काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में समाजशास्त्र विभाग के आदिवासी शिक्षक मनोज कुमार वर्मा पर हुए हमले में गवाही देने वाला एक छात्र पिछले ढाई महीने से गायब है लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई है। हालांकि लंका थाना पुलिस उसके भाई की तहरीर पर प्राथमिकी दर्ज कर उसकी तलाश कर रही है लेकिन उसे अभी तक कोई खास सफलता नहीं मिली है।
मीडियाविजिल.कॉम के पास मौजूद दस्तावेजों के अनुसार सामाजिक विज्ञान संकाय के अधीन समाजशास्त्र विभाग के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के अंतिम वर्ष के छात्र रोहित पटेल, राजेंद्र प्रताप सिंह, अजीत मौर्य, अमर सिंह और धीरज प्रताप मिश्र ने विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मनोज कुमार वर्मा पर हुए हमले में विश्वविद्यालय की आंतरिक जांच कमेटी के सामने गवाही दी थी। मीडियाविजिल.कॉम की तफ़्तीश में सामने आया है कि अजीत मौर्य ने गत 15 फरवरी को जांच कमेटी के सामने पीड़ित आदिवासी शिक्षक मनोज कुमार वर्मा के दावों के समर्थन में गवाही दी थी। विश्वविद्यालय की जांच कमेटी की रिपोर्ट में भी अजीत मौर्य के बयान का जिक्र है।
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मीडियाविजिल.कॉम को मिले दस्तावेजों की मानें तो गत 15 फरवरी को जांच कमेटी के सामने बयान दर्ज कराने वाले अजीत मौर्य और अन्य छात्रों ने कुछ दिनों बाद विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर अपने लिखित बयान की छाया-प्रति उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था।
मिर्जापुर जिले के अहरौरा थाना अंतर्गत बैरमपुर गांव निवासी अजीत मौर्य के छोटे भाई और बीएचयू के ही छात्र कमलेश कुमार मौर्य द्वारा लंका थाने में दर्ज कराई गई प्राथमिकी की मानें तो विश्वविद्यालय से सटे सिर-गोवर्धनपुर गांव स्थित बंधुभवन लॉज में किराये पर रहकर पढ़ाई करता था। गत 15 मार्च को शाम करीब साढ़े नौ बजे लॉज से बाहर निकला। इसके बाद उसका पता नहीं चला। कमलेश ने अगले दिन लंका थाने में अजीत मौर्य के गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई लेकिन उसका कोई पता नहीं चला। फिर उसने गत 29 मार्च को अजित मौर्य के अपहरण और किसी अनहोनी की आशंका जताते हुए उचित धाराओं में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए लंका थाना में तहरीर दी जिस पर पुलिस ने अगले दिन शाम करीब आठ बजे भारतीय दंड विधान की धारा-364 (हत्या या फिरौती के लिए अपहरण करना) के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की। कमलेश की मानें तो पुलिस शुरू से ही मामले में लापरवाही बरत रही है जिससे अभी तक उसके भाई का पता नहीं चला है।
बता दें कि गत 28 जनवरी को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सामाजिक संकाय के समाजशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मनोज कुमार वर्मा पर छात्रों और अन्य अराजक तत्वों के एक गुट ने कक्षा में हमला कर दिया था। उन्होंने उन्हें बुरी-तरह मारा पीटा था और जूता-चप्पलों की माला पहनाकर विश्वविद्यालय परिसर में घुमाया था। उसी दिन दोनों पक्षों द्वारा लंका थाने में एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई गई थी। मामले का वीडियो मीडिया में आने के बाद विश्वविद्यालय के कुल-सचिव ने तीन दिनों बाद मामले की जांच के लिए प्रो. ए. वैशम्पायन की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय आंतरिक कमेटी गठित की जिनमें विज्ञान संस्थान के प्रो. संजय कुमार, विधि संकाय के प्रो. अजय कुमार, प्रबंध अध्ययन संस्थान के प्रो. आरके लोधवाल बतौर सदस्य एवं सहायक कुल-सचिव (प्रशासन-शिक्षण) आनंद विक्रम सिंह सदस्य सचिव शामिल थे।
कमेटी के एक सप्ताह के अंदर अपनी रिपोर्ट विश्वविद्यालय प्रशासन को देनी थी। बाद में कुलपति ने 6 फरवरी 2019 को कमेटी की अवधि को विस्तार दे दिया था। कमेटी ने 16 फरवरी 2019 को अपनी रिपोर्ट विश्वविद्यालय प्रशासन को सौंप दी। हमला करने वाले छात्रों ने डॉ. मनोज कुमार वर्मा पर छात्राओं के साथ छेड़खानी करने और फेसबुक पोस्ट करने उन्हें बदनाम करने का आरोप लगाया था लेकिन जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में किसी पीड़ित छात्रा के सामने नहीं आने और उनके खिलाफ कोई ठोस सुबूत नहीं मिलने पर कुछ संस्तुतियों एवं हिदायत के साथ डॉ. मनोज कुमार वर्मा को क्लीन चिट दे दी।
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