Skip to content
Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Primary Menu Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us
  • Politics & Society

और खेल अब शुरू हो चुका है

Jun 11, 2014 | Anand Teltumbde

गरीबों-उत्पीड़ितों की हिमायत के ऐलान के साथ मोदी सरकार के बनते ही भगाणा के आंदोलनकारी दलित परिवारों को जंतर मंतर से बेदखल करने की कोशिशों और पुणे में एक मुस्लिम नौजवान की हत्या में आनंद तेलतुंबड़े ने आने वाले दिनों के संकेतों को पढ़ने की कोशिश की है

गरीबों-उत्पीड़ितों की हिमायत के ऐलान के साथ मोदी सरकार के बनते ही भगाणा के आंदोलनकारी दलित परिवारों को जंतर मंतर से बेदखल करने की कोशिशों और पुणे में एक मुस्लिम नौजवान की हत्या में आनंद तेलतुंबड़े ने आने वाले दिनों के संकेतों को पढ़ने की कोशिश की है. अनुवाद: रेयाज उल हक.

अब इस आधार पर कि लोगों ने भाजपा की अपनी उम्मीदों से भी ज्यादा वोट उसे दिया है और नरेंद्र मोदी ने ‘अधिकतम प्रशासन’ की शुरुआत कर दी है, बहुत सारे लोग यह सोच रहे थे कि हिंदुत्व के पुराने खेल की जरूरत नहीं पड़ेगी. अपने हाव-भाव और भाषणों के जरिए मोदी ने बड़ी कुशलता से ऐसा भ्रम बनाए भी रखा है. इसके नतीजे में मोदी के सबसे कट्टर आलोचक तक गलतफहमी के शिकार हो गए हैं. यहां तक कि जिन लोगों ने भाजपा को वोट नहीं दिया है, उनमें से भी कइयों को ऐसा लगने लगा है कि मोदी शायद कारगर साबित हों. लेकिन संसद के केंद्रीय कक्ष में, भावनाओं में लिपटी हुई लफ्फाजी से भरे ऐलान के आधार पर यह यकीन करना बहुत जल्दबाजी होगी कि मोदी सरकार गरीबों और उत्पीड़ितों के प्रति समर्पित होगी. तब भी कइयों को लगता है कि चूंकि वे एक साधारण पिछड़ी जाति के परिवार से आते हैं और पूरी आजादी से काम करते हैं, इसलिए हो सकता है कि गरीबों और उत्पीड़ितों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हों. नहीं भी तो वे मुसलमानों (जिन्होंने मोदी को वोट नहीं दिया है) और दलितों (जिन्होंने भारी तादाद में उन्हें वोट दिया है) के प्रति संवेदनशील होंगे. यही वे दो मुख्य समुदाय हैं जिनसे मिल कर वह गरीब और उत्पीड़ित तबका बनता है, जिसके प्रति मोदी समर्पित होने की बात कह रहे हैं.

लेकिन इस हफ्ते हुई दो महत्वपूर्ण घटनाओं ने इन उम्मीदों को झूठा साबित कर दिया. दलितों के बलात्कारों और हत्याओं की लहर तो चल ही रही थी, उनके साथ साथ घटी इन दो घटनाओं ने ऐसे संकेत दिए हैं कि शायद पुराना खेल शुरू हो चुका है.

दलितों की नामुराद मांगें

भगाणा की भयानक घटना देश को शर्मिंदा करने के लिए काफी थी: घटना ये है कि हरियाणा में 23 मार्च को 13 से 18 साल की चार लड़कियों को नशा देकर रात भर उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, फिर प्रभुत्वशाली जाट समुदाय के ये अपराधी उन्हें ले जाकर भटिंडा रेलवे स्टेशन के पास झाड़ियों में फेंक आए. लेकिन इसके बाद जो हुआ वह कहीं अधिक घिनौना और शर्मनाक है. लड़कियों को मेडिकल जांच के दौरान अपमानजनक टू फिंगर टेस्ट से गुजरना पड़ा, जिसका बलात्कार के मामले में इस्तेमाल करने पर आधिकारिक पाबंदी लगाई जा चुकी है. हालांकि पुलिस को दलित समुदाय के दबाव के चलते शिकायत दर्ज करनी पड़ी, लेकिन उसने अपराधियों को पकड़ने में पांच हफ्ते लगाए. जबकि हिसार अदालत में उनको रिहा कराने की न्यायिक प्रक्रिया फौरन शुरू हो गई. और यह गिरफ्तारी भी तब हुई जब भगाणा के दलितों को उन लड़कियों के परिजनों के साथ इंसाफ के लिए धरने पर बैठना पड़ा. ये दलित परिवार अपने गांव वापस लौटने में डर रहे हैं क्योंकि उन्हें जाटों के हमले की आशंका है. भगाणा के करीब 90 दलित परिवार, जिनमें बलात्कार की शिकायतकर्ता लड़कियों के परिवार भी शामिल हैं, दिल्ली के जंतर मंतर पर 16 अप्रैल से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इसके अलावा 120 दूसरे परिवार हिसार के मिनी सचिवालय पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इन प्रदर्शनों के दौरान ही नाबालिग लड़कियों के बलात्कारों की अनेक भयानक खबरें निकल कर सामने आई हैं. जैसा कि एक हिंदी ब्लॉग रफू ने प्रकाशित किया है, पास के डाबरा गांव की 17 साल की एक दलित लड़की का जाट समुदाय के ही लोगों ने 2012 में सामूहिक बलात्कार किया था जिसके बाद उसके पिता ने आत्महत्या कर ली थी. एक और 10 वर्षीय बच्ची का एक अधेड़ मर्द ने बलात्कार किया था. इसके अलावा एक और लड़की का एक जाट पुरुष ने बलात्कार किया जो आज भी सरेआम घूम रहा है और उल्टे पुलिस ने लड़की को ही गिरफ्तार करके उसे यातनाएं दीं. ये सारी लड़कियां इंसाफ के लिए निडर होकर लड़ रही हैं और इन विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा हैं.

जंतर मंतर पर 6 जून को सुबह करीब 6 बजे, जब ज्यादातर प्रदर्शनकारी सो रहे थे, पुलिसकर्मियों का एक बड़ा समूह आया और उसने प्रदर्शनकारियों के तंबू गिरा दिए. उन्होंने उनके तंबुओं को जबरन वहां से हटा दिया और चेतावनी दी कि वे लोग दोपहर 12 बजे तक वहां से चले जाएं. हिसार मिनी सचिवालय में भी विरोध करने वाले इसी तरह हटाए गए. दोनों जगहों पर पुलिस ने उन्हें तितर बितर कर दिया और उनका सामान तोड़ फोड़ दिया. छोटे-छोटे बच्चों समेत ये निर्भयाएं (बलात्कार से गुजरी लड़कियों के लिए मीडिया द्वारा दिया गया नाम) सड़कों पर फेंक दी गई, लेकिन पुलिस ने उन्हें वहां भी नहीं रहने दिया. वहां पर जुटे महिला, दलित और छात्र संगठनों के प्रतिनिधियों तथा दो शिकायतकर्ता लड़कियों की मांओं को साथ लेकर प्रदर्शनकारी दोपहर 2 बजे संसद मार्ग थाना के प्रभारी अधिकारी को यह ज्ञापन देने गए कि उन्हें जंतर मंतर पर रुकने की इजाजत दी जाए क्योंकि उनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है. लेकिन इस समूह को थाना के सामने बैरिकेड पर रोक दिया गया. जब महिलाओं ने जाने देने और थाना प्रभारी से मिलने की इजाजत देने पर जोर दिया तो पुलिसकर्मी उन्हें पीछे हटाने के नाम पर उनके साथ यौन दुर्व्यवहार करने लगे. वुमन अगेंस्ट सेक्सुअल वायलेंस एंड स्टेट रिप्रेशन की कल्याणी मेनन सेन के मुताबिक, जो प्रदर्शनकारियों का हिस्सा थीं, पुलिस ने प्रदर्शनकारी महिलाओं के गुप्तांगों को पकड़ा और उनके गुदा को हाथ से दबाया. शिकायतकर्ता लड़कियों की मांओं और अनेक महिला कार्यकर्ताओं (समाजवादी जन परिषद की वकील प्योली स्वातीजा, राष्ट्रीय दलित महिला आंदोलन की सुमेधा बौद्ध और एनटीयूआई की राखी समेत) पर इसी घटिया तरीके से हमले किए गए. बताया गया कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी चिल्ला रहा था, ‘अरे ये ऐसे नहीं मानेंगे, लाठी घुसाओ.’ इस घिनौने हमले के बाद अनेक कार्यकर्ताओं को पकड़ कर एक घंटे से ज्यादा हिरासत मे रखा गया.

इस नवउदारवादी दौर में जनसाधारण के लिए लोकतांत्रिक जगहें सुनियोजित तरीके से खत्म कर दी गई हैं और इन जगहों को राज्य की राजधानियों के छोटे से तयशुदा इलाके और दिल्ली में जंतर मंतर तक सीमित कर दिया गया है. लोग यहां जमा हो सकते हैं और पुलिस से घिरे हुए वे अपने मन की बातें कह सकते हैं, लेकिन वहां उनकी बातों की सुनवाई करने वाला कोई नहीं होता. यह भारतीय लोकतंत्र का असली चेहरा है. इस बदतरीन मामले में गांव के पूरे समुदाय को दो महीने तक धरने पर बैठना पड़ा है, अपने आप में यही बात घिनौनी है. उनकी जायज मांग की सुनवाई करने के बजाए – वे अपने पुनर्वास के लिए एक सुरक्षित जगह मांग रहे हैं क्योंकि वे भगाणा में नहीं लौट सकते – सरकार लोकतंत्र की इस सीमित और आखिरी जगह से भी उन्हें क्रूरतापूर्वक बेदखल कर रही है. यह बात यकीनन इसे दिखाती है कि ये दलितों के लिए वे ‘अच्छे दिन’ तो नहीं हैं, जिनका वादा मोदी सरकार ने किया था. दिल्ली पुलिस सीधे सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आता है और यहां पुलिस तब तक इतने दुस्साहस के साथ कार्रवाई नहीं करती जब तक उसे ऐसा करने को नहीं कहा गया हो. यह बात भी गौर करने लायक है कि हरियाणा और दिल्ली की पुलिस ने, जहां प्रतिद्वंद्वी दल सत्ता में हैं, समान तरीके से कार्रवाई की है. तो संदेश साफ है कि विरोध वगैरह जैसी बातों की इजाजत नहीं दी जाएगी. क्योंकि अगर जंतर मंतर और आजाद मैदान जैसी जगहें आबाद रहीं तो फिर कोई ‘अच्छे दिनों’ का नजारा कैसे कर पाएगाॽ

पहला विकेट गिरा

ऊपर की कार्रवाई तो सरकार की सीधी कार्रवाई थी, लेकिन कपट से भरी ऐसी अनेक कार्रवाइयां ऐसे संगठनों ने भी की हैं, जिनके हौसले भाजपा की जीत के बाद बढ़े हुए हैं. भगाणा के प्रदर्शनकारियों को उजाड़े जाने से ठीक दो दिन पहले 2 जून को पुणे में एक मुस्लिम नौजवान को हिंदू राष्ट्र सेना से जुड़े लोगों की भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला. दशक भर पुराना यह हिंदू दक्षिणपंथी गिरोह फेसबुक पर शिव सेना के बाल ठाकरे और मराठा प्रतीक छत्रपति शिवाजी की झूठी तस्वीरें लगाए जाने का विरोध कर रहा था. पुणे पुलिस के मुताबिक, इन झूठी तस्वीरों वाला फेसबुक पेज पिछले एक साल से मौजूद था और उसको 50,000 लाइक मिली थीं. भीड़ को उकसाने के लिए हिंदू राष्ट्र सेना के उग्रवादियों ने इस बहुप्रशंसित पेज के लिंक को चैटिंग के जरिए तेजी से फैलाया. उनका कहना था कि यह पेज एक मुसलमान ‘निहाल खान’ द्वारा बनाया गया और चलाया जाता है, लेकिन पुलिस के मुताबिक यह असल में एक हिंदू नौजवान निखिल तिकोने द्वारा चलाया जाता है, जो काशा पेठ के रहने वाले हैं. फिर इस गड़बड़ी का अहसास होते ही इस पेज को शुक्रवार को सोशल नेटवर्किंग साइटों से हटा लिया गया और तब इस मुद्दे पर विरोध को हवा देने की जरूरत नहीं रह गई थी. लेकिन हिंदू राष्ट्र सेना और शिव सेना के गुंडे सोमवार को प्रदर्शन करने उतरे. पुणे के बाहरी इलाके हदसपार में शाम उन्होंने एक बाइक रोकी, इसके सवार को उतारा और उसके सिर पर हॉकी स्टिक और पत्थरों से हमला किया और दौरे पर ही उसे मार डाला. मार दिया गया वह व्यक्ति मोहसिन सादिक शेख नाम का एक आईटी-प्रोफेशनल था और उसका उन तस्वीरों से कोई लेना देना नहीं था. लेकिन चूंकि उसने दाढ़ी रख रखी थी और हरे रंग का पठानी कुर्ता पहन रखा था हमलावरों ने उसे मार डाला. शेख के साथ जा रहे उनके रिश्ते के भाई बच गए जबकि दो दूसरे लोगों अमीन शेख (30) और एजाज युसूफ बागवान (25) को चोटें आईं. पुलिस ने पहले हमेशा की तरह इस रटे रटाए बहाने के नाम पर इस मामले को रफा दफा करने की कोशिश की कि हमलावर शिवाजी की मूर्ति का अपमान किए जाने और एक हिंदू लड़की के साथ मुस्लिम लड़कों द्वारा बलात्कार किए जाने की अफवाह के कारण वहां जमा हुए थे. मानो इससे एक बेगुनाह नौजवान की हत्या जायज हो जाती हो.

शेख की हत्या के फौरन बाद, आनेवाले दिनों के बारे में बुरे संकेत देता हुआ एक एसएमएस पर भेजा गया जिसमें मराठी में कहा गया था: पहिली विकेट पडली (पहला विकेट गिरा है). इस संदेश को मद्देनजर रखें और शेख को मारने के लिए इस्तेमाल किए गए हथियारों पर गौर करें तो यह साफ जाहिर है कि यह एक योजनाबद्ध कार्रवाई थी. पुलिस ने रोकथाम करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं. हालांकि उसको बस इसी का श्रेय दिया जा सकता है, खास कर संयुक्त आयुक्त संजय कुमार का, कि उन्होंने हिंदू राष्ट्र सेना के प्रमुख धनंजय देसाई समेत 24 व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया है और उनमें से 17 पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया है. देसाई पर शहर के विभिन्न थानों में पहले से ही दंगा करने और रंगदारी वसूलने के 23 मामले दर्ज हैं. लेकिन इस फौरी कार्रवाई को इसके मद्देनजर भी देखना चाहिए कि आने वाले विधानसभा चुनावों में अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए महाराष्ट्र की कांग्रेस-राकांपा सरकार अपना धर्मनिरपेक्ष मुखौटा दिखाने की कोशिश करेगी. लेकिन चूंकि मोदी सरकार इस पर चुप है, इसलिए संकेत अच्छे नहीं दिख रहे हैं.

ऐसा लगता है कि खेल शुरू हो गया है. देखना यह है कि नरेंद्र मोदी इस खेल में किस भूमिका में उतरते हैं.

(हाशिया से साभार)

Tags: anand, atrocities, bhagana, bjp, dalit, Modi, teltumbde

Continue Reading

Previous आस्‍था नहीं, अन्‍वेषण पर आधारित हो इतिहास
Next देश का प्रधानमंत्री क्या होता है?

More Stories

  • Featured
  • Politics & Society

CAA के खिलाफ पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव पारित!

6 years ago PRATIRODH BUREAU
  • Featured
  • Politics & Society

टीम इंडिया में कब पक्की होगी KL राहुल की जगह?

6 years ago PRATIRODH BUREAU
  • Featured
  • Politics & Society

‘नालायक’ पीढ़ी के बड़े कारनामे: अब यूथ देश का जाग गया

6 years ago Amar

Recent Posts

  • Delhi’s Toxic Air Rises, So Does The Crackdown On Protesters
  • A Celebration of Philately Leaves Its Stamp On Enthusiasts In MP
  • Groundwater Management In South Asia Must Put Farmers First
  • What The Sheikh Hasina Verdict Reveals About Misogyny In South Asia
  • Documentaries Rooted In Land, Water & Culture Shine At DIFF
  • Electoral Roll Revision Is Sparking Widespread Social Anxieties
  • Over 100 Journalists Call Sheikh Hasina Verdict ‘Biased’, ‘Non-Transparent’
  • Belém’s Streets Turn Red, Black And Green As People March For Climate Justice
  • Shark Confusion Leaves Fishers In Tamil Nadu Fearing Penalties
  • ‘Nitish Kumar Would Win Only 25 Seats Without Rs 10k Transfers’
  • Saalumarada Thimmakka, Mother Of Trees, Has Died, Aged 114
  • Now, A Radical New Proposal To Raise Finance For Climate Damages
  • ‘Congress Will Fight SIR Legally, Politically And Organisationally’
  • COP30 Summit Confronts Gap Between Finance Goals And Reality
  • Ethiopia Famine: Using Starvation As A Weapon Of War
  • Opposition Leaders Unleash Fury Over Alleged Electoral Fraud in Bihar
  • In AP And Beyond, Solar-Powered Cold Storage Is Empowering Farmers
  • The Plot Twists Involving The Politics Of A River (Book Review)
  • Red Fort Blast: Congress Demands Resignation Of Amit Shah
  • Here’s Why Tackling Climate Disinformation Is On The COP30 Agenda

Search

Main Links

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us

Related Stroy

  • Featured

Delhi’s Toxic Air Rises, So Does The Crackdown On Protesters

1 week ago Pratirodh Bureau
  • Featured

A Celebration of Philately Leaves Its Stamp On Enthusiasts In MP

1 week ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Groundwater Management In South Asia Must Put Farmers First

1 week ago Pratirodh Bureau
  • Featured

What The Sheikh Hasina Verdict Reveals About Misogyny In South Asia

2 weeks ago Shalini
  • Featured

Documentaries Rooted In Land, Water & Culture Shine At DIFF

2 weeks ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • Delhi’s Toxic Air Rises, So Does The Crackdown On Protesters
  • A Celebration of Philately Leaves Its Stamp On Enthusiasts In MP
  • Groundwater Management In South Asia Must Put Farmers First
  • What The Sheikh Hasina Verdict Reveals About Misogyny In South Asia
  • Documentaries Rooted In Land, Water & Culture Shine At DIFF
Copyright © All rights reserved. | CoverNews by AF themes.