नरेंद्र मोदी की भाषा बांटने वाली है
Jan 16, 2012 | नारायण बारेठ33 सूबों और केंद्र शासित राज्यों में बंटी इस देश की धरती ने कभी फर्क नही किया कि कौन दूध का उत्पादक है और कौन ज्यादा गेहूँ पैदा करता है. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब जयपुर आकर प्रवासी भारतीय दिवस जलसे में मेजबान राज्य राजस्थान पर तंज कसा तो लगा उन्हें बहुत अभिमान है. राजस्थान और गुजरात दोनों भारत के सरहदी राज्य है. एक दूध और उद्यम में अग्रणी है तो दूसरे की आंखे है इस मुल्क की सरहदों की निगहबान.
कुदरत ने जब अपनी नियामत का बंटवारा किया तो राजथान आते आते उसके हाथ तंग हो गए. लिहाजा प्रकृति ने राजस्थान के भाल पर भारत के भू भाग के दस फीसद का तिलक कर दिया. इस बड़े क्षेत्रफल ने राजस्थान को भारत के सबसे बड़े राज्य के ख़िताब से नवाज दिया. मगर जल संसाधन में राजस्थान को देश की महज एक फीसद जलराशि ही नसीब हुई.
राजस्थान ने इन्हीं अभावों में अपनी किस्मत को संवारा और कभी अपनी बेबसी का रोना नहीं रोया. ऐसे में मोदी राजस्थान का दुरूह प्राकृतिक हालत का मजाक उड़ाते है तो ठीक नहीं है.
इन दुःख अभावों के बीच राजस्थान ने अपने चेहरे पर खुद्दारी और वतन परस्ती के भावों को बसेरा दिया और हमेशा अपने बेटों को मुल्क हिफाजत के लिए सनद रखा. हमने कभी अपनी शहादत का हिसाब किताब नहीं किया. कारगिल में जब पड़ोसी पाकिस्तान ने हमला किया तो वतन पर मर मिटने वालों में इस रेगिस्तानी भू भाग के लाडलों का नाम सिरे फेहरिस्त रहा.
हमने कभी नहीं पूछा कि किस सूबे ने कितने लोग कुर्बान किये. कारगिल जंग के दौर में राजस्थान ने अपने 67 बेटे न्योछावर किये. अब भी हर माह गाहे-बगाहे सरहद पर कोई न कोई अपने प्राण देता रहा है.
अगर कोई मुल्क में पुर सुकून और सुरक्षित माहौल में गुजरात का दूध पी रहा है, या राजस्थान के बने रसगुल्ले से मुह मीठा कर रहा है या नागपुर के संतरो का रसपान कर रहा है तो इसलिए कि सीमा पर किसी किसान के बेटा सीना ताने खड़ा है. इसलिये किसी सूबे के अभावों का ऐसा मखौल नहीं उड़ाना चाहिए.
नियति ने राजस्थान ने गुजरात की तरह 1,600 लम्बा सागर तट नहीं दिया, कुदरत ने इस राज्य को गुजरात की तरह चालीस से ज्यादा बंदरगाह नहीं दिए. गुजरात को प्रकृति ने नर्मदा, साबरमती और ताप्ति जैसी नदियां दी मगर हम पर नियति ने ऐसी मेहरबानी नहीं की. हमने तो विशाल थार रेगिस्तान से भी दोस्ताना किया और अपनी किस्मत की इबारत उड़ती हुई धुल पर ऐसे लिखी गोया वो सोने की लिखावट हो.
इन अभावों के बीच राजस्थान भारत के दुग्ध उत्पादन में दस फीसद का योगदान करता है. वो उन का भारत में सबसे बड़ा उत्पादक है. राज्यों की क्षत्रप अगर ऐसे भाषा बोलने लगे तो कोई अच्छी तस्वीर नहीं बनेगी. कल कोई कहेगा कि उनके यहाँ दरिया गंगा है, उनके यहाँ हिमालय है तो किसी को अपने लोह अयस्क पर अभिमान होगा. दरसल इस जेहनियत में एक गरूर झलकता है. ये इंसानियत को जोड़ने का पैगाम नहीं देती.
गुजरात और उसकी दुग्ध की श्वेत क्रांति में केरल के वर्गीज कुरियन का अहम योगदान है. सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ता हमारा तो उस तासीर का बना है जिसने अपने पड़ोसियों को भी कभी अपने अहसानों की गिनती नहीं करवाई. फिर ये कैसी सियासत है जो भाइयो के बीच कभी मजहब को लेकर तो कभी जुबान जाति और इलाके को लेकर इंसानियत को बांटने की कोशिश करती है.