पूर्णिमा बीत गई। सावन ढलने वाला है। देश रक्षाबंधन मना चुका। बनारस सुरक्षा बंधन मना रहा है। देखकर दिमाग चकरा गया जब हमने शुक्रवार की सुबह करीब दो दर्जन औरतों की भीड़ को नई सड़क के एक कोने में एक स्टॉल के पास जमा पाया। स्टॉल पर भाजपा का गमछा लपेटे एक दबंग टाइप अधेड़ शख्स फेरीवाले की तरह आवाज़ लगा रहा था, ”आज आखिरी दिन है।” वह वहां खड़ी औरतों को प्रधानमंत्री बीमा योजना का फॉर्म बांट रहा था। मेज़ पर ढेर सारे आधार कार्ड पड़े थे, कुछ औरतें फॉर्म भरने में व्यस्त थीं तो कुछ उसे लेकर घर जा रही थीं। मैंने फॉर्म मांगा तो वहां बैठे व्यक्ति ने मना कर दिया और कुछ संदेह से मुझे देखने लगा। आसपास के स्थानीय पुरुष बेशक इस सुरक्षा का असल मतलब समझ रहे हों, लेकिन उन्हें पान चबाने और गाली देने से फुरसत नहीं है कि वे ऐसे मामलों में- हमारी भाषा में- इन्टरवीन कर सकें।
एक ओर जहां गुजरात की हिंसा में मारे गए सात लोगों की खबर पर पूरा शहर चर्चा कर रहा था और नई सड़क पर सुरक्षा के बंधन बांधे जा रहे थे, वहीं बीएचयू गेट के ठीक बाहर कुछ लोगों को अहसास हो चुका था कि अब उनका सांसद उनकी रक्षा या सुरक्षा नहीं कर सकता। वाइस चांसलर गिरीश चंद्र त्रिपाठी संघ के बैठाए हुए हैं, फिर भी उनसे बीएचयू नाराज़ है। बीते चार दिन से चौथे दरजे के करीब 45 संविदा कर्मी अपने निष्कासन के खिलाफ़ सिंहद्वार पर धरना दिए बैठे थे। उन्हें परमानेंट करने के बजाय प्रशासन ने नई नियुक्तियां कर दी हैं और बरसों से बीएचयू में काम कर रहे अधिकतर निचली जाति के इन लोगों की आजीविका पर तलवार लटका दी है। इन लोगों को शुक्रवार की शाम पूरी तरह कार्यमुक्त कर दिया गया। कहीं कोई गुहार काम नहीं आई। पिछले कुलपति लालजी सिंह को एक दलित महिला के उत्पीड़न के मामले में एससी/एसटी आयोग के मुखिया पीएल पुनिया ने दर्जन भर बार समन किया था। आज त्रिपाठीजी को समन करना तो दूर, उनके किए पर उंगली उठाने वाला भी कोई नहीं है।
वामपंथी दलों का आलम यह है कि उनके जो भी एकाध काडर बचे हैं, उनकी भूमिका झोले में पत्रिकाएं भरकर बांटने तक सीमित रह गई है और हर शाम वे पउवे के लिए कोई जुगाड़ खोजते नज़र आते हैं। बचे लेखक और छात्र-युवा, तो हमने पहली प्रजाति के बारे में जानने के लिए खुद इस प्रजाति के एक सुशांत-प्रशांत सदस्य से मिलकर वस्तुस्थिति जानने की कोशिश की, कि बनारस की लेखक बिरादरी आजकल क्या कर रही है। कवि ज्ञानेंद्रपति सुबह व्यस्त थे, तो उन्होंने शाम को काशी विद्यापीठ के बाहर मिलने को बुलाया। हमेशा की तरह वे अपने 24*7 साथी कैलाश नाथ चौरसिया के साथ भूंजे वाले के ठेले के बगल में खड़े पाए गए। हम पहुंचे तो उन्होंने भूंजा मंगाया और बगल में एक छोटे से मंदिर की चौखट पर हम लोग बैठकर भूंजा-चटनी फांकने लगे।
”आप स्वस्थ हैं?” ”हां..”, एक झटके में उन्होंने जवाब दिया। ”और बनारस? बनारस स्वस्थ है कि नहीं?” वे दस सेकंड ठहरे, फिर उसी कनविक्शन के साथ बोले, ”नहीं, बनारस तो स्वस्थ नहीं है।” ”क्यों? बनारस तो पहले भी स्वस्थ नहीं था?” ज्ञानेंद्रपति बोले, ”देखिए, स्वस्थ का मतलब होता है स्व में स्थित। बनारस स्व में स्थित नहीं है। पहले वह स्वस्थ नहीं था तो बीमार भी नहीं था। अब ऐसा नहीं है। पिछले एक साल से ऐसी स्थिति है।” उसके बाद भूंजे पर चर्चा आगे बढ़ी। अचानक पीछे सड़क से मेरा नाम लेती हुई एक आवाज़ आई। देखा तो कुमार विजय थे। उनके साथ पत्रकार सुरेश प्रताप भी थे। वे भी आकर बैठ गए। कुमार विजय एक समय के समर्थ लेखक और पत्रकार थे। आज अखबारों को जिस तरह से निकाला जा रहा है, उनके जैसे जनवादी लोगों की ज़रूरत नहीं रह गई है। सुरेशजी भी लंबे समय से खाली हैं। अचानक दिल्ली से भाई राजेश चंद्र का फोन आया कि एनएसडी की पत्रिका के संपादक अजित राय चुन लिए गए हैं। मैंने यह सूचना साझा की, तो सारी चर्चा अजित राय के धतकर्मों पर आकर टिक गई।
बचे बनारस के छात्र और युवा, तो यह एक दिलचस्प अध्याय है। सबसे ज्यादा बदलाव इसी तबके में देखने में आ रहा है। आज के बनारस की पड़ताल करती आखिरी किस्त में हम बनारस के कुछ युवाओं से मिलेंगे और जानेंगे कि वे क्या सोच रहे हैं। ज़ाहिर है, यह समाज अपनी लंबी नींद अब तोड़ रहा है। यह बात अलग है कि नींद खुलने के बाद कुछ ने जल्दीबाज़ी में महत्वाकांक्षा की अफ़ीम गटक ली है तो कुछ और वैचारिक शुद्धता के चक्कर में मोहभंग की तंद्रा का शिकार हो चुके हैं।
Protest movements can look very different depending on where you stand, both literally and figuratively. For protesters, demonstrations are usually…
Multilateral Development Banks (MDBs), governments, and corporations across 160 countries consider or approve more than one investment per day in…
Print and electronic media are coping admirably with the upheavals being wrought by social media. When 29-year-old YouTuber Dhruv Rathee…
Kashmir, the world’s second-largest producer of saffron has faced a decline in saffron cultivation over the past two decades. Some…
The Church of the Holy Sepulchre, Christianity’s holiest shrine in the world, is an unlikely place to lose yourself in…
The debate over the future relationship between news and social media is bringing us closer to a long-overdue reckoning. Social…
This website uses cookies.