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खतरनाक है रूस में पश्चिमी और अमेरिकी दांव

Feb 25, 2012 | डॉ. सुशील उपाध्याय

रूस के संसदीय चुनाव के बाद अब राष्ट्रपति चुनाव विवाद के केंद्र में लाने की कोशिश हो रही हैं. रूस के चुनावों की ओर दुनिया में लोकतंत्र के स्वयंभू ठेकेदार अमेरिका ने लोगों का ध्यान खींचा है. ध्यान खींचने की वजह यह है कि एक बार फिर यूनाइटेड रशिया पार्टी ने व्लादिमीर पुतिन को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है. वहां  डयूमा के लिए चुनाव प्रक्रिया शुरू होने और परिणाम आने तक अमेरिका के सुर बहुत तीखे नहीं थे, लेकिन जैसे ही रूसी संसद में यूनाइटेड रशिया की जीत की खबर आर्इ तो अमेरिका नेतृत्व के कान खड़े हो गए. 

 
पहला बयान हिलेरी क्लिंटन की ओर से आया जिसमें चिंता जतार्इ गर्इ कि चुनाव में व्यापक धांधली हुर्इ है. इस चुनाव को लेकर दो-तीनों बातों पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है. पहली बात, इससे पहले के दो चुनावों में भी यूनाइटेड रशिया पार्टी की जीत पर अमेरिका की टिप्पणी बहुत उत्साहजनक नहीं थी. 
 
अमेरिका के लिए रूस की लीडरशिप में सबसे प्रिय चेहरा गोर्वाच्यौफ ही रहे हैं. उसकी वजह साफ है, गोर्वाच्यौफ के सिर पर सोवियत संघ को विखंडन तक पहुंचाने का सेहरा बंधा हुआ है. अब, उनका ज्यादातर समय अमेरिका में ही कट रहा है और मौजूदा चुनाव में गौर्वाच्यौफ का सुर अमेरिका के सुर में ही ढला हुआ था. 
 
रूस के चुनाव परिणाम के बाद राजधानी मास्को और देश के अन्य दर्जनभर शहरों में छिटपुट प्रदर्शन हुए. इन प्रदर्शनों को आधार बनाकर अमेरिका ने प्रचार शुरू कर दिया है कि रूस में अशांति है और वहां की जनता दोबारा चुनाव चाहती है. पुतिन के एक बार फिर राष्ट्रपति बनने की संभावना ने अमेरिका को डराया हुआ है. इसलिए विरोधियों के छोटे-छोटे प्रदर्शनों की भी मध्य-पूर्व से तुलना की गर्इ.
 
यहां स्वाभाविक रूप से यह सवाल है कि अमेरिका को अचानक रूसी जनता की इतनी फिक्र क्यों हो गर्इ है? वजह साफ है, अमेरिका नहीं चाहता कि रूस फिर इतना मजबूत हो कि दुनिया दो ध्रुवों में बंट जाए. अभी तो अमेरिका, चीन को काबू करने में जुटा है. यदि, इस बीच रूस भी दमखम के साथ खड़ा हुआ तो अमेरिका के लिए दुनिया भर में सिथतियां और कठिन होंगी. 
 
रूस के चुनाव में यूनाइटेड रशिया पार्टी को करीब आधी सीटें मिली हैं. दूसरे, नंबर पर कम्युनिस्ट पार्टी है, जिसकी सीटों का आंकडा़ संसद की कुल सीटों का लगभग एक चौथार्इ है. पुतिन और उनकी पार्टी को दूध की धुली होने का सर्टिफिकेट नहीं दिया जा रहा है, लेकिन पुतिन और यूनाइटेड रशिया पार्टी, उतने पापी-गुनहगार भी नहीं हैं जितने कि अमेरिका द्वारा प्रचारित किए जा रहे हैं.
 
सोवियत संघ के विखंडन के बाद बोरिस येलितसन ने रूस को संभालने की कोशिश की. 12 साल पहले जब व्लादिमीर पुतिन रूस के राष्ट्रपति बने तो देश के हालात बहुत खुशगवार नहीं थे, लेकिन इस अवधि में पुतिन ने आर्थिक, सामरिक और राजनयिक मोर्चे पर मजबूत उपस्थिति दर्ज करार्इ. इराक, अफगानिस्तान पर हमले और र्इरान-उत्तर कोरिया को धमकी के मामले में जिन नेताओं ने अमेरिका-यूरोप का विरोध किया, उनमें निर्विवाद रूप से पुतिन बड़ा नाम है. पुतिन की कमान में रूस फिर से दुनिया की दूसरी धुरी बनने की ओर बढ़ता दिख रहा है. यही बात अमेरिका को चुभ रही है और वह चुनाव में धांधली के बहाने रूस के राजनीतिक तंत्र को हिलाने की कोशिश में जुटा है. 
 
जो भी लोग रूसी राजनीति की थोड़ी समझ रखते हैं, उन्हें पता है कि रूस में आज भी पुतिन से अधिक लोकप्रिय कोर्इ दूसरा नेता नहीं है. मौजूदा राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव भी उनके मुकाबले कम लोकप्रिय हैं. व्लादिमीर पुतिन की एक ओर विशेषता है कि उन्होंने तीसरी दुनिया के गरीब और कमजोर मुल्कों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहारा दिया है, उनकी आवाज उठार्इ है. यह उम्मीद अमेरिका के बराक ओबामा से नहीं की जा सकती और न ही उनके पूर्ववर्ती जार्ज बुश इस पैमाने पर खरे उतरे.
 
रूसी चुनाव परिणाम और पुतिन के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने को लेकर अमेरिका के बयानों-चिंताओं ने एक बार फिर यह साबित किया है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में यदि उनकी पसंद की व्यवस्था और नेता सत्ता नहीं संभालेंगे तो उसका विरोध किया जाएगा. रूसी चुनाव में धांधली की बात करने वाला अमेरिकी नेतृत्व यह भूल जाता है कि उनके देश में बराक ओबामा द्वारा खाली गर्इ सीट को बेचने का मामला सामने आ चुका है. अमेरिका में बीते दशकों में राष्ट्रपति चुनाव में कर्इ बार धांधली के आरोप लग चुके हैं, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं जो अमेरिका की ओर अंगुली उठाए. 
 
यह ठीक है कि मौजूदा चुनाव में पुतिन की पार्टी के वोट पिछले चुनाव के मुकाबले घटे हैं. पश्चिमी मीडिया ने इसी बात को आधार बनाया है कि यूनाइटेड रशिया के वोट 64 प्रतिशत से घटकर करीब 50 प्रतिशत रह गए है, इसलिए यह पार्टी और उसके नेता पुतिन अब सत्ता संभालने के हकदार नहीं रह गए हैं. पशिचमी मीडिया मौजूदा राष्ट्रपति मेदवेदेव को भी पीडि़त के तौर पर प्रस्तुत कर रहा है ताकि दुनिया भर में भ्रम फैलाया जा सके कि पुतिन और मेदवेदेव में मतभेद हैं. पशिचमी मीडिया ने पुतिन को लोकतांत्रिक व्यवस्था का अपराधी तक घोषित किया है और पुतिन की हुस्नी मुबारक और असद से तुलना की है. 
 
पुतिन साम्यवादी रूस में पले बढ़े हैं और केजीबी के अधिकारी के तौर पर दुनिया के कर्इ देशों में काम कर चुके हैं. यदि, वे रूस को पुराने दिनों जैसा ताकतवर बनाना चाहते हैं तो इस पर किसी को ऐतराज करने का हक नहीं होना चाहिए. अगर पुतिन अपने लोगों की जरूरत और उम्मीदों के अनुरूप फैसले कर रहे हैं तो उन्हें पशिचम की अपेक्षा के लिहाज से चलने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. पुतिन का अतीत और कड़े फैसले लेने की शैली ही अमेरिका को डरा रही है. लेकिन, यह डर बढ़े तो दुनिया के कर्इ हिस्सों में हजारों बेगुनाहों पर मिसाइल और ड्रोन हमले यकीनन कम हो जाएंगे.
 
(लेखक उत्तराखंड संस्कृत विद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं. इस लेख में प्रस्तुत विचार उनकी निजी राय है)

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