मुज़फ्फ़रपुर बुखार: मोदी के आयुष्मान भारत से क्यों नहीं बच रही बच्चों की जान

बिहार में दिमाग़ी बुखार से 150 से ज़्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. हर दिन यह आँकड़ा बढ़ता जा रहा है. मीडिया रिपोर्टों में मुज़फ़्फ़रपुर की बदहाल व्यवस्था की तस्वीर पेश की जा रही है.

अस्पतालों की कमी, बिना डॉक्टरों के वॉर्ड, बिना प्रशिक्षण वाला स्टाफ़ और फ़ंड का बड़ा संकट.

देर से ही सही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी दिल्ली में अपने सरकारी कार्यक्रमों और बैठकों से मुक्ति पा कर मौत का सिलसिला शुरू होने के दो हफ़्ते बाद मुज़फ्फ़रपुर पहुंचे, जहां उन्हें लोगों के ग़ुस्से का सामना करना पड़ा.

इससे पहले देर रात उन्होंने अपने घर पर एक्यूट इनसेफ़िलाइटिस सिंड्रोम (AES) पर समीक्षा बैठक बुलाई थी और मुख्यमंत्री कोष से मृतक के परिवार वालों को 4-4 लाख देने की घोषणा की.

बिहार के मुज़फ्फ़रपुर में मरने वाले बच्चे और उनके परिवार वाले ज़्यादातर बच्चे बहुत ही ग़रीब परिवार से आते हैं.

ये वही तबका है जिनको ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की शुरुआत की थी.

आयुष्मान भारत क्या है ?

इस योजना के तहत हर साल ग़रीब परिवार को पाँच लाख रुपए के स्वास्थ्य बीमा देने की बात कही गई है.

सरकार का दावा है कि इससे 10 करोड़ परिवार यानी 50 करोड़ से अधिक लोगों को फ़ायदा होगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार पाँच लाख की राशि में सभी जाँच, दवा, अस्पताल में भर्ती के खर्च शामिल हैं. इसमें कैंसर और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों सहित 1300 बीमारियां शामिल की गई हैं.

आयुष्मान भारत के तहत परिवार के आकार या आयु पर कोई सीमा नहीं है. ऐसे में दावा है कि इसमें हर किसी का मुफ़्त इलाज तय है.

अब जब मुज़फ्फ़रपुर में बच्चों की मौत की संख्या लगातार बढ़ रही है तो आयुष्मान भारत योजन पर सवाल उठ रहे हैं और सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि ऐसी योजना का क्या फ़ायदा जो बच्चों को बचा नहीं सकी.

AES और आयुष्मान भारत

इस योजना के प्रचार प्रसार में अक्सर एक लाइन लिखी जाती है- ”अब नहीं रहा कोई लाचार, बीमार को मिल रहा है मुफ़्त उपचार.”

एक ओर आयुष्मान भारत के आधिकारिक ट्वीटर पर यह नारा लगा है और दूसरी ओर सच्चाई ये है कि मुज़फ़्फ़रपुर में एक्यूट इनसेफ़िलाइटिस सिंड्रोम के केवल 32 लाभार्थी ही सामने आए हैं.

बीबीसी से बातचीत में आयुष्मान भारत के डेप्युटी सीईओ डॉ. दिनेश अरोड़ा ने बताया एक्यूट इनसेफ़िलाइटिस सिंड्रोम (AES) और वायरल इन्सेफ़िलाइटिस दोनों ही बीमारियां आयुष्मान भारत योजना के तहत कवर हैं. यानी योजना के तहत अगर आप आयुष्मान भारत के लाभार्थी हैं तो दोनों ही बीमारियों का मुफ़्त इलाज़ होगा.

एक साल में आयुष्मान भारत के कितनों को फ़ायदा?

इस सवाल पर उन्होंने बताया, “आयुष्मान भारत के तहत बिहार के मुज़फ्फ़रपुर में अब तक केवल 32 लोगों ने इलाज कराया है. इनमें से एक की मौत हो चुकी है और 31 लोगों का इलाज चल रहा है.”

आयुष्मान भारत के आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक़ इन 32 बच्चों के इलाज के लिए सरकार ने बिहार में अस्पताल को तकरीबन पाँच लाख रुपए दिए हैं.

इतना ही नहीं आयुष्मान भारत के डेप्युटी सीईओ के मुताबिक़ उन्होंने राज्य सरकार को इस बावत चिट्ठी भी लिखी है कि अस्पताल प्रशासन आयुष्मान भारत योजना का लाभ सभी मरीज़ों को दे जो एक्यूट इनसेफ़िलाइटिस सिंड्रोम से ग्रसित हैं.

लेकिन इनमें से आख़िर कितने लोग श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के मरीज़ हैं? इस सवाल के जवाब में उनका कहना था कि ये अस्पताल इलाक़े का सबसे बड़ा अस्पताल है. ज़ाहिर है कि सभी मरीज़ इसी अस्पताल में जाते हैं.

मुज़फ़्फ़रपुर के जिस दूसरे बड़े अस्पताल से एक्यूट इनसेफ़िलाइटिस सिंड्रोम के मरीज़ सामने आ रहे हैं, वो है केजरीवाल अस्पताल. हालांकि ये अस्पताल आयुष्मान भारत योजना में नहीं रखा गया है.

बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला में 28 अस्पताल आयुष्मान भारत के रजिस्टर हैं. इनमें से 18 प्राइवेट अस्पताल हैं और केवल 10 सरकारी अस्पताल हैं. श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल उनमें से एक है.

मुज़फ्फ़रपुर में आयुष्मान भारत और लाभार्थी

मुज़फ़्फ़रपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल में इलाज कराने आए मरीज़ों के परिजनों से हमने आयुष्मान योजना के बारे में सवाल पूछा.

ज़िले के राघोपुर गांव के गायघाट ब्लॉक की कबूतरी देवी और गौरी राय अपने 06 महीने के पोते अलोक कुमार के इलाज के लिए दो दिनों तक निजी अस्पताल और क्लिनिक के चक्कर लगाती रहीं. उनके पास आयुष्मान कार्ड नहीं है और निजी अस्पातलों और क्लिनिक में इलाज में उन्हें 1000 रुपए खर्च करने पड़े.

कबूतरी और गौरी बताती हैं, “बच्चा ठीक नहीं है. डॉक्टरों के मुताबिक़ हमलोग बच्चे को लाने में देरी कर दिए हैं. लेकिन आदमी को कुछ होता है तो पहले लोकल में ही दिखाता है. लेकिन जब से यहां आएं हैं तब से बाक़ी इलाज मुप़्त में ही हुआ है. हमको आयुष्मान कार्ड के बारे में पता नहीं हैं.”

दो-तीन और मरीज़ों से स्थानीय पत्रकार सीटू तिवारी ने बात की. उनके मुताबिक़ सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए पैसे तो नहीं लगे, लेकिन इलाज के दौरान आयुष्मान भारत कार्ड के बारे में उनसे नहीं पूछा गया.

यही सवाल जब हमने श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल प्रशासन से पूछा तो अस्पताल के सुपरिटेंडेंट का कहना था कि सभी मरीज़ो का इलाज मुफ़्त हो रहा है, आयुष्मान और ग़ैर-आयुष्मान का अंतर बता पाना उनके लिए संभव नहीं है

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इलाज उन अस्पतालों में हो रहा है जहां सुविधाओं का घोर अभाव है और यहां से ज़्यादातर बच्चे मरकर वापस जा रहे हैं.

आख़िर बुख़ार से मरने वालों की संख्या इतनी ज़्यादा है और आयुष्मान भारत के तहत इलाज कराने वालों की संख्या एक तिहाई भी नहीं? ऐसा क्यों?

बीबीसी के इस सवाल के जवाब में डॉ. दिनेश अरोड़ा ने पूरे बिहार के आयुष्मान भारत की लिस्ट गिनाते हैं.

पूरे देश में आयुष्मान भारत में अब तक 3.72 करोड़ से अधिक ई-कार्ड बन चुकें हैं और 12,408 लोगों ने इस योजना का लाभ उठाया है. वहीं बिहार में पिछले एक साल में तकरीबन 16 लाख लोगों के ई-कार्ड बन चुके हैं और 45 हज़ार लोग इस योजना का फ़ायदा उठा चुके हैं.

डॉ. दिनेश अरोड़ा आयुष्मान भारत के लाभार्थियों और एक्यूट इन्सेफ़िलाइटिस सिंड्रोम के मरीज़ों के बीच ये गैप की दूसरी वजह भी बताते हैं. उनके मुताबिक़ ये भी हो सकता है कि सभी लोग इस योजना के लाभार्थी होने के मानदंड पूरे न करते हों.

2016 में साइंस डायरेक्ट नाम की एक पत्रिका में AES पर एक रिसर्च पेपर प्रकाशित की गई है. इस पेपर में साफ़ लिखा गया है कि AES से मरने वाले बच्चों और उनके परिवार की शिक्षा का स्तर, कामकाज़, रहन सहन सब पिछड़े इलाक़ों वाले लोगों जैसा था. उनमें से ज़्यादातर पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग से आते थे.

आधिकारिक तौर पर ग्रामीण इलाक़ों में आयुष्मान भारत योजना का लाभार्थी वही हो सकता है जो 2011 में बीपीएल सूची के तहत आते हैं. अगर ऐसे लोगों के पास आयुष्मान भारत का ई-कार्ड भी नहीं है तो भी वो इस योजना का लाभ उठा सकते हैं.

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