पूंजीवाद के वैश्विक ख़तरेः स्लावोज जिजेक
Sep 11, 2012 | Pratirodh Bureauस्लोवाकियाई लेखक स्लावोज जिजेक हमारे दौर के सबसे सशक्त लेखकों, विचारकों और आर्थिक जगत की क़दमताल के अनकहे पहलुओं को भी भांप लेने वाले कुछ चुनिंदा लोगों में से एक हैं. पूंजीवाद के खतरे जिस तरह धरती को अपने वलयों में लगातार लपेटते जा रहे हैं, वहाँ इस बात के लिए संभावना कम ही शेष बची है कि आप कहानी के दूसरे पहलू को कहें, सुनें या समझ सकें.
इन खेलों को समझाने के लिए एक चश्मा आंखों पर जड़ दिया गया है. अगल-बगल देखने की इजाज़त नहीं है. एक बायोस्कोप की तरह पूंजीवाद की चमकती-दमकती रील आंखों के आगे से बार-बार गुज़ारी जाती है. इस तरह भूखी अंतड़ियों और घुटती सांसों में दुमड़ी ज़िंदगी को देखने की सारी गुंजाइशें खत्म कर दी जाती हैं.
जिजेक को सुनना ऐसे दौर में एक इंकलाबी ज़बान का साक्षी होने जैसा है. इन्हें इसलिए सुनना अच्छा नहीं लगता कि अपनी बात कहने के बाद ये लंगर चलवाते हैं, या कोई चूरन बांटते हैं या फिर अपने अराजनीतिक होने का स्वांग कर मध्यमवर्ग के प्रतिनिधि बन जाते हैं. बल्कि इसलिए, कि इनकी बातों में वो सच्चाई है जिससे कुछ मिले, न मिले… अपनी और अपने दौर की सच्चाई ज़रूर पता चलती है.