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भैया राम या राजा भैया: कैसी राजनीति चाहिए आज

Mar 17, 2012 | Pratirodh Bureau
बुधवार यानी 14 मार्च को बिहार के रोहतास जिले के भाकपा-माले के सचिव कॉमरेड भैयाराम यादव की अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी. वे इस वक्त 38 साल के थे. वर्ष 1986 में ही वे गरीब मजदूर-किसानों के आंदोलन से जुड़े थे और 1988 में भाकपा-माले के सदस्य बने थे. वर्ष 2007 में उन्हें भाकपा-माले रोहतास का जिला सचिव बनाया गया था और 2008 में वे पार्टी की राज्य कमेटी में चुने गए थे. 
 
उनके नेतृत्व में इस इलाके में पार्टी के कामकाज ने नर्इ उंचाइयां हासिल की थी. हत्या के वक्त वे नासरीगंज (रोहतास) में आगामी 23 मार्च को  लोकार्पित किए जाने वाली भगतसिंह की प्रतिमा स्थल पर हो रही तैयारी को देखकर लौट रहे थे. 
 
पिछले दिनों वहां सामंती ताकतों द्वारा एक नाबालिग दलित बच्ची के साथ बलात्कार व हत्या की घटना के खिलाफ भाकपा-माले ने जबर्दस्त आंदोलन चलाया था. लेकिन जिला प्रशासन ने अपराधियों पर कार्रवार्इ करने के बजाए आंदोलन का नेतृत्व करने वाले कॉमरेड भैयाराम यादव को ही गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया था, पर लंबे समय तक वे उन्हें जेल में बंद नहीं रख सके, कुछ ही दिनों बाद वे जेल से रिहा हो गए. 
 
जाहिर है कानून और पुलिस-प्रशासन के स्तर पर जो साजिश थी, उसके विफल होने की बौखलाहट में अपराधियों ने उनकी हत्या की है. 
 
यह है बिहार के सुशासन की कानून-व्यवस्था का हाल, जहां नाबालिग दलित बच्ची के साथ बलात्कार करने और उसकी हत्या करने वाले सामंती-अपराधी ताकतों का मनोबल इतना बढ़ा हुआ है कि वे एक वामपंथी पार्टी के जिला सचिव की हत्या कर डालते हैं. 
 
कहां हैं देश में दलितों और स्त्रियों के हक-अधिकार की बात करने वाले बुद्धिजीवी, जो इस या उस शासकवर्गीय पार्टी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने में ही अपनी उर्जा खपाते रहते हैं, कहां हैं सामाजिक बदलाव का दंभ भरने वाले एनजीओ और स्त्री-दलित विमर्श के तमाम ठेकेदार! कहां हैं वामपंथ के कागजी विमर्शकारी, मौकापरस्त-छिद्रान्वेषी शुभचिंतक या कूढ़मगज आलोचक! क्या इस तरह की शहादतों पर उनकी निगाह कभी जाएगी? 
 
इस घटना के अगले दिन यानी 15 मार्च को भाकपा-माले ने पूरे बिहार में इस हत्या के खिलाफ प्रतिवाद दिवस मनाया. क्या जिस मुददे पर आंदोलन के कारण का. भैयाराम को निशाना बनाया गया, वह सिर्फ भाकपा-माले का मुददा था? 
 
राजनीति का फर्क देखिए, एक ओर कॉमरेड भैयाराम की हत्या के खिलाफ भाकपा-माले पूरे बिहार में प्रतिवाद कर रही थी तब दूसरी तमाम शासकवर्गीय पार्टियां चुप थीं और उसी वक्त बगल के राज्य उत्तर प्रदेश में मीडिया में नए युवराज बताए जाने वाले अखिलेश यादव राजा भैया को अपनी सरकार का मंत्री बना रहे थे. यह वही राजा भैया है, जिस पर दर्जनों मुकदमें हैं और जिसने कवि मानबहादुर सिंह की हत्या भी करवार्इ थी. 
 
ऐसे ही कर्इ राजा भैया बिहार की सरकार में भी मौजूद हैं और ऐसे ही सामंती-अपराधी ताकतों के बल पर नीतीश बाबू का सुशासन चल रहा है. 
 
अकारण नहीं है कि नीतिश कुमार के चेहरे पर जिस तरह का घमंड मौजूद रहता है, वैसा ही घमंड अखिलेश यादव के चेहरे पर भी दिख रहा है. यह तय है कि न मायावती के आने से दलितों और स्त्रियों का उत्पीड़न रुका था, न ही अखिलेश यादव के आने से रुकेगा. 
 
बिहार में भी तो लालू-राबड़ी की सरकार के बदलने से बुनियादी तौर पर समाज और राजनीति के ढांचे में कोर्इ बदलाव नहीं आया है, बल्कि जमीनी स्तर पर स्त्रीविरोधी-दलितविरोधी ताकतों का मनोबल बढ़ा ही है. 
 
नीतिश के शासन में रूपम कांड सामने आया, जिससे उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी तक का नाम जुड़ा. लालू-राबड़ी के समय में भी सत्ता के साथ सामंती शक्तियों, अपराधियों और पुलिस के गठजोड़ के जरिए भाकपा-माले के कार्यकताओं और नेताओं की हत्या करवाने की साजिश रची जाती थी और आज भी वह कोशिश थमी नहीं है.
 
जो विद्वान लोग कभी नीतिश तो कभी अखिलेश की तारीफ में कशीदे काढ़ने लगते हैं, उन्हें एक बार फिर सोचना चाहिए कि क्या राजा भैया सरीखे लोगों के बल पर राज करने वाले समाज की बुनियादी समस्याओं और विषमता को समाप्त करेंगे या भैया राम जैसे लोग. 
 
भैया राम की पत्नी कॉमरेड उषा देवी, आठ साल व पांच साल की उनकी बेटियां और उनके कॉमरेडों का सवाल पूरे समाज और देश से है. बेशक कॉमरेड भैया राम उस राह के राही थे, जहां शहादतों के बाद भी संघर्ष और प्रतिरोध का कारवां थमता नहीं. 
 
कभी वे भी अपने इलाके के एक नौजवान नेता कॉमरेड मणि सिंह की शहादत के बाद ही उनके अधूरे कार्यों को आगे बढ़ाने के संकल्प के साथ भाकपा-माले से जुड़े थे. आज उनके कामरेड उनकी हत्या का जवाब सुशासन बाबू और उनके प्रशासन से मांग रहे हैं. 17 को शाहाबाद क्षेत्र के चारों जिलों- रोहतास, भोजपुर, कैमूर और बक्सर में भाकपा-माले ने बंद का आहवान किया है और इसी रोज इस हत्या के खिलाफ दिल्ली के जंतर-मंतर पर भी प्रदर्शन किया जाएगा. 
 
यह तो तय है कि देर-सबेर जनता कायरतापूर्ण तरीके से की गर्इ इस हत्या का जवाब दे ही देगी, पर यह सवाल तो बार-बार उठ ही रहा है कि अन्याय और विषमता का साथ देने वाली सरकारों और उनके इस तंत्र को कब तक बर्दाश्त किया जाएगा! 
 
कब तक सोनी सोढ़ी जैसी महिला के साथ अमानुषिक अत्याचार करने वाला पुलिस आफिसर पदमश्री से सम्मानित किया जाएगा, कब तक किसी गैरतमंद पुलिसकर्मी को राजा भैया या सुनील पांडेय जैसे अपराधियों की चाकरी बजानी होगी? कब तक नरेंद्र कुमार जैसे किसी पुलिस अफसर को किसी माफिया के हाथों मरना होगा? किसी नाबालिग दलित लड़की के साथ बलात्कार करने और उसकी हत्या करने वाले कब तक बचते रहेंगे और कब तक उसके प्रतिरोध में होने वाले आंदोलन का नेतृत्व करनेवाले की गिरफतारी और हत्या होती रहेगी?

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