Skip to content
Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Primary Menu Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us
  • Featured

गरीबी, खाद्य सुरक्षा और कैश ट्रांसफर

May 10, 2012 | रितिका खेड़ा

कुछ महीने पहले योजना आयोग की गरीबी रेखा पर काफी चर्चा हुई हैं. उच्चतम न्यायलय में दायर हलफनामे में योजना आयोग ने कहा कि 2011 की सरकार की गरीबी रेखा- ग्रामीण क्षेत्रों में 26 रुपए और शहरी क्षेत्रों में 32 रुपए- जीवनयापन यानी खाना, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त है. आज से पहले किसी भी सरकार ने यह दावा नहीं किया कि गरीबी रेखा जीवन बिताने के लिए पर्याप्त है. गरीबी रेखा का उपयोग केवल गरीबी के खिलाफ जंग का आकलन करने के लिए किया गया.

 
पिछले 15 वर्षों से सरकार ने इस गरीबी रेखा को कल्याणकारी योजनाओं के विस्तार के सवाल से जोड़ा है. 1997 तक जन वितरण प्रणाली यानी सस्ते राशन की दुकान सबके लिए हुआ करती थी लेकिन 1997 में सरकार ने कहा कि अब से केवल "गरीब" परिवार ही इसके हक़दार होंगे. गरीबी की दर निर्धारित करने के लिए गरीबी रेखा का इस्तेमाल किया गया जिसे गरीबों की लड़ाई लड़ने वाले भुखमरी की रेखा भी कहते हैं.
 
योजना आयोग के हलफनामे के बाद की चर्चा में कुछ अर्थशास्त्रियों को छोड़कर इस बात पर यह सहमति बनी है कि सरकारी गरीबी रेखा वाकई भुखमरी की रेखा है. फिर सवाल उठा कि कितने परिवार गरीब हैं और इन्हें कैसे चिह्नित किया जाए. तब यह निर्णय लिया गया कि केंद्र सरकार राज्यों को उनकी गरीबी दर के अनुसार सस्ता अनाज उपलब्ध करवाएगी.
 
लेकिन इस गरीबी रेखा के उपयोग पर थोड़ी और चर्चा करना ज़रूरी है. यह मूल्यांकन के औज़ार से योजनाओं के विस्तार के मापदंड में कैसे परिवर्तित हुई? जब जन वितरण प्रणाली को गरीबों तक ही सीमित करने की बात चली तो कहा गया कि केंद्र केवल गरीब परिवारों के लिए ही राज्य सरकार को सस्ता अनाज देगा. राज्यों को कहा गया कि आप उन गरीबों को चिह्नित करें जिन्हें बीपीएल कार्ड मिलना चाहिए. केंद्र ने गरीबों को चिह्नित करने के मापदंड भी बताए. उदहारण के लिए- जिनके पास ज्यादा ज़मीन है या जिस परिवार में किसी की सरकारी नौकरी है (मसलन चौकीदार, पंचायत सेवक आदि) उन्हें गरीबों की सूची से बाहर रखने का निर्णय लिया गया.
 
वैसे तो ज़मीन और सरकारी नौकरी आर्थिक सुरक्षा के अच्छे संकेत हैं लेकिन उस किसान के बारे में सोचें जो खेती के लिए बरसात के पानी पर निर्भर है. अगर दो वर्ष सूखा पड़ जाए तो उसकी ज़मीन उसके परिवार की खाद्य सुरक्षा में किस काम आयेगी? यदि मेरे पिता, जो मान लें कि वन रक्षक हैं, गुजर जाते हैं तो क्या मेरे परिवार की हालत नाज़ुक नहीं हो सकती? असली बात तो यह है कि गरीबी का सही मापदंड खोजना नामुमकिन के बराबर है.
 
दूसरी बात है कि यदि आप सही मापदंड खोज निकालते हैं तो बीपीएल सर्वे करते समय काफी त्रुटियां आ जाती हैं. सर्वे के दौरान सरपंच पहले तो यह सुनिश्चित करेगा कि उसका और उसके परिवार का नाम बीपीएल सूची में हो. इसके बाद ही वह उस आदिवासी विधवा महिला के बारे में बताएगा जो जंगल में, पहाड़ी पर रहती है और जिसके पास सर्वेकर्ता वाले शायद ही पहुंचें. तीसरी गौर करने लायक बात है कि मापदंड और क्रियान्वयन बिल्कुल सही हो तो भी बीपीएल सूची में गलती होगी. आज का सक्षम परिवार कल को गरीब हो सकता है. गरीबों के जीवन में आर्थिक सुरक्षा मिटटी के बर्तन की तरह नाज़ुक होती है- ज़रा सा धक्का लगने की देर है. वैसे भी, खाद्य सुरक्षा की नीतियां बनाते समय शायद कुपोषण के आंकड़े देखना ज्यादा उचित होगा. कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में भारत बहुत पीछे रह गया है. इस कारण भी खाद्य सुरक्षा को गरीबी से जोड़ना ठीक नहीं है.
 
तो जब जन वितरण प्रणाली को सीमित करने का निर्णय लिया गया तो ये हुआ कि मूल्यांकन के लिए बनाई गई गरीबी रेखा को PDS के विस्तार से जोड़ दिया गया. कहा गया कि केवल गरीबी रेखा के नीचे के लोगों को ही सस्ता अनाज मिलेगा. आगे दूसरी कल्याणकारी कार्यक्रमों से भी जुड़ती गई- विधवा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, इंदिरा आवास योजना आदि. इन कर्यक्रमों में गरीबों को चयनित करने में जो दिक्कतें आती हैं उसके चलते बहुत से गरीब परिवार छूट गए. NSS के आंकड़ों के अनुसार 2004-05 में केवल आधे गरीब परिवारों के पास ही BPL कार्ड था.
 
सरकार के काफी कार्यक्रम Universal हैं- मध्याह्न भोजन, आंगनवाड़ी, रोज़गार गारंटी कानून. और यह इत्तेफाक नहीं कि ये स्कीम सबसे अच्छी चलती है तो सरकार PDS को Universal बनाने से क्यों डरती है?
 
PDS का नाम लेते ही शहरी मध्य वर्ग के दिमाग में दो सवाल आते हैं: अमीरों के पास BPL कार्ड है लेकिन गरीब परिवार वंचित रह गए. इसमें कुछ सच तो है- जैसा कि पहले कहा गया, आधे गरीब परिवार PDS का लाभ नहीं उठा पा रहे. दूसरी बात यह की PDS में भयानक चोरी है. गरीबों तक अनाज नहीं पहुंच रहा. क्या PDS वास्तव में केवल चोरी की योजना है?  PDS के अनाज की चोरी तो होती है लेकिन पिछ्ले 5 सालों में काफी सुधार दिखने लगा है. NSS के आंकड़ों का सहारा लेकर हम यह जान सकते हैं कि केंद्र द्वारा राज्यों में भेजे गए अनाज में से कितना लोगों तक पहुंचा. ऐसा करने से यह पता चलता है कि एक ओर ऐसे राज्य हैं जहां चोरी पहले से ही कम थी: तमिलनाडू में 95 फीसदी से ज्यादा अनाज लोगों तक पहुंचा, आंध्र प्रदेश व हिमाचल में भी चोरी 10 फीसदी के आसपास ही रही है.
 
कई ऐसे भी प्रदेश हैं जहां 2004-05 और 2009-10 के बीच बहुत सुधार आया. 2004-05 में छत्तीसगढ़ में आधा अनाज ही लोगों तक पहुंचता था. 2009-10 में 90 फीसदी पहुंचने लगा. वैसे ही उड़ीसा में चोरी 75 फीसदी से घट कर अब 30 फीसदी रह गई है. झारखंड भी सुधार की राह पर चल रहा है- वहां 85 फीसदी अनाज चोरी होता था जो अब 46 फीसदी पर आया है. हालांकि स्तिथि संतोषजनक नहीं है लेकिन इससे यह तो साबित होता है कि PDS में सुधार संभव है.
 
जून, 2011 में हमने 9 राज्यों में PDS का सर्वे किया. इसमें भी PDS कि यही तस्वीर पैदा हुई. सुधार अब तकरीबन सभी राज्यों में दिख रहा है. बिहार, जहां स्थिति सबसे ख़राब है (यहां अभी भी 55 फीसदी तक अनाज नहीं पहुंचता), वहां भी सुधार आया है (2004-05 में 90 फीसदी अनाज नहीं पहुंच रहा था).
जब PDS में सुधार का दौर चल रहा है तब केंद्र खाद्य सुरक्षा कानून के मसौदे में खाद्य सुरक्षा के नाम पर कैश ट्रांसफर यानी नकद सहायता की बात कर रहा है. इस सुझाव के पीछे के तर्क को समझना बहुत मुश्किल है.
 
PDS सर्वे 2011 में हमने लोगों के सामने यही प्रस्ताव रखा और राय मांगी. बिहार को छोड़कर बाकी राज्यों के लोग कैश की बात सुनना भी नहीं चाहते थे. क्यों? जवाब लोगों की ही जुबानी सुनिए: 1. “राशन मिलेगा, तो कुछ भी हो (बीमारी या बेरोज़गारी) हमें तसल्ली रहेगी की घर आकर कम से कम नमक के साथ रोटी या भात ही खा लेंगे.” 2. “अनाज तो वहीं जाता है जहां उसे जाना चाहिए (पेट में) लेकिन पैसे का कोई भरोसा नहीं.” “पैसा थोड़े ही चबाएंगे?” “पैसा लेकर अनाज कहां से खरीदेंगे. एक दिन खाते से पैसा निकालने में और एक दिन अनाज खरीदने में निकल जाएगा. राशन की दुकान तो गांव में ही है.” “बाजार के बनिए सांठ-गांठ कर भाव बढ़ा देंगे. सरकार को कैसे पता चलेगा?". “कीमतें बढ़ेंगी तो हम कहां जाएंगे? सरकार तो पैसा पांच साल में एक बार बढ़ाएगी- चुनाव से पहले”.
 
तो लोगों ने सोच-समझकर हमें समझाया कि उनके लिए आज की तारीख में राशन ही ठीक है. उन्हें लगा की असली सवाल तो यह है कि PDS को और कैसा सुधारा जाए.
 
तो सवाल ये उठता है कि सरकार कैश ट्रांसफर पर इतना ज़ोर क्यों दे रही है? Technocrat और मुख्यधारा के कुछ अर्थशास्त्रियों के नज़रिए से देखें तो कैश अच्छा विकल्प है क्योंकि इससे सरकार का काम आसान हो जाएगा. दिल्ली में बैठकर केवल एक बटन क्लिक करने से सब के खातों में पैसा चला जाएगा. ना पंजाब/हरियाणा में खरीद की फिक्र, ना उस अनाज के भंडारण की, ना ही उसे पंजाब से झारखंड पहुंचाने का खर्च और न ही डीलरों की देखरेख. लेकिन जैसा महासमुंद (छत्तीसगढ़) की निद्रा ने हमें बताया: “अभी सरकार टेंशन उठाती है मगर पैसा मिला तो हमें टेंशन उठानी पड़ेगी. राशन की दुकान ही हमारे लिए ठीक है.” तो लोगों के वोट पर निर्भर सरकार को निद्रा की बात का ख्याल रखना ज़रूरी है. आज अनाज मिलने पर लोग सरकार को दुआ देते है. कैश आने से यह बद्दुआ ना बन जाए.
 
(रितिका खेड़ा भोजन का अधिकार और रोज़गार गारंटी अभियान से जुड़ी रही हैं और फिलहाल आईआईटी, दिल्ली में पढ़ा रही हैं)

Continue Reading

Previous इंतज़ार करती एक मां का खामोश हो जाना
Next Reaping gold through cotton, and newsprint

More Stories

  • Featured

NCPCR’s Draft Guidelines For The Protection Of Child Artistes

1 day ago Pratirodh Bureau
  • Featured

26/11 Attack Handler Jailed For 15 Years In Pak

2 days ago Pratirodh Bureau
  • Featured

No Material To Support ’02 Godhra Riots Were Pre-Planned: SC

2 days ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • NCPCR’s Draft Guidelines For The Protection Of Child Artistes
  • 26/11 Attack Handler Jailed For 15 Years In Pak
  • No Material To Support ’02 Godhra Riots Were Pre-Planned: SC
  • SC Abortion Ruling: US Draws Criticism From Closest Allies
  • Omar Introduces Anti-India Resolution In House
  • Women Heads Of State And State Of Feminism
  • Apex Court Dismisses Plea Against SIT Clean Chit To Modi
  • Climate Change: How Myanmar’s Military Rule Makes It More Vulnerable
  • Spiritual, Soft-Spoken & Set To Be Next Prez
  • Food As A Weapon Of War
  • Atleast 1,000 Killed In Afghanistan Earthquake
  • India Needs $223 Bn To Meet 2030 Renewable Capacity Goals: Report
  • ‘Modi Will Have To Withdraw Agnipath Scheme’
  • Eating Local To Tackle The Climate Crisis
  • How Permafrost Thaw Is Damaging Himalayas
  • Trafficked Girls: Grim Options, Grim Choices
  • Floods: Millions Marooned In India, B’desh
  • The Growing Global Statelessness Crisis
  • SKM Says Agnipath Scheme ‘Anti-National’, To Protest On June 24
  • Melting Glacier: Nepal Mulls Shifting Of Everest Base Camp

Search

Main Links

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us

Related Stroy

  • Featured

NCPCR’s Draft Guidelines For The Protection Of Child Artistes

1 day ago Pratirodh Bureau
  • Featured

26/11 Attack Handler Jailed For 15 Years In Pak

2 days ago Pratirodh Bureau
  • Featured

No Material To Support ’02 Godhra Riots Were Pre-Planned: SC

2 days ago Pratirodh Bureau
  • Featured

SC Abortion Ruling: US Draws Criticism From Closest Allies

2 days ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Omar Introduces Anti-India Resolution In House

3 days ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • NCPCR’s Draft Guidelines For The Protection Of Child Artistes
  • 26/11 Attack Handler Jailed For 15 Years In Pak
  • No Material To Support ’02 Godhra Riots Were Pre-Planned: SC
  • SC Abortion Ruling: US Draws Criticism From Closest Allies
  • Omar Introduces Anti-India Resolution In House
Copyright © All rights reserved. | CoverNews by AF themes.