विकास की बलिवेदी पर: आखिरी किस्‍त

इस कहानी को और लंबा होना था। कनहर की कहानी के भीतर कई ऐसी परतें हैं जिन्‍हें खोला जाना था। ऐसा लगता है कि उसका वक्‍त अचानक खत्‍म हो गया। यह भी कह सकते हैं कि उसका वक्‍त अभी कायदे से आया नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि बीते गुरुवार यानी 7 मई को राष्‍ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने कनहर पर अपना वह बहुप्रतीक्षित फैसला सुना दिया जिसके बारे में सोनभद्र के पुलिस अधीक्षक शिवशंकर यादव का 20 अप्रैल को दिया गया एक दिलचस्‍प बयान था, ”इन लोगों को पता था कि कनहर का फैसला इनके खिलाफ़ आने वाला है, इसीलिए ये लोग सब्र नहीं कर पाए और ऑर्डर रिजर्व होते ही ग्रामीणों को भड़का दिए।”

यह बयान कितना विरोधाभासी है, इसे इस तरह समझें कि आंदोलनकारियों को भले ही एनजीटी के फैसले का पता रहा हो या न रहा हो लेकिन एक बात तय है कि प्रशासन को इसका पता ज़रूर था। अगर ऐसा नहीं होता तो यादव पूरे विश्‍वास के साथ फैसला आने से पहले कैसे कह रहे होते कि फैसला विरोध में आना तय था? दरअसल, बांध निर्माण के सारे विरोध की जड़ में एक ही बुनियादी बात थी कि कनहर बांध का निर्माण एनजीटी के स्‍टे ऑर्डर का उल्‍लंघन करते हुए किया जा रहा है। इस बारे में पूछने पर सोनभद्र के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक का बस इतना कहना था कि मामला ”व्‍याख्‍या” का है। मतलब प्रशासन की ”व्‍याख्‍या” के मुताबिक एनजीटी की लगायी रोक का कोई मतलब नहीं था?

यदि वाकई ऐसा ही है, तो 7 मई के एनजीटी के फैसले में ऐसे पेंच हैं कि मामला अब व्‍याख्‍या के तर्क से आगे जा चुका है। अपने 51 पन्‍ने के फैसले में जस्टिस स्‍वतंत्र कुमार की प्रधान पीठ ने याचिकाकर्ता ओ.डी. सिंह और देबोदित्‍य सिन्‍हा द्वारा कनहर बांध की पर्यावरणीय व वन मंजूरी संबंधी उठायी गयी तमाम आपत्तियों को सैद्धांतिक रूप से तो मान लिया, लेकिन व्‍यावहारिक फैसला बांध में जारी निर्माण कार्य को चालू रखने का ही दिया। फैसले में कहा गया है कि जो निर्माण कार्य चल रहा है उसे चलने दिया जाए लेकिन नया निर्माण कार्य न किया जाए। यह बड़ी अजीब सी बात है जो बांध के विरोधियों और याचिकाकर्ताओं के गले नहीं उतर रही है।

ऐसे अर्धकुक्‍कुटीय न्‍याय (न्‍यायशास्‍त्र में एक न्‍याय जिसमें आधी मुर्गी पका कर खा ली जाती है और आधी को अंडा देने के लिए छोड़ दिया जाता है) के पीछे एनजीटी का तर्क है कि चूंकि बांध के संबंध में दो और याचिकाएं इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय में लंबित हैं, लिहाजा उसका कोई भी एकतरफा फैसला उच्‍च न्‍यायालय के भ्‍ाविष्‍य में आने वाले फैसले से टकराव पैदा कर सकता है। इस संभावित टकराव को टालने के लिए उसने बीच का रास्‍ता निकालते हुए कहा कि जारी निर्माण कार्य को टालने से न तो सार्वजनिक हित का भला होगा और न ही पर्यावरण व पारिस्थितिकी का भला होगा। इस फैसले ने बांध के विरोधियों को मुश्किल में डाल दिया है क्‍योंकि प्रशासन जिस ”व्‍याख्‍या” के आधार पर निर्माण कार्य कर रहा था, वह सच साबित हो गयी है। पर्यावरणविद् हिमांशु ठक्‍कर कहते हैं, ”यह बेहद निराशाजनक और असंगत आदेश है।”

अपने गठन से लेकर अब तक एनजीटी ने पर्यावरण से जुड़े मसलों पर जैसा सक्रियतावादी रवैया दिखाया था, उस सिलसिले में कनहर का फैसला एक बड़ा झटका है। मामला सिर्फ निर्माण कार्य को जारी रखने से उपजी हताशा का नहीं है, बल्कि बुनियादी सवाल यह है कि फैसला सुरक्षित रखे जाने और सार्वजनिक किए जाने के बीच सोनभद्र में कनहर प्रभावित गांवों में जो घटा उसका जिम्‍मेदार कौन है। फर्ज़ करें कि यह फैसला सुरक्षित नहीं रखा जाता और मार्च के अंत में ही सुना दिया जाता तो क्‍या 14 अप्रैल और 18 अप्रैल की घटनाएं वैसी ही होतीं? ऐसा पूछते वक्‍त इस बात को ध्‍यान में रखा जाना चाहिए कि 7 मई के बाद हफ्ता होने को आ रहा है लेकिन अब तक न तो बांधस्‍थल के गांवों में आंदोलन की कोई सुगबुगाहट है और न ही आंदोलन के कथित नेतृत्‍व की ओर से कोई आधिकारिक बयान आया है अथवा प्रेस को संबोधित किया गया है। जहां तक स्‍थानीय मीडिया की बात है, तो एनजीटी के फैसले को छापना तक उसने मुनासिब नहीं समझा क्‍योंकि वह भी पहले से ही प्रशासन की बांध समर्थक ”व्‍याख्‍या” से मुतमईन था।

क्‍या फैसला सुरक्षित रखने के पीछे कोई साजिश थी? कोई ऐसी प्रत्‍याशा, जिसके आधार पर आंदोलन अचानक अप्रैल में उग्र हुआ और उतनी ही तेजी से सैकड़ों गिरफ्तारियों और गोलीबारी के बाद खत्‍म भी हो गया? इस बारे में सिर्फ अटकल लगायी जा सकती है, लेकिन 11 मई को स्‍क्रोल पर छपी एक खबर को देखें तो समझ में आता है कि केंद्र सरकार किस तरह रियो घोषणापत्र के अनुपालन के तहत गठित की गयी एनजीटी जैसी एजेंसी के पर कतरने के मूड में है। खबर कहती है कि ”सरकार नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल के अधिकारों को कतरने के लिए चर्चा कर रही है…।” इसकी पृष्‍ठभूमि के तौर पर खबर में छह बिंदु गिनाए गए हैं कि कैसे मोदी सरकार पर्यावरण पर चुपचाप हमला बोलने की तैयारी कर रही है। इसके तहत औद्योगिक परियोजनाओं का विरोध करने के आदिवासी ग्राम सभाओं के अधिकार छीने जाने, राष्‍ट्रीय वन्‍यजीव बोर्ड के ढांचे में बदलाव किए जाने, कोयला खनन को जन सुनवाइयों से मुक्‍त किए जाने, सिंचाई परियोजनाओं को बिना मंजूरी के अनुमति दिए जाने, अत्‍यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में नए उद्योगों को खोलने पर लगी रोक को हटाए जाने, वन मानकों को कमजोर कर के राष्‍ट्रीय अभयारण्‍यों के करीब उद्योगों को लगाने की अनुमति दिए जाने और पर्यावरण कानूनों की समीक्षा करने के लिए एनजीटी के समानांतर एक नयी कमेटी गठित किए जाने के प्रस्‍ताव शामिल हैं।

इस दौरान दिल्‍ली में बैठकें हो रही हैं और एक धरने की तैयारी चल रही है। सीने में गोली खाया अकलू चेरो पुलिस वालों के हाथों 13000 रुपये गंवाकर अपने गांव लौट चुका है। बीएचयू के एक छात्र के भेजे मेल में ऐसी जानकारी दी गयी है। चार लोग ज़मानत पर छूट चुके हैं। गम्‍भीरा प्रसाद और राजकुमारी की ज़मानत के लिए अर्जी दे दी गयी है। दो दिन पहले आंदोलन की नेता रोमा से प्राप्‍त मेल के मुताबिक कल यानी 14 मई से सोनभद्र में एक धरना दिया जाना था लेकिन ”गांव वालों की शादियों-समारोहों में व्‍यस्‍तता” के कारण धरने का स्‍थल बदलकर लखनऊ विधानसभा के सामने कर दिया गया है और संभवत: यह अब 6 जून के बाद आयोजित होगा।

सोनभद्र से खबर यह है कि वहां एनजीटी के फैसले को लेकर कोई चर्चा नहीं है। मेधा पाटकर, संदीप पांडे और दिल्‍ली की एक फैक्‍ट फाइंडिंग टीम के दौरे नक्‍कारखाने की तूती साबित हुए हैं। सुनने में आ रहा है कि अब जस्टिस राजिंदर सच्‍चर वहां जाने वाले हैं। गांवों के सर्वे का काम जोरों पर है। बीच में एक खबर आयी थी कि छत्‍तीसगढ़ सरकार के मुख्‍य सचिव ने बांध बनाने की कोशिशों के खिलाफ उत्‍तर प्रदेश सरकार के मुख्‍य सचिव को एक पत्र लिखा है। यह खबर जितनी तेजी से फैली, उससे ज्‍यादा तेज़ी से भाप बनकर उड़ गयी। जिलाधिकारी संजय कुमार के हवाले से एक स्‍थानीय अखबार ने उसी दौरान बताया कि उन्‍हें ऐसे किसी पत्र की कोई आधिकारिक सूचना नहीं है, इसलिए बांध पर काम जारी रहेगा। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि एनजीटी के फैसला सुरक्षित रखने और सार्वजनिक करने के बीच कनहर में जो कुछ भी घटा है, वह अंतत: बांध को बनाने के पक्ष में ही गया है।

फिलहाल, एनजीटी के फैसले के बाद कनहर में सब कुछ हरा-हरा जान पड़ता है। जो कहानी आंदोलन और दमन के कारण शादियां टलने से शुरू हुई थी, वह एक पखवाड़े के भीतर शादियों के कारण धरने के टलने तक पहुंच चुकी है।

Recent Posts

  • Featured

A New World Order Is Here And This Is What It Looks Like

On Sept. 3, 2025, China celebrated the 80th anniversary of its victory over Japan by staging a carefully choreographed event…

2 days ago
  • Featured

11 Yrs After Fatal Floods, Kashmir Is Hit Again And Remains Unprepared

Since August 20, Jammu and Kashmir has been lashed by intermittent rainfall. Flash floods and landslides in the Jammu region…

2 days ago
  • Featured

A Beloved ‘Tree Of Life’ Is Vanishing From An Already Scarce Desert

The social, economic and cultural importance of the khejri tree in the Thar desert has earned it the title of…

2 days ago
  • Featured

Congress Labels PM Modi’s Ode To RSS Chief Bhagwat ‘Over-The-Top’

On Thursday, 11 September, the Congress party launched a sharp critique of Prime Minister Narendra Modi’s recent tribute to Rashtriya…

3 days ago
  • Featured

Renewable Energy Promotion Boosts Learning In Remote Island Schools

Solar panels provide reliable power supply to Assam’s island schools where grid power is hard to reach. With the help…

3 days ago
  • Featured

Are Cloudbursts A Scapegoat For Floods?

August was a particularly difficult month for the Indian Himalayan states of Uttarakhand, Himachal Pradesh and Jammu and Kashmir. Multiple…

3 days ago

This website uses cookies.