झारखण्‍ड : गिरफ्तार पत्रकार रूपेश की पत्नी की दिल्‍ली में प्रेस कॉन्‍फ्रेंस, जारी की अपील

झारखण्‍ड के रामगढ़ से नक्‍सली बताकर 7 जून को गिरफ्तार किए गए स्‍वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह और अन्‍य के समर्थन में मुहिम तेज़ हो गई है। रूपेश की पत्‍नी ईप्‍सा ने झारखण्‍ड उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश के नाम एक पत्र भेजा है और मीडिया में विज्ञप्ति जारी कर के सारा मामला तफ़सील से बताया है।

ईप्‍सा आज दिल्‍ली में हैं। युनाइटेड अगेंस्‍ट हेट के बैनर तले वे दिन में 3 बजे प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया में प्रेस कॉन्‍फ्रेंस कर रही हैं। इस कॉन्‍फ्रेंस में यूपी पुलिस द्वारा दिल्‍ली से गिरफ्तार किए स्‍वतंत्र पत्रकार प्रशांत कनौजिया भी मौजूद होंगे, जिन्‍हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रिहा किया गया था। नीचे रूपेश कुमार सिंह के मामले में उनकी पत्‍नी द्वारा रविवार को जारी विज्ञप्ति पूरी पढ़ी जा सकती है। (संपादक)


आज सरकार व प्रशासन का दमन ऐसा रूप ले चुका है जहाँ पत्रकार, लेखक, एक्टीविस्ट, बुद्धिजीवी तथा तमाम न्यायपसंद लोग मुजरिम के रूप में कटघरे मे खड़े किये जा रहे हैं ।7 जून को उजागर हुआ रूपेश कुमार सिंह की फर्जी गिरफ्तारी का सच इसी बात से जुड़ा हुआ है कि वे एक न्याय पसंद इंसान है और हमेशा वे सच को लिखते आए हैं। इस लिस्ट में सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, सुरेन्द्र गाडलिंग, सुधीर ढावले जैसे नाम के साथ अब झारखंड के पत्रकार रूपेश कुमार सिंह का नाम शामिल हो चुका है जिनकी पुलिस ने 4 जून को फर्जी गिरफ्तारी कर ली है।

रूपेश कुमार सिंह को पुलिस ने 4 जून को गिरफ्तार कर दो दिन तक अवैध हिरासत में रखा तथा परिजनों को गुमराह करने के लिए फोन कॉल करवाया। एक तरफ झारखण्ड पुलिस उन्हे समाज के मुख्य धारा से जुडे नागरिक के तौर पर खोज रही थी तो दूसरी तरफ बिहार पुलिस उन्हे हार्डकोर नक्सली बता कर गिरफ्तार करती है। साथी रुपेश के खिलाफ कोई पुराना अपराधिक मामला नहीं है ना ही इससे पहले वो कभी जेल गये हैं। पुलिस ने खुद विस्फोटक प्लांट कर गिरफ्तारी दिखाई है। अगर प्लांट नहीं था तो चार जून को ही गिरफ्तारी दिखानी थी। परिस्थिति जन्य साक्ष्य हैं कि पुलिस ने विस्फोटक प्लांट किया है। रूपेश कुमार सिंह के खिलाफ ऐसे षड्यंत्र क्यों रचे गये इसे रूपेश कुमार सिंह को जानकर जाना जा सकता है।

33 वर्षीय रूपेश कुमार सिंह बिहार के भागलपुर के रहने वाले हैं जो बिना किसी डर के सच को अपनी कलम से लिखते रहे हैं। रूपेश कुमार सिंह अपने कॉलेज के दिनों में भाकपा माले लिबरेशन के एक चर्चित छात्र नेता थे। उनकी प्रकृति शुरू से ही जुझारू रही हैं। वहां उनकी पहचान जुझारू नेता के रूप में थी। समाज में कहीं कुछ गलत देखकर निकल जाना उनकी प्रकृति में नहीं रही है। उन्होंने हमेशा ही गलत के खिलाफ आवाज उठाया है। उनकी उभरती छवि को देखकर ही एक बार गुण्डों द्वारा 18 मई 2010 में उनकी किडनेपिंग कर ली गयी थी। पर उनके चाहने वालों के आंदोलन ने उन्हें छुड़ा लिया। उन्हें धमकी मिली थी कि नेतागिरी छोड़ दे। पर उसके बाद भी उनके जुझारूपन में कोई कमी नहीं आई थी।

2012 में पार्टी में असहमति के कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी और अपनी आवाज को बल देने के लिए पत्रकारिता का लाईन चुना। उन्होंने राजनीति से खुद को दूर जरूर किया मगर उनका मकसद समाज के लिए स्वतंत्र होकर अपनी आवाज उठाना था। उनकी लोगों की समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता जरा भी कम नहीं हुई। इसलिए उन्होंने एक-एक गंभीर मुद्दे पर गहराई से लिखना शुरू किया। उनके लेख की पृष्ठ भूमि देखकर ही समझ में आ जाएगा कि क्यों वे सरकार के आंखों की किरकिरी बने? क्यों उन्हे इस तरह के गंभीर आरोप में फंसाया गया?

नक्सली का आरोप लगाकर तीन लोगों को पकड़ा गया है। जिसमें मुख्य अभियुक्त रूपेश कुमार सिंह को बनाया गया है और उसके बाद उनपर तेजी से कारवाईयां की गयी है चाहे घर की तलाशी हो, चाहे परिवार वालों से पूछताछ या कुछ सामान जैसे लैपटॉप, मोबाइल ,पर्सनल डायरी और कुछ किताबें ले किताबें जब्त करना। ऐसा इसलिए हैं क्योकिं झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में रूपेश कुमार सिंह ऐसे पत्रकार है जो हमेशा उनके पक्ष से उनके हक के लिए बेवाकी से लेख और कविताएँ लिखते रहें है। ऐसे लेखक और पत्रकार उन आदिवासियों की आवाज को बल देते हैं जिनकी जमीनें सरकार हड़पकर कारपोरेटरों को देना चाहती है जो इन जमीनों पर फैक्ट्रियां लगाकर मुनाफा पर मुनाफा कमा सके और इस सौदे में मुनाफा का एक हिस्सा सरकार अपनी जेब में भर सके। यह बताने की शायद जरुरत नहीं है कि सरकार विकास के नाम पर किस तरह गरीब-आदिवासियों का दमन कर रही है। जहाँ सरकार भोले-भाले आदिवासियों को उनकी जमीनों से खदेड़ देना चाहती है, वहां ऐसे में कोई उनकी आवाज को लोगों तक पहुंचाएं और सरकार का काला चिठ्ठा खोलकर रख दे, तो क्यों न सरकार के लिए वह दुश्मन बन जाएगा? यही रूपेश कुमार सिंह के साथ हुआ है।

उन्होंने मधुबन के डोली मजदूरों की समस्याओं के बारे में, मजदूरों की प्रिय ट्रेड यूनियन के बारे में, आदिवासियों की जमीन की कारपोरेट लूट के बारे में बहुत गहराई से लिखा हैं। इसके साथ ही देश में जगह-जगह होने वाले जनता पर दमन जैसे बीएचयू में छात्राओं के आंदोलन पर, बड़कागांव गोलीकांड में मरने वाले ग्रामीणों पर, कश्मीर की जनता के उपर होने वाले अत्याचार पर लेख, कविताएँ, टिप्पणियां लिखकर सच को उजागर किया है। देश में जब जब कोई संवेदनशील मुद्दा उठा उन्होंने अपनी पहल जरूर दिखाई। जब देशद्रोह का मुकदमा बनाकर कइयों की बोलने की आजादी छिनने की कोशिश की जा रही थी ” क्या हम सभी देशद्रोही हैं” लेख लिखकर उन्होंने पहल की। जब अर्बन नक्सल के नाम पर लोगों की गिरफ्तारी हुई, उन्होंने विरोध में ” मैं भी अर्बन नक्सल “का टैग चिपकाकर उसका विरोध किया। जब नक्सली बताकर एक आदिवासी मजदूर की हत्या की गई, उन्होंने खुलकर सारा सच लेख के जरिए सामने रखा, जब मजदूरों की आवाज बनी मजदूर संगठन समिति पर सरकार ने प्रतिबंध लगाए, उन्होंने बिना किसी डर के वेबाकी से उस प्रतिबंध की सच्चाई को उजागर करते हुए लेख लिखा।

जब खदान में मजदूर दबकर मरे, उन्होंने व्यवस्था की लापरवाही को उजागर किया। वे अपनी लेखनी से कभी किसी सच्चाई को उजागर करने या कविताओं से जनहित आंदोलन का पक्ष लेने से नहीं चुकते थे। रूपेश कुमार सिंह जैसे लेखकों की लेखनी उनके काम में बाधा पहुंचाती है यही वजह है कि वे सरकार और प्रशासन के आंखों के किरकिरी बन गये। यह एक पहलू है, दूसरा पहलू यह है कि रूपेश कुमार उन लोगों के लिए भी आवाज उठाते आए हैं , जिन्हें सरकार ने गलत आरोप लगाकर जेल में डाल रखा है। आज उनकी फर्जी गिरफ्तारी पर विरोध के लिए बहुत कम आवाजें उठ रही है। शायद इसके पीछे का कारण उनपर लगाए गये गंभीर आरोप है। ऐसे गंभीर आरोप भी सरकार ने पूरे सूझ-बूझ से लगाया है। ऐसे गंभीर आरोप ही क्यों लगाए गये?

सरकार ने अभी एक माहौल खड़ा किया है। नक्सल मुक्त अभियान। देश में सारे अपराध अपने चरम सीमा पर है पर सरकार ने आतंकवाद और नक्सलवाद के खात्मे को टारगेट किया दिखा रही है और उसके लिए अभियान चला रही है। वास्तविकता में देश के लिए खतरा बताकर नक्सली का और नक्सली समर्थक का टैग लगाकर सरकार उन सामाजसेवियों, पत्रकारों, लेखकों व न्याय पसंद लोगों को निशाना बना रही है जो सरकार के झूठ को बेनकाब करते हैं। चाहे वह सुधा भारद्वाज, सुधीर ढावले, वरवरा राव, सुरेन्द्र गडलिंग हो चाहे झारखंड के पत्रकार रूपेश कुमार सिंह। नक्सल नाम का ऐसा हव्वा खड़ा किया है कि इस नाम के टैग लगा देने के बाद शायद ही कोई उनके पक्ष में खड़ा होने की हिम्मत कर सके। जो भीड़ देश की अन्यायी व्यवस्था के खिलाफ चीख -चीख कर कहती है, नक्सली का आरोप देखकर संकुचित हो जाती है ऐसे में रूपेश कुमार सिंह की जो सामाजिक पहचान है उसपर प्रशासन द्वारा नक्सली आरोप लगाकर ही काबू पाया जा सकता था। इसकारण उनपर हार्डकोड नक्सली का टैग लगाया गया है।

पर क्या सरकार को यह हक है कि वे इन नामों पर अपना मनमानापन दिखाए? सरकार जिस तरह से अपराध के नाम पर बेरोकटोक वैसे लोगों की गिरफ्तारी कर रही है, उन्हें अपना निशाना बना रही है जो न्याय पसंद करते हैं तथा समाज के लिए काम करते हैं वह एक बहुत चिंताजनक स्थिति है और हमें चाहिए कि इस मनमानेपन के खिलाफ हम एकजुट हों।

रूपेश कुमार सिंह की गिरफ्तारी का सच

अंधेरे में भटकता रूपेश कुमार सिंह की गिरफ्तारी का सच सामने तब आया जब मैं 9 जून को उनसे मिलने शेरघाटी जेल गयी, यह देख बहुत अच्छा लगा कि मेरे जीवन साथी रूपेश कुमार सिंह के हौसले में कोई कमी नहीं आई है। उसे भरोसा है खुद पर और अपनी लेखनी पर। उसने पुलिस की कहानी से इतर जो सच बताया कि इनकी गिरफ्तारी 6 जून को नहीं 4 जून को सुबह 9:30 बजे ही हो गई थी। इनकी गिरफ्तारी झारखण्ड के हजारीबाग जिला अंतर्गत पद्मा जो हजारीबाग से थोड़ा आगे है में तब हुई जब वे लघुशंका के लिए गाड़ी साइड किए थे। इनकी गिरफ्तारी आईबी द्वारा की गयी। लघुशंका जाने के ही क्रम में पीछे से अचानक हमला बोला गया। बाल खिंच कर आंखों पर पट्टी लगा दी गई और हाथों को पीछे कर हथकड़ी भी लगाई गई, जिसका विरोध करने पर हथकड़ी खोल दी गई। बाद में आंखो की पट्टी भी हटा दी गयी। इन्हें फिर बाराचट्टी के कोबरा बटालियन के कैम्प में लाया गया। जहां रूपेश को बिलकुल भी सोने नहीं दिया गया और रात भर बुरी तरीके से मानसिक टार्चर किया गया। उन्हें धमकाया गया कि व्यवस्था या सरकार के खिलाफ लिखना छोड़ दें। रुपेश को खुद के एन्काउन्टर किए जाने की शंका भी हो रही थी । बातचीत की भाषा से रुपेश ने शंका जतायी है कि उनमे आंध्र प्रदेश आईबी के लोग भी थे।

कहा गया कि- “पढ़ें लिखे हो अच्छे आराम से कमाओ खाओ। ये आदिवासियों के लिए इतना क्यों परेशान रहते हो कभी कविता, कभी लेख। इससे आदिवासियों का माओवादियों का मनोबल बढ़ता है भाई। क्या मिलेगा इससे। जंगल,जमीन के बारे बड़े चिंतित रहते हो, इससे कुछ हासिल नहीं होना हैं, शादी शुदा हो परिवार है उनके बारे सोचो। सरकार ने कितनी अच्छी अच्छी योजनाएं लायी हैं इनके बारे में लिखो। आपसे कोई दुश्मनी नहीं है, छोड़ देंगे।”

तीनों को कहा गया कि आप लोगों को छोड़ देगें। और 6 जून को मिथिलेश कुमार से दोपहर 1 बजे काल भी करवाया गया जिसके आधार पर पोस्ट भी अपडेट किया था कि तीनों सुरक्षित हैं। घर आ रहें हैं। साथ ही इसकी जानकारी हमने काल करके रामगढ़ थाना को भी दी जहां इन सबकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गयी थी।5 जून को रूपेश को 4 घंटे सोने दिया गया। फिर 5 जून की शाम को कोबरा बटालियन के कैम्प में ही इनके सामने विस्फोटक गाड़ी में रखा गया। विरोध करने पर शेरघाटी (बिहार) पुलिस अधीक्षक रविश कुमार ने कहा कि ‘अरे पकड़े हैं तो ऐसे ही छोड़ देगें’ अपनी तरफ से केस पूरी मजबूती के साथ रखेंगें रूपेश जी।’

फिर इसी विस्फोटक सामग्री को दिखाकर शेरघाटी थाना में प्रेस वार्ता किया गया।

फिर इन्हें डोभी थाना को यह कहकर सौंप दिया गया कि ये ऐसे सुनने वाले नहीं अंदर कर दो इन्हें। फिर 6 जून की शाम को इन्हें डोभी थाना से शेरघाटी जेल भेज दिया गया। जहां हमने 9 जून को इनसे मुलाकात की । आखिर इनकी गिरफ्तारी को लेकर इतना झूठ पुलिस ने क्यों बताया? 2 दिनों तक इन्हें सामने क्यों नहीं लाया गया? और भी कई सवाल हैं।

साथ ही इनसे कोरे कागज पर साईन भी करवाया गया है। रूपेश कुमार सिंह एक पत्रकार व जुझारू लेखक हैं जिनके लेख कई चर्चित पत्र-पत्रिकाओं के साथ दक्षिण कोसल में छपते रहते हैं। उन्होंने हमेशा ही सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ बेबाकी से लिखा है। इसलिए उन्हें फंसाया जा रहा है। उनके लेपटॉप व मोबाइल भी पुलिस के पास हैं जिसके साथ वह किसी भी तरह की छेड़छाड़ कर सकती है। बताते चलें कि 7 जून को बिहार पुलिस रामगढ़ (झारखण्ड) आकर रूपेश कुमार सिंह के छोटे भाई कुमार अंशु और ससुर पत्रकार विशद कुमार को अपने साथ यह कहकर ले गए कि रूपेश कुमार सिंह का बोकारो स्थित निवास दिखाने के लिए हमारे साथ चलिये वहां से आपको कुछ ही देर में छोड़ दिया जाएगा। छानबीन के नाम पर उनके छोटे भाई कुमार अंशु और उनके ससुर विशद कुमार को 7 जून की सुबह 7.15 बजे ही पुलिस अपने साथ ले गई और शाम के 8 बजे उन दोनों से सादे कागज और सामान जब्ती की सूची बिना दर्ज किए हुए कागज पर जबरन हस्ताक्षर करवाकर इस शर्त के साथ छोड़ा गया कि उन्हें जब भी जहां भी बुलाया जाएगा उन्हें हाजिरी देनी होगी ।

उन्हें ले जाने कुछ ही घंटों बाद उन में कुमार अंशु का मोबाइल ऑफ और विशद कुमार के मोबाइल का रिसिविंग बंद हो गया। और रात के करीब 10 बजे वो घर पहुँचे। पत्नी ईप्सा शताक्षी की निजी गाड़ी में चुपके से GPRS लगाया गया ।

घटना से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

1- रूपेश कुमार सिंह के सामने ही उस गाड़ी में विस्फोटक रखा गया।

2- रूपेश कुमार सिंह को फर्जी एनकाउन्टर में मार देने की भी धमकी दी गई।

3- रूपेश कुमार सिंह से सादे कागज पर जबरन हस्ताक्षर करवाया गया।

4- रूपेश कुमार सिंह के घरवालों को भी चुपचाप रहने की धमकी जा रही है और उनको अभद्र शब्दों के साथ लगातार गाली भी दी जा रही है ।

5- रूपेश कुमार सिंह के परिवार वालों को घटना के बाद से ही अलग अलग तरीके से परेशान किया जा रहा है जिसके कारण परिवार वालों की सामाजिक स्तर पर नकारात्मक छवि बनती जा रही है।

6- रूपेश कुमार सिंह के ससुर वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार और रूपेश कुमार सिंह के छोटे भाई कुमार अंशु को पुलिस 7 जून को सुबह 7.15 बजे लेकर गयी और बोकारो के सेक्टर 12 थाना में रात के 8 बजे तक भूखा बिठाकर रखा गया।

7- सेक्टर 12 थाना के थाना प्रभारी के चेम्बर में बिना थाना प्रभारी की उपस्थिति में बिहार पुलिस द्वारा रूपेश कुमार सिंह के छोटे भाई कुमार अंशु और ससुर पत्रकार विशद कुमार से सादे कागज पर जबरन हस्ताक्षर करवाया गया।

8- बिहार पुलिस द्वारा रूपेश कुमार सिंह के क्वार्टर सेक्टर 12 और छोटे भाई कुमार अंशु के रामगढ़ आवास से ज़ब्त की गई सामग्री की बिना जब्ती सूची दर्ज किए कागज पर उनके छोटे भाई कुमार अंशु और उनके ससुर विशद कुमार से जबरन हस्ताक्षर करवाया गया।

9- रूपेश कुमार सिंह की पत्नी ईप्सा शताक्षी की निजी गाड़ी Hyundai Eon Era+SE गाड़ी सं- JH 09AK7013 में एक airtel 4G SIM+GPRS with camera जिसका GPRS no.- SN 1611050005246
SIM no. 89915109020964788450 है, लगा हुआ था। संभावना है कि यह काम गाड़ी के पार्किंग के दौरान मास्टर की से गई है। इस घटना से हमें यह डर है कि इस तरह आगे भी हमारी गाड़ी में कुछ भी कहीं भी रखा जा सकता है और हमें किसी भी तरह का नुकसान पहुंचाया जा सकता है ।

10- रूपेश कुमार सिंह की पत्नी ईप्सा शताक्षी, माँ हेमलता देवी, छोटा भाई कुमार अंशु, ससुर व पत्रकार विशद कुमार, साला प्रियम प्राणेश और साली इलिका प्रिय को अनजान लोगों द्वारा धमकी दी जा रही है, जिसके कारण उन सबका बाहर निकलना मुश्किल हो गया है और वे इस भय के वातावरण काफी डरे हुए हैं ।

पुलिस ने जिन सामानों को जब्त किया है

2 लैपटॉप जिनमें
1.Acer Aspire Dual Core
ESI- 132-C897 Black and Blue.
2.iball .mini notepad.
एक Lenova का Tab.
कुछ साहित्यिक किताबें।
पत्नी ईप्सा शताक्षी की निजी डायरी जिसमें नेट बैंकिंग का आई डी और पासवर्ड लिखा है।
रामगढ़ पुलिस द्वारा जब्त एक Nokia dual sim जिसका Mob.no.- 8877644843
9523836232 है।

अतः इन सारे तथ्यों को देखकर हम आवाज उठाने की जरूरत महसूस करतें हैं और सारे न्याय पसंद लोगों से न्याय के लिए आवाज उठाने की अपील करते हैं। हमारी मांगें हैं-

1. रुपेश कुमार सिंह और उनके साथियों को अविलंब रिहा किया जाए ।
2. उन पर लगाए तमाम झूठे आरोपों को खारिज किया जाए ।

द्वारा जारी
ईप्सा शताक्षी


झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नाम ईप्सा शताक्षी का पत्र

सेवा में,
माननीय मुख्य न्यायाधीश,
उच्च न्यायालय,
झारखंड

माननीय से साग्रह बताना है कि डोभी – शेरघाटी (बिहार) पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गये मेरे भाई रूपेश कुमार सिंह, पिता – अरविंद प्रसाद सिंह, ग्राम – सरौनी, थाना – शाहकुण्ड, जिला – भागलपुर के एक पत्रकार व प्रगतिशील लेखक हैं जिनके लेख कई चर्चित पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं। उन्होंने हमेशा ही गलत नीतियों के खिलाफ बेवाकी से लिखा है। इसलिए उन्हें फंसाया जा रहा है। उनके लेपटॉप व मोबाइल भी पुलिस के पास हैं जिसके साथ वह किसी भी तरह की छेड़छाड़ कर सकती है।

यह संभावना इसलिये बनती है कि 7 जून को ही सुबह ढोभी थाना से बिहार पुलिस की टीम रामगढ़ पहुंच कर मुझे और मेरे भाई के ससुर वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार को भाई रूपेश कुमार सिंह का बोकारो स्थित आवास पर छापेमारी करने के नाम पर यह बोल कर ले गयी कि छापेमारी में बरामद होने वाले सामान की सूची पर आप सबकी की गवाही चाहिए । पुलिस ने कहा कि वहां से आप दोनों को कुछ ही देर में छोड़ दिया जाएगा। पुलिस बोकारो पहुँच कर किसी भी तरह का कोई सर्च वारंट दिखाए बिना ही मेरे बड़े भाई रूपेश कुमार सिंह के क्वार्टर नंबर- 3041 सेक्टर 12 की तलाशी ली और हम दोनों को अपने साथ बोकारो के सेक्टर 12 थाना ले गयी। इसके पहले हम दोनों का मोबाइल पुलिस द्वारा ले लिया गया। इस घटना का सबसे अमानवीय पहलु यह रहा कि हम दोनों कुमार अंशु और पत्रकार विशद कुमार को सेक्टर बाहर थाना के कम्प्यूटर हाल में लगभग आठ घंटे तक बिठाकर रखने के बाद भी हमें खाना बगैरह के लिए नहीं पूछा गया, शाम तक हम भूख से परेशान रहे । शाम के आठ बजे के करीब हमें बुलाया गया और सेक्टर 12 थाना के थाना प्रभारी के चेम्बर में बिहार पुलिस के एक अधिकारी द्वारा द्वारा सादे कागज पर जबरन हस्ताक्षर करवाया गया । वहीं क्वार्टर से जब्त की गयी सामानों की सूची बिना दर्ज किये हुए कागज पर भी हम दोनों यानी मैं कुमार अंशु और पत्रकार विशद कुमार का जबरन हस्ताक्षर करवा लिया गया है । इतना ही नहीं हमसे यह भी लिखवाया गया कि वे (पुलिस) जब चाहे जहाँ चाहे हमें बुला सकती है और हमारा वहां पहुंचना अनिवार्य होगा । यह हस्ताक्षर और बॉण्ड बोकारो के सेक्टर 12 थाना के थाना प्रभारी के चेम्बर में करवाया गया है ।

फिर रात के लगभग 10 .30 बजे के हम अपने घर पहुँचे। माननीय उच्च न्यायालय के निवेदन है कि हमें डर है कि हमारे एवं हमारे परिवार वालों के लिए यह काफी चिंता का विषय है कि इन कागजातों का पुलिस द्वारा हमारे खिलाफ दुरुपयोग किया जा सकता है ।
—–
प्रतिलिपि-
डीजीपी बिहार
मानवाधिकार आयोग, रांची (झारखण्ड)
मानवाधिकार आयोग, दिल्ली, (भारत)

कुमार अंशु,
पिता – अरविंद प्रसाद सिंह,
वर्तमान पता – इफको कोलनी,
बिंझार, रामगढ़ (झारखण्ड)
स्थाई पता – ग्राम – सरौनी, थाना – शाहकुण्ड, जिला – भागलपुर

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