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बीटिंग रिट्रीटः बिन बादर बौराए संवरिया

Aug 2, 2012 | पाणिनि आनंद
(गुरुवार की सुबह जब सारा मीडिया कह रहा था कि अरविंद को जबरन उठाया जाएगा और आंदोलन आगे तक जाएगा, लेखक ने यह ब्लॉग किंडल पत्रिका के लिए लिखकर भेजा था जो किंडलमैग डॉट इन पर प्रकाशित भी है. अन्नान्दोलन के पैक-अप की यह घोषणा वहीं से साभार- प्रतिरोध)
 
बचपन में एक गीत सुनते थे- आग लगे हमरी झोपड़िया मा, हम गइबै मल्हार. दिल्ली में आजकल इसी मिंया मल्हार की गूंज है. रह-रह मल्हार गूंज रहा है. पर कम्बख्त बादल इसबार नज़र नहीं आ रहे. न आसमान में, न जंतर मंतर पर. जो आए हैं, पता चला है कि लाए गए हैं. हरियाणा और आसपास से… एनसीआर से. नहीं समझे… राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से. इसी एनसीआर में तो हैं नवेडे (नोएडा) के वे दलित, जिनकी बड़े पैमाने पर ज़मीनें हड़पकर कुछ बड़े बिल्डर रियल इस्टेट खड़ा कर रहे हैं. इन्हीं हथियाई हुई ज़मीनों पर कुछ ईमानदार वकीलों के प्लॉट निकल आए हैं थोक के भाव. दलित यहाँ मारे जा रहे हैं. एक को पिछले दिनों रेलपटरी से बांध दिया था. उसका पैर कट गया. दूसरा काटना पड़ा. इसी एनसीआर में 3000 मजदूर भागा हुआ है. पुलिस उन्हें भेड़िए की तरह खोज रही है. मारुति मैनेजमेंट बरखा रानी की गोदी में बैठकर राग घड़ियाली गा रहा है… मैं भी न. अरे कहा कि झोपड़ी की आग छोड़ो, मल्हार गाओ. जंतर मंतर के लिए ये बलिदान छोटे हैं. विल टॉक अबाउट देम लेटर. ओके. हैंग ऑन.
 
और इधर, जंतर-मंतर पर… हरवाहे हांक हांक ला रहे हैं पर बदरा बिदके हुए हैं. आसमान कभी कभी छायादार नज़र आता है. एकदम सिनेमाई सेट की तरह… घनन घनन घन घिर आए बदरा… इसे देखकर मंच पर बैठे कुछ निष्प्राण होते जीवों की आंखों में रौशनी कौंध जाती है. आमिर ख़ान जैसा क्लोज़ अप रिएक्शन शॉट… मंचस्थ चहक पड़ते हैं. कोई 15 मंत्रियों की कुंडली बांचने लगता है. कोई कहता है, यह लोकपाल नहीं, संपूर्ण क्रांति है. कोई सफेद धवल वस्त्रों में गांधी जैसा स्वांग दिखाता है. साथ बैठे लोग कहते हैं- ऐसे लोग युगों युगों में कभी कभी पैदा होते हैं. मेरे दिमाग में छोटा पर्दा तैरने लगता है. फ्लैश बैक… रविवार की दोपहर, महाभारत धारावाहिक… यदा यदा हि धर्मस्य…
 
कान से पास से लहराया हुआ एक पानी का पैकेट उड़ा जाता है और किसी की गोद, किसी के सिर पर गिरता है. लपकने वाला और ज़ोर से भारत माता की जय बोलता है. तबतक एक वीरांगना झंडा लेकर ललकार उठती है. पीछे से एक किराए का कवि राग दरबारी में कविताएं पढ़ने लगता है. इन सबके बीच कुछ बिना बाल के दलाल नज़र आते हैं. मैं फिर फ्लैश बैक में चला जाता हूं. लगता ह कि श्याम बेनेगल का भारत एक खोज एक पैकेजिंग के साथ आंखों के सामने रख दिया गया है. सारे पात्र एक साथ. अरे वो देखो, क्रेन और ट्रॉली भी हैं. स्पेशल इफेक्ट लाइट्स. देखो, देखो…. दिल्ली में शूटिंग नहीं होती न. मुंबई टाइप्स नहीं न है जी. हवा में लहराते कैमरों को दिल्ली वाले ऐसे देखते हैं जैसे छोटे बच्चे कौतुहल से आसमान से कटकर इठलाती-बलखाती पतंग को देखते हैं.
 
तो स्थिति यह कि गांधी, जेपी सब साथ. झांसी की रानी भी, एक-दो साइड एक्टर्स, नेहरू, पटेल टाइप्स. जिन्ना अनुपस्थित… पता चला नाराज़ हैं. नेहरू टाइप उनकी चलने नहीं दे रहे. और फिर जिन्ना का रोज़ा भी तो है. वो गांधी के साथ उपवास क्यों करें… एक-दो बाबा… अरे, ये कैसे. ये तो आज़ादी की लड़ाई में थे नहीं. तो क्या चूरन बेचने आए हैं. बाबाओं का यही प्रॉब्लम है जी. जहाँ बस्ती देखी, झोली टांगकर पहुंच गए. मंगते के मझोले ने चोरी का पासपोर्ट बनवाया. इसपर सरकार ने डंडा दिखाया. बाबा फिर भी बाज न आया. आ गया मार्केट में. इंतज़ार कर रहा है कि आठ अगस्त तक इधर एक आधा टपक ले तो नौ अगस्त से उसके प्रदर्शन में घटाटोप बादल हो जाएंगे. रामलीला मैदान भर जाएगा. लोग धक्कमपेल पेट हिलाएंगे और बाबा के साथ मेरा रंग दे बसंती चोला गाएंगे. बसंती… अरे, बसंती से याद आया. यूं कि इस बसंती का पिछली बार का डिज़ाइनर सलवार-सूट सबको याद है पर पता चला है कि बसंती इसबार लेडीज़ सूट नहीं पहनेगी. धरम ने कहा है, बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना. सो, नो डांस, नो बंजी जंपिंग. बाबा मंच से नहीं कूदेगा. अभी मोदी से मिलकर आया है. मोदी ने कुछ गुर समझाया है. वही इम्प्लीमेंट होगा.
 
….खेद है…. क्योंकि ओजोन में छेद है. बाज़ार में और आंदोलन में कुछ तो विभेद है. इसी विभेद की धूप रह-रह कर दिल्ली में दिखाई देती है. जब कहीं ग्रिड फेल हो जाती है, नारद ऊर्जा मंत्रालय की ओर लपकते हैं. वहां से पता चलता है कि इस मामले के मंत्री तो गृहमंत्री हो गए. बधाई देने आते हैं नारद कि तबतक पुणे में कुछ आतिशबाज़ी हो जाती है. इन सबसे बचा टाइम मुलायम और अखिलेश की कहानी में, कुछ राखी के बंधन में, कुछ ओलंपिक की कहानी में चला जाता है.
 
सॉरी अन्ना. टाइमिंग इसबार ग़लत. नो टीआरपी. पिछले बरस इसी बारिश में पैदा हुए थे, इसी कीचड़ में फंस गए हो. नारदों को मत कोसो. इन्होंने ही आपको पैदा किया था, यही आपकी बीटिंग रिट्रीट बजाएंगे. कीचड़ में अब कमल खिलेगा. नो मोर रेन, नो क्लाउड्स… लाइट्स ऑफ़, पैक अप.

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