नागरिकता का महाजाल

Dec 28, 2019 | PRATIRODH BUREAU
Caa Scroll

Pratirodh

दिसंबर के सर्द मौसम में देश की राजनीति का तापमान बढ़ा हुआ है. संसद का सत्र खत्म होने से लेकर अब तक देश ऐसे उबल रहा है, मानो चाय उबल रही हो. मोदी सरकार के द्वारा लाए गए नागरिकता संशोधन एक्ट (CAA) ने देश को दो भागों में बांट दिया है, एक वह जो इस बिल का विरोध कर रहे हैं और सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं, और दूसरी तरफ वह जो इस बिल के साथ हैं और नरेंद्र मोदी का साथ दे रहे हैं. लेकिन इस बिल के चक्कर में पूरे देश में एक ‘महाजाल’ खड़ा हुआ है यह दोनों तरफ से ही खड़ा किया जा रहा है. विपक्ष ने इस कानून को एनआरसी के साथ जोड़कर लोगों को सरकार की मंशा के बारे में बताया है, तो सरकार एनआरसी को लेकर ऐसे ऐसे बयान दे रही है कि मामला फंसता ही जा रहा है.

विपक्षी महाजाल

लोकसभा चुनाव में बड़ी ताकत के साथ जीत कर आई भारतीय जनता पार्टी सरकार जब कुछ ही दिनों के बाद अर्थव्यवस्था के मुहाने पर कमजोर दिख रही थी, तब नागरिकता संशोधन एक्ट में टूटे हुए विपक्ष को एकजुट करने का काम किया. विपक्ष को मौका मिला कि इस एक्ट के द्वारा जनता को यह बता सके कि बीजेपी अपने एजेंडे पर आगे बढ़ रही है और देश को हिंदू राष्ट्र की ओर ले जा रही है.

कांग्रेस, सपा, बसपा, लेफ्ट पार्टियों समेत पूरे विपक्ष ने मोदी सरकार के इस कानून को संविधान विरोधी करार दिया है और अल्पसंख्यकों के लिए खतरा बताया है. इससे भी आगे बढ़कर जो माहौल बना है वह यह है कि सीएए और एनआरसी का जो कॉन्बिनेशन है. उसको लेकर विपक्ष जनता के बीच एक मैसेज दे चुका है और इसका असर बताया यह जा रहा है कि इससे देशवासियों को नागरिकता साबित करनी होगी और जो खुद की नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे, उन्हें देश से निकाल अभी जा सकता है और इनमें अधिकतर मुसलमान ही होंगे.

भले ही एनआरसी अभी आया नहीं हो लेकिन अधिकतर जनता के बीच खासकर मुस्लिम समुदाय के बीच विपक्ष का यह मैसेज पहुंच गया. और यही कारण रहा कि हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर इस कानून के खिलाफ उतरे और मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए विरोध प्रदर्शन किया. देश के कई हिस्सों में इस विरोध प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया. गाड़ियां जलाई गई, तोड़फोड़ की गई, कुछ की मौत भी हुई. इसी वजह से अब इस कानून की चर्चा ना सिर्फ देश में है बल्कि दुनियाभर की मीडिया इस ओर नजरें गढ़ाए हुए है.

लेकिन विपक्ष की इन कोशिशों में एक डर छुपा है क्योंकि मामला पूरी तरह से हिंदू मुस्लिम का हो चुका है. इस वजह से विपक्ष खुलकर सामने नहीं आ रहा है ताकि इसका फायदा भाजपा ना उठा ले क्योंकि अगर पूरी तरह से मामला हिंदू मुस्लिम हुआ तो फायदा बीजेपी उठा सकती है और मुद्दा पूरी तरह से सांप्रदायिक हो सकता है.

सरकारी महाजाल

प्रचंड बहुमत के रथ पर सवार होकर आई भारतीय जनता पार्टी लगातार बड़े फैसले ले रही है, अनुच्छेद 370 के बाद बीजेपी की ओर से नागरिकता संशोधन एक्ट सबसे बड़ा विवादित फैसला रहा. गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पेश किए गए इस कानून के तहत 3 देशों के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलती है, लेकिन सरकार द्वारा चुने गए यह तीन देश ऐसे हैं जो उनकी राजनीति के लिए बिल्कुल सटीक बैठते हैं इसी सवाल को विपक्ष में उठा रहा है.

हिंदुत्व का चोला और आगे बढ़ने वाली बीजेपी ने पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे इस्लामिक देशों के धार्मिक प्रताड़ित अधिसंख्यकों को नागरिकता देने की बात तो कही लेकिन इससे देश में बवाल हो गया. दरअसल बात सिर्फ इस कानून की नहीं है इसके बाद आने वाले नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन की है. क्योंकि असम में जो हुआ उसके बाद हर किसी के मन में भय का माहौल है, तीन करोड़ में से 1900000 लोगों को बाहर निकाल दिया गया क्योंकि वह अपने नागरिकता साबित नहीं कर पाए. दोबारा उन्हें कागजाती कार्यवाही में लिप्त होना पड़ रहा है. अब यही सवाल देश के सामने खड़ा है क्योंकि अमित शाह ऐलान कर चुके हैं कि पूरे देश में एनआरसी लागू होगा.

इस कानून के बाद जिस तरह से देश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं वह शायद मोदी सरकार ने उम्मीद न की हो. लेकिन जनता के बीच जो सीएए और एनआरसी का कन्फ्यूजन बना उसका जाल भी बीजेपी नेताओं के बयानों द्वारा ही बुना गया. अमित शाह खुद कई सभाओं में CAA और एनआरसी को एक कॉन्बिनेशन बता चुके हैं. और इसे साथ में देखने की बात भी कह चुके हैं, लेकिन अब इस बवाल के बाद सरकार अपनी पूरी कोशिश कर रही है कि लोग इसे एक साथ ना देखें क्योंकि अभी सिर्फ CAA ही कानून बना है और एनआरसी को लेकर कोई सरकारी चहल-पहल नहीं है.

राजनीतिक महाजाल

इस कानून के विरोध में हुए प्रदर्शन के बीच जहां जहां पर भी हिंसा हुई वह अधिकतर भाजपा शासित राज्य हैं या फिर ऐसे राज्य हैं जहां पर विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. क्योंकि मामला पूरी तरह से हिंदू मुस्लिम यानी धर्म से जुड़ा है इसलिए अब ऐसे राज्यों में चुनावी मुद्दा भी सांप्रदायिक होता दिख रहा है. राजनीतिक दल भले ही इस हिंसा के लिए एक दूसरे पर आरोप लगाते दिखे लेकिन यह तो साफ हो चुका है कि चुनावी परिदृश्य आने वाले समय में पूरी तरह से बदलता हुआ नजर आएगा. क्योंकि एक तरफ बीजेपी की ओर से ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि विपक्ष मोदी के नाम पर मुसलमानों को डरा रहा है तो वहीं विपक्ष यह आरोप लगा रहा है कि सरकार अल्पसंख्यकों को डराकर अपना चुनावी हथकंडा और एजेंडा लागू करने में लगी है.

इनका असर जल्द ही होने वाले दिल्ली, बिहार और बंगाल के चुनावों में भी दिख सकता है. यह राजनीतिक महाजाल ही है कि कांग्रेस जैसी बड़ी विपक्षी पार्टी खुलकर इस बिल या एनआरसी के विरोध में सड़कों पर नहीं उतर रही है, क्योंकि मामला अगर धर्म का एंगल लेता है तो बीजेपी इसका फायदा उठा सकती है. खैर, इस सबके बीच इस कानून के खिलाफ उग्र होते विरोध प्रदर्शन को लेकर सरकार की चिंताएं जरूर बढ़ सकती हैं. क्योंकि अब तक कई लोगों की जानें जा चुकी है, कई शहरों में इंटरनेट बंद है, कानून व्यवस्था की हालत खराब है और दुनिया की नजर नरेंद्र मोदी की तरफ है.

By शमशेरवाणी