फ़लस्तीन के रास्ते में अमरीकी अड़चन

अमरीका ने सीधे शब्दों में फ़लस्तीन से कह दिया है कि अगर फ़लस्तीन संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता के लिए प्रस्ताव लेकर आता है तो अमरीका इसका विरोध करेगा.

अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की पूरी कोशिश यह है कि कैसे फ़लस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में यह प्रस्ताव लाने से रोका जाए.
बराक ओबामा ने फ़लस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास से जब अपना पक्ष स्पष्ट किया तो उन्होंने भी जवाब दे दिया कि अमरीका के इस विरोध से डरकर वो संयुक्त राष्ट्र के समक्ष अपना प्रस्ताव रखने के फैसले से पीछे हटने वाले नहीं हैं.
बराक ओबामा संयुक्त राष्ट्र में पिछले दिनों कह चुके हैं कि फ़लस्तीन के एक राष्ट्र बनने की प्रक्रिया इसराइल से बातचीत किए बिना पूरी नहीं हो सकती है.
अमरीका के इस ताज़ा रुख से एक बार फिर मध्यपूर्व में हलचल बढ़ गई है.
इसराइल के साथ खड़ा अमरीका इससे मध्यपूर्व की राजनीति और शांति दोनों को सीधे-सीधे प्रभावित कर रहा है और इस घोषणा का प्रतिकूल असर देखने को मिल सकता है.
अमरीका के दोस्तों ने यह बात समझाने की कोशिश भी की है पर अमरीका इसराइल प्रेम और फ़लस्तीन को लेकर अपनी भेदभावपूर्ण नीतियों से पीछे हटने को राजी नहीं दिखता.
फ़्रांसिसी राष्ट्रपति निकोला सार्कोज़ी पहले ही चुनौती दे चुके हैं कि अमरीका ने फ़लस्तीन के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में वीटो किया तो इससे मध्य पूर्व में हिंसा फिर शुरु हो सकती है.
राजनीति तेज़
फ़लस्तीन के प्रस्ताव को लेकर राजनीतिक हलचल तेज़ हो गई है.
एक ओर जहाँ फ़लस्तीन की कोशिश है कि ज़्यादा से ज़्यादा सदस्य उसके प्रस्ताव के समर्थन में अपना मत रखें वहीं दूसरी ओर अमरीका की कोशिश है कि इस प्रस्ताव को रखने, स्वीकार करने या पारित करने से किस तरह रोका जाए.
फ़लस्तीन की ओर से प्रस्ताव शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र के समक्ष रखा जा सकता है. इसपर संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून को फैसला लेना होगा कि संयुक्त राष्ट्र के पटल से इस प्रस्ताव को स्वीकार किया जाए या नहीं.
संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव की स्वीकारोक्ति अमरीका के लिए मुश्किलें और कड़ी कर देगा क्योंकि अगर बान की मून इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं तो इसपर संयुक्त राष्ट्र में मतदान होगा.
मतदान की स्थिति में अमरीका पहले ही कह चुका है कि वो इस प्रस्ताव को वीटो करेगा. ऐसे में जबकि कई सदस्य देश फलस्तीन के पक्ष में संकेत दे रहे हैं, अमरीका का वीटो अपने ही दोस्तों के बीच उसको अलग-थलग खड़ा कर देगा.
इसी स्थिति से बचने के लिए अमरीका की ओर से राजनयिक स्तर पर तेज़ी से प्रयास किए जा रहे हैं जिससे इस प्रस्ताव को पेश होने से रोका जा सके.
वैसे प्रस्ताव के पारित होने का रास्ता इतना आसान भी नहीं है.
संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव के प्रस्तुत होने और स्वीकारे जाने के बाद ही मतदान की स्थिति बनेगी. मतदान के ज़रिए इस प्रस्ताव को पारित होने के लिए ज़रूरी है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में से 9 सदस्य इस प्रस्ताव के समर्थन में अपना मत दें.
इतना ही नहीं, इस आवश्यक समर्थन के बावजूद अगर कोई स्थाई सदस्य राष्ट्र फ़लस्तीन के प्रस्ताव को वीटो कर देता है तो यह पारित नहीं हो सकेगा.
अमरीका पहले ही कह चुका है कि वो इस प्रस्ताव को वीटो करेगा.
ऐसे में, प्रस्ताव का भविष्य तो सकारात्मक नहीं दिखता है पर इस प्रस्ताव को लेकर जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय जगत में राजनीतिक हलचल है, उससे फ़लस्तीन को लाभ मिलेगा और अमरीका-इसराइल के कुटिल प्रेम की कथा को और ज़्यादा आलोचक मिलेंगे.
इन तैयारियों के बीच इसराइल बराक ओबामा की तारीफ करता नहीं अघा रहा है. इसराइल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने कहा है कि इसराइल का समर्थन करने के लिए बराक ओबामा को \’सम्मान\’ मिलना चाहिए.

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