हें चिकित्सीय सहायता के लिए लाया गया था और बाद में वहीं उनकी मौत भी हुई, उनके घावों की सफाई की गई थी. लिहाज़ा पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर अंतिम तौर पर यह नहीं बता सके कि यह घाव गोली लगने के कारण हुआ है या गोली निकलने की वजह से. दूसरी वजह यह है कि इंस्पेक्टर शर्मा को ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (एम्स ) में सफेद सूती कपड़े में लिपटा हुआ ले जाया गया था. और उनके घाव पट्टी (Adhesive Lecoplast)से ढके हुए थे. रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से लिखा है कि जांच अधिकारी (IO) से निवेदन किया गया था कि वह शर्मा के कपड़े लैब में लाएं. लेकिन आज तक ऐसा हो न सका. उनके मौत पर मेरे अनगिनत प्रश्न हैं जिनका उत्तर मुझे आज तक आरटीआई से भी नहीं मिल पाया है.
 
मैं यह नहीं कहता कि बिना आरटीआई इस नरसंहार पर सवाल नहीं उठते, लेकिन यह ज़रूर कहता हूँ कि आरटीआई द्वारा सामने आई जानकारी ने उसे फर्जी साबित ज़रूर कर दिया है. अब ज़रूरत बात की है कि उसकी हर हाल में जांच करवाई जाए.
 
आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि केंद्र सरकार इस घटना की न्यायिक जांच कराने से क्यों कतरा रही है? यदि हमारे मंत्री पी. चिदंबरम साहब को यह लगता है कि यह हत्याकांड नहीं एनकाउंटर है तो क्यों नहीं उसकी जांच करवा देते ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए. जरा सोचिए बटला हाउस हत्याकांड का फ़ाइल बंद रहने से देश को बड़ा खतरा है या बटला का सच सामने आने से. बटला हाउस हत्याकांड के फर्जी साबित होने का मतलब यह है कि आतंकवाद के मूल सौदागर जीवित हैं और पुलिस पहुंच से बाहर हैं और देश के खिलाफ और भी साजिशें रच रहे हो.
 
चलते चलते में यह भी कहना चाहुंगा कि हमारे देश के वो मिल्ली और राजनीतिक नेता अब कहां गायब हो गए जो इस मामले पर लगातार टोपी और शेरवानी की गर्द झाड़ते रहे हैं. और साथ ही सरकार को यह बताना चाहुंगा कि मुसलमानों को रीज़र्वेशन से पहले सम्मान से जीने का अधिकार और मृतकों को न्याय तो दीजिए.

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