उनको बचपन से ऐसा ही देखा है. सुबह की शाखा के बाद दर-दर पर्चे बांटते. स्वदेशी का नारा लगाते. गीत दोहराते, चोखा-बाटी कार्यक्रम और वनवासी कार्यक्रम में शामिल होते. मैदान साफ करते, बुहारते-संवारते. बड़े पैसेवालों के वाहन सजाते. वे फूल भी खुद तोड़कर लाते थे. भइया जी आपको अपने साथ अपनी कार में बैठाकर बसंत पंचमी के जुलूस में ले जाएंगे. अटल जी की अगवानी के काफिले में आप भी उसी कार में होंगे. साइकिल के सहारे तो हवाईअड्डे तक नहीं जाया जा सकता न.
लेकिन अंत में क्या होता था. गंगा प्रसाद जी गंगा की ओर मुंह करके अपनी दिनभर की मेहनत का रोना रोते हुए पांडे जी को कोसते रहते थे और पांडे जी अपने दो बंदूकधारियों के साथ हवाईअड्डे रवाना हो जाते थे. गंगा प्रसाद संगठन के प्रति समर्पण और प्रतिबद्धता का नाम हैं. ईधन का नाम हैं. ईंट का नाम हैं. जिनपर दूसरों के देग चढ़ते हैं. जिनपर पलस्तर पोतकर दूसरों का प्रासाद खड़ा कर दिया जाता है.
दिल्ली जनसंघ और फिर भाजपा की पुरानी कर्मस्थली रही. कार्यकर्ताओं का एक बड़ा आधार विचारधारा के पास यहाँ पर है. पार्टी ऐसा सदा से कहती आई है कि हम बाकियों से अलग हैं. परिवारवाद, पैसे और राजनीति के पारंपरिक ढांचे से पृथक हम मूल्यों की राजनीति करते हैं. लेकिन मूल्यों की ज़मीनी सच्चाई का सच गंगा प्रसाद जी जैसा है. वो शाखा लगाते हैं, पत्रक बांटते हैं, प्रभातफेरी निकालते हैं, गीत गाते हैं, घोष बजाते हैं, कार सजाते हैं. लेकिन टिकट मिलता है राइस मिल के मालिक को, आलू के बड़े कोल्ड स्टोरेज के सिंह साहेब को, कांग्रेस या कोई मौसमी पार्टी छोड़कर आए किसी ऐसे व्यक्ति को जिसके खिलाफ गंगा प्रसाद जी अपसंस्कृति और अपराध की दुहाइयां गाते रहे.
भाजपा का नया चरित्र यही है और पुराना भी. जिनके पेट में किरण बेदी और शाज़िया के नाम से मरोड़ पैदा हो रहा है, उन्हें चाहिए कि पुराने कार्यकर्ताओं से पूछें कि उनके संगठन में किसी भी कार्यकर्ता के अपने काम और प्रतिभा के बल पर, अपनी प्रतिबद्धता और मूल्यों के बल पर दायित्व के सबसे बड़े शंकुलों तक पहुंचने की सिद्धांत कौमुदी पर कौन-सी चीलें बीट कर रही हैं. क्यों कार्यकर्ता गन्ना बनकर कोल्हू का ईधन भर रह गया है. और दर्द के कितने ही प्राचीर भरभरा के ढहने लगेंगे. हास्यास्पद यह है कि भाजपा इन्हीं बातों को आरोप की तरह दूसरे दलों पर मढ़ती रही है. इसी का उलाहना देकर अपने समता, एकता और नैतिकता की दुहाई गाती रही है.
वस्तुतः पुस्तिकाओं में बांचे जाने वाले सिद्धांतों के अनुपालन से न के बराबर ही ताल्लुक इस पार्टी और संगठन में रहा है. कभी जाति पदोन्नति का मूल है तो कभी वैभव और धूर्तता. ऐसा कम ही होता है कि छोटा कार्यकर्ता बिना घाघ बने बड़ा हो गया हो. अगर ईमानदार हो तो ईमानदारी से वही करते रहो जो तुम्हें पहले दिन करने के लिए बोला गया था. यही भाजपा की नई और पुरानी परंपरा है और इसी परंपरा का चेहरा है दिल्ली का यह चुनाव, जहाँ बहुमत की सरकार के पास एक ईमानदार, समर्पित और क्षमतावान नेतृत्व तक नहीं है.
किरण का उदय उसी विकिरण का उत्सर्जन है जिसकी तह में सामंतों और उच्च जातियों की पोषक पार्टी सेठों और धनकुबेरों के लिए रास्ता बनाने का काम करती आई है. राष्ट्रवाद की ढफली पर राग अलापते गले कभी धर्म, कभी संस्कृति और कभी काल्पनिक इतिहास की दरी बिछाकर अपना सियासी चौरस खेलते रहते हैं. भाजपा का यह राजनीतिक चरित्र जितनी जल्दी हम समझ लें, उतना ठीक है.
Lok Sabha Leader of Opposition Rahul Gandhi on Tuesday accused Prime Minister Narendra Modi of betraying the people of Ladakh…
In Darjeeling-Sikkim Himalaya, restoration practitioners were faced with several challenges, like growing land-use changes for tourism, habitat fragmentation and a…
Artificial wombs, devices that can gestate human embryos outside the body, have shifted from speculative fiction to the brink of…
The Kargil Democratic Alliance (KDA) has issued a strong demand for the immediate and unconditional release of activist Sonam Wangchuk…
India achieves an early E20 ethanol blending milestone, but consumers cite concerns about mileage loss, engine wear, and a lack…
Gig work, symbolised by crowd work, on-demand work and freelancing, has expanded rapidly worldwide. The convenience of being able to…
This website uses cookies.