बीएचयू ब्रांड साम्प्रदायिक सौहार्द: स्वामी-खलकामी के बीच लटका जमात-ए-इस्लामी हिंद
Jun 15, 2015 | Abhishek Srivastavaपरसों मेल पर एक न्योता आया। भेजने वाले का नाम है तौसीफ़ मादिकेरी और परिचय है ‘राष्ट्रीय सचिव’, स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ इंडिया (एसआइओ)। कार्यक्रम बनारस हिंदू युनिवर्सिटी में दो दिन का एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (15-16 जून, 2015) है जिसका विषय है ”साम्प्रदायिक सौहार्द और राष्ट्र निर्माण” पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन। आमंत्रण का कार्ड देखकर कुछ आशंका हुई क्योंकि उद्घाटन करने वाले व्यक्ति का नाम है राम शंकर कथेरिया, जो केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री है और समापन वक्तव्य देने वाले का नाम है इंद्रेश कुमार, जिसके परिचय में लिखा है ”सोशल एक्टिविस्ट, दिल्ली”। जिस मेल से न्योता आया था, मैंने उस पर एक जिज्ञासा लिखकर भेजी कि इंद्रेश कुमार नाम का यह ‘सोशल एक्टिविस्ट’ कौन है, कृपया इसकी जानकारी दें। जवाब अब तक नहीं आया है। इस दौरान कार्यक्रम के सह-संयोजक बीएचयू के राजनीतिशास्त्र विभाग के अध्यक्ष कौशल किशोर मिश्रा ने twocircles.net के पत्रकार सिद्धांत मोहन को फोन पर पुष्टि की है कि आमंत्रण कार्ड पर मौजूद इंद्रेश कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक ही हैं, और कोई नहीं। आमंत्रण भेजने वाले एसआइओ के राष्ट्रीय सचिव तौसीफ का कहना है कि ये बात गलत है और सिर्फ प्रचार के उद्देश्य से फैलायी जा रही है। तौसीफ कहते हैं, ”आप खुद आकर देखिए। ये इंद्रेश कुमार नीदरलैंड के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं जो दिल्ली में रहते हैं।” पत्रकार महताब आलम ने इस दौरान अपनी फेसबुक पोस्ट में प्रो. के.के. मिश्रा के हवाले से पुष्टि की है कि कार्यक्रम में आरएसएस के इंद्रेश कुमार ही आ रहे हैं।
बड़ी अजीब बात है कि दोनों आयोजक अलग-अलग बात कह रहे हैं। अगर ये वही इंद्रेश कुमार हैं जिनसे ”हिंदू आतंकवाद” से जुड़े हमलों में एनआइए ने पूछताछ की थी और अजमेर दरगाह ब्लास्ट, मक्का मस्जिद ब्लास्ट समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट की चार्जशीट में उनका नाम जोड़ा था, तो स्थिति वाकई गंभीर है क्योंकि एसआइओ की मंशा पर सवाल खड़ा होता है। मिली गजेट अखबार ने भी अपने फेसबुक पेज पर इसकी पुष्टि की है। अगर ये वाकई में आरएसएस वाले इंद्रेश कुमार हैं, तो मंगलवार को ”साम्प्रदायिक सौहार्द” पर उनके दिए जाने वाले समापन वक्तव्य के मर्म का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
बहरहाल, सवाल इंद्रेश कुमार के बनारस कनेक्शन पर इसलिए खास नहीं बनता क्योंकि चार महीने पहले कुछ मुसलमान संगठन बनारस में उनका जन्मदिन मना चुके हैं और बनारस से नरेंद्र मोदी की जीत के बाद इंद्रेश के वहां कई चक्कर लग चुके हैं। एक कार्यक्रम में वे उमा भारती के साथ भी मौजूद पाए गए हैं जिसमें उनका आधिकारिक परिचय ”सामाजिक कार्यकर्ता” का ही था। बुनियादी सवाल यह है कि जमात-ए-इस्लामी हिंद के छात्र संगठन एसआइओ को इंद्रेश कुमार को बुलाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? एकबारगी मान भी लें कि ये वाले इंद्रेश कुमार नीदरलैंड के कोई प्रोफेसर हैं, तो बाकी अतिथियों का क्या किया जाए। एसआइओ और बीएचयू के संयुक्त तत्वाधान में हो रहे इस आयोजन में जो और अतिथि शामिल हैं, उनका जायज़ा भी एक बार लिया जाए तो शायद तस्वीर साफ़ होगी कि साम्प्रदायिक सौहार्द के नाम पर प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में क्या चल रहा है और जमात का छात्र संगठन एसआइओ साम्प्रदायिक सौहार्द के नाम पर कैसे लोगों के बीच घिर गया है।
आयोजन का कल यानी 15 जून को उद्घाटन करने वाले केंद्रीय मंत्री राम शंकर कथेरिया आगरा से सांसद हैं, आरएसएस में दो दशक बिता चुके हैं और पिछले साल लोकसभा चुनाव में दायर अपने चुनावी हलफनामे में उन्होंने अपने ऊपर 23 आपराधिक मामलों का जि़क्र किया था। इनमें बीए और एमए की डिग्री से जालसाज़ी का भी एक गंभीर मामला है। ऐसा ही एक विवाद उनकी वरिष्ठ यानी स्मृति ईरानी के साथ भी जुड़ा है। दिलचस्प बात यह है कि आम आदमी पार्टी के दिल्ली में कानून मंत्री तोमर इसी आरोप में जेल में हैं। बहरहाल, कथेरिया पर हत्या के प्रयास का भी मुकदमा है। वे आरएसएस के काडर हैं, इसमें कोई शक नहीं। वे केंद्रीय मंत्री हैं, इसमें भी कोई दो राय नहीं। एसआइओ को इस पर सहमति देने की मजबूरी क्या थी?
अतिथियों में अगला नाम उडुपी के पेजावर मठ के महंत विश्वेश्वर तीर्थ स्वामी का है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कुछ दिन बाद स्वामी उनसे मिलने के लिए दिल्ली आए थे और उन्हें एक स्मारिका भेंट की थी। इस मुलाकात में उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया था कि फसली जमीनों पर कारखाने न लगाए जाएं, बल्कि औद्योगीकरण के लिए बंजर जमीनों को चुना जाए। खबरों के मुताबिक स्वामी का जब तक कोई निजी हित नहीं होता, वे नेताओं से ऐसे आग्रह नहीं करते हैं। इनके बारे में तलाश करने पर यह पता चलता है कि समूचा देश 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में नीरा राडिया की दलाली पर थू-थू कर रहा था, स्वामी ने ऑन दि रिकॉर्ड उनका बचाव करते हुए कहा था, ”…राडिया इस मामले में निर्दोष हैं…।” पेजावर मठ की ओर से शुरू किए गए एक स्कूल के उद्घाटन पर स्वामी पिछले साल जब यह कह रहे थे तब राडिया खुद वहां मौजूद थीं जिन्हें स्वामी ने उपहार स्वरूप फलों का एक कटोरा और स्मारिका प्रदान किया। राडिया स्वामीजी की भक्त हैं।
नीरा राडिया और पेजावर स्वामी के रिश्ते की कहानी भी दिलचस्प है। पेजावर स्वामी दरअसल शुरुआत में उमा भारती के गुरु थे। उनसे राडिया को बीजेपी के अनंत कुमार ने मिलवाया था। अनंत कुमार तब 1998-99 में एनडीए सरकार के भीतर नागर विमानन मंत्री थे। कन्नड़ की एक पत्रिका लंकेश पत्रिका ने उस वक्त प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, अनंत कुमार, नीरा राडिया के साथ पेजावर स्वामी की एक तस्वीर छापी थी जिससे पता चलता है कि स्वामी के भक्तों की सूची कितनी प्रभावशाली है। स्वामी की भक्ति राडिया को इस रूप में काम आयी कि वहां उनका संपर्क वाजपेयी के दामाद रंजन भट्टाचार्य से हुआ। बाद में याद करें कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में राडिया के साथ भट्टाचार्य का नाम भी प्रमुखता से आया था। इस संबंध के बारे में आउटलुक ने विस्तार से छापा था जिसे यहां पढ़ा जा सकता है।
स्वामी के भक्तों की सूची लंबी है। इसमें कर्नाटक के खनन माफिया जनार्दन रेड्डी के करीबी श्रीरामुलु का भी नाम है जिन्होंने कर्नाटक के लोकायुक्त की अवैध खनन पर रिपोर्ट में अपना नाम आने के बाद प्रतिष्ठा के सवाल पर बीजेपी को छोड़ दिया था और बाद में बेल्लारी से चुनाव जीत गए थे। उस वक्त स्वामी ने श्रीरामुलु की प्रशंसा में कहा था कि वे सिर्फ एक समुदाय के नेता नहीं हैं बल्कि राज्य स्तर के एक बड़े नेता हैं। पेजावर के स्वामी राजनीतिक मामलों में लगातार अपना दखल देते रहे हैं और भारतीय जनता पार्टी के साथ उनके रिश्ते खासे मधुर रहे हैं। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव से साल भर पहले मई 2013 में श्रीराम सेना के मुखिया कुख्यात प्रमोद मुथालिक को बीजेपी में वापस लाने के लिए संघ और बीजेपी के नेताओं से खुद स्वामी ने सिफारिश की थी। ध्यान रहे कि 2009 में मंगलोर के एक पब में लड़कियों पर पैसे लेकर हमला करवाने वाले मुथालिक को बीजेपी में जब लाया गया, ठीक उसी के आसपास श्रीरामुलु को भी बीजेपी में वापस लिया गया था। मुथालिक के बीजेपी में आने पर काफी बवाल हुआ था और पार्टी के आलाकमान ने अपनी इज्जत बचाने के लिए सिर्फ पांच घंटे के भीतर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया हालांकि श्रीरामुलु की घर वापसी से सिर्फ सुषमा स्वराज को सार्वजनिक रूप से गुस्सा आया था क्योंकि कर्नाटक के खनन माफिया के विरोधी धड़े से उनकी नज़दीकियां बतायी जाती रही हैं।
लोकसभा चुनाव के बीचोबीच अप्रैल के पहले सप्ताह में कोबरापोस्ट ने जब बाबरी विध्वंस से जुड़ा विस्फोटक उद्घाटन किया था, तब स्वामी पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आए थे। बाबरी विध्वंस के ठीक पहले आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद और अन्य हिंदूवादी नेताओं के बीच एक ‘गोपनीय’ बैठक की बात सामने आयी थी जिसमें पेजावर के स्वामी भी मौजूद थे। इस स्टिंग के सामने आने के बाद स्वामी ने सफाई देते हुए 6 अप्रैल 2015 को मीडिया को जारी एक बयान में कहा था कि 5 दिसंबर 1992 की रात 10 बजे एक बैठक जरूर बुलायी गयी थी लेकिन इसमें मस्जिद के तोड़ने के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई थी। उन्होंने कहा था, ”बैठक उस जगह की सफाई के लिए रखी गयी थी… यह सूचना तत्कालीन प्रधानमंत्री को भी दे दी गयी थी। बैठक में अशोक सिंघल, अडमार स्वामीजी और आरएसएस के संयोजक शामिल थे… रात दस बजे एक होम हुआ था।”
कार्यक्रम के आमंत्रण पत्र पर जमात-ए-इस्लामी हिंद के राष्ट्रीय सचिव मौलाना इकबाल मुल्ला का भी नाम है, लेकिन जमात के प्रेस सचिव ने इस बारे में कोई भी जानकारी होने से अनभिज्ञता जतायी है। बहरहाल, दोनों आयोजकों में से सवाल बीएचयू पर इसलिए खड़ा करने का कोई मतलब नहीं क्योंकि वहां वाइस-चांसलर की नियुक्ति से लेकर राजनीतिशास्त्र विभाग की अध्यक्षता तक हर कहीं आरएसएस का सीधा हाथ है और यह बात जगज़ाहिर है। विभागाध्यक्ष कौशल किशोर मिश्रा ने नरेंद्र मोदी के चुनाव में बनारस में क्या भूमिका निभायी थी, यह बताने वाली बात नहीं है। सवाल एसआइओ पर है कि उसने कार्यक्रम के लिए अतिथियों का नाम तय होते वक्त क्या उनका अतीत नहीं खंगाला? या कि जान-बूझ कर इसकी उपेक्षा की गयी है? यदि ऐसा है तो इसकी वजह क्या हो सकती है?
एसआइओ को क्या नहीं सोचना चाहिए कि बाबरी विध्वंस के एक दिन पहले आरएसएस-वीएचपी की बैठक में शामिल रहने वाला स्वामी साम्प्रदायिक सौहार्द का कौन सा पाठ पढ़ाएगा? बीए-एमए की डिग्री में फर्जीवाड़ा करने वाला और 23 आपराधिक मामलों में शामिल एक मंत्री राष्ट्र निर्माण का कौन सा जुमला छोड़ेगा? और अगर इंद्रेश कुमार वही हैं जिनका नाम तमाम विस्फोटों और हिंदू आतंक के मामलों में शामिल है, तो यह बेहद शर्मनाक होगा कि सेकुलर भारत के एजेंडे को लेकर जमात-ए-इस्लामी से अलग हुआ जमात-ए-इस्लामी हिंद आज इस स्तर पर पहुंच चुका है।