राग मल्हारः अन्ना फिर से बरसन लागे
Aug 2, 2012 | Panini Anand(देश में पड़ रहा है सूखा. भुखाली है भूखा. खेत है रूखा. आग का भभूका. पर आंदोलन जारी है. आर्किटेक्ट अधिकारी है, अनुभव सरकारी है और अन्ना को प्रचार की बीमारी है. इस सब के बीच कुछ हैं दलाल और कुछ मिट्टी के माधो, फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन के गाल. फिलहाल आंदोलन जारी है.
सावन भादो की अपनी महिमा है. अच्छे-अच्छे बौराए जाते है. सावन की सनक में बिरहिन भूख प्यास भूल जाती है. बूढ़े हो चले फेफड़ों की फूल जाती छाती है. ख़ैर, इसी क्रम में पंडित भीमसेन जोशी को सुनते सुनते अचानक से भक्ति और रीतिकाल का प्रभाव मस्तिष्क को घेर लेता है और एक छंद निकल पड़ता है. आप भी आनंद लें.)
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अन्ना फिर से बरसन लागे
देख के अन्ना, आसमान से, बादल सारे भागे
जेपी चश्मा बेंच रहे हैं, गांधी सूत के धागे
झंडा लेकर झांसी की रानी चलती है आगे
श्रमिक पिटे दिल्ली सीमा पर, खेतिहर रहे अभागे
सुन संपूर्ण क्रांति का नारा, चोर उचक्के जागे
पीछे भ्रष्टों की सेना है, अन्ना आगे आगे
भूषण, बेदी, नतमस्तक हैं रामदेव के आगे
फैल रहा है कीचड़ इसमें कमल खिलेगा आगे
पाणिनि आनंद
2 अगस्त, 2012
नई दिल्ली