पुलिस थाने से महज़ पांच किमी दूर स्थित इस घटना स्थल पर पुलिस किसी घुमावदार रास्ते के ज़रिये तब पंहुची ,जबकि आततायी अपनी मनमानी करके वापस घरों को लौट गए .इस तरह इस दलित संहार को पुलिस ,स्थानीय राजनेताओं ,प्रशासनिक अधिकारीयों और अपराधियों ने मिलजुलकर अंजाम दिया .इस निर्मम नरसंहार के विरोध में पुरे राजस्थान के न्याय पसंद लोग सडकों पर उतर आये तथा मजबूरन राज्य सरकार को इसकी जाँच सीबीआई को सौंपनी पड़ी है,तब से अब तक मेड़तासिटी के बिजली विभाग के गेस्टहाउस में बने हाईटेक केम्प कार्यालय में दो पुलिस अधीक्षकों सहित तक़रीबन 26 लोगों की एक विशेष सीबीआई टीम ने इलाके में डेरा डाल रखा है और अनुसन्धान जारी है ..
तीन दिन पहले 11 जुलाई की सुबह मैं फिर से डांगावास पंहुचा यह देखने के लिए कि अब वहां के क्या हालात है ,जब पहली बार घटना के तुरंत बाद के दिनों में गए तब गाँव में कोई भी कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं था ,पीड़ित परिवार के ज्यादातर लोग अजमेर के जवाहर लाल नेहरु होस्पीटल में भर्ती थे अथवा घायलों की सेवा शुश्रषा में लगे हुए ,तब गाँव में मरघट सा सन्नाटा था ,दोनों पक्ष चुप थे ,दलित डर के मारे और जाट समुदाय जाति पंचायत द्वारा जुरमाना और जाति बहिस्कृत ना कर दे इस भय से ..इस बार चुप्पी टूटने लगी है ,गाँव में दलित समुदाय तो अब भी दशहत में ही है ,खास तौर पर मेघवाल समुदाय के वे परिवार जिन पर हमला किया गया था ,मगर अन्य समुदायों के लोग सामान्य जीवन यापन करते नज़र आये ,गाँव के चौराहे पर कुछ लोग ताश खेल रहे थे ,दुकाने खुली हुई थी ,प्रथम दृष्टिया लगता ही नहीं कि इसी गाँव में दो महीने पहले छह लोग मार डाले गए थे .पर दुःख और डर की छाया मेघवाल और गोस्वामी परिवारों पर देखी जा सकती है .मेघवाल परिवार के लोगों की सुरक्षा के लिए गाँव के रामदेव मंदिर के पास एक अस्थायी पुलिस चौकी लगायी हुई है ,जिसमे 20 जवान आर ए सी और 15 जवान राजस्थान पुलिस के लगाये गए है ,जिन लोगों को दलितों की सुरक्षा में तैनात किया गया है वो सभी गैर जाट है ,दलित अथवा मूल पिछड़ी जातियों के जवान .कुछ हद तक यह कौशिस की गयी है कि दलितों की सुरक्षा में दलित पुलिसकर्मी ही तैनात किये जाये ,हालाँकि पुलिस फ़ोर्स का यह जातीय विभाजन एक अलग तरह के खतरे की ओर संकेत करता है कि भविष्य में उन्हीं लोगों की सुरक्षा सरकार कर पायेगी जिनकी जाति का प्रतिनिधित्व पुलिस फ़ोर्स में होगा .
इन्हीं हौंसलों के बीच डांगावास दलित संहार के पीड़ितों की जिंदगी रफ्ता रफ्ता वापस पटरी पर आ रही है ,खेमाराम अभी भी खाट पर ही है ,उन्हें दो लोग उठा कर इधर उधर रखते है ,एक पांव में अभी भी स्टील रोड्स लगी हुई है ,प्लास्टर चढ़ा हुआ है .उनकी ही तरह सोनकी देवी ,बिदामी देवी ,जसौदा देवी ,भंवरकी देवी और श्रवणराम खाट पर ही है ,वे कुछ भी स्वत नहीं कर सकते लोग इन्हें उठा कर इधर उधर रखते है .अर्जुनराम की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चौट है ,इसलिए वह ज्यादातर वक़्त सोते रहता है .डॉक्टर ने आराम की सलाह दी है ,ये वही अर्जुन राम है ,जिनके नाम से पुलिस ने पर्चा बयान को आधार बना कर प्राथमिकी दर्ज कर ली थी ,जबकि अर्जुनराम का कहना है कि मुझे होश ही नहीं था कि वो क्या पूंछ रहे थे और मैं क्या जवाब दे रहा था ,पुलिस ने अपनी मनमानी से कुछ भी लिखवा दिया और मुझसे दस्तख़त करवा लिए .मेड़तासिटी का तत्कालीन पुलिस स्टाफ किस कदर मामले को बिगाड़ने और दलितों को फ़साने में मशगूल था ,उसकी परतें अब खुलने लगी है ,हालाँकि अब लगभग पूरा थाना निलम्बित किया जा चुका है ,थानेदार नगाराम को सस्पेंड किया गया है और डीवाईएसपी पुनाराम डूडी को एपीओ कर दिया गया है ,मामले की जाँच पहले सीआईडी सीबी और बाद में सीबीआई को सौंप दी गयी , साज़िश की परतें अब उगड़ रही है .
गाँव में यह चर्चा भी सामने आई कि कथित रूप से दलितों की गोली के शिकार हुये रामपाल गोस्वामी की हत्या एक पहेली बन गयी है .मृतक रामपाल की विधवा माँ कहती है –हमारी तो मेघवालों से कोई लड़ाई ही नहीं है ,वो मेरे बेटे को क्यों मारेंगे ? दलितों पर दर्ज प्राथमिकी में बतौर गवाह सज्जनपुरी का कहना है कि वो तो उस दिन डांगावास में था ही नहीं .गाँव में तो कुछ लोगों ने यहाँ तक बताया कि सुरेशपुरी ने यह प्राथमिकी लिखी ही नहीं थी ,उसके नाम पर इसे दर्ज कराया गया है ,सच्चाई तो सीबीआई की जाँच से ही सामने आने की सम्भावना है ,पर इसमें झूठ के तत्व ज्यादा ही है ,जिन लोगों पर आरोप है उनमे गोविन्दराम ,बाबुदेवी ,,सत्तुराम ,दिनेश ,सुगनाराम ,कैलाश ,रामकंवरी और नरेन्द्र सहित 8 जने तो घटनास्थल पर मौजूद ही नहीं थे ,ये लोग तो होस्पीटल ही पंहुचे थे सीधे ,फिर भी हत्या के मुकदमें में आरोपी बना लिए गए है .
घायलों में किशनाराम ,मुन्नाराम ,शोभाराम और पप्पुड़ी की हालत अब ठीक है और वे अपने तथा घर के कामकाज खुद करने की स्थिति में है .लेकिन बच्चों और महिलाओं के चेहरों पर खौफ साफ देखा जा सकता है ,पप्पुड़ी देवी कहती है कि हम लोग डर के मारे मेड़तासिटी भी नहीं जाते है ,वह अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर भी बहुत चिंतित है ,अपने बेटे को उसने अजमेर पढ़ने भेज दिया है ताकि उसको किसी प्रकार का खतरा नहीं हो .पप्पुड़ी बेहद निराशाजनक स्थिति में बुझे स्वर में कहती है कि हमारा तो सब कुछ चला गया है ,यहाँ के परिवार को भी मार डाला और पीहर में हम पांच बहनों के बीच दो ही भाई थे ,उनको भी मार डाला.मेरा भाई गणपत तो गुजरात में ईंट भट्टों पर काम करता था ,मजदूरों के लिए लड़ता था ,अभी अभी ही घर आया और मुझ अभागी बहन से मिलने चला आया ,मुझे क्या पता था कि मेरे दोनों भाई मारे जायेंगे ,मैं पीहर में मुंह दिखाने और बोलने लायक भी नहीं बची .पप्पुड़ी को अपने बच्चों के भविष्य की चिंता खाए जा रही है ,वह अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर भी बहुत आशंकित है .
राज्य शासन को दलितों के प्रति जैसी संवेदशीलता अपनानी चाहिए वह नहीं अपनाई गयी है ,ऐसी कोई पहल डांगावास में नज़र नहीं आती है जो यह उम्मीद जगाती हो कि दलित वहां पर सुरक्षित है ,इस पुरे प्रकरण में आरोपियों को राजनितिक संरक्षण प्राप्त होने और प्रशासन में एक ही समुदाय का बाहुल्य होने की स्थितियां सामने आ चुकी है .सीबीआई ने अब तक जेल में बंद आरोपियों से पूछताछ की है ऐसा मीडिया रिपोर्ट्स कहती है ,डांगावास पंचायत क्षेत्र के भूमि सम्बन्धी रिकार्ड्स भी खंगाले है ,जिनसे खसरा नंबर 1088 की पूरी कहानी सामने आ सके और घटना के दिन के काल डिटेल्स भी निकाले गए है ,ऐसी भी जनचर्चा है .रामपाल गोस्वामी की हत्या के संदिग्ध मुकदमे के मुख्य आरोपी बनाये गए गोविन्दराम मेघवाल ने बताया कि सीबीआई ने उससे और किशनाराम से नार्को टेस्ट कराने की सहमती के लिए पत्र पर हस्ताक्षर करवाए है ,इन दोनों के मन में नार्को टेस्ट के साइड इफेक्ट को लेकर गहरी चिंता है ,वो कहते है कि हमें बताया गया है कि कभी कभी व्यक्ति इससे कोमा में चला जाता है ,क्या यह बात सही है ? मैंने उनसे कहा कि मैं नहीं जानता कि इसके चिकित्सीय प्रभाव क्या होते है पर कोई भी जाँच एजेंसी किसी से भी कोई भी टेस्ट उसकी सहमती के बिना नहीं कर सकती है ,लेकिन पता चला है कि सीबीआई दलितों द्वारा पहले गोली चलाये जाने की एफआईआर की सच्चाई को सामने लाने के लिए गोविन्दराम और किशनाराम का नार्को टेस्ट करवाना चाहती है .सीबीआई ने पीड़ित दलितों से भी अलग अलग बयान लिए है .
कुल मिलाकर सीबीआई जाँच जारी है,गाँव में फ़िलहाल शांति है और सीबीआई के अस्थायी कार्यालय में अक्सर हलचल देखी जाति है .घायल दलितों को रोज मेडिकल सहायता के लिए चिकित्साकर्मी सँभालते है . दूसरी ओर जो दलित और मेघवाल जाति के संगठन आन्दोलन में जुटे थे अब वे सीबीआई जाँच का श्रेय लेने के लिए अपने अपने प्रभाव क्षेत्र में रस्साकस्सी में लगे हुए है,वहीँ दलित राजनीती के सितारों को ना डांगावास दलित संहार के पीड़ितों से पहले कोई लेना देना था और ना ही अब है ,सब अपने अपने ढर्रे पर लौट गए लगते है ,पर डांगावास के दलितों की ज़िन्दगी अपने ढर्रे पर कब लौट पायेगी ,यह बड़ा सवाल है ,अभी तो डांगावास के दलित पीड़ितों की जिंदगियां डरी डरी सी ,सहमी सहमी सी और टूट फूट कर बिखरी बिखरी सी दिखाई पड़ती है ,जिन्हें सबके सतत सहयोग और संबलन की जरूरत है .
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