किसी भी देश या फिर इलाके के विकास के लिए ज़रूरी है कि गर्भवती औरतों और नवजातों की मौत को कम किया जाय, किन्तु कॉर्पोरेटपरस्ती के लिए चलाये जा रहे आर्थिक विकास के अजेंडे में स्वास्थ्य एक व्यापार होता है. कॉर्पोरेट फासीवाद अपनी लूट को छिपाने के लिए मनोगतवादी अभियानों के आगे बढ़ाता है और दूसरी तरफ मेहनतकश जनता तिल-तिल कर जीने और मरने की जद्दोजहद में लगी रहती है.
फर्जी जनवाद केवल घोषणा करता है, जिसका उदाहरण श्री नरेंद्र मोदी का वाराणसी है. सरकारी आंकड़ों में वाराणसी में 700 बच्चे अतिकुपोषण के शिकार हैं, तो 1500 अन्य कुपोषित बच्चे हैं. स्वास्थ्य सेवाओं में बजट कम होने, दलितों व वंचितों के साथ भेदभाव और स्वास्थ्य को बाजार के हवाले रखने के कारण बच्चों व नवजातों की मौत असमय हो रही है.
अपने स्तंभ के इस पहले अंक में मैं मुसहरों के लिए 20 वर्षों से काम कर रही श्रुति नागवंशी द्वारा एक नवजात की मृत्यु पर किये गये सामाजिक ऑडिट की रिपोर्ट को प्रस्तुत कर रहा हूं.
घटना 8 फरवरी, 2019 की है. जिला वाराणसी ब्लॉक बडागांव अंतर्गत ग्राम पंचायत खरावन ग्राम लखापुर निवासी उर्मिला पत्नी राजेन्द्र मुसहर का प्रसव उप स्वास्थ्य केंद्र साधोगंज में नियुक्त महिला सफाईकर्मी सुरसत्ती यादव (पूर्व में पारम्परिक दाई के रूप में इनके द्वारा ग्राम स्तर पर प्रसव का कार्य किया जाता रहा है) द्वारा प्रसूता के घर पर ही कराया गया. शिशु का शरीर ठंडा होने (हाथ पैर गलने) की शिकायत पर सुरसत्ती यादव द्वारा सुझाव दिया गया कि कोई ऊपरी कारण हो सकता है, आप किसी तांत्रिक से झाडफूंक करा लो.
दाई सुरसत्ती यादव ने प्रसूता की मां केवला से अपनी तारीफ करते हुए कहा कि यह प्रसव तो बिना आपरेशन के नहीं होता लेकिन मैंने इसको घर पर ही करा दिया. बार-बार यही बात दोहराकर परिवार के सभी सदस्यों को भावनात्मक रूप से प्रभावित करके उसने 800 रुपये की मांग की और बार-बार यह दोहराती रही कि यह प्रसव तो बिना आपरेशन के नहीं होता लेकिन मैंने इसको घर पर ही करा दिया. परिवार के लोग भावना में बहकर दाई सुरसत्ती यादव को 1500 रुपये दे दिए.
सुरसत्ती यादव, जो समुदाय में पहले भी प्रसव कराती थीं, लोगों का उन पर काफी विश्वास था. अतः सुझाव अनुसार नवजात की दादी केवला देवी द्वारा इलाज के स्थान पर तांत्रिक की खोज करके उन्हीं के निर्देश का पालन किया गया. सुरसत्ती के सुझाव पर केवला देवी ने बसनी निवासी एक मौलवी तांत्रिक का पता किया. मौलवी के पास जाकर अपने परिवार व नवजात शिशु के बारे में पूरी जानकारी दी. मौलवी द्वारा उपाय के रुप में सरसों, झाड़ू, कपूर आदि सामग्री को बाजार से खरीद कर प्रसूता के घर में जलाकर धुआं देने की सलाह दी गयी. केवला देवी साधोगंज बाजार से सभी सामान की खरीददारी करते हुये शाम लगभग 5:30 बजे के आसपास अपने घर पहुंची और मौलवी द्वारा बताई गई विधि से धुआं देने का कार्य किया. इसका शिशु पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और रात लगभग 9:30 बजे शिशु की मृत्यु हो गई.
मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ती सरोजा देवी द्वारा प्रसूता उर्मिला को ICDS की सेवा यथा पोषाहार, पोषण एवं स्वास्थ्य के सन्दर्भ में जानकारी आदि नही दी गई. उनका कहना है कि उर्मिला इस गांव की बिटिया है सो बेटियों का नाम लाभार्थी लिस्ट में नही शामिल किया जा सकता है . शादी के एक वर्ष बाद से उर्मिला अपने मायके में ही रहती आ रही है. तीनों गर्भावस्था के दौरान इसी गांव में रही है. उसके बच्चों का जन्म भी यहीं पर हुआ जिनमें सभी बच्चे मृत्यु का शिकार हो गए (एक स्टिल डेथ हुआ, दो शिशु मृत्यु). उर्मिला का एक बार भी स्वास्थ्य परीक्षण नहीं हुआ, उसे आयरन की गोली/सिरप या कैल्शियम गोली/सिरप आदि भी नहीं मिली जबकि उर्मिला HRP महिला रही है.
इस शिशु मृत्यु के पहले भी उर्मिला पीएचसी बड़ागांव में प्रसव कराने गयी थी तब वंहा के स्टाफ के द्वारा उर्मिला के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया गया था. बाद में जिला महिला चिकित्सालय, कबीरचौरा, वाराणसी रिफर कर दिया गया था. सरकारी स्वास्थ्यकर्मी के खराब व्यवहार से खिन्न केवला देवी के द्वारा गांव के ही साहूकार से 5000 रुपये 12 फीसद ब्याज पर लेकर नगीना वर्मा के क्लिनिक साधोगंज में प्रसव कराया गया, जहां नगीना वर्मा द्वारा मृत शिशु को उर्मिला के गर्भ से टुकड़े-टुकड़े कर के निकाला गया था. इसके बारे में बताते हुए केवला देवी अभी भी कांप जाती हैं.
| पहली देरी | निर्णय लेने में हुई देरी |
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| दूसरी देरी | उपयुक्त सुविधा केंद्र तक पहुंचने में देरी | पति राजेन्द्र एवं मां केवला देवी प्रसूता उर्मिला को ट्राली से लेकर साधोगंज उप स्वास्थ्य केंद्र पहुंचा जो उनके घर से 500 मीटर की दूरी पर है |
| तीसरी देरी | स्वास्थ्य केंद्र से प्रबंधन के साथ रेफरल सेवाएं न मिलना |
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नोट: यह ऑडिट रिपोर्ट भारत सरकार के आधिकारिक उपकरण और मॉडल पर आधारित है
नवजात शिशु की मौत की सोशल ऑडिट रिपोर्ट योगी और मोदी के तथाकथित नारे ‘सबका साथ और सबका विकास’ की पोल खोल देती है, भले दूसरी तरफ दलाली करने वाले और डरे हुए सामाजिक कार्यकर्ता ऐसी घटनाओं पर चुप लगा जाएं.
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