AN-32 का मलबा मिला लेकिन 13 सवार लोगों पर अब भी चुप्पी
Jun 11, 2019 | PRATIRODH BUREAUभारतीय वायु सेना के एएन-32 एयरक्राफ्ट का मलबा अरुणाचल प्रदेश में मिला है. पिछले आठ दिनों से एन-32 ग़ायब था और भारतीय वायु सेना खोजने में जुटी थी.
इस विमान का मलबा अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी सियांग ज़िले में मंगलवार को आठ दिनों बाद मिला. भारतीय वायु सेना का कहना है कि विमान का मलबा एमआई-17 हेलिकॉप्टर से 12,000 फुट की ऊंचाई पर देखा गया है.
इस पर 13 लोग सवार थे, जिनमें आठ चालक दल के सदस्य थे. इंडियन एयर फ़ोर्स का कहना है कि इस पर सवार और चालक दल के सदस्यों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है. भारतीय वायु सेना ने ट्वीट कर यह जानकारी दी है.
The wreckage of the missing #An32 was spotted today 16 Kms North of Lipo, North East of Tato at an approximate elevation of 12000 ft by the #IAF Mi-17 Helicopter undertaking search in the expanded search zone..
— Indian Air Force (@IAF_MCC) June 11, 2019
इस मालवाहक विमान ने तीन जून की दोपहर 12.27 पर असम के जोरहाट से उड़ान भरी थी और एक बजे उसका संपर्क टूट गया था.
इसरो की मदद से जोरहाट और अरुणाचल प्रदेश के मेचुका के बीच विमान को तलाश रही थी.
तलाशी अभियान में विशेष ऑपरेशन में इस्तेमाल होने वाले एयरक्राफ़्ट सी-130, एएन-32एस, एमआई-17 चौपर और थल सेना के कई आधुनिक हेलिकॉप्टर शामिल थे.
एएन-32 विमान भारतीय सेना की आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस उड्डयन क्षमता की रीढ़ हैं.इसके ग़ायब होने पर बहुत लोग हैरानी थे, लेकिन भीतरी लोगों को इसमें कोई ताज्जुब नज़र नहीं आ रहा था.
एएन-32 को तीन हज़ार घंटे तक उड़ाने का अनुभव रखने वाले एक रिटायर्ड वरिष्ठ अधिकारी ने बीबीसी संवाददाता जुगल पुरोहित को बताया था, “इस पूरे क्षेत्र में आसमान से केवल नदियां दिखती हैं. बाक़ी इलाक़ा जंगलों से ढंका है. एएन-32 बहुत बड़ा हो सकता है लेकिन बिना किसी संकेत के इसके बारे में बस अनुमान लगाया जा सकता है.”
एएन-32 को खोजने में लगे सी-130जे, नेवी के पी8आई, सुखोई जैसे विमान दिन रात बहुत सारा डेटा इकट्ठा कर रहे थे.
भारतीय वायु सेना का कहना था कि क्रैश की संभावित जगह से इन्फ्रारेड और लोकेटर ट्रांसमीटर के संकेतों को विशेषज्ञ पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं.
तस्वीरों और टेक्निकल सिग्नल के आधार पर कुछ ख़ास बिंदुओं पर कम ऊंचाई पर हैलिकॉप्टर ले जाए जा रहे थे.
लेकिन ऊपर से महज़ इतना हो पा रहा था कि कि वो बस ज़मीनी तलाशी टीम के साथ तालमेल बना पा रहे थे.
एक पूर्व अधिकारी ने बीबीसी को बताया था, “सबसे अंत में विमान जिस जगह पर था, वहीं से हमारी खोज शुरू होती है उसके बाद इसका दायरा बढ़ता है.”
भारतीय वायु सेना के लिए एएन32 केवल एक विमान भर नहीं है. ये एक ऐसा विमान है जो वायु सेना के लिए ख़ास तौर पर बनाया गया था.
वायु सेना के वरिष्ठ से लेकर जूनियर अफ़सर तक इस लापता विमान को बहुत ही शक्तिशाली, वायुसेना परिवहन की रीढ़ और ऐसा मजबूत विमान बताते हैं जो छोटे और अस्थायी रनवे पर भी उतर सकता है. रख-रखाव के नज़रिए से भी देखा जाए तो एएन32 की बहुत मांग है.
एक रिटायर्ड ऑफ़सर बताते हैं, ”हमारे पास करीब 100 एएन32 विमान हैं जिन्हें हमने 1984 में सोवियत संघ से लिया था. हां कुछ एक दुर्घटनाएं हुई हैं लेकिन जब इन दुर्घटनाओं की तुलना विमान के व्यापक प्रयोग से की जाती है तो मामला सकारात्मक नज़र आता है.”
22 जुलाई 2016 को भी एक अन्य एएन32 विमान लापता हो गया था, जिसमें 29 लोग सवार थे.
उस समय वो पोर्ट ब्लेयर और चेन्नई के पास तम्बराम के बीच उड़ान पर था. अभी तक उसका कोई पता नहीं चल पाया है.
उस समय इस विमान में पानी के अंदर काम करने वाला लोकेटर या ऑटोमैटिक डिपेंडेंट सर्विलांस ब्रॉडकास्ट नहीं था जिससे संभावित क्रैश की जगह या सैटेलाइट नेविगेशन से अंतिम जगह का पता लग सके.
वायु सेना का कहना है कि वर्तमान के एएन32 में पुराना इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर (ईएलटी) मौजूद है जो दुर्घटना या इमरजेंसी के समय विमान की स्थिति बता सकता है.
लेकिन क्या इससे कोई मदद मिली?
एक अफ़सर का कहना था, “अभी तक कोई संकेत नहीं मिला है. स्वाभाविक है कि अत्याधुनिक और अधिक प्रभावी ईएलटी इस मामले में मदद कर सकता था.”
इतने दिन बीतने के बाद उसकी बैटरी पर भी संदेह होने लगा था जिससे ईएलटी को ऊर्जा मिलती है.
भारतीय वायु सेना को इस बात का अंदाज़ा पहले से था. इसीलिए 2002-2003 में, इन बातों पर एएन32 बेड़े के भविष्य पर विचार विमर्श किया था.
एक रिटायर्ड वायुसेना प्रमुख ने बीबीसी से कहा था, “एन32 में इलाके और मौसम को सेंस करने वाला रेडार सिस्टम नहीं है जो मिसाल के तौर पर सी130जे में है. मुझे लगता है कि अगर बेहतर मौसम रडार होता तो एन32 अच्छा है वरना इसे मुश्किलें आ सकती हैं.”
वायुसेना इस मुश्किल के बारे में जानती थी.
अपग्रेड में हुई देरी
इसकी ख़रीद समझौते की जानकारी रखने वाले एक अफ़सर ने बीबीसी को बताया था, “एक दशक तक इस बात पर चर्चा होती रही कि इस विमान को बदला जाए या अपग्रेड किया जाए. उसके बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे कि इसे अपग्रेड किया जाए. यूक्रेन की कंपनी एंटोनोव, जिसने इसे वायुसेना के लिए बनाया था, अपग्रेड करने के प्रस्ताव की उसकी शर्तें भी अच्छी थीं.”
वायुसेना चाहती थी कि उम्र के लिहाज से विमान के विंग मज़बूत किए जाएं, इनमें आधुनिक उपकरण लगाए जाएं ताकि इसकी उम्र 25 से 40 साल बढ़ाई जा सके.
लेकिन 2014 की शुरुआत में एक अप्रत्याशित विवाद आ खड़ा हुआ. रूस और यूक्रेन आपस में भिड़ गए. इस लड़ाई में कई चीज़ें प्रभावित हुईं. वायुसेना का एन32 अपग्रेड होना उनमें से एक था.
एक पूर्व वायुसेना अधिकारी ने कहा, “योजना के मुताबिक़ कुछ एन32 यूक्रेन में अपग्रेड हुए, हम एचएएल कानपुर में किट्स के आने का इंतज़ार कर रहे थे लेकिन उसमें देरी हुई. हमने हर जगह सपोर्ट पाने की कोशिश की लेकिन योजना के हिसाब से अपग्रेड नहीं हो सका.”
वायुसेना का कहना है कि एन32 के अपग्रेड की उम्मीद अभी ख़त्म नहीं हुई है, हालांकि इसमें देरी हुई है.
एन32 जैसे पुराने विमान से पहले इससे भी पुराने विमान हॉकर सिडले (एचएस) एवरो 748 को लेकर वायु सेना में सवाल उठते रहे हैं.
पहली बार जून 1960 में एचएस एवरो को उड़ाया गया और अफ़सर कहते हैं कि दिनों दिन इस विमान को उड़ाना ख़तरनाक होता जा रहा है.