Skip to content
Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Primary Menu Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us
  • Featured

खुफिया एजेंसियों के फांसे में लोकतंत्र

Jul 11, 2012 | राजीव यादव

कतील सिद्दीकी की खुफिया एजेंसियों द्वारा पुणे की यर्वदा जेल में की गई हत्या को एक महीने हो गए हैं और 13 मई को सउदी से उठाए गए दरभंगा बाढ़ समैला के ही फसीह महमूद के अपहरण को भी दो महीने होने जा रहे है. सुप्रिम कोर्ट में पड़े हैबियस कार्पस पर डेट पर डेट देकर न्यायालय ने भी इस राज्य प्रायोजित आतंकी माहौल में अपनी पक्षधरता को हमारे सामने रख दिया है. 

 
कोर्ट में 9 मई को सरकारी पक्ष ने कहा कि फसीह महमूद सउदी में हैं, जिस पर कोर्ट ने उन्हें 21 दिन में हलफनामा देने के लिए कहा. सवाल एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में एक व्यक्ति के जीवन का है. पर हम जानते हैं कि न्यायालय ने यह मोहलत आतंकी खुफिया एजेंसियों को फर्जी सबूत गढ़ने के लिए दिया है. सवाल है कि अगर दो महीने से फसीह महमूद को रखा गया है तो उसे अब तक भारत क्यों नहीं लाया गया. किस आधार पर सउदी में उसे रखा गया है, और फसीह के परिजनों के बार-बार पूछे जाने पर यह क्यों कहा गया कि सरकार को मालूम नहीं है. यह बात देश के गृह मंत्री पी चिदम्बरम ने प्रेस वार्ता में कही थी. अगर भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है तो उसे सउदी से अपहरण किए गए अपने देश के नागरिक के अपहरणकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाई करनी चाहिए. फसीह के खिलाफ अगर कोई सुबूत था तो उसे उठाने के बाद ही क्यों नहीं पेश किया गया ? किसी को भी गिरफ्तार करने के बाद पेश किया जाता है, पर जो किया जा रहा है वह आतंकी राज्य की कार्यनीति है. 
 
निखत परवीन का एक मेल एक लेख के जवाब में जब मिला तो हमारा हौसला बुलंद हुआ. निखत परवीन फसीह महमूद की पत्नी हैं, पर आज जब उन्होंने मेल की कि आप को हाल की कुछ और बातें भी याद करनी चाहिए और उन्होंने कतील की जेल में हुई हत्या पर कई सवाल किए तो ऐसा लगा कि निखत अब सिर्फ अपने शौहर की ही नहीं उन तमाम बेगुनाहों की आवाज बन गई हैं जिसे राज्य न्याय से वंचित रखना चाहता है. इशरत जहां की वालदा शमीमा कौशर की बातें और उनका चेहरा हमारे सामने आ गया कि जब भी हमने विभिन्न सम्मेलनों में उन्हें बुलाया तो वो आती हैं, और पिछली बार जब बाटला हाउस की तीसरी बरसी पर आजमगढ़ के संजरपुर में उन्हें बुलाया गया तो वे सिर्फ आईं ही नहीं बल्कि कई दिनों तक रुक कर और पीडि़त परिवारों के साथ दुख-दर्द साझा किया. जाते-जाते यह भी कहा कि जब भी बताना हम हर मौके पर मौजूद रहेंगे इस लड़ाई में.
 
आज जिस पुणे की यर्वदा जेल में कतील की हत्या की गई इसी जेल में गुलामी के दौर में गांधी जी भी थे. 2002 में यहां गांधीवादी मूल्यों के प्रचार प्रसार के लिए संकल्प लिया गया. इसके तहत एक साल का एक कोर्स चलाया जाता है, जिसमें हर कोई अपनी मर्जी से दाखिला ले सकता है. एक सर्वे में पाया गया कि इस अभियान का असर यह रहा कि 94 फीसदी लोग गांधीवादी आदर्शों के प्रति सम्मान का भाव रखने लगे, 77 फीसदी लोग मानने लगे कि दोस्ती से सामाजिक परिवर्तन और 66 फीसदी लोगों ने उन परिवरों से माफी मांगने की इच्छा जाहिर की जिनके लोगों के साथ उन्होंने हिंसा की थी. पर गांधी के आदर्शों पर चलने वााले इस देश के तंत्र ने कतील की सिर्फ हत्या नहीं की बल्कि एक आदर्श समाज का खाका तैयार करने वाली नस्लों में खौफ का बीजारोपण किया.
 
निखत बताती हैं कि कतील की चार्जशीट न तो तीन महीने में आयी और न ही 6 महीनें में जो की कानूनी तौर पर आ जानी चाहिए थी. जब कतील की मौत हुई तो उस सेल में सिर्फ 2 सुरक्षा कर्मी थे? जबकि तीस होने चाहिए थे. आगे वो मीडिया रिपोर्ट के आधार पर कहती हैं कि कतील का मर्डर दो कैदियों ने किया. जबकि उन दोनों कैदियों की सेल और कतील की स्पेशल सेल में काफी दूरी है, जैसा एक चाय वाले का बयान आया कि चाय देते वक्त उन दो कैदियों का सेल खुला रह गया था तो क्यों उसी वक्त कतील के स्पेशल हाई स्क्योरिटी सेल का भी दरवाजा खोल दिया गया था? अगर हां तो यह एक षडयंत्र था और सवाल उन सुरक्षा कर्मियों का भी है कि जब कतील को मारा जा रहा था तो वे कहां थे? और क्या उन लोगों ने कतील के नाखूनों को भी निकाल दिया था? क्योंकि उसके नाखून गायब थे. सच तो यह है कि उन लोगों ने उसे यातना देकर मार डाला. कतील की मौत से दो दिन पहले उसके भाई को पुलिस वालों ने बताया था कि उन्हें कतील दो-तीन दिनों में घर पर मिलेगा और ठीक दो दिन बाद कतील की मौत की खबर आई. तो क्या ये पुलिस वाले भविष्यवाणी भी करने लगे हैं? या फिर वो दो दिनों में उसे रिहा करने वाले थे? 
 
निखत बड़ी आशा और व्यवस्थागत खामियों की तकनीकियों को समझते हुए कहती हैं कि कतील के घर वालों को पांच करोड़ का मुआवजा मिलना चाहिए जो कि उनका कानूनी हक बनता है. उन तमाम पुलिस एजेंसियों पर मुकदमा करना चाहिए, शायद मुकदमा हार भी जाएं पर जब तक मुकदमा चलेगा वो लोग निलंबित रहेंगे?
 
बचते-बचाते अब चिदंम्बरम और सीबीआई भी कहने लगे हैं कि फसीह सउदी में है. एनआईए के डीआईजी ने लिखित रुप में कहा कि फसीह पर उन्होंने कोई कार्यवाई नहीं की. पर सवाल उठता है कि अगर फसीह के 13 मई से सउदी से गायब होने की सूचना तमाम मीडिया माध्यमों और यहां तक कि न्यायालय तक को दी गई तो क्या भारतीय राज्य ने उसे खोजने की कोशिश नहीं की? क्या एक लोकतांत्रिक गणतंत्र में राज्य इस जिम्मेदारी से बच सकता है. अगर ऐसा है तो अब वो क्यों कभी अबू जिंदाल तो कभी उसे तलहा अब्दाली से जोड़ने के फर्जी सूचनाओं को मीडिया माध्यमों से प्रसारित करवा रहा है. जरुरत तो आज इस बात की है कि चिदम्बरम से अबू जिंदाल, तलहा अब्दाली, यासीन भटकल और न जाने कौन-कौन के क्या संबन्ध हैं, इसकी जांच करवाई जाय. क्योंकि यह कोई संयोग नहीं है कि जब-जब चिदम्बरम 2 जी से लेकर दूसरे घोटालों में फंसते नजर आए, तब-तब धमाके हुए. हमे याद रखाना चाहिए के 7 दिसंबर 2010 दश्वाश्वमेध वाराणसी धमाका, 13 फरवरी 2010 पुणे जर्मन बेकरी, 17 अपै्रल 2010 चिन्नास्वामी स्टेडियम, 13 जुलाई 2011 दादर, ओपेरा और झावेरी हो या फिर 7 सितम्बर 2011 दिल्ली हाईकोर्ट धमाका, इन सब धमाकों से पहले टूजी को लेकर खूब बहस हो रही थी. पर धमाकों की शोर में यह बहस कमजोर हो गई. इसे संयोग नहीं माना जा सकता, यह एक राज्य प्रयोजित आतंकी षडयंत्र था. याद कीजिए जब मुंबई में पिछली साल धमाका हुआ तो चिदम्बरम ने भगवा आतंक का नाम लिया था. भगवा आतंक का नाम लेते ही भाजपा चुप्पी साध गई. हिन्दुत्वादी आतंकी गुटों की भूमिका को लेकर चिदंबरम  ने कहा था कि मैं जानता हूं कि ये लोग बम बनाते ही नहीं हैं बल्कि फोड़ते भी हैं. हिन्दुत्वादी राजनीति द्वारा टूजी घोटाले पर मौन साधते ही चिदंबरम ने भी उन्हें ‘बख्श’ दिया. 
 
याद कीजिए की इसी वक्त टूजी घोटाले में बंद ए राजा ने प्रधानमंत्री और चिदंबरम का भी नाम लिया था. इन बातों से यह निष्कर्श निकलता है कि आतंक की यह राजनीति भ्रष्टाचार और मूल मुद्दों से भटकाने के लिए की जा रही है. जिसमें खुफिया एजेंसियों सम्मिलित हैं जो न सिर्फ निर्दोषों को फंसाती हैं बल्कि इन आतंकी वारदातों को भी अंजाम देती हैं. जिससे कि सत्ता पक्ष आराम से अपनी जनविरोधी नीतियों को लागू कर सके.
 
बहरहाल, निखत कहती हैं कि कहा जा रहा है कि 31 मई के बाद फसीह को उठाया गया. ऐसा इसलिए कि 13 से 31 मई के बीच के वक्त को वे मैनेज कर सके, पर यह बात किसी से छुपी नहीं है कि उन्हें 13 मई को उठाया गया था. यह बात बड़े आत्मविश्वास के साथ कहते हुए निखत कहती हैं कि इसे प्रमाणित किया जा सकता है. वो कहती हैं कि उन्होंने 19 मई को मुझे और पापा को फोन किया था. वे बहुत परेशान थे, रो-रो कर कह रहे थे कि कि मैंने कुछ नहीं किया, इंशा अल्लाह मैं जल्दी छूट जाऊंगा.
 
निखत का सवाल लाजमी है कि प्रत्यर्पण संधि के कुछ नियम-कायदे हाते है? जिसके मुताबिक उचित दस्तावेज जमा करने चाहिए. सब जानते हैं कि वारंट और रेड कार्नर नोटिस मेरे सुप्रिम कोर्ट जाने के बाद जारी हुआ और उन्हें उठाया पहले गया था. अब तक फसीह के खिलाफ कोई सुबूत सउदी सरकार को नहीं दिया जा सका है. इसी वजह से उन्हें लाया भी नहीं जा सका है. भारतीय एजेंसियों की गलती छुपाने के लिए, झूठे दस्तावेज तैयार करने के लिए दो महीने का पूरा मौका दिया गया ताकि सउदी को वे दिखाकर फसीह को यहां ला सकें.
 
पिछले दिनों संचार माध्यमों में आई खबरों में कहा गया कि फसीह पाकिस्तानी पासपोर्ट पर सउदी गया था. पर मुझे याद है कि जब शाईन बाग दिल्ली में निखत परवीन से मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया था कि किस तरह शादी के बाद वे सउदी गईं और फसीह भी भारतीय पासपोर्ट पर सउदी गए थे. दरअसल भारतीय एजेंसियां इस पूरे मामले को पाकिस्तान से जोड़कर अपने ऊपर उठ रहे सवालों को पाकिस्तान विरोध पर टिके राष्ट्रवाद के सहारे हल करना चाह रही हैं. जिससे नई कहानी बनाने में मदद मिल सके. और इन दिनों जो अबू जिंदाल की गिरफ्तारी हुई है, जिसे आतंकवाद के मसले के कई जानकार लोग यासीन भटकल की ही तरह भारतीय एजेंसियों का प्लांटेड आदमी बताते हैं, से उसे जोड़ सकें. फसीह महमूद बैग्लोर के अंजुमन कालेज में पढ़ते थे और जांच एजेंसियों की थ्योरी अब यह प्लांट करने की कोशिश कर रही है कि यहीं से इनके आतंकवादी लिंक हैं. जो भी हो पर जांच एजेंसियों की थ्योरी में अगर कोई सच्चाई होती तो वे 13 मई को सउदी से उठाने के बाद ही उसे पेश कर देते. अब जो भी थ्योरी है, वो प्लांटेड है. क्योंकि जिस इंडियन मुजाहिदीन नाम के आतंकी संगठन से जोड़ कर दरभंगा से गिरफ्तारियां की गई वो संगठन ही खुफिया एजेंसियों द्वारा संचालित संगठन है. 
 
जिस यासीन भटकल उर्फ शाहरुख, इमरान और न जाने कौन-कौन से नाम हैं उसके वो दरअसल खुफिया एजेंसियों का प्लांटेड आदमी है. दरभंगा के लोग कहते हैं कि यहां के एसपी विकास वैभव के एनआईए में जाने के बाद से ही इंडियन मुजाहिदीन के नाम पर गिरफ्तारियों का यह सिलसिला शुरु हुआ. दरअसल विकास ने अपने एसपी रहते हुए यहां लोकल पुलिस और खुफिया की मदद से यहां के लोगों को फर्जी तौर से फसाने का खाका तैयार किया था. 
 
निखत कहती हैं कि बस अब अगली सुनवाई का इन्तजार है. देखते हैं, सरकार क्या कहानी पेश करती है?

Continue Reading

Previous सीमा, विश्वविजय की उम्रक़ैद कानून-सम्मत नहीं
Next दलित छात्रावास पर हमला: लोकतंत्र पर प्रश्न

More Stories

  • Featured

Illegal Constructions On Stepwell Led To Indore Temple Tragedy

7 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Assam’s Rural Solar Scheme Fails To Keep The Lights On

8 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Cease ‘Mass Forced Evictions’ At Angkor Wat: Amnesty International

13 hours ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • Illegal Constructions On Stepwell Led To Indore Temple Tragedy
  • Assam’s Rural Solar Scheme Fails To Keep The Lights On
  • Cease ‘Mass Forced Evictions’ At Angkor Wat: Amnesty International
  • Palestinians Mark 47th Land Day Amid Calls To End Israeli Occupation
  • Sexual Harassment: Kalakshetra Closes College Till April 6
  • Not An Imperial King: Grand Jury Indicts Ex-US Prez Donald Trump
  • Rahul, Modi & Politics With The Gloves Off
  • Treated Wastewater Reuse Could Cut 1.3 Million Tonnes Of Emissions
  • ‘Global Scamsters’ Defending PM: Congress On Lalit Modi Tweet
  • Most Himalayan Glaciers Analysed Melting At Varying Rates: Govt
  • Beyond Patriarchy: Matrilineal Societies Exist Around The World
  • Rahul Gandhi To Launch Agitation From Kolar On April 5
  • Nagaland Scientist’s Tiny Sensor To Tell If Food Is Spoiled
  • ‘Attack Me…Not Freedom Fighters’: Ro Khanna
  • ‘Convenor Of Corrupt Alliance’: Kharge On Modi
  • Earlier Covid Origin Disclosure May Have Saved Political Argy-Bargy
  • Can We Trust Machines Doing The News?
  • Olive Ridley Turtle Nesting Site In Konkan Faces New Threat
  • Petty Politics Of Petty Men: Kapil Sibal’s Swipe At Govt
  • Since Musk Took Over, Antisemitism On Twitter More Than Doubled

Search

Main Links

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us

Related Stroy

  • Featured

Illegal Constructions On Stepwell Led To Indore Temple Tragedy

7 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Assam’s Rural Solar Scheme Fails To Keep The Lights On

8 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Cease ‘Mass Forced Evictions’ At Angkor Wat: Amnesty International

13 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Palestinians Mark 47th Land Day Amid Calls To End Israeli Occupation

15 hours ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Sexual Harassment: Kalakshetra Closes College Till April 6

1 day ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • Illegal Constructions On Stepwell Led To Indore Temple Tragedy
  • Assam’s Rural Solar Scheme Fails To Keep The Lights On
  • Cease ‘Mass Forced Evictions’ At Angkor Wat: Amnesty International
  • Palestinians Mark 47th Land Day Amid Calls To End Israeli Occupation
  • Sexual Harassment: Kalakshetra Closes College Till April 6
Copyright © All rights reserved. | CoverNews by AF themes.