बनारस सुरक्षा बंधन मना रहा है!
पूर्णिमा बीत गई। सावन ढलने वाला है। देश रक्षाबंधन मना चुका। बनारस सुरक्षा बंधन मना रहा है। देखकर दिमाग चकरा गया जब हमने शुक्रवार की सुबह करीब दो दर्जन औरतों की भीड़ को नई सड़क के एक कोने में एक स्टॉल के पास जमा पाया।
पूर्णिमा बीत गई। सावन ढलने वाला है। देश रक्षाबंधन मना चुका। बनारस सुरक्षा बंधन मना रहा है। देखकर दिमाग चकरा गया जब हमने शुक्रवार की सुबह करीब दो दर्जन औरतों की भीड़ को नई सड़क के एक कोने में एक स्टॉल के पास जमा पाया।
हफ्ते भर बाद बनारस में कल बारिश हुई। बारिश होते ही दो खबरें काफी तेजी से फैलीं। पहली, कि नई सड़क पर कमर भर पानी लग गया है। दूसरी, कि पूरा शहर जाम है। खबर इतनी तेज फैली कि कचहरी पर तिपहिया ऑटो की कतारें लग गईं।
बनारस और दिल्ली के बीच कई संयोग हैं। पहले भी थे, अब भी हैं, आगे भी घटते रहेंगे। कुछ संयोग हालांकि ऐसे होते हैं जिनकी ओर हमारा ध्यान सहज नहीं जाता। मसलन, कल शाम जब बनारस के अपने अख़बार गांडीव पर नज़र पड़ी तो मेरा दिमाग कौंधा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 अगस्त 2014 को जापान में एक सौदा किया था। सौदा था बनारस को क्योटो बनाने का, या कहें क्योटो जैसा बनाने का। एक बरस बीत रहा है और डा. मोदी के एक्स-रे से जितना बनारस बाहर हो चुका है, उतना ही जापान। फिलहाल उन्हें सिर्फ पाकिस्तान दिखाई दे रहा है।
दो साल गुज़र गए। 20 अगस्त 2013 को पुलिस ने हेम को बल्लारशाह रेलवे स्टेशन से पकड़ा लेकिन गिरफ्तारी वहां से 300 किलोमीटर दूर अहेरी बस स्टैंड से तीन दिन बाद दिखाई गई।
आज भारत के सामने नैतिक रूप से दो परस्पर विरोधाभासी घटनाएं घट रही हैं: पहली,…
1993 के मुंबई बम धमाकों में उसकी भूमिका के लिए याकूब मेमन को अगर फांसी…
विष्णु शर्मा का यह लेख दो दिन पहले जब हमें प्राप्त हुआ, उस वक्त तक नेपाल के संविधान में ”धर्मनिरपेक्ष” शब्द पर कोई बहस प्रत्यक्ष नहीं थी, लेकिन 28 जुलाई 2015 के अखबारों की मानें तो नेपाल के सभी राजनीतिक दलों के बीच यह सहमति बन चुकी है कि संविधान में से ”सेकुलर” शब्द को हटाया जाएगा।
भारतीय जनता पार्टी सरकार ने अपने 2014 के चुनाव पत्र में गौमांस पर प्रतिबंध और…
2001 से स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) अनलॉफुल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन) एक्ट (यूएपीए) के तहत एक प्रतिबंधित संगठन है क्योंकि वह तथाकथित राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल है | ध्यान देने वाली बात यह है कि यूएपीए के अंतर्गत एक ट्रिब्यूनल (ख़ास न्यायालय) का गठन होना अनिवार्य है |
पुलिस थाने से महज़ पांच किमी दूर स्थित इस घटना स्थल पर पुलिस किसी घुमावदार रास्ते के ज़रिये तब पंहुची ,जबकि आततायी अपनी मनमानी करके वापस घरों को लौट गए
I remember Praful from his pre-journalist days – the IIT days, the Magowa days – days when we were closest. This is a Praful who is not very well known and today I would like to speak about him.
Shivpuri, Friday 10 July 2015. The Sahariya children of Shirpura village (Shivpuri district, Madhya Pradesh) rarely get a chance to eat an egg.
I clicked on the link and then only I got to know that it is being celebrated to mark historic win over the long battle of LGBT rights in the United States
Just about two weeks back, Praful Bidwai wanted to eat fish. He knew that Sagar Chatterjee, who started his Bengali food business on a bicycle in my neighborhood, was my friend. Sagar and his wife cook delicious East Bengali cuisine.
In the age of Wikipedia, Praful was the person you called for things you could not find on the Net, or discover after a Google search. AMIT SENGUPTA recalls a scholar, academic, teacher, friend, comrade and connoisseur. Pix: Praful Bidwai, NDTV.com
आपातकाल की चालीसवीं बरसी पर रिहाई मंच ने दिया धरना… जलाकर मारे गए शाहजहांपुर के पत्रकार जगेंद्र सिंह को इंसाफ दिलाने और प्रदेश में दलितों, महिलाओं, आरटीआइ कार्यकर्ताओं व पत्रकारों पर हो रहे हमले के खिलाफ शासन को सौंपा 17 सूत्रीय ज्ञापन।
इसे दुर्भाग्य कहूं या सौभाग्य कि प्रफुल बिदवई के गुज़रने की ख़बर मुझे राजदीप सरदेसाई…
शाह आलम इतिहास की कब्र को खोदकर आज़ादी के वीर सपूतों की रूहों को आज़ाद कराने के काम में बरसों से जुटे हैं। इस बार उन्होंने 1857 की पहली जंग-ए-आजा़दी के योद्धा सूफ़ी फ़कीर डंका शाह को खोज निकाला है जिनकी कब्र उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में है। डंका शाह अपनों के ही विश्वासघात के कारण 15 जून 1858 को शहीद हुए थे।
परसों मेल पर एक न्योता आया। भेजने वाले का नाम है तौसीफ़ मादिकेरी और परिचय…
सुनियोजित ढंग से दलितों पर हमला किया गया. घरों को तोड़ा गया. लोगों को बार-बार ट्रेक्टरों के नीचे कुचला गया और मरने के बाद भी मारा गया. पुरुषों के लिंग नोचे गए और औरतों के जननांगों में लकड़ियां ठूंसी गईे. नरसंहार पर अबतक राजस्थान की सरकार को न तो कुछ कहना है और न करना है. मोदी सरकार की बरसी का एक सच यह भी है.
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले साल केंद्र की सत्ता में आयी एनडीए सरकार को साल भर पूरा होते-होते साहित्यिक-सांस्कृतिक क्षेत्र भी अब उसके विरोध में एकजुट होने लगा है।
इस कहानी को और लंबा होना था। कनहर की कहानी के भीतर कई ऐसी परतें हैं जिन्हें खोला जाना था। ऐसा लगता है कि उसका वक्त अचानक खत्म हो गया। यह भी कह सकते हैं कि उसका वक्त अभी कायदे से आया नहीं है।
14 अप्रैल की गोलीबारी में घायल अकलू को 1 मई को बीएचयू के अस्पताल से…
सोनभद्र में हालांकि बात विकास से काफी आगे जा चुकी है। याद करें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद संभालने के बाद पिछले साल न्यूयॉर्क के मैडिसन चौक में एक बात कही थी कि उनकी इच्छा है कि ”विकास को जनांदोलन” बना दिया जाए। इस बात को न तो बहुत तवज्जो दी गयी और न ही इसका कोई फौरी मतलब निकाला गया, लेकिन ऐसा लगता है कि ”विकास को जनांदोलन” बनाने की सीख सबसे पहले लोहिया के शिष्यों ने उत्तर प्रदेश में ली और उसे आज सोनभद्र में लागू किया जा रहा हैा