कपिल जी, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया
Dec 11, 2011 | मुकुल सरलसंचार मंत्री कपिल सिब्बल सोशल मीडिया से ख़फ़ा हैं. फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्क पर लगाम लगाना चाहते हैं… एक तरह से सेंसर की तैयारी की जा रही है, यह जानकार मुझे बेहद “खुशी “ हुई!
इसकी दो वजह हैं.
हमारी सरकार सोशल साइट्स से घबराई हुई है इससे इन साइट्स की महत्ता और ताकत ही साबित होती है. यह जानकर सब्र हुआ कि चलो हम इन साइट्स पर अपना वक्त यूं ही जाया नहीं कर रहे.
सरकार की इस चेतावनी से उन साथियों को, जो आजकल यह सोचने लगे थे कि फेसबुक पर पोस्ट करके, एक ट्विट करके या ब्लाग लिखकर उन्होंने अपना काम पूरा कर लिया और अब सड़क पर उतरने की ज़रूरत नहीं रही, उनको भी यह एहसास हो जाना चाहिए कि इस वर्चुअल वर्ल्ड की आज़ादी के लिए भी रीयल वर्ल्ड में लड़ाई लड़नी पड़ेगी. मिस्र में भी सोशल साइट्स ने लोगों को जोड़ा ज़रूर लेकिन उन्हें भी अंतत सशरीर तहरीर चौक पर उतरना पड़ा और अब भी उनकी लड़ाई और आज़ादी अधूरी है, जिसके लिए उन्हें लगातार संघर्ष करना ही होगा.
यह नेटवर्क-यह साइट्स तभी कामयाब हैं जब यह हमें समाज से जोड़ने का काम करें, समाज से काटने का नहीं कि हम अपने सुरक्षित कमरों बैठकर ट्विट करते रहे और यह भी न देखें कि बाहर सड़क पर या पड़ोस में क्या हो रहा है. चार लाइनें लिखकर यह सोचने लगें कि हमने तो अपने हिस्से की क्रांति कर ली और अब धरने-प्रदर्शन या किसी और कार्यक्रम में जाने की क्या ज़रूरत?
ख़ैर,
तो यह दो बातें अपने और अपने दोस्तों से थीं. हां, एक तीसरी बात मुझे कपिल सिब्बल जी से पूछनी है कि इस अंतर्जाल यानी इंटरनेट पर कहां तक निगरानी रखोगे और क्यों रखोगे? और आपसे किसने कह दिया कि इन सोशल साइट्स पर कोई नियम-कायदा नहीं चलता. यह माध्यम टेलीविज़न या अख़बार की तरह कोई ऐसा जनसंचार का माध्यम नहीं है जिसमें हमें ख़बरों के चुनाव का या अपनी बात रखने का अधिकार नहीं होता. फेसबुक या ट्विटर पर हर व्यक्ति अपनी रुचि और सोच के मुताबिक अपने दोस्तों का चुनाव करता है. हर किसी के सीमित दोस्त हैं. और हर दोस्त को कोई भी सामग्री स्वीकार या अस्वीकार करने का पूरा अधिकार है. मेरे ही वॉल पर बहुत ऐसी तस्वीरें या बातें चस्पा कर दी जाती हैं जो मुझे पसंद नहीं आतीं तो मैं खुद उन्हें डिलीट कर देता हूं. अपने कुछ नौजवान दोस्तों को मैंने समझाया भी कि मुझे इस तरह की तस्वीरें या बातें पसंद नहीं, कृपया इन्हें मुझसे पूछे बगैर मेरी वॉल पर टैग न किया करें..उन्होंने मेरी बात मान ली. अब जो मुझे अच्छा लगता है उसे मैं खुद भी शेयर कर लेता हूं. कोई पोस्ट पसंद न आने पर उसपर अपना कमेंट कर सकता हूं.
इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति या उसकी बातें आपको पसंद नहीं आती तो उसे अनफ्रेंड या ब्लॉक करने का भी पूरा अधिकार आपके पास है. यानी यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर है कि वह क्या चाहता है, किससे बात करना चाहता है, किससे नहीं. उसे क्या आपत्तिजनक लगता है, क्या नहीं. यानी वह अपने एकाउंट या पेज पर अपना नियंत्रण रख सकता है. तो फिर इसमें धर्म-समाज की दुहाई देकर नाकेबंदी करने का क्या मतलब? और कपिल जी सब जान रहे हैं कि धार्मिक भावनाएं-सामाजिक सरोकार तो सिर्फ एक बहाना है. आपको और आपके आकाओं को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा कि कोई उनकी ज़रा भी आलोचना करे या जनविरोधी नीतियों की पोल खोले. इसे तानाशाही
और आपातकाल न कहा जाए तो क्या कहा जाए?
अगर वाकई किसी को किसी बात पर आपत्ति होती है या कोई किसी को परेशान करता है…आहत करता है, धमकाता है तो इसके लिए तमाम कानून बने हैं जिनका सहारा लिया जा सकता है.
और आप इतना भी नहीं समझ पा रहे कि अभी तो बहुत से लोगों का गुस्सा सिर्फ इस आभासी दुनिया में निकल रहा है, आपकी पाबंदियों से कहीं यह गुस्सा-यह विरोध वास्तव में सड़कों पर आ गया तो? जैसे अभी आप अन्ना आंदोलन से घबरा रहे हैं, जबकि जनलोकपाल की मांग तो वास्तव में आपकी इस व्यवस्था में एक प्रशासनिक सुधार की ही मांग है, आपने अगर यह भी न मानी या कोई और धोखा दिया और कहीं यह लड़ाई अन्य संघर्षों से जुड़कर अन्ना के पार वास्तव में व्यवस्था में बदलाव और सच्चे लोकतंत्र की लड़ाई तक पहुंच गई तो? (काश! ऐसा ही हो), अगर ऐसा हुआ तो आपका क्या होगा जनाबे आली?