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सरकार ने ही कर दिया महाराजा को कंगाल

Sep 27, 2011 | सतीश सिंह

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की ताजा रिपोर्ट ने फिर से पूरे देश में बवाल खड़ा दिया है. अपनी इस रिपोर्ट में कैग ने यह कहा है कि नागरिक एवं उड्डयन मंत्रालय की गलत नीतियों तथा एयर इंडिया एवं इंडियन एयरलाइंस प्रबंधन के अंदर व्याप्त खामियों की वजह से महाराजा कंगाल हुआ है.

 
इसके बरक्स में सरकार की सबसे बड़ी गलती इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के विलय को मंजूरी देना था. विलय का फैसला जल्दबाजी में लिया गया. ठोस तैयारी के अभाव में मानव संसाधन के स्तर पर संतुलन कायम करने में भारी गड़बड़ी हुई. प्रमोशन, स्थानांतरण, वेतन व भत्ते जैसे मुद्दों पर तो अभी भी ऊहापोह जारी है. स्पष्ट है, अर्थाभाव और प्रबंधनों के बीच में सामंजस्य स्थापित नहीं होने के कारण आज महाराजा के मानव संसाधन का मनोबल बुरी तरह से गिर चुका है. महाराजा को कितने नए विमानों की जरुरत है, इसका भी आकलन प्रबंधन नहीं कर सकी. 
 
निर्णय हड़बड़ी में लिए गए. एक तरफ विलय की प्रक्रिया चल रही थी तो दूसरी तरफ नौ अरब डालर के विमान खरीदने की सहमति मंत्रिमंडल समूह के बीच बन गई. जबकि कंपनी के पास इक्विटी महज 325 करोड़ थी. बिना पूंजी के नागरिक विमानन मंत्रालय ने विमान खरीदने का निर्णय कैसे लिया, यह समझ से परे है?
 
ज्ञातव्य हो कि यह अतार्किक निर्णय नागर विमानन मंत्रालय ने वर्ष 2004 में लिया था. वर्ष 1996 से ठंडे बस्ते में पड़े 28 विमानों के खरीदने के प्रस्ताव को वर्ष 2004 में न सिर्फ पारित किया गया वरन् उसे बढ़ाकर 111 कर दिया गया. 
 
गौरतलब है कि 2003 में महाराजा पर 38,423 करोड़ रुपयों का भारी कर्ज था. बावजूद इसके विमानों को खरीदा गया. कर्ज लेकर घी पीने की प्रेरणा महाराजा को कहाँ से मिली, इसकी पड़ताल करने के साथ ही साथ दोषियों को भी सजा देने की जरुरत है. जाहिर है इस सौदे को अंतिम रुप देने में गंभीर अनियमतता बरती गई. इसके लिए न तो बाजार का सर्वे किया गया और न ही सौदे की सफलता का विश्लेषण किया गया. इस पूरे सौदे में रिश्वत के लेन-देन से भी इंकार नहीं किया जा सकता है.
 
विलय से पहले एयर इंडिया और विदेशी विमानन कंपनियों के बीच द्धिपक्षीय समझौता था, जिसके तहत जिन देशों में एयर इंडिया अपनी सेवाएं देने में असमर्थ था, वहाँ भारतीय यात्रियों को पहुँचाने का जिम्मा विदेशी विमानन कंपनियों के हिस्से था.  कहने के लिए तो एयर इंडिया एक अंतर्राष्ट्रीय विमानन सेवा था, किंतु इसकी सेवा सिर्फ गिने-चुने देशों तक सीमित थी. इसके कारण 190 मुल्कों तक भारतीयों को सकुशल पहुँचाने की जिम्मेदारी विदेशी विमानन कंपनियो के पास थी.
 
कैग का मानना है कि सरकार के इन बेतुके फैसलों से एयर इंडिया को भारी नुकसान हुआ और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसकी साख भी कम हुई. दरअसल विदेशी विमानन कंपनियों ने अपनी सेवा के एवज में महाराजा से अनाप-शनाप किराया वसूला. 
 
फिलहाल महाराजा सरकारी एयर टैक्सी में तब्दील हो चुका है.  नेताओं से लेकर नौकरशाह तक इसका बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं. राष्ट्रमंडल खेल से लेकर हर एैरे-गैरे कार्यों के लिए इसका जमकर बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है.
 
इसी तारतम्य में भ्रष्टाचार की पंक-पयोधि में डूबकर नौकरशाहों और नेताओं ने घरेलू बाजार में कारोबारी घरानों के निजी विमानन कंपनियों को मुनाफे वाले मार्गों पर सेवा उपलब्ध करवाने की इजाजत दी, जबकि महाराजा को ऐसे मार्गों पर अपनी सेवाएं उपलब्ध करने के लिए विवश किया, जहाँ यात्री बमुश्किल उपलब्ध होते हैं.
 
सरकार द्वारा प्रदत्त आधारभूत संरचना का लाभ रियायती दर पर उठाकर निजी विमानन कंपनियां लगातार फायदे में चल रही हैं. वहीं महाराजा घाटे के एक ऐसे भंवर में फंस गया है, जहाँ से उसका निकलना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है.
 
आज महाराजा की आमदनी अठन्नी है और खर्च रुपया. फिलवक्त कंपनी की आमदनी 1100 करोड़ रुपयों की है और खर्च 1700 करोड़ रुपयों का. कर्मचारियों को वेतन देने तक के लिए महाराजा को बैंकों से कर्ज लेना पड़ रहा है. इस संदर्भ में सरकार का 1200 करोड़ रुपयों का बेल आऊट पैकेज महाराजा के लिए ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ के समान रहा है.
 
आजकल महाराजा के निजीकरण करने की चर्चा जोरों पर है. पर क्या निजीकरण ही हर मर्ज की दवा है? सबको मालूम है कि निजी कंपनियां कैसे फायदे में चलती हैं? कॉर्पोरेट्स सरकारी दामाद बनकर मेवा खा रहे हैं. 
 
सच कहा जाए तो महाराजा को निजी हाथों में सौंपने का शगूफा उन्हीं लोगों का है जो महाराजा के वर्तमान हालत के लिए जिम्मेदार हैं. बहरहाल इस तरह के प्रतिकूल आबोहवा में महाराजा के पुर्नजन्म की बात सोचना भी बेमानी है.
 
(सतीश सिंह वर्तमान में भारतीय स्टेट बैंक में एक अधिकारी के रुप में दिल्ली में कार्यरत हैं और विगत दो वर्षों से स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं. भारतीय जनसंचार संस्थान से हिन्दी पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद 1995 से जून 2000 तक मुख्यधारा की पत्रकारिता में इनकी सक्रिय भागीदारी रही है. इनसे satish5249@gmail.com या मोबाइल नंबर 09650182778 के जरिए संपर्क किया जा सकता है.)

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