टीम अन्नाः कोर कमेटी या चोर कमेटी?
Nov 17, 2011 | भंवर मेघवंशीअन्ना हजारे के सहयोगी विश्वसनीयता के संकट से गुजर रहे हैं. अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को चला रही कोर कमेटी के सदस्यों पर दिन-प्रतिदिन लग रहे वित्तीय अनियमतिताओं के आरोपों के चलते रिटायर्ड जजों की एक कमेटी बनाकर जांच करवाने का फैसला किया गया है. अजीब बात है कि जिन पर आरोप लग रहे हैं, वे ही तय कर रहे हैं कि कौन उनकी जांच करेंगे.
इस सर्कस की सबसे बड़ी विशेषता भी यही है कि सब कुछ ये लोग 120 करोड़ जनता के नाम खुद ही कर लेते हैं. जैसे कि इन्होंने एक अत्यंत अव्यवहारिक और संविधान से भी ऊपर का भस्मासुर बनाया है जिसका नाम जनलोकपाल रखा और अब अपने इस प्रोडक्ट को सर्वश्रेष्ठ बता-बता कर मार्केट में बेचते फिर रहे हैं.
इनकी मांग यह है कि इन्होंने अपनी मनमर्जी से जो जनलोकपाल अधिनियम बनाया है उसे अक्षरश: शीतकालीन सत्र में पारित कर दिया जाए अन्यथा वे सत्तारूढ़ कांग्रेस को धूल में मिला देंगे. इस अभियान को चलाने के लिए उन्होंने एनएसी की तर्ज पर आर्इएसी बनाया. अब सुनते हैं कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अंदर जन शब्द जोड़कर राष्ट्रीय जन सलाहकार परिषद भी बनाने जा रहे हैं, जैसे कि जन जन पाल (जनलोकपाल) इन्होंने बनाया, अब इनको भला कौन समझाए कि जब जन लिख दिया तो लोक लिखने की क्या जरूरत है? पर ये कोर कमेटी जो न करे वह थोड़ा ही है.
इन दिनों यह कोर कमेटी आर्थिक अनियमितताओं के आरोपों से जूझ रही है, नैतिकता और र्इमानदारी के घोड़े पर सवार होकर भ्रष्टाचार को भगाने निकले इन शूरवीरों की कोर कमेटी के वर्किंग ग्रुप के लगभग सभी सदस्य आरोपों के घेरे में हैं.
खुद हजारे का हिंद स्वराज ट्रस्ट भी देश के उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पीबी सावंत द्वारा आरोपित किया जा चुका है. उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा है कि हजारे ने ट्रस्ट के खाते से 2 लाख रूपए का दुरूपयोग अपना जन्मदिन मनाने के लिए किया है.
एक अत्यंत र्इमानदार माने जाने वाले पूर्व नौकरशाह जीआर खैरनार ने भी हजारे के ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में आए सरकारी संसाधनों व कर्मचारियों का निजी उपयोग किए जाने की बात कही है. अब तो सुप्रीम कोर्ट से भी हजारे को नोटिस भेजा गया है. कोर कमेटी के एक प्रमुख व्यक्ति अरविंद केजरीवाल जिन्होंने सूचना के अधिकार आंदोलन में महती भूमिका निभार्इ है, उनके संगठन परिवर्तन से जब बियोन्ड हेडलाइन्स के कर्ताधर्ता अफरोज आलम साहिल ने सूचनाएं मांगी तो उन्होंने यह जवाब दिया कि हम सूचना के अधिकार कानून के दायरे में नहीं आते हैं. साहिल का कहना है कि उन्हें मांगी गर्इ सूचनाएं नहीं मिल पार्इं.
हाल ही में यह भी उजागर हुआ कि केजरीवाल आयकर उपायुक्त के पद से इस्तीफा दिए बगैर अनुपस्थित चल रहे हैं तथा उनपर आयकर विभाग का 9 लाख रुपया बकाया है, बड़ी ही हील-हुज्जत के बाद अंतत: उन्होंने इस रकम का चैक प्रधानमंत्री कार्यालय को भेज दिया है, वैसे भेजना तो आयकर विभाग को था, मगर प्रधानमंत्री को भेजा गया. वह भी टीवी चैनल्स के सामने ताकि पर्याप्त प्रचार मिल सके.
इसके अलावा यह भी सामने आया कि उनके भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को मिले तकरीबन 2.5 करोड़ रुपयों को उन्होंने अपने पीसीआरएफ ट्रस्ट के खाते में जमा कर लिया है. कोर कमेटी से ही जुड़े रहे स्वामी अग्निवेश ने पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं, अरविंद केजरीवाल के घर पर कार्यकर्ता हंगामा भी कर चुके हैं तथा जंतर-मंतर पर हिसाब-किताब को लेकर एक धरना भी उनके खिलाफ लग चुका है. जूते चप्पल तो खैर चल ही रहे हैं, काले झंडे और मारपीट भी अब इन गांधीवादियों की छत्रछाया में चल रही हैं.
लोग कहते हैं कि जब देश में आपातकाल लगा था तो लोकतंत्र समर्थकों पर डंडा चलाने के लिए मशहूर हुर्इ देश की पहली महिला आर्इपीएस पर भी यात्रा टिकटों में घोटाले करने की बात सामने आ गर्इ है. ये बहन जी वीरता मैडल दिखाकर जाती तो रियायती टिकट पर और आगे वालों से वसूलती पूरा हवार्इ टिकट, कथित भ्रष्ट नेता तो देश की जमीन पर ही घोटालें कर रहे है मगर भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ रहे योद्धा तो आसमान की हवा में ही घोटाले कर रहे हैं. मामला एक समाचार पत्र के जरिऐ सामने आया तब पहले तो किरण बेदी और उनके सहयोगी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए कि उन्होंने कुछ गलत किया है, शायद एनजीओ क्षेत्र में इस किस्म के यात्रा घोटाले आम बात होंगे इसलिए इस किस्म के भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकृति मिली हुर्इ है, लेकिन जब ज्यादा हल्ला मचा तो कहा गया कि किरण बेदी ने यह पैसा अपने लिए उपयोग में नहीं लिया यह उनके परमार्थ के काम में गया है, फिर भी अगर यह गलत है तो वे इस राशि को संबंधित संस्थाओं को लौटा देंगी.
जय हो किरण जी महाराज की. कल यही काम ए.राजा और मधु कोड़ा कर दें और तमाम खाए हुए पैसे लौटा दें तो क्या उन्हे पाक साफ होने का प्रमाण पत्र मिल जाएगा.
कैसे-कैसे तर्क हैं, किस प्रकार से औचित्य सिद्ध करने का पाखंड किया जाता है, बावजूद इसके भी ये कोर कमेटी इस देश के सबसे नैतिक और र्इमानदार और अभ्रष्ट लोगों की कमेटी है, इसे यह नैतिक बल हासिल है कि वह देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ चीखे चिल्लाए और आंदोलन चलाए, मगर देश की 120 करोड़ जनता, जिसके ये लोग स्वयंभू प्रवक्ता बने हुए हैं, उसके मन मस्तिष्क में यह मासूम सवाल रह रह कर कौंधता है कि यह कोर कमेटी है या चोर कमेटी?
(लेखक डायमंड इंडिया पत्रिका के संपादक हैं और दलित, आदिवासी व घुमंतू समुदाय के मुद्दों पर राजस्थान में कार्यरत हैं. इऩसे bhanwarmeghwanshi@gm ail.com और 09460325948 पर सम्पर्क किया जा सकता है)