आजकल टी.वी. चैनलों पर एक बड़ी सामान्य सी बात है मार्केटिंग वाले विज्ञापन दिखाना. छोटे उत्पादों की मार्केटिंग कर के पैसा कमाने का सीधा सा गणित काम करता है. ये विज्ञापन 15 मिनट से लेकर दो घंटे तक होते है. टेलीविजन पर यह प्रवृत्ति कोई नई नहीं है. टेली ब्रांड और स्काई शॉप जैसे कई और ब्रांड मार्केटिंग की इस तकनीक का एक दशक से ज्यादा समय से इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे उत्पादों का लक्षित उपभोक्ता उच्च माध्यम वर्ग है जिसके पास कुछ अतिरिक्त क्रय-शक्ति मौजूद है. ये उत्पाद पैसा वापसी की गारंटी देते हैं जिसमे कई किन्तु-परन्तु होते हैं.ये किन्तु-परन्तु इन्हें कानूनी पचड़ों से बचा लेने के लिए काफी होते हैं.
बहरहाल इस प्रकार के विज्ञापन से न्यूज़ और मनोरंजन चैनलों को बड़ा सहारा मिला है. एक तो 24 घंटे कुछ न कुछ दिखाने की मज़बूरी से ये लोग बच जाते हैं साथ ही अच्छा मुनाफा भी इन विज्ञापनों से मिल जाता है. दर-असल टेलीविज़न में प्राइम-टाइम की तरह "खलिहर-टाइम" भी होता है. ये समय टी.आर.पी. के नज़रिए से कमजोर माना जाता है. मसलन सुबह-सुबह का वक़्त, शाम में 4 से 7 का वक़्त और रात 11:30 के बाद का वक़्त. अब इस खलिहर टाइम के लिए कार्यक्रम बना कर विज्ञापन जुगाड़ने में बड़ी मश्कत वाला काम है. इससे अच्छा है कि वक़्त को एक मुश्त विज्ञापनदाता को बेच दिया जाये.
इन टी.वी. विज्ञापन की मदद से कितना पैसा पीटा जा रहा है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जैकी श्राफ और गोविदा जैसी हस्तियाँ भी इन कार्यक्रमों आ रही है. टेलीविजन के जाने-पहचाने चेहरों का ऐसे कार्यक्रमों में आना तो आम बात हो गई है. यानि मामला सीधे तौर पर बड़ी पूंजी का है. एक ही उत्पाद के विज्ञापन एक साथ कई चैनलों पर आना भी इस खेल में बड़ी पूंजी कि भागीदारी को दिखाता है. यहाँ तक कि होम शॉप 18 जो कि इस क्षेत्र का बड़ा खिलाड़ी है ,ने अपना खुद का चैनल खोल लिया है जिस पर चौबीस घंटे इसी प्रकार के उत्पादों कि नुमाइश कि जाती है. 1991 के बाद जब हम अपना बाज़ार विदेशी भेड़ियों के लिए खोल चुके है तब इस "भेड़िया-धसान" पर बहुत आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
एक और बात है जो इन उत्पादों के बारे में महत्वपूर्ण है. इन उत्पादों में बड़े पैमाने पर विविधता देखि जा सकती है. चमत्कारी दवा, ज्योतिष, महिला प्रसाधन, यौन-शक्ति वर्धक, व्यायाम की मशीने, घरेलु इस्तेमाल कि वस्तुए आदि कि लम्बी लिस्ट है. हमारे निजी टी.वी. चैनल बाजारवाद का प्रचार करते-करते खुद को बाज़ार बना चुके हैं. वास्तव में ये सभी उत्पाद घटिया किस्म के होते हैं जिनकी लगत बहुत कम होती है. टेलीविज़न माध्यम की विश्वसनीयता का प्यादा उठाकर इन उत्पादों से अच्छा मुनाफा कमाया जाता है. ये अपने उत्पादों को एक लच्छेदार ऑफर में लपेट कर पेश करते हैं जिसमे कई अन्य चीज़ें मुफ्त होती हैं अथवा उत्पाद का तुरंत ऑडर देने पर विशेष छुट दी जाती है.
इसके अलावा रात को इनामी प्रतियोगिताएं का भी बड़ा चलन है. इन प्रतियोगिताएं में इनामी राशि 25 हज़ार से शुरू करके एक लाख तक पहुँचाया जाता है. आप यदि इन प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं तो स्क्रीन पर दिखाए नंबरों पर आप को फोन करके एक बहुत ही सामान्य पहेली का जवाब देना होता है. इन नंबरों पर फोन करने पर आपको छह रूपया प्रति कॉल अदा करना पड़ता है. इस बात का जिक्र एक बार भी पुरे विज्ञापन में नहीं किया जाता. आप यदि फोन करते हैं तो आपका फोन छः से आठ मिनट तक होल्ड पर रखा जाता है और उसके बाद आपका फोन कट जाता है. विज्ञापन के बीच-बीच में कई फोन आते हैं जो की पहेली का बेहूदा जवाब देते हैं. ये साफ़ तौर पर घटिया किस्म की धोखेबाज़ी है.
ये सरे विज्ञापन बड़ी चालाकी आम जनता में व्याप्त मिथकों और धार्मिक अंधविश्वासों का फायदा उठाते हैं. ज्योतिष के कई उत्पाद जैसे नज़र सुरक्षा कवच, महालक्ष्मी यन्त्र, लाल किताब, एक मुखी रुद्राक्ष, रशिरत्न आदि हमारे धार्मिक अंधविश्वास को पैसे के रूप में भुनाते हैं. मोटापा, रंग, कद, यौन व्यवहार आदि के बारे में जो मिथक हमारे समाज में ये उत्पाद न सिर्फ उनसे मुनाफा कमाते हैं बल्कि अपने फायदे के लिए इन मिथकों को और भी पुख्ता करते हैं. अलसुबह का समय हमारे यहाँ भक्तिमय होता है. सूरज के उगने के साथ ही टी.वी.के आमान पर कई सारे संतो-महंतों और घोंघा-बसंतों का उदय होता है. इसमे एक और बात काबिले गौर है कि अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक नेताओं कि उपस्थिति बहुत कम है. हालांकि मुस्लिम, इसाई समुदायों ने भी अपने धार्मिक चैनल खोल लिए हैं पर मुख्या धारा के चैनलों में इनकी उपस्थिति नगण्य है. खैर ये सभी बाबा हमारे धर्म भीरु समाज कि आंच में अपनी दाल गलाते हैं.
हमारे निजी चैनल इन सारे कार्यक्रमों से न सिर्फ अच्छा मुनाफा कमाते हैं साथ ही खास तौर पर धार्मिक कार्यक्रम में इनको अच्छी टी.आर.पी. भी मिल जाती है. ज्योतिष शास्त्र को मिडिया ने जो तवज्जो दी है उसका कारण भी इस प्रकार के कार्यक्रम को अच्छी टी.आर.पी. मिलाना है. निर्मल बाबा का प्रकरण इस विषय का महत्वपूर्ण घटना-विकास है. तमाम आलोचनाओं के बाद भी अगर निर्मल बाबा के समागम का प्रसारण हो रहा है तो उसके पीछे एक बड़ी साधारण गणित काम कर रही है.एक और इस प्रकार के प्रसारण से अच्छा मुनाफा मिल रहा है,वहीँ दूसरी तरफ ये कार्यक्रम अच्छी टी.आर.पी. का जरिया भी है.
मिडिया का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है विश्वसनीयता. अब इस विश्वसनीयता की विवशता के चलते हमारे चैनल स्क्रीन पर कुछ घोषणा दिखाते हैं. इससे ये अपने विश्वसनीय होने कि फ़र्ज़-अदायगी कर देते हैं. परन्तु इसमे भी ये चालाकी करने से बाज़ नहीं आते. पहला तो ये घोषणा बहुत कम समय के लिए दिखाई जाती हैं. मसलन पाँच से दस सैकंड. दूसरा इन्हें ज्यादातर अंग्रेजी में लिखा जाता है. अब भी भारत में लोग अंग्रेजी के साथ उतने सहज नहीं. और अगर कोई अंग्रेजी आसानी से समझ सकता है तो उसके लिए भी इन घोषणा को पढ़ना आसान नहीं है क्यों कि इनका फोंट साइज़ इतना छोटा होता है कि आसानी से पढ़ा न जा सके. इसके अलावा दर्शक भी इस प्रकार कि घोषणा को कोई खास तव्वजो नहीं देते.
बाजारवाद के पास न कोई तर्क है और न ही तर्क के लिए कोई जगह. फिर भी वो अपने लिए कुछ काम-चलाऊ तर्क गढ़ता है. ऐसे में ये घोषणाए दो मायने में महत्वपूर्ण हैं. एक तो वो इसकी वज़ह से कानूनी पचड़ों से मीडिया को बचाती है साथ ही विश्वसनीयता कि बहस में ये घोषणाएँ हमारे मीडिया के लिए दलील का काम करती हैं. हालांकि इन घोषणाओं का दलील कि तरह से इस्तेमाल हास्यास्पद है परन्तु दलील के नाम पर पेश करने के लिए उसके पास कुछ तो है.
(विनय सुल्तान स्वतंत्र पत्रकार हैं तथा भारतीय जन संचार संसथान, नई दिल्ली में हिंदी पत्रकारिता के छात्र रह चुके हैं.)