आम चुनाव 2019: सत्ता के शीर्ष पर हताशा, बौखलाहट, अज्ञानता और बड़बोलेपन का क्लाइमैक्स
19 मई को लोकसभा की 60 सीटों के लिए चुनाव का सातवां और अंतिम चरण…
19 मई को लोकसभा की 60 सीटों के लिए चुनाव का सातवां और अंतिम चरण…
जब हम सीवान में चुनाव कवर कर रहे थे, तब एक मित्र ने हमें रघुनाथपुर…
कहा- राजीव गांधी ने पीएम रहते हुए आईएनएस विराट का इस्तेमाल एक द्वीप पर परिवार के साथ छुट्टी मनाने के लिए किया था, इटली से आए रिश्तेदार भी शामिल हुए थे
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के छठें चरण में कुल 14 सीटों पर चुनाव होना है. जिसमें 12 सीटों पर वोटों का गणित सपा-बसपा गठबंधन के पक्ष में बैठता है तो सिर्फ दो सीटों पर समीकरण बीजेपी के पक्ष में हैं. विश्लेषण 2014 में विभिन्न दलों को मिले मतों के आधार पर किया गया है.
मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों के लिए आज सुबह शुरू हुआ मतदान तीन निर्वाचन…
देश में इस वक्त कई परिघटनाएं एक साथ पैदा हुई हैं। गुजरात से उत्तर भारतीयों को भगाया जा रहा है। महिलाएं अपने उत्पीड़न की कहानियां #MeToo के माध्यम से सुना रही हैं। इन अलग-अलग घटनाओं को समझने के लिए बीसवीं सदी के सबसे बड़े मार्क्सवादी चिंताकों में एक एरिक हॉब्सबॉम का 1996 में दिया यह व्याख्यान पढ़ना बहुत ज़रूरी है। वे बताते हैं कि कैसे हर किस्म की पहचान की राजनीति अंतत: दक्षिणपंथ को ही मदद पहुंचाती है।
आज, जब एक लेखक मरा है, एक बुजुर्गवार ने खुदकुशी की है, हम तक सबसे पहले बस्तर को पहुंचाने वाले शख्स’ ने मौत के रूप में एक बार फिर गुमनामी को चुना है, तो सब चुप हैं. कोई बस्तर की अपनी किताब पर पुरस्कार लेकर चुप है, कोई बस्तर के नाम पर विदेशी अनुदान लेकर चुप है, कोई बस्तर की किताब को सीढ़ी बनाकर विदेश में बस चुका है.
वीरेन डंगवाल यानी हमारी पीढी में सबके लिए वीरेनदा नहीं रहे। आज सुबह वे बरेली में गुज़र गए। शाम तक वहीं अंत्येष्टि हो जाएगी। हम उसमें नहीं होंगे। अभी हाल में उनके ऊपर जन संस्कृति मंच ने दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में एक कार्यक्रम करवाया था। उनकी आखिरी शक्ल और उनसे आखिरी मुलाकात उसी दिन की याद है। उस दिन वे बहुत थके हुए लग रहे थे। मिलते ही गाल पर थपकी देते हुए बोले, ”यार, जल्दी करना, प्रोग्राम छोटा रखना।” ज़ाहिर है, यह तो आयोजकों के अख्तियार में था। कार्यक्रम लंबा चला। उस दिन वीरेनदा को देखकर कुछ संशय हुआ था। थोड़ा डर भी लगा था।
बनारस के अख़बारों में मरने-मारने की ख़बरें हाल तक काफी कम होती थीं। एक समय था जब कुछ लोग ऐसा दावा भी करते थे कि बनारस में बलात्कार नहीं होते और लोग खुदकुशी नहीं करते।
पूर्णिमा बीत गई। सावन ढलने वाला है। देश रक्षाबंधन मना चुका। बनारस सुरक्षा बंधन मना रहा है। देखकर दिमाग चकरा गया जब हमने शुक्रवार की सुबह करीब दो दर्जन औरतों की भीड़ को नई सड़क के एक कोने में एक स्टॉल के पास जमा पाया।
हफ्ते भर बाद बनारस में कल बारिश हुई। बारिश होते ही दो खबरें काफी तेजी से फैलीं। पहली, कि नई सड़क पर कमर भर पानी लग गया है। दूसरी, कि पूरा शहर जाम है। खबर इतनी तेज फैली कि कचहरी पर तिपहिया ऑटो की कतारें लग गईं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 अगस्त 2014 को जापान में एक सौदा किया था। सौदा था बनारस को क्योटो बनाने का, या कहें क्योटो जैसा बनाने का। एक बरस बीत रहा है और डा. मोदी के एक्स-रे से जितना बनारस बाहर हो चुका है, उतना ही जापान। फिलहाल उन्हें सिर्फ पाकिस्तान दिखाई दे रहा है।
आपातकाल की चालीसवीं बरसी पर रिहाई मंच ने दिया धरना… जलाकर मारे गए शाहजहांपुर के पत्रकार जगेंद्र सिंह को इंसाफ दिलाने और प्रदेश में दलितों, महिलाओं, आरटीआइ कार्यकर्ताओं व पत्रकारों पर हो रहे हमले के खिलाफ शासन को सौंपा 17 सूत्रीय ज्ञापन।
इसे दुर्भाग्य कहूं या सौभाग्य कि प्रफुल बिदवई के गुज़रने की ख़बर मुझे राजदीप सरदेसाई…
परसों मेल पर एक न्योता आया। भेजने वाले का नाम है तौसीफ़ मादिकेरी और परिचय…
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले साल केंद्र की सत्ता में आयी एनडीए सरकार को साल भर पूरा होते-होते साहित्यिक-सांस्कृतिक क्षेत्र भी अब उसके विरोध में एकजुट होने लगा है।
इस कहानी को और लंबा होना था। कनहर की कहानी के भीतर कई ऐसी परतें हैं जिन्हें खोला जाना था। ऐसा लगता है कि उसका वक्त अचानक खत्म हो गया। यह भी कह सकते हैं कि उसका वक्त अभी कायदे से आया नहीं है।
14 अप्रैल की गोलीबारी में घायल अकलू को 1 मई को बीएचयू के अस्पताल से…
सोनभद्र में हालांकि बात विकास से काफी आगे जा चुकी है। याद करें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद संभालने के बाद पिछले साल न्यूयॉर्क के मैडिसन चौक में एक बात कही थी कि उनकी इच्छा है कि ”विकास को जनांदोलन” बना दिया जाए। इस बात को न तो बहुत तवज्जो दी गयी और न ही इसका कोई फौरी मतलब निकाला गया, लेकिन ऐसा लगता है कि ”विकास को जनांदोलन” बनाने की सीख सबसे पहले लोहिया के शिष्यों ने उत्तर प्रदेश में ली और उसे आज सोनभद्र में लागू किया जा रहा हैा
उस दिन हम लोग तीन साढ़े तीन सौ रहा होगा… महिला और पुरुष। पहले धरना में जुट के न हम लोग यहां आए थे। उसके बाद जब वहां आए तो कोई फोन के माध्यम से कह दिया। अब नाम नहीं बता पाएंगे… सब लगे हैं जासूसी में… उनको कमीशन मिल रहा है न भाई। तो कोई फोन के माध्यम से कह दिया उनको।
(बीते मार्च की आखिरी तारीख को उत्तराखण्ड के रामनगर स्थित बीरपुर लच्छी गांव में चल रहे आंदोलन से लौटते वक्त ‘नागरिक’ अखबार के संपादक मुनीष और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के महासचिव प्रभात ध्यानी पर खनन-क्रेशर माफिया ने जानलेवा हमला किया था। इसके बाद दिल्ली में एक बड़ा प्रदर्शन हुआ और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी ने एक बैठक रखी जिसमें तय हुआ कि एक तथ्यान्वेषी दल गांव में जाकर हालात का जायज़ा लेगा।
(प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दस महीने में पहली ऐसी कामयाबी मिली है जो वाशिंगटन में…
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और वरिष्ठ माओवादी नेता बाबूराम भट्टराई ने कहा है कि नेपाल में राजनीतिक स्थिरता का होना भारत के लिए बहुत आवश्यक है और भारत सरकार इस बात को समझती है, इसीलिए वह नेपाल के संविधान निर्माण समेत अन्य आंतरिक मामलों में कोई दख़ल नहीं दे रही तथा एक स्थिर और टिकाऊ शासन व संविधान के लिए नेपाल को पूरा सहयोग भी दे रही है। भट्टराई प्रवासी नेपालियों के संघ के एक कार्यक्रम में भारत आए थे जिस दौरान उन्होंने दिल्ली में पत्रकारों व राजनीतिक कार्यकर्ताओं के एक समूह को संबोधित करते हुए बुधवार को यह बात कही।
दिल्ली में 24 फरवरी 2015 का दिन बहुत नाटकीय रहा। मीडिया में जो दिखाया गया, वह सड़क पर नहीं था। जो सड़क पर था, उसे कैमरे कैद नहीं कर पा रहे थे। इसकी दो वजहें थीं, जैसा मुझे समझ में आया। जैसा कि मीडिया में प्रचारित था कि यह आंदोलन अन्ना का है और जंतर-मंतर से चलाया जा रहा है, उसी हिसाब से दिन में बारह बजे के आसपास जब मैं जंतर-मंतर पहुंचा तो वहां अपने मंच पर अन्ना मौजूद नहीं थे।
क्या आप विलास सोनवणे को जानते हैं? कल दिल्ली में उनका एक व्याख्यान था। विषय था ”धर्मांतरण की राजनीति”। विलास पुराने एक्टिविस्ट हैं, कोई चार दशक पहले तक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में हुआ करते थे। बाद में इन्होंने लाल किताबों के दायरे से बाहर निकलकर समाज में काम करना शुरू किया।