Skip to content
Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Primary Menu Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us
  • Featured

क्या आदिवासी होने का मतलब माओवादी होना है?

Jan 11, 2012 | अविनाश कुमार चंचल

यदि आप विदेशी हैं और केवल दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों तक घूमे हैं तो मुमकिन है आप इस देश को विकसित राष्ट्र के श्रेणी में आराम से रख सकते हैं. जैसा कि पिछले दिनों ओबामा ने भी माना. कभी सांप और जंगलों के लिए मशहूर भारत में आज जंगल शब्द के मायने ही बदल गये हैं. आज कथित विकसित भारत की आत्मा किसी गांव या जंगल में नहीं बसता.उसकी आत्मा अगर देखनी है तो वो आपको चमचमाती दिल्ली और आईटी हब बेंगलुरू में जरूर देखने को मिल जायेगा.

 
आज जब हम दिल्ली में बैठ कर नये साल के जश्न मना रहे हैं. ठीक इसी समय जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए छत्तीसगढ़ के बस्तर से लेकर झारखंड के पलामू के जंगलों तक रूपरेखा बनायी जा रही होगी. जिस तरह से सरकार जंगलों को कॉरपोरेट हाथों में बिना किसी हिचक के देती जा रही है उससे जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराता नजर आता है. एक तो साल-दर-साल जारी आंकड़े में जंगलों का क्षेत्रफल सिमटता जा रहा है. फिर भी यदि हमारी सरकार सचेत नहीं होती है तो यह चिंताजनक बात है.
 
जिस तरह से सारे विश्व में पर्यावरण को लेकर चिंताएं जतायी जा रही हैं. क्योटो से लेकर कोपनहेगन तक चर्चा और बहस का दौर गर्म है. ऐसे में चंद कॉरपोरेट हितों को साधने के लिए जंगलों को नष्ट करना न तो देश हित में है और न ही सदियों से जंगलो में रहते आ रहे समुदायों के हित में. सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि जिस सरकार पर इन आदिवासियों के लिए विकास की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी थी वही सरकार इन पर गोलियां बरसा रही है.यदि झारखंड का ही उदाहरण लें तो हाल ही में ऑपरेशन एनाकोंडा के शिकार कितने आदिवासी हुए हैं. लोगों के आंखे फोड़ी जा रही है तो कहीं पुलिस बलात्कार कर रही है. खुद पूलिस भी इस बात को स्वीकार करती है कि चाईबासा जिले के गांव बलवा का रहने वाला मंगल की मौत गलती से हुई है. आज न जाने कितने मंगल देश के जंगलों में मिल जायेंगे.
 
दिल्ली मुंबई की चकाचौंध में हम अक्सर देश के जंगलों और वहां रहने वाले लोगों को भूल जाते हैं.हमारी मीडिया भी इन जंगलों की समस्या को नहीं दिखाना चाहती क्योंकि उनका दर्शक वर्ग अभिजात्य मध्य वर्ग है जिसकी दिलचस्पी कार और नये मोबाईल हैंडसेट में ज्यादा है. यदि मीडिया इन जंगलों के बारे में दिखाती भी है तो तब जब किशनजी या आजाद जैसे नक्स्ली नेताओं की कथित मुठभेड़ में मौत हो जाती है.किसी शहरी मध्यमवर्गीय परिवार के लड़की की हत्या पर जो मीडिया पानी पी-पी कर देश के कानून व्यवस्था को गाली देता है वही मीडिया जब सोनी सोरी के साथ हुए अमानवीय पुलिसिया जुल्म के खिलाफ आह तक नहीं निकालती तो उसके जनसरोकारी होने का दावा खोखला साबित होता है.आखिर क्या कारण है कि जो मीडिया शहरी महिलाओं के खिलाफ हो रहे जूल्म के लिए आंदोलन करती है वही मीडिया आदिवासी महिलाओं के साथ हो रहे ज्यादतियां पर चुप्पी साधे रहती है.
 
समस्या तब और गहरा हो जाता है जब कथित सभ्य समाज रोज-ब-रोज आदिवासियों पर हो रहे जूल्म के खिलाफ चुप्पी धारण किये रहता है. वैसे भी जिस आधुनिक समाज ने आदवासियों को जंगलों की तरफ धकेल कर अपना जगह बनाया हो उससे इससे अधिक उम्मीद भी नहीं की जा सकती.
 
मीडिया ने जंगलों की इस तरह से छवि निर्माण किया है कि आज जंगल शब्द का नाम सुनते ही माओवादी याद आते हैं, एक पिछड़ी हुई जगह याद आती है और साथ में डर भी. सरकार और माओवादियों के बीच आदिवासी मरने को विवश हैं. पुलिस माओवादी होने के नाम पर पकड़ लेती है तो दूसरी और माओवादी जबरदस्ती हाथों में बंदुक थमा देते हैं. या तो सरकारों के द्वारा कोई स्कुल नहीं बनाया जाता और यदि भूले-भटके ऐसा किया भी जाता है तो उसे माओवादी विस्फोट कर उड़ा देते हैं.
 
झारखंड में तो कॉरपोरेट ताकतों की गिद्ध नजर जंगलों और प्राकृतिक संपदा पर टिकी हुई है. उनकी इच्छा तो सिर्फ सस्ता खनिज अयस्क, सस्ते मजदूर, और मोटा मुनाफा कमाने की है. वे पहाड़ खोद रहे हैं, नदियों को सुखा रहे हैं, आदिवासियों को सस्ते मजदूर के रुप में इस्तेमाल कर रहे हैं और अपना घर भर रहे हैं.माओवादियों के नाम पर सरकार जंगलों में पुलिसिया राज कायम कर रही है. आम लोगों को डराया धमकाया जा रहा है, जिससे ये लोग जंगल खाली करने पर मजबूर हैं.और यह सब इसलिए हो रहा है कि कॉरपोरेट कंपनियां आसानी से प्राकृतिक संसाधनों को लूट सके.
 
पिछले दस सालों में झारखंड सरकार ने बड़ी-बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों के साथ लगभग 104 समझौते पर दस्तखत किए हैं. सेंसेक्स की बढ़ती ऊचाईयों में हमें याद भी नहीं रहता कि आज भी हमारे जंगलों में रहने वाले लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. आज भी उन तक पीने का पानी, स्वास्थ्य सुविधायें आदि पहुँचा पाने में हमारी सरकार असफल रही है. इस तथाकथित विकास ने बड़े पैमाने पर इन आदिवासियों का विस्थापन किया है. आज कोई नहीं जानता कि वे कहां हैं, किस दशा में हैं.
 
आज जंगलों की पहचान, भाषा, इतिहास, संस्कृति, पहाड़ प्रकृति सब कुछ दांव पर लगा हुआ है औऱ इनकों बचाने के लिए उनका संघर्ष भी जारी है. 

Continue Reading

Previous Baichung Bhutia\’s last Hurrah
Next Tribals treated like animals

More Stories

  • Featured

Caught Between Laws And Loss

1 min ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Is AI Revolutionising The Fight Against Cancer And Diabetes?

21 mins ago Pratirodh Bureau
  • Featured

In Gaza, Israel Faces Formal Genocide Claims From UN-Backed Experts

17 hours ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • Caught Between Laws And Loss
  • Is AI Revolutionising The Fight Against Cancer And Diabetes?
  • In Gaza, Israel Faces Formal Genocide Claims From UN-Backed Experts
  • Human-Animal Conflict: Intensifying Efforts To Tackle The Threat
  • When Compassion For Tigers Means Letting Go
  • NHRC Notice To Assam Police Over Assault On Journalist In Lumding
  • India’s Urban-Rural Air Quality Divide
  • How Hardships & Hashtags Combined To Fuel Nepal Violence
  • A New World Order Is Here And This Is What It Looks Like
  • 11 Yrs After Fatal Floods, Kashmir Is Hit Again And Remains Unprepared
  • A Beloved ‘Tree Of Life’ Is Vanishing From An Already Scarce Desert
  • Congress Labels PM Modi’s Ode To RSS Chief Bhagwat ‘Over-The-Top’
  • Renewable Energy Promotion Boosts Learning In Remote Island Schools
  • Are Cloudbursts A Scapegoat For Floods?
  • ‘Natural Partners’, Really? Congress Questions PM Modi’s Remark
  • This Hardy Desert Fruit Faces Threats, Putting Women’s Incomes At Risk
  • Lives, Homes And Crops Lost As Punjab Faces The Worst Flood In Decades
  • Nepal Unrest: Warning Signals From Gen-Z To Netas And ‘Nepo Kids’
  • Explained: The Tangle Of Biodiversity Credits
  • The Dark Side Of Bright Lights In India

Search

Main Links

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us

Related Stroy

  • Featured

Caught Between Laws And Loss

1 min ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Is AI Revolutionising The Fight Against Cancer And Diabetes?

21 mins ago Pratirodh Bureau
  • Featured

In Gaza, Israel Faces Formal Genocide Claims From UN-Backed Experts

17 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Human-Animal Conflict: Intensifying Efforts To Tackle The Threat

23 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

When Compassion For Tigers Means Letting Go

24 hours ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • Caught Between Laws And Loss
  • Is AI Revolutionising The Fight Against Cancer And Diabetes?
  • In Gaza, Israel Faces Formal Genocide Claims From UN-Backed Experts
  • Human-Animal Conflict: Intensifying Efforts To Tackle The Threat
  • When Compassion For Tigers Means Letting Go
Copyright © All rights reserved. | CoverNews by AF themes.