कट्टरता के पिंजरे में कैद उड़ानें
वहाबीवाद का पोषक सऊदी अरब विश्व का सबसे मह्त्वपूर्ण और प्रभावी मुस्लिम देश है, यहाँ…
वहाबीवाद का पोषक सऊदी अरब विश्व का सबसे मह्त्वपूर्ण और प्रभावी मुस्लिम देश है, यहाँ…
चर्चों पर हमले, ‘घर वापसी’ के रूप में चालबाजी से भरे धर्मांतरण, हिंदू धर्म को बचाने के लिए अनेक बच्चे पैदा करने के उपदेशों और मुसलमानों पर लगातार हमलों और उनको अपमानित करने जैसे कदमों की एक लंबी फेहरिश्त में, विकास-केंद्रित भाजपा ने अब अपने हिंदुत्व के पिटारे से ‘पवित्र गाय’ को भी इसमें जोड़ दिया है. 3 मार्च को महाराष्ट्र सरकार को इसके उस कठोर विधेयक पर राष्ट्रपति की सहमति मिल गई, जिसमें गाय और इसके वंश की न सिर्फ हत्या करने पर बल्कि किसी भी रूप में उनके मांस को रखने पर भी सजा का प्रावधान है.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से 23 मार्च 2015 को शहीदी दिवस पर अखबारों में विज्ञापन छपा जिसमें शहीद-ए-आज़म भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की साझा तस्वीर है। इस तस्वीर में भगत सिंह को फिर से पगड़ी पहना कर क्रांतिकारी चेतना को कम करने की एक बार फिर से साजिश रची गई है। यह क्रांतिवीर का अपमान है क्योंकि भगत सिंह पूरे देश के शहीद हैं।
उमेश डोभाल की याद में आयोजित इस समारोह में आने का अवसर पा कर मैं काफी गर्व का अनुभव कर रहा हूं। बहुत दिनों से पौड़ी आने की इच्छा थी। 1980 में जब मैंने समकालीन तीसरी दुनिया का प्रकाशन शुरू किया था उस समय से ही यहां राजेन्द्र रावत राजू से मेरी मित्रता शुरू हुई जो काफी समय तक बनी रही। उनके निधन के बाद यह जगह मेरे लिए अपरिचित सी हो गयी और फिर धीरे-धीरे यहां से संबंध् कमजोर पड़ता चला गया।
(प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दस महीने में पहली ऐसी कामयाबी मिली है जो वाशिंगटन में…
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और वरिष्ठ माओवादी नेता बाबूराम भट्टराई ने कहा है कि नेपाल में राजनीतिक स्थिरता का होना भारत के लिए बहुत आवश्यक है और भारत सरकार इस बात को समझती है, इसीलिए वह नेपाल के संविधान निर्माण समेत अन्य आंतरिक मामलों में कोई दख़ल नहीं दे रही तथा एक स्थिर और टिकाऊ शासन व संविधान के लिए नेपाल को पूरा सहयोग भी दे रही है। भट्टराई प्रवासी नेपालियों के संघ के एक कार्यक्रम में भारत आए थे जिस दौरान उन्होंने दिल्ली में पत्रकारों व राजनीतिक कार्यकर्ताओं के एक समूह को संबोधित करते हुए बुधवार को यह बात कही।
The student occupation at the University of Amsterdam speaks to a deepening crisis of higher…
दिल्ली में 24 फरवरी 2015 का दिन बहुत नाटकीय रहा। मीडिया में जो दिखाया गया, वह सड़क पर नहीं था। जो सड़क पर था, उसे कैमरे कैद नहीं कर पा रहे थे। इसकी दो वजहें थीं, जैसा मुझे समझ में आया। जैसा कि मीडिया में प्रचारित था कि यह आंदोलन अन्ना का है और जंतर-मंतर से चलाया जा रहा है, उसी हिसाब से दिन में बारह बजे के आसपास जब मैं जंतर-मंतर पहुंचा तो वहां अपने मंच पर अन्ना मौजूद नहीं थे।
उनको बचपन से ऐसा ही देखा है. सुबह की शाखा के बाद दर-दर पर्चे बांटते. स्वदेशी का नारा लगाते. गीत दोहराते, चोखा-बाटी कार्यक्रम और वनवासी कार्यक्रम में शामिल होते. मैदान साफ करते, बुहारते-संवारते. बड़े पैसेवालों के वाहन सजाते. वे फूल भी खुद तोड़कर लाते थे.
क्या आप विलास सोनवणे को जानते हैं? कल दिल्ली में उनका एक व्याख्यान था। विषय था ”धर्मांतरण की राजनीति”। विलास पुराने एक्टिविस्ट हैं, कोई चार दशक पहले तक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में हुआ करते थे। बाद में इन्होंने लाल किताबों के दायरे से बाहर निकलकर समाज में काम करना शुरू किया।
मुरुगन ने किसी प्रथा पर कोई मूल्य निर्णय नहीं दिया है, अच्छा या बुरा नहीं कहा है, उन्होंने सिर्फ एक कोमल कहानी कही है जो एक समाज में जन्मी है. उस समाज की कुछ प्रथाएं और मान्यताएं हैं जो उस समाज में जी रहे लोगों के जीवन से लिपटी हैं,
हम एक ऐसे समय में खड़े हैं जब सहजता का नाम तक असहिष्णु होता जा रहा है. जब प्रगति के घोड़े सबसे तेज़ भागते दिखाए जा रहे हैं, हम आक्रामक और असहिष्णुताओं के प्राचीर बन गए हैं. एक कविता…