पगड़ी का रंग मत गिनवाओ, उठो ज्ञानी खेत संभालो!

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से 23 मार्च 2015 को शहीदी दिवस पर अखबारों में विज्ञापन छपा जिसमें शहीद-ए-आज़म भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की साझा तस्वीर है। इस तस्वीर में भगत सिंह को फिर से पगड़ी पहना कर क्रांतिकारी चेतना को कम करने की एक बार फिर से साजिश रची गई है। यह क्रांतिवीर का अपमान है क्योंकि भगत सिंह पूरे देश के शहीद हैं।

क्रांतिकारियों के दल हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के खुफिया हेडक्वार्टर आगरा में गोरी हुकूमत के बहरे कानों को खोलने के मंथन के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह मौत से खेलने दिल्ली आ धमके थे। महीने भर यह जोड़ी दिल्ली में जमी रही। दोनों क्रांतिकारियों ने कई शाम बम को अखबार में लपेटे कपड़ों में छिपाते हुए संसद भवन की रेकी की। सर्वाधिक विचार सम्पन्‍न भगत सिंह ने अंतिम दौर में अपने बाल कटवा लिए थे। केन्द्रीय असेम्बली में धमाका करने के चार दिन पहले भगत सिंह ने बटुक से कहा, ”चलो, फोटो खिंचवाएं।” बटुक ने इसे टालना चाहा, लेकिन भगत सिंह जि़द पर अड़े रहे।

आखिरकार 3 अप्रैल, 1929 को कश्मीरी गेट पर इन्‍होंने फोटो खिंचवाई। शामलाल की खींची हुई यह बहुप्रचलित तस्वीर आखिरी यादगार है। फ्लैट हैट में भगत सिंह की यह तस्वीर आज तक लोगों के जेहन में मौजूद है जिसके लिए वह अवाम में जाने-पहचाने जाते हैं। तब सरकारें शुरू से ही उन्हें क्रांतिकारी विचारधारा से अलग-थलग कर सिक्ख बनाने पर क्‍यों तुली हैं जबकि क्रांतिवीर के सारे अदालती दस्तावेज, पर्चे, बयान, पत्र-व्यवहार, आलेख, उनके पत्रकार जीवन में लिखी गई टिप्पणियां, जेल डायरी आदि सब कुछ हमारे सामने है? फांसी के फंदे के साये में 5-6 अक्टूबर को लिखा गया उनका लेख ‘मैं नास्तिक क्यो हूं?’ इसका सबसे चर्चित सबूत है।

बड़ा सवाल यह है जाति, धर्म के नाम पर इन शहीदों को बांटने का काम अंग्रेजों ने टुच्ची साजिश के तहत उस दौर में किया था। आज वही काम हुक्मरानों की तरफ से किया जा रहा है। वोट बैंक की सियासत के मोह में प्रधानमंत्री का 23 मार्च को हुसैनीवाला में शहीदों के स्मारक पर किया नाटक इसी कड़ी का नतीजा था। वहीं जेएनयू से रिटायर्ड प्रोफेसर चमनलाल 29 मार्च, 2015 को बीबीसी हिंदी डॉट काम पर लिखकर सवाल उठाते हैं, ”भगत सिंह को पीली पगड़ी किसने पहनाई?”

सवाल पीली, हरी, भगवा रंग का नहीं है बल्कि पगड़ी पहनाने का है। प्रो. चमनलाल की ”भगत सिंह की क्रांतिकारी विरासत” नाम की उद्भावना से प्रकाशित (मई 2007, कीमत 8 रुपये) पुस्तिका जो हमारे पास मौजूद है, उसके कवर पेज पर भगत सिंह लाल पगड़ी पहने हुए हैं। हम प्रो. चमनलालजी से जानना चाहते है कि भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के सबसे बड़े प्रवक्ता भगत सिंह को लाल पगड़ी किसने पहनाई?

दरअसल, साझी शहादत, साझी विरासत को विभाजित करने का षडयंत्र क्रांतिकारी चेतना का अपमान है। क्रांतिकारियों की बहादुराना शहादत को कम आंकना इसे टुकड़ों-टुकड़ों में देखने की साजिश है। आज से छियासी साल पहले आज की संसद मे बैठने वाले बहरों के कानो को खोलने के लिए बम का धमाका किया गया था। ऐसा कर के असल में दुनिया में साम्राज्यशाही के खिलाफ सबसे बड़ी इबारत लिख दी थी दोनों क्रांतिवीरों ने, जब पार्टी के लाल रंग के पर्चे संसद हॉल में चारों तरफ बिखरा दिए गए थे।

परचे पर लिखी पंक्तियां कुछ यूं थीं:


”राष्ट्रीय दमन और अपमान की इस उत्तेजनापूर्ण परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व की गंभीरता को महसूस कर हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र ने अपनी सेना को यह कदम उठाने का आज्ञा दी है। इस कार्य का प्रायोजन है कि कानून का यह अपमानजनक प्रहसन समाप्त कर दिया जाए। विदेशी शोषक नौकरशाही जो चाहे करे, परन्तु उसकी वैधानिकता की नकाब फाड़ देना आवश्यक है। जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस पार्लियामेंट के पाखंड को छोड़कर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों को लौट जाएं और जनता को विदेशी दमन और शोषण के विरुद्ध क्रांति के लिए तैयार करें।”


दल की पूर्व योजना के तहत इंकलाब जिंदाबाद के नारे के साथ इन्‍होंने अपनी गिरफ्तारी दे दी। अफसोसनाक है कि आज तक भारतीय संसद में इन दोनों क्रांतिकारियों के खिलाफ निंदा का प्रस्ताव दर्ज है। इतने दिनों बाद भी ‘सुअरबाड़े’ के चरित्र में कोई परिवर्तन नही आया है।

बम कांड के 86 साल बाद आज भी जनता के प्रतिनिधियों की कथित असेंबली शहादतों के प्रति बहरी बनी हुई है जबकि इस देश के बुद्धिजीवी पगड़ी का रंग गिनवाने में ही अपनी ऊर्जा नष्‍ट कर रहे हैं। आज जब इस देश के किसानों की जमीनें उनकी सहमति के बगैर हड़पने का फ़रमान जारी कर दिया गया है, तो ऐसे में क्रांतिवीरों के सच्‍चे वारिसों को एक बार फिर देश की जनता को अपनी महान शहादतें और उनकी सच्‍चाइयां याद दिलाने का वक्‍त है ताकि नकली चेहरों के परदाफाश के लिए उनके नकाब को नोच कर फेंका जा सके और लोगों की ज़मीन को उनके पैरों तले खिसकने से बचाया जा सके। असेंबली बम कांड के भुला दिए गए नायक बटुकेश्‍वर दत्‍त और हुक्‍मरानों के पसंदीदा रंगों में कैद किए जा चुके कम्‍युनिस्‍ट क्रांतिवीर भगत सिंह को आज के दिन याद करने का असली मतलब यही है।

Recent Posts

  • Featured

Delhi’s Toxic Air Rises, So Does The Crackdown On Protesters

Delhi’s air may be growing more toxic by the day — but on Sunday, authorities appeared to view a peaceful…

1 week ago
  • Featured

A Celebration of Philately Leaves Its Stamp On Enthusiasts In MP

The 14th State Level Philatelic Exhibition, MAPPEX-2025, organized by the Madhya Pradesh Postal Circle, was held in Bhopal from November…

1 week ago
  • Featured

Groundwater Management In South Asia Must Put Farmers First

South Asia accounts for 50% of the groundwater pumped for irrigation globally. The practice has been critical to ensuring food…

1 week ago
  • Featured

What The Sheikh Hasina Verdict Reveals About Misogyny In South Asia

Earlier this week, news came in that ousted Bangladesh Prime Minister Sheikh Hasina has been sentenced to death – by…

2 weeks ago
  • Featured

Documentaries Rooted In Land, Water & Culture Shine At DIFF

At the 14th edition of the Dharamshala International Film Festival, three documentaries stood out for the way they portrayed the…

2 weeks ago
  • Featured

Electoral Roll Revision Is Sparking Widespread Social Anxieties

The Special Intensive Revision of the voters list across 12 Indian states could potentially lead to sharpening of the communal…

2 weeks ago

This website uses cookies.