नाच न आवै, आंगन टेढ़ा
Dec 29, 2011 | Panini Anandयार कमाल हो गया. ये कम्बख़्त मुंबई वाले भी न. अरे 26/11 के बाद तो बहुत सारे दिखे थे गेटवे ऑफ़ इंडिया के पास. मुझे तो लगा था कि दिल्ली से ज़्यादा सक्सेजफुल होगा पर… सैड. न नार्थ इंडियंस और न नेटिव्स. सबने गच्चा दे दिया. अपन समझ रहे थे कि राप्चिक भीड़ होगा पर डिच कर दिया. अन्ना को डिच किया. गॉड… कलयुग आ गया है. कोई उसूल ही नहीं रहा. आखा मुंबई इच इतना भी लोग नहीं मिला कि एक मैदान भर सके. बताओ तो.
असल में इस शहर में ही प्रोब्लम है. सब के सब मतलबी. कोई बिना पैसे के टाइम ही नहीं देना चाहता. लाइटमैन से लेकर स्पॉटब्वॉय तक या राज ठाकरे से लेकर शोभा डे तक… सब के सब मतलबी हैं. देखो न… आए ही नहीं. हमें तो लगा था कि क्वीन-बी जैसे अपने अन्ना के लिए टूट ही पड़ेंगे. पता होता तो छोटा मैदान लेते बॉस. मीडिया वालों ने क्रेन खूब चलाईं पर भीड़ साबित नहीं कर पाए. और ये फोटोग्राफर्स भी. अरे, क्या ज़रूरत थी कि आपपास की उंची इमारतों की छत से फोटो खींचो. पूरे मैदान को एक्पोज़ कर दिया. अरे, दिखाना था तो क्या इन सिटू इमेजेज़ कम थीं. पर इनको भी न. बंदर. अरे कवर पेज पर छाप दिया कि शाम को साढ़े पांच बजे वैरी स्मॉल क्राउड.
अपने साथ बहुत धोखा हुआ. नहीं, हमें धोखा दिया गया. क्या शहर है यार. इतने लोग तो रोज़ दिल्ली हाट में चाट खाने आते हैं. गफ्फार मार्केट में मोबाइल रिपेयर कराते हैं. अरे इतने लोग तो सरोजनी नगर में और लाजपत मार्केट में रोज़ होते हैं यार. अगर रामलीला मैदान में लकड़ी वगैरह जलवा देते तो वहाँ भी सर्दी के बावजूद लोग आ जाते पर मुंबई तो…. हुह. सच्ची, दिल्ली दिलवालों की है. और मुंबई मतलब वालों की. आए ही नहीं भाईसाहब, अरे अपना नहीं तो कम से कम शहर का, राज ठाकरे का, अन्ना का लिहाज रखने आ जाते. हमने कितना म्यूज़िक, कार्पेट, साउंड और स्पेस दिया था. फिर भी.
पर यार मुंबई में भी तो लोग रोज़ कई जगहों पर जाते हैं. यहाँ भी आ सकते थे. इससे ज़्यादा तो रोज़ हाजी अली को सलाम करते हैं, विनायक को मत्था टिकाते हैं, जूहू और मरीन ड्राइव पर होते हैं. शराबियों का शहर है अन्ना ये. इससे ज्यादा तो शराब पी रहे होंगे अपने अनशन के दौरान किसी पब या क्लब में बैठकर. कोई नहीं आया. इतना अच्छा मौसम, इतना अच्छा इंतज़ाम… कैप्स, कैंडल्स, कैलेंडर्स, कैनवास, कैमरा, क्रू, कुकीज़… ऐवरीथिंग. फिर भी.
यार आमिर खान, ओम पुरी, अनुपम खेर, कैलाश खेर… कितने ही नाम हैं जो अपने साथ थे. इन्होंने भी नहीं भेजा. लगता है महेश भट्ट ने ही एंटी-अन्ना कैम्पेन चलाई होगी. देखो न कैसे पीठ खुजा-खुजाकर सारे चैनलों पर हमारी आलोचना करता था.
ये जेल वाला आइडिया भी ड्राप करने में ही समझदारी है. यार लाख से ज़्यादा रजिस्ट्रेशन दिख रहे हैं ऑनलाइन पर कितने ही लोगों ने तो ऐवंई कर दिया है. कोई बता रहा था कि उसने अपनी पत्नी, बॉस और दिवंगत पड़ोसी को भी जेल जाने के लिए पंजीकृत करा दिया है. अब ये लोग तो आने से रहे. केवल अपन किसी जेल में जाकर क्या करेंगे. सड़कों पर लोग हों तभी तो जेल भरो हो सकता है. लीव इट.
मुंबई वाज़ सैड. नेक्स्ट टाइम हम नार्थ में चलेंगे. मे बी, वी गो टू पटना. वहां बहुत बेरोज़गार हैं यार. खाली बेकार… और जो खाली नहीं भी हैं, राजनीति ज़रूर करते हैं. वहाँ चलेंगे. पर प्रॉब्लम यह है कि नीतीश की तारीफ की थी. उसके राज्य के सवाल भी उठने लगे तो. वो तो अपना भला आदमी है. दोस्त है. मॉडल सीएम है. नहीं… नहीं… ड्रॉप पटना आइडिया.
हाँ, लैट्स प्लान समथिंग फॉर यूपी मैन. वो आंगन लिपा पुता तैयार है. वहाँ अपन नाच सकते हैं. यहाँ तो आंगन टेढ़ा है. मायावती… दैट वुमन. नो वन लाइक्स हर. स्पेशली इन मीडिया. इलेक्शन का टाइम है दोस्तों. एवर वन इज़ चार्जड. लैट्स गो. पैक अप. लाइट्स ऑफ़.