यकीनन बाबा रामदेव बड़ी शख्सियत हैं. पर विवादित हैं. एक साल में उन्होंने बहुत कुछ खोया है. उनका आर्थिक साम्राज्य प्रभावित हुआ है. किसानों की जमीन हड़पने और टैक्स चोरी के आरोप भी उन पर लगे हैं. उनके तमाम सहयोगियों पर ऊंगली उठ रही है. कई चुनौतियों का वे सामना कर रहे हैं. लेकिन अभी हार मानते नहीं दिख रहे हैं. उन्होंने एक साथ कई मोर्चे खोले हुए हैं. ये मोर्चे राजनीति से लेकर व्यापार तक फैले हैं. बाबा भगवे रूप में कारोबारी हैं और सत्ता पर छा जाने को आतुर दिखते हैं. बाबा अस्थिर चित्त भी दिख रहे हैं. एक तरफ वे संघ से शब्द उधार लेकर वैभवशाली-गौरवशाली-अखंड भारत की बात कहते हैं तो दूसरी ओर मुस्लिमों के लिए आरक्षण का नारा बुलंद करने लगते हैं. बाबा के रुख-रवैये को लेकर तो यही लगता है विवाद जल्द उनका पीछा नहीं छोड़ेंगे. यूं भी कह सकते हैं कि विवादों में उनकी उर्जा छिपी है और ये विवाद प्रचार पाने का जरिया भी हैं.
ग्रामीणों की जमीन कब्जाई
बाबा और उनके सहयोगियों पर ग्रामीणों की जमीनें हथियाने का आरोप है. हरिद्वार-रुड़की के बीच जिस जगह पर पतंजलि विद्यापीठ है, एक दशक पहले तक यह इलाका सामान्य खेतिहर क्षेत्र था. लेकिन योगपीठ और विद्यापीठ बनने के बाद यह व्यावसायिक इलाके में तब्दील हो गया. शुरू में किसानों ने नाममात्र की कीमत पर अपनी जमीनें दे दीं लेकिन जब यहां जमीन के भाव करोड़ों में पहुंचे तो किसानों की नींद खुली. बिकी जमीन तो वापस नहीं मिल सकती थी लेकिन उन्हें पता चला कि बाबा और उनके सहयोगियों ने पंचायत और सरकारी जमीन को भी अपनी संपत्ति मान लिया था. बीते साल दिल्ली के रामलीला कांड से पहले तक बाबा की ताकत के सामने किसी आम किसान या ग्रामीण की हैसियत नहीं थी कि वह आवाज उठाए लेकिन दिल्ली में बाबा की दुर्गति के बाद से किसान मुखर हुए और रामदेव के ट्रस्ट को विवाद टालने के लिए किसानों से समझौता करना पड़ा. झगड़े अब भी जारी हैं और जल्दी खत्म भी नहीं होंगे. वजह किसानों ने जो जमीन एक लाख रुपये बीघा या उससे भी कम पर बेची थी, अब उसकी कीमत करोड़ या उससे भी ज्यादा है.
सरकारी जमीन पर निगाह
योगपीठ के आसपास बड़े क्षेत्रफल में सरकारी जमीन मौजूद है. इसमें नदी का कैचमेंट एरिया भी है. कई साल से बाबा के हमराहों की निगाह इस जमीन पर लगी हुई है. इसके लिए उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह सर्किल रेट पर उक्त जमीन ट्रस्ट को दे दे. तब यहां जमीन का सर्किल रेट 10 हजार रुपये बीघा से भी कम था. बाबा ने सरकार से कई सौ बीघा जमीन मांगी थी लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी शायद रामदेव की मंशा से वाकिफ हो गए थे इसलिए उन्होंने इस मांग को खारिज कर दिया. अगर यह जमीन मिली होती तो रामदेव मंडली इस पर फ्लैट खड़े करके या इसे कारोबारी रूप से विकसित करके इसे भी करोड़ों की संपत्ति में तब्दील कर चुके होती.
विवादित आचार्य
रामदेव की दुर्गति अपने सहयोगी आचार्य बालकृष्ण की वजह से भी हुई है. उनके खिलाफ नागरिकता और पासपोर्ट को लेकर जांच चल रही है. संदेह है कि वे नेपाली नागरिक हैं और उन्होंने तथ्यों को छिपाकर भारत से पासपोर्ट हासिल किया है. यह मामला अब सीबीआई के पास है. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो आचार्य पर और भी गंभीर आरोप लगाए थे. फिलहाल बालकृष्ण रामदेव की ज्यादातर कंपनियों में सीईओ, एमडी, सीएमडी या निदेशक की भूमिका संभाल रहे हैं. साथ ही विवादों से पार पाने की जुगत में भी जुटे हैं.
असली डिग्री नकली डिग्री
सफलता अपने साथ कई चुनौतियां और मुसीबतें भी लेकर आती हैं. बाबा और आचार्य के साथ यहीं हुआ है. पहला सवाल बाबा की डिग्रियों को लेकर उठा. इस विवाद के दबने से पहले ही आचार्य बालकृष्ण की डिग्री फर्जी होने का मामला सामने आ गया. आचार्य ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर होने की बात कही लेकिन जांच में पता चला कि कई स्तरों पर फर्जीवाड़ा हुआ. आचार्य यूं तो रामदेव द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय के कुलपति हैं लेकिन अभी अपनी डिग्रियों पर ही सफाई देते घूम रहे हैं. प्रारंभिक जांच में यह बात तो तय हो गई है कि आचार्य की डिग्री संदिग्ध है.
भाई और बहनोई
प्रियजनों के बिना बाबा रामदेव की गाड़ी आगे नहीं बढ़ती. जब तक उनके गुरु शंकरदेव मौजूद थे तब तक उनके सहपाठी और ब्रह्मचारी ही उनके परिजन थे लेकिन जैसे ही बाबा ने अपना कारोबार फैलाना आरंभ किया तो उनके असली परिजन हरियाणा से निकलकर हरिद्वार पहुंच गए. इनमें दो नाम प्रमुख हैं. एक हैं- उनके भाई रामभरत यादव और दूसरे उनके बहनाई यशवीर शास्त्री.
बड़े फैसलों में इन्हीं की भूमिका निर्णायक होती है. खासतौर से खरीद-फरोख्त से संबंधित कार्यों में बाबा के परिजन ही मुख्य भूमिका निभाते हैं. अब तो बाबा की मां और उनकी बहन भी उनके मंचों पर बैठे दिखते हैं. अन्य परिजन और रिश्तेदार भी बाबा रामदेव की विभिन्न परियोजनाओं के साथ जुड़े हैं.
निजी सेना पर सवाल
दिल्ली में धक्का खाने के बाद रामदेव ने हरिद्वार लौटने पर ऐलान किया था कि वे 11 हजार युवाओं की सेना बनाएंगे. बाबा के बयान के बाद जब केंद्र ने कड़ा रुख अपनाया तो उन्होंने सफाई दी कि वे युवाओं को स्वरक्षा के लिए प्रशिक्षित करेंगे. कुछ महीने की खामोशी के बाद बाबा ने इस मुहिम को अमलीजामा पहनाना आरंभ किया है. विभिन्न शिविरों के जरिये ऐसे युवाओं को चिह्नित किया गया जो इस 11 हजारी सेना का हिस्सा बनेंगे. बताया गया है कि इन युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए किरण बेदी की मदद भी ली जा रही है. इस कार्य के लिए वे अप्रैल में पतंजलि विद्यापीठ आ चुकी हैं. सूत्रों का कहना है कि अब तक तीन हजार से अधिक युवाओं ने इस निजी सेना के लिए खुद को पंजीकृत कराया है. इस प्रशिक्षण को फिलहाल गोपनीय रखा गया है ताकि वजूद में आने से पहले इस पर कोई बड़ा विवाद खड़ा न हो. बाबा की इस सेना को आंदोलन के दौरान कार्यकर्ताओं की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया है. साथ ही इस बात के लिए भी ट्रेंड किया गया है कि रामलीला कांड जैसी स्थिति आने पर किस प्रकार मुकाबला किया जाए.
इसे कहते हैं चमत्कार
हरिद्वार में एक-दो नहीं हजारों ऐसे लोग मिल जाएंगे जिन्होंने 20 साल बाबा रामदेव को टूटी हुई साइकिल पर शहर में घूमते-फिरते देखा है. वे आश्रम की सूचनाएं-विज्ञप्तियां भी अखबार के दफ्तरों तक खुद पहुंचाते थे. भंडारे के लिए कढ़ाई-चमचे इकट्ठे करते घूमा करते थे लेकिन अब सब कुछ बदल गया है. बाबा हवाई जहाज में चलते हैं. न केवल बाबा वरन उनकी मंडली के एक दर्जन से अधिक सदस्य अब जहाज में देश-दुनिया का चक्कर लगाते हैं. बाबा और उनकी मंडली के पास अब कारों का काफिला है और इस काफिले की सबसे सस्ती कार स्कोडा है. बाबा के पास अपना चैनल है. स्कॉटलैंड में द्वीप है और पतंजलि विद्यापीठ में एक बार में एक लाख से ज्यादा लोगों के ठहराने का विशाल इंतजाम है. यकीनन बाबा की तरक्की चमत्कार से कम नहीं है. चमत्कार की शुरुआत 1994 से हुई और कुछ ही सालों में हर तरफ इसकी झलक दिखने लगी. देखते-देखते दिव्य योग मंदिर, पतंजलि योगपीठ, भारत स्वाभिमान, आचार्यकुल शिक्षा संस्थान जैसे ट्रस्टों के जरिये करोड़ों का कारोबार होने लगा.
बाबा ने उत्तराखंड में प्राइवेट यूनिवर्सिटी भी बना ली. ऐसी ही एक यूनिवर्सिटी मध्य प्रदेश में स्थापित करने पर भी सहमति बन गई. अमेरिका के ह्यूस्टन समेत कई देशों में उनकी योगपीठ स्थापित है. मेगा फूड पार्क से लेकर दवाओं के कारोबार के जरिये बाबा ने धूम मचाई लेकिन रामलीला कांड के बाद सब गुड़-गोबर हो गया. बाबा को मजबूरी में अपनी संपत्ति का ऐलान करना पड़ा. तब पता चला कि बाबा ने 15 साल में करीब 1200 करोड़ रुपये कमाए हैं. इस दौरान उन्होंने 250 करोड़ रुपये चैरिटी पर भी खर्च किए. संपत्ति के ऐलान के वक्त रामदेव ने बहुत सारे सवालों को टाल दिया. इस ब्योरे को वैसा ही माना गया जैसा कि करोड़ों की हैसियत वाले नेता चुनाव आयोग को दिए जाने वाले ब्योरे में खुद को महज कुछ सौ रुपये का मालिक करार देते हैं. बाजार मूल्य के लिहाज से देखें तो पतजंलि विद्यापीठ के विभिन्न फेजों की कीमत बाबा द्वारा बताई गई कुल संपत्ति से कहीं अधिक है.
बताया जा रहा है कि बाबा के पास 50 हजार करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है. संभव है कि 50 हजार करोड़ का अनुमान अतिशयोक्तिपूर्ण हो लेकिन 1200 करोड़ की बात भी सच से कोसों दूर है. संपत्ति को लेकर विवाद के पीछे दो बड़ी वजहें हैं- बाबा ने भगवे बाने में यह संपत्ति कमाई है और दूसरे वे खुद को नीतिपुरुष के तौर पर प्रस्तुत करते हैं. यदि वे एक सामान्य कारोबारी की तरह पैसा कमाते और टैक्स चुराने के आरोपों के घेरे में ना होते तो न सवाल खड़े होते और न ही बाबा के लिए कटघरा तैयार होता.
बाबा को एक बार फिर 58 करोड़ के टैक्स का नोटिस दिया गया है. वे इसे साजिश बता रहे हैं. पिछले दिनों उनकी कंपनी के दवाओं के कुछ ऐसे ट्रक पकड़े गए थे जिन के पास जरूरी कागज नहीं थे. तब भी बाबा के सहयोगी आचार्य ने सरकार पर खुद को उत्पीड़ित करने का आरोप लगाया था. सारे सवाल इस बात पर टिके हैं कि संन्यासी ने साम्राज्य खड़ा कर लिया है. ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि काले धन के खिलाफ देश भर में मुहिम चलाने वाले बाबा के कारोबार पर टैक्स संबंधी कई जांच चल रही हैं. बाबा और उनकी मंडली इसे उत्पीड़न बता रही है. संभव है कि ये उत्पीड़न हो लेकिन कारोबार के लिए ऐसा उत्पीड़न तो अनेक उद्यमी सहते हैं लेकिन उनमें से कोई भी खुद को नैतिकता का पहरुआ नहीं बताता.
नोट हैं तो पधारें योगपीठ
पंतजलि योगपीठ देश के सबसे महंगे आश्रमों में से एक है. शिविर में खाना और कमरे का किराया, सामान की कीमत कुछ ऐसी है कि एक बार सुनकर सिर चकरा जाए. बाबा प्राइवेट कंपनियों की प्रचार-नीति पर ही काम करते हैं. वे प्रचार माध्यमों पर अपने सबसे सस्ते उत्पाद की कीमत बताते हैं और सबसे महंगा उत्पाद ग्राहक के सामने प्रस्तुत करते हैं. तुलना के लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है. अगर आपकी जेब में 500 रुपये हैं और आप शांति कुंज में नौ दिवसीय शिविर करना चाहते हैं तो रहने-खाने से दवा और योग आदि पर खर्च करने के बाद भी जेब खाली नहीं होगी लेकिन पतंजलि विद्यापीठ में दस गुनी अधिक राशि की जरूरत पड़ेगी. रामदेव के यहां सदस्यता राशि पांच लाख तक है. योगपीठ में स्थायी ठिकाना बनाने के लिए भी कम से कम पांच लाख खर्चने पड़ते हैं. खैर बाबा अपना कारोबार चला रहे हैं, चमका रहे हैं, आफतों को अवसरों में तब्दील करने की कोशिश में जुटे हैं.
कुछ और सवाल
कुछ ऐसे सवाल यथार्थ में बाबा को परेशान करते हैं जिनका वे सपने में भी सामना नहीं करना चाहते. मसलन योगऋषि कहे जाने वाले रामदेव का शरीर रामलीला कांड के बाद एक सप्ताह के अनशन में ही मरणासन्न क्यों हो गया था जबकि उनसे कहीं ज्यादा कमजोर और बुजुर्ग अन्ना के साथ ऐसा नहीं हुआ. मरणासन्न स्थिति में आने के बाद वे योग और आयुर्वेद के बल पर ठीक क्यों नहीं हुए. उन्हें एलोपैथिक मेडिकल कॉलेज में भर्ती क्यों कराया गया और अंग्रेजी दवाओं का सहारा क्यों लेना पड़ा. इसी तरह बाबा के सहयोगी राजीव दीक्षित की भी हार्ट अटैक से मौत हुई. वे लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा और जड़ी-बूटियों का पाठ पढ़ाते रहे लेकिन खुद की सेहत नहीं संवार पाए और न जान बचा सके.
अंधविश्वास को लेकर बाजार की कारोबारी रणनीति तक पर सवाल उठाने वाले बाबा आखिर तेजस क्रीम और स्त्री सौंदर्य को निखारने के नुस्खों के विज्ञापनों में खुद को दिखाकर क्या साबित करना चाहते हैं. देश के युवाओं में कुर्बानी का जज्बा भरने वाले बाबा को दिल्ली से महिलाओं के कपड़े पहनकर क्यों भागना पड़ा. ये तमाम ऐसे सवाल हैं जिनके उठते ही बाबा आग बबूला हो जाते हैं और उनके समर्थक सवाल उठाने वाले को अधमरा करने में देर नहीं लगाते. इसका ताजा मामला भिंड में सामने आ चुका है जब आशुतोष परिहार नाम के युवक को अधमरा किया गया.
कौन हैं बाबा के सलाहकार
पतंजलि योगपीठ की स्थापना में बाबा और आचार्य के अलावा स्वामी कर्मवीर कमला साध्वी, जीवराज पटेल, भूपेंद्र ठक्कर ने मुख्य भूमिका निभाई थी लेकिन अब पुराने लोगों में ज्यादातर अलग हो चुके हैं या किनारे किए जा चुके हैं. इनकी जगह नए लोगों ने ले ली है. पुराने लोगों की विदाई के बाद राजीव दीक्षित बाबा के सबसे विश्वस्त सलाहकार थे लेकिन उनकी मौत के बाद एक रिक्तता आ गई. राजीव दीक्षित आंकड़ों के बाजीगर थे. उन्होंने ही बाबा को विदेशों में कई लाख करोड़ डॉलर जमा होने के आंकड़ें रटवाए. नए सलाहकारों में परिजनों के अलावा पुराने संघी गोविंदचार्य का नाम प्रमुखता से उभरा है. इनके अलावा वे श्रीश्री रविशंकर से भी मशविरा करते हैं. कुछ एनजीओछाप गांधीवादी भी उनके साथ हैं. वैसे संघ के पुरोधाओं का भी विद्यापीठ में आना-जाना बढ़ रहा है. लेकिन संघ और हिंदूवादी नेता मुस्लिमों को आरक्षण संबंधी रामदेव के बयान से नाखुश हैं.
गुरु को लेकर बड़ा सवाल
रामदेव के गुरु शंकरदेव का गायब होना आज भी रहस्य है. आज तक उनका कुछ पता नहीं चला है. आरोप लगा कि उनके गायब होने के पीछे ट्रस्ट की संपत्ति पर कब्जा करने वालों का हाथ है. इस ट्रस्ट की संपत्ति बाद में रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण के नियंत्रण में आई. अब रामदेव को लेकर जब भी कोई विवाद खड़ा होता है तो उनके गुरु शंकरदेव का नाम चर्चा में जरूर आता है.
दवाओं में जीव-अवशेष
उनके द्वारा बनाई जाने वाली दवाओं में जीव-अवशेषों को मिलाने को लेकर विवाद खड़ा हुआ. इसे माकपा सांसद वृंदा करात ने उठाया. इसमें रामदेव के कर्मचारियों की ओर से उन पर गंभीर आरोप लगाए गए. कर्मचारियों को नौकरी गंवानी पड़ी. मामला कोर्ट तक पहुंचा. कोर्ट ने कर्मचारियों को राहत दी लेकिन उन्हें दोबारा नौकरी नहीं मिली है. दवाओं में जीव अवशेषों का मामला दबा जरूर है लेकिन खत्म नहीं हुआ है.