साल बदलने से क्या कुछ बदलता है
Dec 30, 2011 | अफ़रोज़ आलम 'साहिल'आज 2011 आपसे विदा ले रहा है. शाम होते-होते नए साल का जश्न सब पर हावी हो जाएगा. नए साल का सरुर के नाम पर जमकर हंगामा होगा, इयर एंड पार्टियों में हर्ष-उल्लास से ओत-प्रोत नशे में धुत युवाओं की बदमस्त हो जाएंगे. धूम-धाम परोस कर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आपको नए साल के नए सपने बेचेगा. पांच सितारा होटलों में पेज थ्री महफिलें सजेंगी… जाम छलकेंगे. गिलास और बरसते नोट…. एलिट क्लास और नवदौलतिया वर्ग का धन-प्रदर्शन…. गिफ्ट हैम्पर्स…. और अत्यंत महंगे कार्ड्स के आदान-प्रदान फिजूल-खर्ची और शाह-खर्ची के पुराने रिकॉडों को तोड़ देगा.
लेकिन 31 दिसंबर की इसी शाम को सर्द बर्फीली रात में जब करोड़ो रुपये आतिशबाज़ी में झोंके जा रहे होंगे, झुग्गी-झोंपड़ी वाले इलाके और फुट-पाथों पर रहने वाले लोग सर्दियों से ठिठुरते हुए खुदा से एक और सूरज देखने की दुआ कर रहे होंगे. नशे में धुत्त होकर कहीं कोई दुर्घटना न करे दे इसके लिए भी पुलिस विशेष इंतेजाम करेगी. पुलिस की गश्ती-गाड़ियां चौकन्नी होकर सड़कों पर दौड़ेंगी.
सवाल यह है कि ये नए साल का जश्न क्यों? साल 2011 के दिसम्बर की 31 तारीख खत्म होते ही अचानक “नया” क्या हो गया? जैसे तीस दिसंबर के बाद 31 दिसम्बर सूरजा उगा था ठीक उसी तरह एक जनवरी 2012 का सूरज भी उगेगा. फिर 31 दिसंबर और एक जनवरी के बीच इतना फर्क क्यों. एक ये दिन है जिसे आप जैसे भी हो काट देना चाहते हैं और एक कल है जिसके इंतेजार में आप इनते आतुर हैं कि ये भी भूल गए हैं कि आपको आज क्या करना है.
“नये वर्ष का आरंभ अगर खुशियों के साथ हो तो पूरा वर्ष खुशियों में गुज़रेगा” यह कथन स्वयं कितना वैज्ञानिक और कितना अंधविश्वास पर आधारित है, तर्क व विज्ञान की बात करने वालों की नज़र इस पर क्यों नहीं जाती? तथाकथित आधुनिकता और प्रगतिशीलता के राग अलापने वाले ‘महानगरीय जीवी’ इस पर विचार क्यों नहीं करते कि ये स्वयं कितना पुरातन एवं प्रतिगामी विचार है.
यदि हम पीछे ही मुड़कर देखें कि पिछले वर्ष का आरंभ भी हमने इसी हर्ष-उल्लास व मौज-मस्ती के साथ किया था. लेकिन ज़रा सोचिए कितनी खुशियां समेटी हमने पिछले वर्ष…?
लेकिन हां! यदि इस अवसर पर बीते वर्ष का विभिन्न स्तरों पर विश्लेषण हो और विभिन्न पहलुओं से सही लेखा-जोखा सामने लाया जाए और आने वाले वर्ष के लिए एरिया ऑफ़ एक्शन तलाश किए जाएं तो इस प्रकार की इयर एंड पार्टियां सकारात्मक और सार्थक हो सकती हैं. नए संकल्प के साथ हम नव वर्ष का वास्तविक अभिवादन कर सकते हैं और तब ये आने वाला वर्ष सही मायनों में हमारे लिए “नया” साल बन पाएगा.
साल 2011 में हमारे देश में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार पर ही बातें होती रहीं। हर तबके के लोगों ने इस विषय पर अपनी राय रखी. बहुत सी बैठकें और सभाएं हुई. लेकिन एक बात यह भी रही कि 2011 में सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ बातें ही की जाती रहीं. आप 2012 में भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ ठोस करने का संकल्प लीजिए. कागज और कलम उठाइये और कसम लिख लीजिए की इस साल आप कम से कम हर महीने दो आरटीआई जरूर दायर करेंगे. आप हर उस चीज के बारे में सूचना मांगने जो परेशानी का सबब बनती है. मेरा यकीन कीजिए, आप अपने अधिकार से जानकारी मांगेगे तो जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए मजबूर हो जाएंगा. प्रण लीजिए कि आप ऐसा करेंगे कि साल 2011 को अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने के लिए याद रखा गया है तो आपके कामों से साल 2012 को भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूती से लड़ने के लिए याद रखा जाएगा.
एक बार सर्दी में ठिठुरते उस बुजुर्ग के बारे में सोच लीजिए जिसे सिर्फ कल तक जिंदा रहने की दुआ मांग रहा है, यकीन जानिए आपके दिल में कुछ कर गुजरने का जज्बा अपने आप पैदा हो जाएगा…