इस बदलते बिहार के चेहरे पर मत जाइए

बिहार बदल रहा है… इसीलिए यहां के बालू माफिया पर अमेरिका में सेमिनार हुआ, जिसमें छह साल पहले बालू घाटों को लेकर हुए वर्चस्व पर चर्चा की गई. साथ ही राज्य सरकार की नयी बालू नीति पर भी बहस हुई.

दरअसल, बदलते बिहार और यहां के बालू माफियाओं पर अमेरिकी विश्वविद्यालयों में रिसर्च हो रहा है. यही नहीं, बल्कि पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में बालू माफिया की कहानी पर पिछले दिनों यानी नौ फरवरी को एक सेमिनार भी आयोजित हुआ. इस सेमिनार का आयोजन सेंटर फॉर द एडवांस स्टडी ऑफ इंडिया (इस सेंटर को 1992 में वर्तमान भारत पर अध्ययन के लिए स्थापित किया गया है) की ओर से किया गया था. इस सेमिनार का विषय था—The Balu Mafia: An Ethnographic Exploration of the Political Economy of Sand Mining in Bihar.
इस सेमिनार में बालू के धंधे में शामिल लोगों के वर्चस्व की लड़ाई में छह साल पहले हुए खून-खराबे और अब विकास की पटरी पर सरपट दौड़ता-बदलता बिहार फोकस बिन्दू रहा. पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी एंथ्रोपोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. विटसू ने बिहार आकर इस विषय पर अध्ययन किया था. विटसू ने caste empowerment and democratic politics in Bihar विषय पर शोध किया. शोधपत्र में छह वर्ष पूर्व बालू घाटों को हथियाने के लिए होने वाले खूनी खेल पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार की, जिसे पिछले दिनों आयोजित सेमिनार में जारी किया गया. सेमिनार में बिहार के बारे में पूरी जानकारी दी गई और बिहार को उत्तर भारत का पॉपुलर स्टेट बताया गया.
लेकिन इन सबके परे सच्चाई यह है कि बिहार मेंबालू माफियाओं की सक्रियता कम नहीं हुई है, समय के साथ बदलाव ज़रूर आया है. पहले बंदूकों के साये में खनन का काम होता है, पर अब तरीका बदल गया है. किसी सरकारी अफसर को सेट कर लेने से काम चल जाता है. सच्चाई तो यह है कि भागलपूर, बांका, मुंगेर, जमुई, लखीसराय, शेखपूरा, पटना, भोजपूर, सारण, रोहतास, भभूआ, औरंगाबाद, बक्सर, गया, नालंदा, जहानाबाद, नवादा,सीवान, गोपालगंज, वैशाली, मुज़फ्फरपुर, बेतिया, मोतिहारी, मधुबनी, किशनगंज, सहरसा, सुपौल व मधेपुरा में आज भी बालू खनन बदस्तूर जारी है.
दिलचस्प बात तो यह है कि जहां एक तरफ पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर द एडवांस स्टडी ऑफ इंडिया की तरफ  से आयोजित बदलते बिहार और यहां के बालू माफिया की कहानी पर सेमिनार चल रहा था, वहीं दूसरी तरफ उसी दिन बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िले में यहां के गौनाहा ब्लॉक के सिट्टी पंचायत के ग्रामीण पश्चिम चम्पारण ज़िला के ज़िला मजिस्ट्रेट को यहां चलने वाले अवैध बालू उत्खनन तथा नदी के कटाव में विलीन होने और सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि को रेत में बदलने के लिए बालू माफियाओं के चलने वाले खेल के संबंध में एक शिकायत पत्र दिया गया. साथ ही नदी के विनाशलीला की एक सीडी भी दी गई.
हक़ीक़त यह है कि खनन माफिया लगातार रेत निकाल रहे हैं और सोन समेत कई नदियां तबाह हो रही हैं. बिहार सरकार ने पत्थरों के खनन पर रोक लगा रखी है लेकिन अकेले सासाराम में 400 से अधिक खनन इकाइयां कार्यरत हैं. इनमें से सिर्फ 8 के लीज वैध हैं. कैमूर की पहाड़ियों में अवैध खनन से हरियाली मर गई है और पहाड़ियों का वजूद खत्म हो रहा है. रोहतास का भी यही हाल है. इस तरह पूरे सूबे में एक हजार से अधिक अवैध खनन इकाइयां कार्यरत हैं.
पश्चिम चम्पारण के एक पत्रकार पवन कुमार पाठक बताते हैं कि बालू माफियाओं का यह धंधा अब बड़ा रूप ले लिया है, और नुक़सान यहां के स्थानीय लोगों व पर्यावरण पर पड़ रहा है. एक तरफ तो सरकार माफियाओं पर ज़मीन बड़ी क़ीमत पर लीज पर दे रही है, जिससे सरकार को अच्छा रिविन्यू मिल रहा है. वहीं दूसरी तरफ नदी के तेज़ बहाव के चलते कई गांव कट रहे हैं, जिससे लोगों को दुबारा बसाने के लिए सरकार को करोड़ों खर्च करना पड़ रहा है. जिससे नुकसान सरकार और पर्यावरण को ही हो रहा है. अब यह बात अलग है कि इससे लाभवंतित यहां के माफिया और स्थानीय नेता हो रहे हैं, क्योंकि स्थानीय नेताओं को सरकार के आवास योजना में घोटाला करने का अवसर जो मिल जाता है.
पश्चिम चम्पारण के एक गांव का एक स्थानीय निवासी बताता है कि इन लोगों को कोई अफसर भी नहीं टोकता. बालू माफिया का इतना आतंक है कि कोई भी व्यक्ति इनसे कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. यदि कोई कुछ बोल दे तो ये असलहे तक निकाल लेते हैं. नाम न छापने की शर्त पर कुछ ग्रामीणों ने बताया बालू माफिया के कारिंदों से सवाल जवाब करना जान की आफत मोल लेना है.

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