Skip to content
Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Primary Menu Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us
  • Arts And Aesthetics

अदबी इदारों में दम घुटता था जिसका, चला गया

Dec 18, 2011 | सौरभ शुक्ल

साल 2011 आख़िरी पड़ाव पर है लेकिन जाते जाते यह अपने साथ धरती के अनमोल नगीनों को भी लेता जा रहा है. आज काल का शिकार बने आम आदमी के कवि अदम गोंडवी या कहें रमानाथ सिंह. उन्हें लीवर से जुड़ी तकलीफ़ थी. लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में आज तड़के साढ़े 5 बजे उन्होंने आख़िरी सांस ली और अपने पीछे छोड़ गए अमिट छाप वाली रचनाएं.

 
अपने ठेठ और गंवई अंदाज़ के लिए मशहूर अदम साहब का जन्म 22 अक्टूबर 1947 को उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले में पसरपर के आटा गांव में हुआ था. ये गांव गोस्वामी तुलसीदास के गुरु स्थान सूकर क्षेत्र के बेहद करीब है. स्वर्गीय श्रीमती मांडवी सिंह और श्री देवी कलि सिंह के पुत्र अदम कबीर परंपरा के कवि थे. बस कहीं फ़र्क है तो वो ये कि कबीर जी ने कभी कागज़ कलम नहीं छुआ और इन्होंने उसे छुआ था. लेकिन बस उतना ही जितना एक किसान ठाकुर के लिए ज़रूरी होता है.
 
आज़ादी के ठीक बाद की पैदाइश का असर उनके आज़ाद ख़्यालों में साफ नज़र आता था. तभी तो वह कहते हैं… 
 
देखना सुनना व सच कहना जिन्हें भाता नहीं
कुर्सियों पर फिर वही बापू के बंदर आ गए.
कल तलक जो हाशिये पर भी न आते थे नज़र
आजकल बाजार में उनके कलेंडर आ गए.
 
वो ज़मीन से किस तरह जुड़े हुए शख़्स रहे हैं इसका एक नज़ारा उनकी इस कविता से मिलता है…
 
जो उलझ कर रह गई है फाइलों के जाल में
गांव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में
बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई
राम सुधि की झौपड़ी सरपंच की चौपाल में
खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में
 
इस कविता के जरिए अदम साहब ने गांव में हो रहे अन्याय और भ्रष्टाचार को शब्दों की शक्ल दी है. जितने वो ज़मीन से जुड़े शख़्स थे उतने ही वो गांव के पैरोकार भी. शहरी आब-ओ-हवा में उन्हें घुटन सी होती थी. अदम साहब की ये रचना कहती है…
 
ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में 
मुसल्सकल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में
न इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई
खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लम्बी क़तारों में
अदीबों! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ 
मुलम्मे  के सिवा क्याी है फ़लक़ के चाँद-तारों में
रहेम मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तज़रबे से 
बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में
कहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद 
जो है संगीन के साये की चर्चा इश्तशहारों में.
 
अदम साहब अपने ठेठ गवई अंदाज़ के लिए जाने जाते थे। जब भी वो किसी मुशायरे में नज़र आते तो अपनी उसी घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़े हुए मटमैले कुर्ते और गले में सफ़ेद गमछा डाले हुए पोशाक में. लेकिन जब ये ठेठ देहाती इंसान माइक पर आकर अपनी रचनाएं पढ़ता तो सभी हैरान रह जाते.
 
किसको उम्मीद थी जब रौशनी जवां होगी
कल के बदनाम अंधेरों पे मेहरबां होगी

खिले हैं फूल कटी छातियों की धरती पर
फिर मेरे गीत में मासूमियत कहाँ होगी

आप आयें तो कभी गाँव की चौपालों में
मैं रहूँ या न रहूँ भूख मेज़बां होगी
 
अदम शहरी शायर के शालीन और सुसंस्कृत लहज़े में बोलने के बजाय वे ठेठ गंवई दो टूकपन और बेतकल्लुफ़ी से काम लेते हैं. उनकी कलम में आक्रामकता और तड़प से भरी हुई व्यंग्मयता झलकती है. इनकी शायरी में आम लोगों की गुर्राहट हर शब्द में देखने को मिल जाती है. और व्यंग का तड़का तो ऐसा कि पढ़ने वाले का कलेजा चीरकर रख देती है. यही नहीं अदम गोंडवी की शायरी मानो स्याही से नहीं तेज़ाब से लिखी जाती है और ये तेज़ाब समूची व्यवस्था में खदबदाहट मचा देने और उसे झुलसा कर रख देने के लिए काफ़ी रहता है. अब राजनीति पर कसे व्यंग की उनकी इसी रचना को ले लिजिए…
 
काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
 
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नखास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
 
अदम साहब की शायरी में अवाम बसता है उसके सुख दुःख बसते हैं शोषित और शोषण करने वाले बसते हैं. उनकी शायरी न तो हमें वाह करने के अवसर देती है और न आह भरने की मजबूरी परोसती है. सीधे सच्चे दिल से कही उनकी शायरी सीधे सादे लोगों के दिलों में बस जाती है.
 
बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को

सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरखान को

शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को
 
आज की युवा पीढ़ी और मौजूदा गीतों से वो कुछ ख़फ़ा थे. तबी तो आज के माहौल पर उन्होंने कहा…
 
जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये
आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये

जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये

जल रहा है देश यह बहला रही है क़ौम को
किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये

मतस्यगंधा फिर कोई होगी किसी ऋषि का शिकार
दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा देखिये.
 
जब लोग हिंदू-मुसलमान के नाम पर लोगों को भड़काने का काम कर रहे थे को अदम गोंडवी की कलम ने इसे बेवजह का शिगूफ़ा कहा और बताया कि जो आप कर रहे हैं वो ग़लत है. आपको अगर लड़ना ही है तो असल मसलों के लिए लड़िए.
 
हिन्दू  या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए 
अपनी कुरसी के लिए जज्बा त को मत छेड़िए
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है 
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थी; जुम्ममन का घर फिर क्योंह जले 
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ 
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए
छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़ 
दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए
 
अपने आस-पास घट रही घटनाओं को काग़ज़ पर सहजता से उतारना अदम साहब से बेहतर शायद की होई जानता हो. दलित फुलिया पर हुए ज़ुल्म को देख उनकी कलम से आंसू कुछ यूं निकले…और जब निकले तो आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे…
 
आइए महसूस करिए ज़िंदगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको

जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बिचारी इक कुएं में डूब कर

है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी

चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हूँ सरजूपार की मोनालिसा

कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई
लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई

कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है
जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है

थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को

डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में

होनी से बेख़बर कृष्ना बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी

चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुटकर रह गई
छटपटाई पहले, फिर ढीली पड़ी, फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया

और उस दिन ये हवेली हंस रही थी मौज में
होश में आई तो कृष्ना थी पिता की गोद में

जुड़ गई थी भीड़ जिसमें ज़ोर था सैलाब था
जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था

बढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन है
पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है

कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं
कच्चा खा जाएंगे ज़िन्दा उनको छोडेंगे नहीं

कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें
और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें

बोला कृष्ना से- बहन, सो जा मेरे अनुरोध से
बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से

पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में
वे इकट्ठे हो गए सरपंच के दालान  में

दृष्टि जिसकी है जमीं भाले की लम्बी नोक पर
देखिए सुखराज सिंह बोले हैं खैनी ठोंक कर

क्या कहें सरपंच भाई! क्या ज़माना आ गया
कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया

कहती है सरकार कि आपस में मिलजुल कर रहो
सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो

देखिए ना यह जो कृष्ना है चमारों के यहाँ
पड़ गया है सीप का मोती गँवारों के यहाँ

जैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर है
न पुट्ठे पे हाथ रखने देती है, मगरूर है

भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ 
फिर कोई बाहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ

आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई
जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई

वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई
वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही

जानते हैं आप मंगल एक ही मक्कार है
हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है

कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की
गाँव की गलियों में क्या इज्जत रहेगी आपकी

बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया
हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया 

क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था
हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंज़ूर था

रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुरज़ोर था
भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था

सिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ में
एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में

घेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने –
"जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने"

निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकर
एक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर

गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया
सुन पड़ा फिर "माल वो चोरी का तूने क्या किया"

"कैसी चोरी माल कैसा" उसने जैसे ही कहा
एक लाठी फिर पड़ी बस, होश फिर जाता रहा

होश खोकर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर
ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर –

"मेरा मुँह क्या देखते हो! इसके मुँह में थूक दो
आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूँक दो"

और फिर प्रतिशोध की आँधी वहाँ चलने लगी
बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी

दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था
वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था

घर को जलते देखकर वे होश को खोने लगे
कुछ तो मन ही मन मगर कुछ ज़ोर से रोने लगे

"कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं
हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं"

यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल से
आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से

फिर दहाड़े "इनको डंडों से सुधारा जाएगा
ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा"

इक सिपाही ने कहा "साइकिल किधर को मोड़ दें
होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें"

बोला थानेदार "मुर्गे की तरह मत बांग दो
होश में आया नहीं तो लाठियों पर टांग लो

ये समझते हैं कि ठाकुर से उलझना खेल है
ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है जेल है"

पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल
"कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्ना का हाल"
उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को
सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को

धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को
प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को

मैं निमंत्रण दे रहा हूँ आएँ मेरे गाँव में
तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में

गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही
या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही

हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए
बेचती हैं जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए !
 
आज अदम साहब तो नहीं रहे लेकिन उनकी रचनाएं कण कण में उनके होने का एहसास क़यामत तक कराती रहेंगी. एक ऐसा एहसास जो कभी भी भूलेगा नहीं.
 

Continue Reading

Previous अन्ना हजारे के महाअवतार पर एक कविता
Next काशीनाथ सिंह को साहित्य अकादमी पुरस्कार

More Stories

  • Arts And Aesthetics
  • Featured

मैं प्रेम में भरोसा करती हूं. इस पागल दुनिया में इससे अधिक और क्या मायने रखता है?

6 years ago PRATIRODH BUREAU
  • Arts And Aesthetics

युवा मशालों के जल्से में गूंज रहा है यह ऐलान

6 years ago Cheema Sahab
  • Arts And Aesthetics
  • Featured
  • Politics & Society

CAA: Protesters Cheered On By Actors, Artists & Singers

6 years ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • A New World Order Is Here And This Is What It Looks Like
  • 11 Yrs After Fatal Floods, Kashmir Is Hit Again And Remains Unprepared
  • A Beloved ‘Tree Of Life’ Is Vanishing From An Already Scarce Desert
  • Congress Labels PM Modi’s Ode To RSS Chief Bhagwat ‘Over-The-Top’
  • Renewable Energy Promotion Boosts Learning In Remote Island Schools
  • Are Cloudbursts A Scapegoat For Floods?
  • ‘Natural Partners’, Really? Congress Questions PM Modi’s Remark
  • This Hardy Desert Fruit Faces Threats, Putting Women’s Incomes At Risk
  • Lives, Homes And Crops Lost As Punjab Faces The Worst Flood In Decades
  • Nepal Unrest: Warning Signals From Gen-Z To Netas And ‘Nepo Kids’
  • Explained: The Tangle Of Biodiversity Credits
  • The Dark Side Of Bright Lights In India
  • Great Nicobar Project A “Grave Misadventure”: Sonia Gandhi
  • Tiny Himalayan Glacial Lakes Pose Unexpected Flooding Threats
  • Hashtags Hurt, Hashtags Heal Too
  • 11 Years Of Neglect Turning MGNREGA Lifeless: Congress Warns Govt
  • HP Flood Control Plans Could Open Doors To Unregulated Mining
  • Green Credit Rules Tweaked To Favour Canopy Cover, Remove Trade Provision
  • Cong Decries GST Overhaul, Seeks 5-Yr Lifeline For States’ Revenues
  • Behind The Shimmer, The Toxic Story Of Mica And Forever Chemicals

Search

Main Links

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us

Related Stroy

  • Featured

A New World Order Is Here And This Is What It Looks Like

2 days ago Pratirodh Bureau
  • Featured

11 Yrs After Fatal Floods, Kashmir Is Hit Again And Remains Unprepared

2 days ago Pratirodh Bureau
  • Featured

A Beloved ‘Tree Of Life’ Is Vanishing From An Already Scarce Desert

2 days ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Congress Labels PM Modi’s Ode To RSS Chief Bhagwat ‘Over-The-Top’

3 days ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Renewable Energy Promotion Boosts Learning In Remote Island Schools

3 days ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • A New World Order Is Here And This Is What It Looks Like
  • 11 Yrs After Fatal Floods, Kashmir Is Hit Again And Remains Unprepared
  • A Beloved ‘Tree Of Life’ Is Vanishing From An Already Scarce Desert
  • Congress Labels PM Modi’s Ode To RSS Chief Bhagwat ‘Over-The-Top’
  • Renewable Energy Promotion Boosts Learning In Remote Island Schools
Copyright © All rights reserved. | CoverNews by AF themes.