पहली जंग-ए-आज़ादी के महानायक डंका शाह की भुला दी गयी शहादत
शाह आलम इतिहास की कब्र को खोदकर आज़ादी के वीर सपूतों की रूहों को आज़ाद कराने के काम में बरसों से जुटे हैं। इस बार उन्होंने 1857 की पहली जंग-ए-आजा़दी के योद्धा सूफ़ी फ़कीर डंका शाह को खोज निकाला है जिनकी कब्र उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में है। डंका शाह अपनों के ही विश्वासघात के कारण 15 जून 1858 को शहीद हुए थे। संयोग है कि 157 वर्षों बाद उसी शाहजहांपुर में जून के ही महीने में एक पत्रकार को काले अंग्रेज़ों ने जलाकर मार दिया। जगेंद्र सिंह की ख़ता बस इतनी थी कि उसने अपनी ज़बान एक सत्ताधारी के खिलाफ खोली थी। उसने अपनी जान को ख़तरा भी बताया था, लेकिन अपनी बिरादरी ने ही गद्दारी कर दी। बेशर्मी की इंतिहा देखिए कि पत्रकारों ने जगेंद्र को पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया। 1857 की जंग की नाकामी का सबक शाह आलम कुछ यूं गिनाते हैं, ”आप बिकेंगे तो हर मोर्चे पर हारेंगे।” 2015 के शाहजहांपुर पर भी यह सबक हूबहू लागू होता है। फि़लहाल पढि़ए डंका शाह के शहादत दिवस 15 जून पर यह विशेष प्रस्तुति – (मॉडरेटर)
मतलबपरस्ती की इस दुनिया में किसी भी जननायक को भुला देने के लिए 157 साल कम नहीं होते। जब हमारे ही लोग उस गौरवशाली विरासत की शानदार धरोहर को सहेज कर न रख पा रहे हों तो सत्ता को कोसने का क्या मतलब? दरअसल, इतिहास की भी दो किस्में हैं: एक तो राजा, रजवाड़े, रियासतों, तालुकेदारों, नवाबों, बादशाहों, शहंशाहों का और दूसरा जनता का। सत्ता का चरित्र होता है कि वह अपने फ़रेब, साजिशों और दमन के सहारे हमें बार-बार आभास कराती है कि जनता बुजदिल, कायर होती है और जनता के बलिदानों का कोई इतिहास नहीं है। हमारे लोग भी जाने-अनजाने ऐसी साजिशों का हिस्सा बन जाते हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर हम सब कुछ भूलने पर ही उतारू हो जाएं. तो भला याद क्या और किसे रखेंगे?
1857 की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि अंग्रेजों की ‘डिवाइड एंड रूल’ नीति को धता बता कर हिन्दू-मुसलमान कदम से कदम मिलाकर साथ-साथ लड़े थे। हर मोर्चे पर हालात यह थे कि इंच-इंच भर जमीन अंंग्रेजों को गवानी पड़ी या देशवासियों के लाशों के ऊपर से गुज़रना पड़ा। सवाल उठता है कि फिर हम हार क्यों गए? वजह साफ़ है कि ऐसे नाज़ुक दौर में हवा का रुख देखकर आज़ादी में शामिल हुए नायक ‘खलनायक’ बन गए और ऐन मौके पर अपनी गद्दारी की कीमत वसूलने दुश्मनों से जा मिले। इसी विश्वासघात की वज़ह से जंगे आज़ादी के सबसे बहादुर सिपहसालार मौलवी को शहादत देनी पड़ी। 1857 का सबसे बड़ा सबक यह है कि ‘आप बिकेंंगे तो हर मोर्चे पर हारेंगे।’
मौलवी को कलम और तलवार में महारत हासिल होने के साथ ही आम जनता के बीच बेहद लोकप्रियता प्राप्त थी। इस योद्धा ने 1857 की शौर्य गाथा की ऐसी इबारत लिखी जिसको आज तक कोई छू भी नहीं पाया। पूरे अवध में नवंबर 1856 से घूम-घूम कर इस विद्रोही ने आज़ादी की मशाल को जलाए रखा जिसकी वजह से फरवरी 1857 में उनके सशस्त्र जमावड़े की बढ़ती ताकत को देखकर फिरंगियों ने कई लालच दिए, अपने लोगों से हथियार डलवा देने के लिए कहा तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया। इस गुस्ताखी में फिरंगी आकाओं ने उनकी गिरफ्तारी का फ़रमान जारी कर दिया। मौलवी की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि अवध की पुलिस को मौलवी को गिरफ्तार करने से मना कर दिया गया। 19 फरवरी 1857 को अंग्रेज़ी फौजों और मौलवी में कड़ी टक्कर के बाद उन्हें पकड़ लिया गया। बागियों का मनोबल तोड़ने के लिए घायल मौलवी को सिर से पांव तक जंजीरों में बांधकर पूरे फैज़ाबाद शहर में घुमाया ही नहीं गया बल्कि फांसी की सजा सुनाकर फैज़ाबाद जेल में डाल दिया गया।
क्रांति का पौधा जो उन्होंने रोपा था उसका असर यह हुआ कि 8 जून 1857 को फैज़ाबाद की बहादुर जनता ने बगावत कर दी। हजारों हज़ार बागियों ने फैज़ाबाद जेल का फाटक तोड़कर अपने प्रिय मौलवी और साथियों को आजाद कराय। पूरे फैज़ाबाद से अंग्रेज़ डरकर भाग खड़े हुए। फैज़ाबाद आजाद हो गया। मौलवी की रिहाई का जश्न मनाया गया और उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गयी। फिर तो मौलवी ने सिर्फ फैज़ाबाद तक ही अपने आप को सीमित नहीं रखा बल्कि पूरे अवध-आगरा में जमकर अपनी युद्धनीति का करिश्मा दिखाया। फ़रारी के दिनों में मौलवी को सुनने कई हजार की भीड़ जमा हो जाती थी। प्रसिद्ध पुस्तक ‘भारत में अंगरेज़ी राज़’ के लेखक पंडित सुन्दरलाल लिखते हैं कि ‘वास्तव में बगावत की उतनी तैयारी कहीं भी नहीं थी जितनी अवध मेंं। हजारों मौलवी और हजारों पंडित एक-एक बैरक और एक-एक गांवं में स्वाधीनता युद्ध के लिए लोगों को तैयार करते फिरते थे।’ इतिहासकार होम्स ने उत्तर भारत मेंं अंग्रेजों का सबसे जबदस्त दुश्मन मौलवी को बताया है।
हर मोर्चे पर फिरंगियों को भागना पड़ रहा था, तब 12 अप्रैल 1858 को गवर्नर जनरल कैनिंग ने उन्हें गिरफ्तार करने के लिए 50,000 रुपये ईनाम का एलान किया जिस पर भारत के सचिव जी. एफ. ऐडमोंस्टन के दस्तखत थे। इधर मौलवी से पुवायां का राजा जगन्नाथ अपनी दोस्ती का दम भरता था। मौलवी राजा से मदद मांगने जब पुवाया पहुंचे. तो उन्हें दाल में कुछ काला लगा लेकिन इस बहादुर ने वापस लौटना अपनी शान के खिलाफ समझा। पैसों और रियासत की लालच में धोखे से मौलवी को शहीद कर दिया गया। उनके सिर को काटकर अंग्रेज़ जिला कलक्टर को राजा ने सौंपा और मुंहमांगी रकम वसूल की। इस विश्वासघात से देश के लोग रो पड़े। फिरंगियों ने अवाम में दहशत फैलाने की नीयत से मौलवी का सिर पूरे शहर में घुमाया और शाहजहांपुर की कोतवाली के नीम के पेड़ पर लटका दिया। यह अलग बात है कि कुछ जुनूनियों ने रात में सिर को उतारकर लोधीपुर गांव के नज़दीक खेतों के बीच दफना दिया जहां आज भी मौलवी का स्मारक मौजूद है।
फैज़ाबाद के स्वतंत्रता सेनानी रमानाथ मेहरोत्रा ने अपनी किताब ‘स्वतंत्रता संग्राम के सौ वर्ष’ में लिखा है कि ‘…फैज़ाबाद की धरती का सपूत मौलवी अहमद उल्लाह शाह शाहजहांपुर में शहीद हुआ और उसके खून से उस जनपद की धरती सींची गयी तो बीसवी सदी के तीसरे दशक में शाहजहांपुर की धरती से एक सपूत अशफाक उल्ला खां का पवित्र खून फैजाबाद की धरती पर गिरा। इतिहास का यह विचित्र संयोग है… एक फैज़ाबाद से जाकर शाहजहांपुर में शहीद हुआ तो दूसरा शाहजहांपुर में जन्मा और फैज़ाबाद में शहीद हुआ।’ शहीद–ए-वतन अशफाक ने अपनी जेल डायरी में एक शेर दर्ज किया है, ‘शहीदों की मजारों पर जुड़ेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।’ दिल पर हाथ रहकर आज अपने आप से खुद पूछें, इस अजूबे फकीर के वारिसों को शहादत पर याद करने की कितनी फुर्सत है? इस मुक्ति योद्धा की जिंदगी के ज्यादातर पन्ने अब भी रहस्य के गर्भ में हैं।
On Sept. 3, 2025, China celebrated the 80th anniversary of its victory over Japan by staging a carefully choreographed event…
Since August 20, Jammu and Kashmir has been lashed by intermittent rainfall. Flash floods and landslides in the Jammu region…
The social, economic and cultural importance of the khejri tree in the Thar desert has earned it the title of…
On Thursday, 11 September, the Congress party launched a sharp critique of Prime Minister Narendra Modi’s recent tribute to Rashtriya…
Solar panels provide reliable power supply to Assam’s island schools where grid power is hard to reach. With the help…
August was a particularly difficult month for the Indian Himalayan states of Uttarakhand, Himachal Pradesh and Jammu and Kashmir. Multiple…
This website uses cookies.