यही वजह है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बौखलाहट बढ़ गई है। अभी मायावती के बयान पर अरुण जेटली से लेकर निर्मला सीतारमन तक भाजपा का सारा कुनबा मायावती पर टूट पड़ा। इनसे कोई सवाल पूछे कि उस समय ये लोग कहां थे जब मोदी का धुंआधार प्रचार कर रहे बाबा रामदेव ने अप्रैल 2014 में राहुल गांधी पर फूहड़तम बयान दिया था। उन दिनों राहुल गांधी दलितों की बस्तियों में जाते थे और लोगों से मिलते थे। रामदेव ने कहा कि वह पिकनिक करने और हनीमून मनाने जाते हैं। उनके बयान के इस अंश को देखिएः ‘‘उसकी मम्मी कहती है मेरा मुन्ना तूने बिदेसी लड़की से ब्याह कर लिया तो तू प्रधानमंत्री नहीं बनेगा और देसी कराना नहीं चाहता। मम्मी चाहती है पहले प्रधानमंत्री बन जाए फिर बिदेसी लड़की को लाए और ये लड़का जो है देसी से शादी नहीं करना चाहता। हनीमून करने के लिए और पिकनिक के लिए जरूर दलितों के घर में जाता है लेकिन किसी दलित की लड़की से शादी कर लेता तो वह भी दुल्हन बन जाती…’’ इस घोर अश्लील और दलित विरोधी बयान पर न तो किसी भाजपाई ने और न किसी संघी ने कोई आपत्ति की। रामदेव ने खेद भी तब व्यक्त किया जब भारतीय दण्ड संहिता की धारा 171जी के तहत उनके खिलाफ शिकायत दर्ज हुई। लेकिन इससे उस कुत्सित मानसिकता का पता तो चलता ही है जिससे यह संघ परिवार ग्रस्त है।
कहने का मतलब यह कि आपत्तिजनक बयानों का सिलसिला भाजपाइयों ने ही शुरू किया। सुधींद्र भदौरिया के शब्दों में बबूल का पेड़ इन्होंने ही बोया और इसका श्रेय नरेंद्र मोदी को जाता है जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों के बयानों को बढ़ावा दिया। आपको याद होगा कि मोदी मंत्रिमंडल के गठन के कुछ ही दिनों के अंदर उनकी सरकार में राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा था कि दिल्ली के मतदाताओं को यह तय करना होगा कि वे रामजादों को वोट देंगे या हरामजादों को। वह पश्चिम दिल्ली के श्यामनगर इलाके में एक चुनावी सभा को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा – ‘‘आपको तय करना है कि दिल्ली में सरकार रामजादों की बनेगी या हरामजादों की।’’ इसी भाषण में उन्होंने राबर्ट वाड्रा के संदर्भ में सोनिया गांधी पर प्रहार करते हुए कहा – ‘‘साधारण परिवार में…बर्तनों की दुकान रखने वाला…उसका बेटा, सोनिया गांधी का दामाद अरब-खरबपति कैसे हो गया? गरीबों को लूटा है, गरीबों को चूसा है, मोदी कहते रहे हैं, न खाएंगे न खाने देंगे।’’ इसी सरकार के एक दूसरे मंत्री गिरिराज सिंह ने लगभग उसी समय अरविंद केजरीवाल पर टिप्पणी की – ‘‘केजरीवाल उन राक्षसों में भी मारीच है जो भेष बदलता है पर कभी न कभी पकड़ा जाता है।’’ इससे पहले भी गिरिराज सिंह मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की सलाह दे कर अपने आकाओं की वाहवाही लूट चुके थे।
इस तरह के बेशुमार उदाहरण हैं जिनका अगर जिक्र किया जाय तो पूरा ग्रंथ तैयार हो जाएगा। इन छुटभैये नेताओं का हौसला इसलिए बढ़ता गया क्योंकि इनके नेता नरेंद्र मोदी भी ऐसी ही भाषा के मुरीद थे और इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल करते थे। आजादी के बाद से आज तक प्रधान मंत्री पद की गरिमा को जितने निम्न स्तर तक मोदी ने पहुंचाया उसकी कोई मिसाल नहीं मिलेगी। क्या इसे भुलाया जा सकता है कि प्रधान मंत्री पद पर रहते हुए कोई व्यक्ति प्रतिपक्ष के नेता को, और वह भी महिला नेता को, इस तरह की शब्दावली से संबोधित करेगा जैसा नरेंद्र मोदी ने किया। ‘सोनिया गांधी जर्सी गाय हैं, राहुल हाइब्रीड बछड़ा है’; ‘कांग्रेस की विधवा’ (सोनिया गांधी के लिए); ‘वाह, क्या गर्लफ्रेंड है? आपने कभी देखा है पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड को?’ (सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर के लिए); ‘मनमोहन सिंह बाथरूम में भी रेनकोट पहन कर नहाते हैं’; ‘मुझे हैरानी है कि शैतान को प्रवेश करने के लिए उनका (लालू यादव) ही शरीर मिला। पूरी दुनिया में लालू का ही पता मिला शैतान को?’ ये सुभाषित नरेंद्र मोदी के हैं जो लंपटों की भाषा बोलने में सबसे ऊंचे पायदान पर हैं।
जब ऐसी स्थिति हो और राजनीतिक संवाद को इस स्तर तक ला दिया गया हो, प्रधानमंत्री की ओर से जब यह रोना रोया जाता है कि मैं बेहद प्रताड़ित व्यक्ति हूं तो हैरानी होती है। यहां संदर्भ 8 मई को कुरुक्षेत्र में दिए गए उनके भाषण से है। पहली बार इस भाषण को सुनकर लगा कि पांच चरणों का चुनाव समाप्त होने के बाद नरेंद्र मोदी कितनी हताशा और बौखलाहट से घिर गए हैं। यह भाषण जिसने भी देखा-सुना होगा उसे उनके बोलने के तौर-तरीके और उनकी भाव-भंगिमाओं से यह किसी विक्षिप्त व्यक्ति के प्रलाप जैसा लगा होगा। इस भाषण में उन्होंने उन सारी गालियों की सूची तैयार की थी जो समय-समय पर उनको मिलती रही है। उन्होंने श्रोताओं से यह भी शिकायत की कि मीडिया से उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है। देश के 80-90 प्रतिशत मीडिया को ‘गोदी मीडिया’ बनाने वाला जब कोई व्यक्ति ऐसा कहता है तो यह सचमुच बहुत हास्यास्पद लगता है। उनके भाषण का यह अंश देखिए- ‘‘…साथियो, कांग्रेस के एक नेता ने मुझे गंदी नाली का कीड़ा कहा तो दूसरा मुझे गंगू तेली कहने आ गया। इनके एक नेता ने मुझे पागल कुत्ता कहा तो दूसरा नेता सामने आया और मुझे भस्मासुर की उपाधि दे दी। कांग्रेस के एक और नेता हैं, देश के विदेशमंत्री रह चुके हैं उन्होंने मुझे बंदर कहा। इनके और एक मंत्री ने मुझे वायरस कहा तो दूसरे ने दाऊद इब्राहीम का दर्जा दे दिया। इनके एक नेता ने मुझे हिटलर कहा तो दूसरे ने मुझे बदतमीज नालायक बेटा कहा। इतना ही नहीं मुझको रैबीज बीमारी से पीड़ित बंदर बोला गया, चूहा बोला गया, लहू पुरुष बोला गया, असत्य का सौदागर बोला गया। साथियो, कांग्रेस के नेताओं ने मुझे रावण, सांप, बिच्छू, गंदा आदमी, जहर बोने वाला तक बोला। कांग्रेस के नेता जिसके सामने नतमस्तक हैं उन्होंने भी मुझे मौत का सौदागर कहा।’’
नरेंद्र मोदी को बेशक कांग्रेसियों ने असत्य का सौदागर कहा हो लेकिन क्या यह केवल कांग्रेस के लोगों ने ही कहा है? मोदी झूठ बोलने के लिए कुख्यात हो चुके हैं। किसी की अपने बारे में कही गई टिप्पणी को किस तरह एक नया अर्थ देकर जनता को बरगलाया जाय, इसमें उन्हें महारथ हासिल है। मिसाल के तौर पर मणिशंकर अय्यर ने जब अंबेडकर की याद में आयोजित एक सभा के अवसर पर कांग्रेस नेतृत्व पर की गई उनकी असामयिक और अमर्यादित टिप्पणी पर ‘नीच’ कहा तो उन्होंने इसके साथ ‘जाति’ शब्द जोड़कर यह प्रचारित किया कि मणिशंकर ने उन्हें ‘नीच जाति’ का कहा और इस तरह पिछड़ों का अपमान किया। अभी हाल में ममता बनर्जी ने एक संदर्भ में कहा कि ‘उन्हें मैं इस बार लोकतंत्र का करारा थप्पड़ दूंगी’। अपने भाषणों में नरेंद्र मोदी ने ‘लोकतंत्र का’ शब्द को गायब कर दिया और कहना शुरू किया कि ‘दीदी मुझे थप्पड़ मारेगी’। अब इसके बाद भी अगर कोई असत्य का सौदागर या झूठा और फरेबी कहे तो आपत्ति क्यों हो रही है! भले ही शर्मनाक हो, पर ये आपकी नायाब खूबियां हैं। इन्हें आप छोड़ना भी नहीं चाहते क्योंकि आपकी इन्हीं नाटकीय मुद्राओं और घटिया चुटीले संवादों से रीझ कर जाहिलों की एक जमात ‘मोओदी…मोओदी’ के जयघोष से आपका हौसलाअफजाई करती है। आपकी छाती थोड़ी और चौड़ी हो जाती है।
कुरुक्षेत्र के अपने भाषण में उन्होंने लगभग बिलखते हुए कहा कि वह पहली बार अपने दिल का दर्द लोगों के सामने रख रहे हैं। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद मिले ‘उपहारों’ को गिनाना शुरू किया- ‘‘निकम्मा, नशेड़ी, औरंगजेब से भी ग्रेट तानाशाह, अनपढ़, गंवार, नमक हराम, नालायक बेटा, तुगलक, नटवर लाल, नाकारा बेटा आदि आदि।’’ फिर उन्होंने कहा- ‘‘इन लोगों ने मेरी मां को गाली दी। ये भी पूछा कि मेरे ‘पीता’ कौन हैं।’’
कुरुक्षेत्र के समूचे भाषण में न तो उन्होंने विकास की बात की और न देश के सामने मौजूद समस्याओं पर कोई चर्चा की। गालियों की सूची सुनाने के बाद उन्होंने चिरपरिचित नाटकीय अंदाज में हर दिशा में हाथ हिलाते हुए लोगों से यही सवाल किया कि मेरा एक काम करोगे और जवाब में जब लोगों ने हां कहा तो उन्होंने अपना काम बताया – ‘‘ये मीडिया के लोग आने वाले दस दिन तक यह सब बताने की हिम्मत करेंगे या नहीं करेंगे कुछ मालूम नहीं क्योंकि इस परिवार की इन लोगों पर बड़ी कृपा रही है… वो करें या न करें लेकिन आप इन बातों को सोशल मीडिया पर, मोबाइल फोन पर हिंदुस्तान के कोने-कोने में पहुंचाएं…एकतरफा मुझ पर जुल्म हो रहा है इसलिए देश को सच बताना जरूरी है…ये मेरा छोटा सा वीडियो घर-घर पहुंचाइए।’’ उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि हरियाणा उनके साथ पूरी तरह खड़ा रहने वाला है और यहां मौजूद लोग इस वीडियो को अपने रिश्तेदारों तक जरूर पहुंचाएंगे क्योंकि मीडिया उनका साथ नहीं दे रहा है।
मीडिया से यही शिकायत उन्होंने पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में एक संवाददाता से हुई संक्षिप्त बातचीत में की। उन्होंने कहा कि मीडिया उनका साथ नहीं दे रहा है। अब इसे आप क्या कहेंगे! जिस व्यक्ति ने भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में मीडिया और मीडियाकर्मियों को हद से भी ज्यादा निम्न स्तर तक पहुंचा दिया, जिसकी वजह से सारी दुनिया में भारतीय मीडिया का मजाक उड़ाया जा रहा हो, वह कह रहा है कि मीडिया उसका साथ नहीं दे रहा है। यह सचमुच मोदी की हताशा का क्षण है।
अब से दो तीन महीने पहले तक मोदी की चर्चा इसलिए होती थी कि वह न तो कोई प्रेस कांफ्रेंस करते हैं और न इंटरव्यू देते हैं। सत्यानाश हो करन थापर का जिसने ऐसी दहशत पैदा कर दी जो दिल से निकलती ही नहीं है। विनोद दुआ ने भी एक बार टिप्पणी की थी—‘मोदी चार सवालों का सामना ही नहीं कर पाते, उनका गला सूख जाता है, होंठ थरथराने लगते हैं’। बेशक, रजत शर्मा जैसे कद्रदानों ने इधर सवाल-ज़वाब के कुछ ऐसे आयोजन किए जिनसे रिजर्व फारेस्ट में हंटिंग करने जैसा मज़ा मिला। तो भी इधर उन्होंने जो भी इंटरव्यू दिए उनमें सवाल-ज़वाब पहले से तय होने के बावजूद हर एक में उन्होंने अपनी किसी मूर्खता या बड़बोलेपन का प्रदर्शन कर ही दिया। एक टीवी चैनल को इंटरव्यू में उन्होंने यह बताया कि कैसे 1987-88 में अपने डिजिटल कैमरा से आडवाणी जी की रंगीन तस्वीर लेकर उन्होंने ई-मेल से दिल्ली भेजी थी। मजे की बात यह है कि उस समय तक ई-मेल और इंटरनेट व्यवस्था शुरू ही नहीं हुई थी। एक दूसरे इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि कैसे वायुसेना अधिकारियों को उन्होंने सलाह दी कि अगर आसमान में बादल घिरे हैं तो बालाकोट पर हमला करना और अच्छा होगा क्योंकि राडार हमारे विमानों को देख नहीं पाएगा। इस तरह के कई सारे बयान ऐसे आए हैं जिनसे प्रधानमंत्री की अज्ञानता और बड़बोलेपन का पता चलता है।
वैसे, जहां तक भक्तों की बात है वे तो इस बात पर भी खुश नजर आ रहे हैं कि अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘टाइम’ ने अपने आवरण पर मोदी की तस्वीर लगाकर उन्हें ‘इंडियाज डिवाइडर-इन-चीफ’ अर्थात ‘भारत को टुकड़ों में बांटने वालों का सरगना’ कहा। धन्य हो मोदी जी और धन्य है आपकी भक्त मंडली। आप जितनी जल्दी विदा हों, देश के लिए उतना ही कल्याणकारी होगा।
आनंद स्वरूप वर्मा वरिष्ठ पत्रकार हैं, नेपाल संबंधी मामलों के विशेषज्ञ हैं.
As I write, the grim count of journalists killed in Gaza since last October has reached 97. Reporters Without Borders…
December 30, 2022, was a day to forget for India’s already badly mauled and tamed media. For, that day, influential…
William Shakespeare’s famous tragedy “Othello” is often the first play that comes to mind when people think of Shakespeare and…
This week, Columbia University began suspending students who refused to dismantle a protest camp, after talks between the student organisers…
Freedom of the press, a cornerstone of democracy, is under attack around the world, just when we need it more…
Parts of India are facing a heatwave, for which the Kerala heat is a curtain raiser. Kerala experienced its first…
This website uses cookies.