आधार नंबर यानी यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर के महत्व को बढ़ा-चढ़ाकर बताने के लिए सुविधाजनक तथ्य सामने रखे गए हैं. जबकि कई राज्यों ने यूआईडी को लागू किए बिना ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है. आधार की जरूरत बताने के लिए तीन कारण गिनाए गए थे-इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा, जरूरतमंद लोगों को योजना का लाभ मिलेगा और यह लाभ लाभार्थी के जगह बदलने के बाद भी जारी रहेगा.
लेकिन कई राज्यों ने दिखा दिया है कि यह लक्ष्य हासिल करने के लिए आधार की जरूरत नहीं है. बल्कि इन सरकारों ने ये उपलब्धियां आधार की तुलना में कम खर्च कर हासिल की हैं. जबकि आधार केंद्रित पाइलट योजनाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. बावजूद इसके सरकार न सिर्फ इसे अनिवार्य बनाने की कोशिश कर रही है, बल्कि अब आधार के तहत सेवाएं उपलब्ध कराने का शुल्क वसूलने की भी बात कर रही है.
सरकार का दावा है कि योजनाओं, खासकर पीडीएस और मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार दूर करने में यह मदद करेगा. यहां बताना जरूरी है कि तमिलनाडु में पीडीएस भ्रष्टाचार रहित है, वहां अब तक आधार की जरूरत नहीं समझी गई है. इसी तरह कंप्यूटरीकरण और एसएमएस एलर्ट के जरिये छत्तीसगढ़ और ओडिशा में पीडीएस को बखूबी लागू किया गया है. कभी इन दोनों राज्यों में सरकारी अनाज का पचास प्रतिशत खुले बाजार में चला जाता था, आज वहां इसका क्रमशः 10 और 20 फीसदी हिस्सा ही बाजार में जाता है.
इसी तरह 2008-09 में बैंक और डाकघर के जरिये मजदूरी का भुगतान शुरू करने के बाद से मनरेगा में भ्रष्टाचार बहुत कम रह गया है. इसके बावजूद मनरेगा में तीन तरीके से भ्रष्टाचार बना हुआ है. एक तरीका वह है, जहां बैंक या डाकघर से धनराशि निकालने के बाद श्रमिकों को जबरन अपनी मजदूरी भ्रष्ट अधिकारियों के साथ साझा करनी पड़ती है. भ्रष्टाचार का दूसरा तरीका वह है, जिसमें श्रमिकों का कार्यदिवस बढ़ाकर दिखाया जाता है, इसमें मजदूर और अधिकारी मिलकर धोखा करते हैं. इस तरह के भ्रष्टाचार पर आधार भी अंकुश नहीं लगा सकता. बैंकों-डाकघरों के अधिकारियों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार का एक तीसरा तरीका भी है-केवल इस तरह की धोखाधड़ी पर ही आधार के जरिये अंकुश लगाया जा सकता है.
आधार को लागू करने के पीछे उन लाखों लोगों को कल्याणकारी योजनाओं के लाभ में हिस्सेदार बनाने का लक्ष्य है, जो इनसे अब तक इसलिए बाहर हो जाते थे, क्योंकि उनकी कोई पहचान नहीं है. यह सच्चाई तो है, लेकिन मानने का कारण नहीं है कि पहचानपत्र के अभाव में उनको योजनाओं का लाभ नहीं मिला. दरअसल हमारे यहां बजट जरूरतमंदों को देखकर नहीं बनता, बल्कि बजट के अनुरूप जरूरतमंदों को समायोजित किया जाता है. यह ऐसा ही है, जैसे आठ नंबर का जूता पहनने वाले को पांच नंबर के जूते की पेशकश की जाए. केंद्र सरकार जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून ले आई है, वह पीडीएस की तुलना में लाभार्थियों की संख्या बढ़ाएगा. पर ऐसा पहले से ही किया जा रहा है. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने जहां लगभग सबके लिए पीडीएस शुरू किया है, वहीं छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान और झारखंड में उसका विस्तार किया गया है.
पीडीएस की एक बड़ी खामी यह है कि यह लाभार्थियों के घर के पते से जुड़ा हुआ है. घर से बाहर चले गए या विस्थापित लोगों को सरकारी राशन से हाथ धोना पड़ता है. लेकिन ऐसे कदम उठाए गए हैं, जिससे लोगों को सरकारी राशन का लाभ उसके बदले हुए पते तक मिल सके. छत्तीसगढ़ सरकार ने 2012 में इस दिशा में काम किया, जिसके तहत राशन कार्ड धारकों को स्मार्ट कार्ड दिया जाने लगा. एटीएम की तरह के इस कार्ड से किसी भी ऐसी सरकारी दुकान पर जाकर अपने हिस्से का राशन लिया जा सकता है, जहां पीओएस (पॉइंट ऑफ सेल) मशीन हो. यह मशीन एक मिनी कंप्यूटर है, जिसमें स्मार्ट कार्ड डालने पर लाभार्थी का पूरा ब्योरा आ जाता है. सर्वर या मोबाइल कनेक्टेविटी न होने पर भी लाभार्थी को राशन मिलेगा, पर तब उसे अपना कार्ड नंबर उस दुकान पर दर्ज कराना पड़ेगा. रायपुर की दो दुकानों से शुरू हुई यह व्यवस्था राज्य के 400 दुकानों में काम करती है, जिनमें से 40 ग्रामीण इलाकों में हैं. बगैर आधार के यह व्यवस्था सफलतापूर्वक जारी है.
दूसरी ओर, आधार की पाइलट परियोजनाएं ज्यादातर औंधे मुंह गिरी हैं. मैसूर में एलपीजी सिलेंडर की खरीद को आधार से जोड़ने की योजना बंद करनी पड़ी. झारखंड में मनरेगा की मजदूरी को आधार से जोड़ने की बहुप्रचारित योजना का हश्र भी इससे अलग नहीं है. केवल पूर्व गोदावरी जिले में आधार को पीडीएस से जोड़ने की योजना ही अब तक सफल रही है, वह भी बहुत तैयारी के बाद.
आधार की दो उपलब्धियां हैं-इसके तहत 51 करोड़ कार्ड बने, और इसके पक्ष में एक सफल मीडिया अभियान चला. जबकि इसकी विफलताएं कहीं ज्यादा हैं. फिर जिन खामियों को दूर करने के लिए आधार लाया गया, उन्हें राज्य सरकारें खुद ही दूर कर रही हैं. तकनीकों के सहारे योजनाओं से भ्रष्टाचार खत्म किया जा सकता है, हरेक जरूरतमंद को लाभ दिया जा सकता है और पता बदलने के बाद भी लाभ मिलता रह सकता है. फिर भी केंद्र सरकार आधार का समर्थन कर रही है.
(यह लेख पिछले दिनों अमर उजाला साप्ताहिक में भी प्रकाशित हुआ है)
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