बातचीत की संभावनाओं का एन्काउंटर है ये
Nov 30, 2011 | Pratirodh Bureauसरकारी दावा इसे एन्काउंटर कहता है. सच मगर कुछ और कहता है. सच यह है कि देश में शायद ही कोई व्यक्ति एनकाउंटर में मारा जाता है. एन्काउंटर कोल्ड ब्लडड मर्डर का सरकारी वर्जन है. फिर, किशनजी जैसे माओवादी नेता के बारे में तो यह संदेह और भी गहरा जाता है जब परिजन और समर्थक सच की तस्वीरें सामने रख देते हैं.
पुलिस का दावा कहता है कि माओवादी नेता कोटेश्वर राव यानी किशनजी गुरुवार को पश्चिम बंगाल में बॉरीशाल के जंगल में एक पुलिस मुठभेड़ में मारे गए. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट कहती है कि एक गोली 500 मीटर की दूरी से लगी है. शरीर में छह गोलियां लगी हैं जो कि सभी महत्वपूर्ण हिस्सों में लगी हैं. जबड़ा, सिर, सीना गोलियों से छलनी कर दिया गया है.
पर परिवार के सदस्य, उनकी मां और भतीजी से सीधे आरोप लगाए हैं कि यह फ़र्जी मुठभेड़ का मामला है. परिजन और क्रांतिकारी कवि वरवरा राव इसे हत्या करार दे रहे हैं. उनका कहना है कि किशनजी को पुलिस ने पकड़कर, यातनाएं देकर मारा है. यह मामला पुलिस हिरासत में हत्या का है, न कि एन्काउंटर का. पोस्टमार्टम के दौरान परिजनों ने कुछ तस्वीरें भी खींची हैं जो साफ साफ दर्शाती हैं कि शरीर पर कितने और कैसे ज़ख्म हैं. यह प्रताड़ना और बर्बरता पूर्वक हत्या की चुगली करते हैं.
इस कथित एन्काउंटर को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं जिनका जवाब न तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट के पास है और न ही मुठभेड़ में शामिल रहे सुरक्षाकर्मियों के पास.

500 मीटर की दूरी से लगी गोली किशन जी के शरीर को छूने वाली पहली गोली थी, इस बात की क्या गारंटी है. क्या यह संभव नहीं है कि हत्या के दौरान गोलियां मारने के सिलसिले में एक गोली दूर से मारी गई हो.
गोलियां जिस तरह से शरीर को भेद कर जाती दिखाई दे रही हैं, वो पास से गोली मारे जाने का अंदेशा जाहिर करती हैं. दूर से लगी राइफल की गोली जब शरीर को चीरकर बाहर निकलती है तो मांस का एक बड़ा हिस्सा अपने साथ खींच ले जाती है. तस्वीरों से दिखता है कि गोली पास से मारी गई हैं इसलिए ज़ख्म गहरे हैं पर फैले हुए नहीं.
शरीर पर जगह जगह चोट के निशान हैं. इससे यातनाओं का संदेह पुख्ता होता है. हालांकि सरकार बार-बार मीडिया में ऐसी ख़बरें प्रसारित करवा रही है कि किशनजी के शरीर पर चोट के अतिरिक्त निशान कतई नहीं हैं. कुछ मुख्यधारा के समाचारपत्रों ने इसी बड़ी प्रमुखता से छापा भी है.
एन्काउंटर को लेकर जो संदेह लोगों के मन में हैं, उसका जवाब दे पाने में सरकार असमर्थ दिखाई दे रही है. चिंताजनक यह है कि इससे सरकार को हासिल कम, नुकसान ज़्यादा होगा.
माओवादी नेता चेरुकुरी आज़ाद के एन्काउंटर के मामले को ही याद कीजिए. किशनजी की तरह उनसे भी बातचीत की कोशिशें की जा रही थीं. जब बात बनती नज़र आ रही थी, तभी उनका एन्काउंटर हो गया. ऐसा क्यों हो रहा है कि सरकार जिससे बात करना चाहती है, वो पुलिस मुठभेड़ में मारा जाता है.
आज़ाद के मामले में तो उनकी मां से हत्या के कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर अपने बेटे यानी आज़ाद के फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने का अंदेशा जाहिर किया था. उन्होंने स्पष्ट लिखा था कि पुलिस उनके बेटे को फर्जी मुठभेड़ में मारने की कोशिश कर रही है. और वही हुआ, आज़ाद और पत्रकार हेमचंद्र की हत्या कर दी गई और उसे मुठभेड़ का नाम दे दिया गया.

आज़ाद के बाद अब किशनजी के फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने की घटना को सरका भले ही एक बड़ी उपलब्धि बताए पर इससे बातचीत के लिए आगे के रास्तों को सरकार ने खुद ही बंद कर लिया है. प्रतिक्रिया में माओवादियों की ओर से होने वाली हिंसा और सरकार की उनसे निपटने के नाम पर की जाने वाली प्रतिहिंसा से सबसे ज़्यादा आम आदमी प्रभावित होगा.
अफसोस, कि आम आदमी की सुरक्षा के नाम पर हद तक अलोकतांत्रिक हो चली सरकार अपने हाथ आम लोगों के खून से रंगती जा रही है. ताज़ा घटना सुलह और बातचीत की संभावना का एन्काउंटर करने जैसा है.