Skip to content
Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Primary Menu Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us
  • Headline
  • Politics & Society

एक आततायी भीड़ का शोकगान

Aug 6, 2015 | नदीम असरार

आज भारत के सामने नैतिक रूप से दो परस्‍पर विरोधाभासी घटनाएं घट रही हैं: पहली, 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के दोषी याकूब मेनन को उसके 54वें जन्‍मदिवस पर दी गई फांसी; और दूसरी, कुछ घंटों बाद मिसाइल मैन व पीपुल्‍स प्रेसिडेंट एपीजे अब्‍दुल कलाम की राजकीय सम्‍मान के साथ अंत्‍येष्टि, जो किसी भी राष्‍ट्रीय स्‍तर के नेता के मामले में की गई एक दुर्लभ व अभूतपूर्व खुशामद है।

एक ही दिन सजे मौत के ये दो रंगमंच एक ऐसे देश के लिए संभवत: बड़े सूक्ष्‍म रूपक का काम करते हैं जहां एक विशिष्‍ट ताकत के सत्‍ता में आने में के बाद उभरा एक विशिष्‍ट विमर्श अब पर्याप्‍त ज़मीन नाप चुका है। कलाम और मेमन नाम के इन दो भारतीय मुसलमानों का सफ़र और उनकी मौत एक ऐसा आईना है जिसमें हम भारतीय धर्मनिरपेक्षता की चारखानेदार चाल के कई अक्‍स एक साथ आसानी से देख सकते हैं।

हिंदुत्‍व के निर्मम और अनवरत हमले के बोध से घिरे तमाम भारतीयों को अब दोनों पर सवाल खड़ा करने से रोकना मुश्किल जान पड़ रहा है- एक, कलाम का राजकीय सम्‍मान और दूसरा, मेमन की राजकीय हत्‍या।

मिसाइल वैज्ञानिक कलाम को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने राष्‍ट्रपति पद के लिए चुना था। वे उस राष्‍ट्रवादी सत्‍ता के लिए आदर्श चुनाव थे जिसका लक्ष्‍य आक्रामक तरीके से सैन्‍य एजेंडे को हासिल करना था। चूंकि वे एक ऐसे तमिल मुसलमान थे जिनकी छवि अपनी धार्मिकता को खारिज करने से बनी थी और उस तत्‍व को प्रदर्शित करने पर टिकी थी जिसे उनके चाहने वाले दक्षिणपंथी लोग ”भारतीय” जीवनशैली करार देते हैं, लिहाजा उनको चुना जाना बीजेपी के लिए मददगार ही साबित हुआ।

कलाम को जुलाई 2002 में भारत का राष्‍ट्रपति चुना गया था। यह गुजरात के नरसंहार के महज कुछ महीने बाद की बात है। मौजूदा प्रधानमंत्री के राज में उस वक्‍त तक राज्‍य में नफ़रत की आग फैली हुई थी। अपेक्षया समृद्ध गुजरात के बीचोबीच खड़े तमाम राहत शिविर लगातार आंखों में गड़ रहे थे और नरसंहार के शिकार लोग अब भी गुजरात और बाहर की अदालतों के दरवाजे खटखटा रहे थे।

गुजरात ने वाजपेयी की छवि को भी काफी नुकसान पहुंचाया था क्‍योंकि वे तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ कोई कार्रवाई कर पाने में नाकाम रहे थे। इतना ही नहीं, नरसंहार के कुछ महीने बाद गोवा में एक कुख्‍यात भाषण में उन्‍होंने हिंसा को जायज़ तक ठहरा दिया था। उन्‍हें अपना रेचन करने की जरूरत थी। कलाम इसके काम आए। अगले दो साल तक जब तक वाजपेयी सत्‍ता में रहे, कलाम ने अपना किरदार हॉलीवुड के क्‍लासिक ”ब्‍लैक साइडकिक” की तर्ज़ पर बखूबी निभाया।

बाकी की कहानी इतिहास है। इसके बाद यह शख्‍स अपने व्‍याख्‍यानों, पुस्‍तकों और प्रेरक उद्धरणों के सहारे चौतरफा रॉकस्‍टार बन गया, जिसका निशाना खासकर युवा आबादी थी। इस प्रक्रिया में कलाम ने अधिकांश मौकों पर उन तमाम जातिगत और वर्गीय संघर्षों की ओर से अपनी आंखें मूंदे रखीं जिनका सामना इस देश के युवा कर रहे थे।

चाहे जो भी रहा हो, लेकिन रामेश्‍वरम से लेकर रायसीना तक कलाम का शानदार उभार इसके बावजूद एक समावेशी भारतीय किरदार का उदाहरण बन ही गया, जैसा कि सोशल और मुख्‍यधारा के मीडिया में उनकी मौत पर गाए जा रहे सामूहिक शोकगान से ज़ाहिर होता है।

बिलकुल इसी बिंदु पर याकूब मेनन की विशिष्‍टता उतनी ही मर्मस्‍पर्शी बन जाती है। एक ऐसी विशिष्‍टता, जो राज्‍य को हत्‍याओं और सामूहिक हत्‍याओं में फर्क बरतने की सहूलियत देती है। एक ऐसी विशिष्‍टता, जो हमारी राष्‍ट्रीय चेतना में अपने और पराये की धारणा को स्‍थापित करती है।

आज के भारत में मौत की सज़ा का विरोध करना उदारवादियों का एक प्रोजेक्‍ट बन चुका है। (और उदारवादियों पर हमेशा ही उनके भारत-विरोधी षडयंत्रों के लिए संदेह किया जाता रहा है।)

इससे भी बुरा हालांकि यह है कि राजकीय हत्‍याएं हमेशा उन विवरणों से प्रेरित होती हैं जिनका उस मुकदमे से कोई लेना-देना नहीं होता जिसके तहत दोषी को लटकाया जाता है। प्रत्‍येक हत्‍या एक संदेश होती है, और हर मामले का विवरण इतना मामूली बना दिया जाता है कि उस पर कोई कान नहीं देता।

यही वजह है कि आततायियों की जो भीड़ नागपुर में मेमन को लटकाए जाने का इंतज़ार भी नहीं कर पा रही थी, वह उस हिंसा और नाइंसाफी को संज्ञान में लेने तक को तैयार नहीं है जिसने मेमन को पहले पहल पैदा किया। उनकी आवाज़ें इतनी दहला देने वाली हैं कि उसमें मुसलमानों (और उदारवादियों) के निहायत ज़रूरी सवाल दब गए हैं:

”आखिर 1992-93 के मुंबई दंगों का क्‍या हुआ?”

”क्‍या श्रीकृष्‍ण आयोग की रिपोर्ट को लागू किया गया?”

”मुंबई में हुई 900 से ज्‍यादा मौतों के लिए क्‍या राज्‍य ने बाल ठाकरे और उनकी शिव सेना पर मुकदमा चलाया?”

”मुकदमा?” वे मज़ाक उड़ाते हुए कहते हैं, ”हमने तो पूरे राजकीय सम्‍मान के साथ ठाकरे को विदाई दी थी।”

”अच्‍छा, क्‍या वही सलाम जो अब कलाम को मिलने वाले हैं?”

चुप…।

 

डेलीओ से साभार 

रूपांतरण: अभिषेक श्रीवास्‍तव 

Continue Reading

Previous याकूब मेमन: ”विस्‍थापित आक्रोश” का ताज़ा शिकार
Next हेम मिश्रा: चालीस मीटर के ‘संपूर्ण संसार’ में दो साल

More Stories

  • Featured
  • Politics & Society

CAA के खिलाफ पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव पारित!

6 years ago PRATIRODH BUREAU
  • Featured
  • Politics & Society

टीम इंडिया में कब पक्की होगी KL राहुल की जगह?

6 years ago PRATIRODH BUREAU
  • Featured
  • Politics & Society

‘नालायक’ पीढ़ी के बड़े कारनामे: अब यूथ देश का जाग गया

6 years ago Amar

Recent Posts

  • Zohran Mamdani’s Last Name Reflects Eons Of Migration And Cultural Exchange
  • What Makes The Indian Women’s Cricket World Cup Win Epochal
  • Dealing With Discrimination In India’s Pvt Unis
  • ‘PM Modi Wants Youth Busy Making Reels, Not Asking Questions’
  • How Warming Temperature & Humidity Expand Dengue’s Reach
  • India’s Tryst With Strategic Experimentation
  • ‘Umar Khalid Is Completely Innocent, Victim Of Grave Injustice’
  • Climate Justice Is No Longer An Aspiration But A Legal Duty
  • Local Economies In Odisha Hit By Closure Of Thermal Power Plants
  • Kharge Calls For Ban On RSS, Accuses Modi Of Insulting Patel’s Legacy
  • ‘My Gender Is Like An Empty Lot’ − The People Who Reject Gender Labels
  • The Environmental Cost Of A Tunnel Road
  • Congress Slams Modi Govt’s Labour Policy For Manusmriti Reference
  • How Excess Rains And Poor Wastewater Mgmt Send Microplastics Into City Lakes
  • The Rise And Fall Of Globalisation: Battle To Be Top Dog
  • Interview: In Meghalaya, Conserving Caves By Means Of Ecotourism
  • The Monster Of Misogyny Continues To Harass, Stalk, Assault Women In India
  • AI Is Changing Who Gets Hired – Which Skills Will Keep You Employed?
  • India’s Farm Policies Behind Bad Air, Unhealthy Diet, Water Crisis
  • Why This Darjeeling Town Is Getting Known As “A Leopard’s Trail”

Search

Main Links

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us

Related Stroy

  • Featured

Zohran Mamdani’s Last Name Reflects Eons Of Migration And Cultural Exchange

3 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

What Makes The Indian Women’s Cricket World Cup Win Epochal

9 hours ago Shalini
  • Featured

Dealing With Discrimination In India’s Pvt Unis

11 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

‘PM Modi Wants Youth Busy Making Reels, Not Asking Questions’

1 day ago Pratirodh Bureau
  • Featured

How Warming Temperature & Humidity Expand Dengue’s Reach

1 day ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • Zohran Mamdani’s Last Name Reflects Eons Of Migration And Cultural Exchange
  • What Makes The Indian Women’s Cricket World Cup Win Epochal
  • Dealing With Discrimination In India’s Pvt Unis
  • ‘PM Modi Wants Youth Busy Making Reels, Not Asking Questions’
  • How Warming Temperature & Humidity Expand Dengue’s Reach
Copyright © All rights reserved. | CoverNews by AF themes.