दिल्‍ली में 12 घंटे में हुई पांच हत्‍याएं क्‍या राजधानी के अखबारों के लिए पहले पन्‍ने की ख़बर नहीं है?

आज के हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर तीन कॉलम में एक खबर प्रमुखता से छपी है। इसका शीर्षक हिन्दी में लिखा जाए तो कुछ इस तरह होगा, “अपराध राजधानी : दिल्ली में 15 घंटे में 4 हमले , 5 हत्याएं”। पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था की चिन्ता करने वालों को दिल्ली की यह खबर क्या प्रमुखता से नहीं छापनी चाहिए? देखिए आपके अखबार में यह खबर कहां और कैसे है। मैं जो अखबार देखता हूं उनमें नवभारत टाइम्स (सिंगल कॉलम), नवोदय टाइम्स दो कॉलम और अमर उजाला (टॉप बॉक्स तीन कॉलम) में यह खबर है। बाकी अखबारों में मुझे यह खबर नहीं दिखी। इंडियन एक्सप्रेस में चिकित्सकों की हड़ताल समेत कोलकाता या पश्चिम बंगाल की तीन खबरें हैं। तीनों कोलकाता डेटलाइन से बाइलाइन के साथ यानी एक्सक्लूसिव।

नवभारत टाइम्स में पहले पन्ने पर यह सिंगल कॉलम की खबर है। शीर्षक है, 24 घंटे में 5 मर्डर के बाद उठे सवाल। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे 15 घंटे लिखा है और अमर उजाला ने 12 घंटे। हां, खुद अरविन्द केजरीवाल ने 24 घंटे लिखा है। नभाटा की खबर के साथ मुख्यमंत्री की फोटो लगी है जबकि दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के नियंत्रण में नहीं है। केंद्रीय गृहमंत्री को रिपोर्ट करती है। तकनीकी तौर पर दिल्ली में अपराध के लिए भले मुख्यमंत्री या दिल्ली सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाए लेकिन जब पुलिस उसके नियंत्रण में नहीं है तो ऐसे मामलों में दिल्ली सरकार को कुछ खास करना नहीं है। या दिल्ली सरकार से काम कराना भी केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है। हालांकि, खबर में लिखा है, सीएम ने कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं और गृहमंत्री व एलजी से ध्यान देने की मांग की है। इसलिए फोटो लगाना तकनीकी तौर पर सही है।

नवोदय टाइम्स में यह खबर दो कॉलम में है। शीर्षक है, ताबड़तोड़ हत्याओं से दहली दिल्ली। एक के बाद एक पांच लोगों की गोली मारकर हत्या। अखबार ने इसके साथ अरविन्द केजरीवाल का ट्वीट भी है। अरविन्द ने कहा है, दिल्ली में पिछले 24 घंटों के दौरान पांच हत्याएं होना आत्यंतिक रूप से गंभीर स्थिति है। मैं उपराज्यपाल और भारत सरकार के गृहमंत्री से अनुरोध करता हूं कि राष्ट्रीय राजधानी (क्षेत्र) की कानून-व्यवस्था की स्थिति पर फौरन गौर करें। अखबार ने इसके साथ दिल्ली पुलिस का जवाब भी छापा है जिसमें दावा किया गया है कि अपराध घटे हैं। दिल्ली पुलिस का कहना है ये घटनाएं आपसी रंजिश के कारण हुई हैं।

इसके अलावा, दिल्ली के किसी और अखबार में दिल्ली में कानून व्यवस्था से संबंधित यह खबर नहीं है जबकि पश्चिम बंगाल में भाजपा के दो कार्यकर्ताओं की हत्या और अंतिम संस्कार कोलकाता में करने की मांग पर भाजपा ने हंगामा मचा रखा था और उसकी खबरें दिल्ली में भी छप रही थी जबकि अमूमन ऐसा नहीं होता है और कोलकाता की खबर दिल्ली में छपनी ही थी तो चिकित्सकों के आंदोलन की छपनी चाहिए थी जिससे वहां लोगों को हो रही परेशानी का पता चलता। अब जब यह मामला बड़ा हो गया है तो संयोग से दिल्ली में पांच हत्याएं हो गई और यह कोई साधारण बात नहीं है पर अखबारों ने इसे प्रमुखता नहीं दी। दिल्ली पुलिस के तर्क आपने ऊपर पढ़ ही लिए।

पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टर की हड़ताल की खबर दिल्ली के अखबारों में नहीं छपी और उसे देश भर के डॉक्टर्स का समर्थन मिल रहा है। अब खबर बड़ी हो गई है और ममता बनर्जी को बदनाम करने का मकसद पूरा हो रहा। मुझे याद नहीं आता कि डॉक्टर की पिटाई पर पहले कभी ऐसी हड़ताल हुई है और उसे ऐसा देशव्यापी समर्थन मिला है। कल एनडीटीवी पर निधि कुलपति ने एक विस्तृत रिपोर्ट की जिसमें बताया गया कि डॉक्टर की पिटाई के मामले में कार्रवाई के उदाहरण बहुत कम हैं और सजा नहीं के बराबर हुई है। चिकित्सकों के प्रतिनिधियों का कहना है कि उनके पास सुविधाएं और संसाधन कम होते हैं जिससे मरीज और उनके तीमारदार नाराज होते हैं और पिटाई की नौबत आती है।

मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ नया है और पहले से पता नहीं है। ऐसे में अभी के आंदोलन को लेकर मेरा मानना है कि चिकित्सकों के आंदोलन के मद्देनजर अगर पहले के मामलों की चर्चा हो, आंदोलनों और मांग की बात की जाए और बताया जाए कि पहले की हड़ताल से चिकित्सकों को क्या मिला है और अभी क्या स्थिति है तो इस आंदोलन को लाभ होगा और वाकई इस दिशा में कुछ किया जा सकेगा। वरना कानून व्यवस्था राज्य का मामला है और केंद्र चिट्ठी ही लिखता रहेगा। बाद में अगर कभी पश्चिम बंगाल की सरकार राजनीतिक कारणों से गिर जाए तो उसे न्यायोचित कहने का बहना रहेगा। देखते रहिए आगे-आगे क्या होता है। आज किसी और खबर को देखता हूं।

इस बीच, राजस्थान पत्रिका ने आज कठुआ मामले में एक खबर विस्तार से की है। आप जानते हैं कि जम्मू के पास कठुआ में एक बच्ची से बलात्कार और हत्या के मामले में गिरफ्तार अभियुक्तों के बचाव में रैली निकाली गई थी और दैनिक जागरण ने झूठी खबर छाप दी थी कि बच्ची के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था। इस मामले में तीन जनों को सजा हुई है और सबूत नष्ट करने के आरोप में भी तीन लोगों को सजा हुई है। अभियुक्तों के पक्ष में रैली निकालने वालों के समर्थन में तिरंगे का भी दुरुपयोग किया गया था और रैली में जम्मू कश्मीर के उस समय के भाजाप नेता भी थे। अदालत का फैसला आने और अभियुक्तों को सजा होने के बाद द टेलीग्राफ ने खबर दी थी कि भाजपा नेता खोल में चले गए हैं।

सोशल मीडिया में इस विषय पर चर्चा के दौरान अभियुक्तों के बचाव के संबंध में पूछे जाने पर तर्क दिया गया कि एक लड़के को बिला वजह फंसाया गया था और उसे सजा नहीं हुई है। हमारा विरोध इसीलिए था और यह भी कि इससे साबित होता है कि हमारा (उनका) विरोध निराधार नहीं था। इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, “अभियोजन की तैयारी : बरी हुए इकलौते आरोपी के खिलाफ हाईकोर्ट जाएगी क्राइम ब्रांच, मैसेंजर और व्हाट्सऐप चैटिंग के 10,000 पन्नों को बनाएगी सबूत”। मुख्य शीर्षक है, “कठुआ मामले में नाम आने से पहले ही जांच पर क्यों थी ‘बरी’ विशाल की पैनी नजर”। खबर में कहा गया है, “विशाल नियमित रूप से अपने दोस्तों को याद दिलाता रहा कि वे फोन पर किसी भी बात पर चर्चा न करें क्योंकि पुलिस ने फोन सर्विलांस पर लगा रखे होंगे। यह बातचीत ऐसे समय में रिकार्ड हुई है जब वह न तो जांच दायरे में था ना ही जाचकर्ताओं ने उसे एक बार भी बुलाया था।”

अखबार और टेलीविजन फालतू की चीजों पर बात करते हैं और मुद्दे नहीं उठाते – यह आरोप अब पुराना हो गया। लेकिन अखबारों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। महिलाओं को मेट्रो में मुफ्त यात्रा के प्रस्ताव पर जितने तर्क पेश किए जा रहे हैं उतने ही तर्क एमपी एलएडी स्कीम से लेकर सांसदों, विधायकों नेताओं को जो सुविधाएं मिलती हैं, उसपर भी दिए जा सकते हैं। कोई योजना अच्छी है या खराब उसपर बात समग्रता में होनी चाहिए। लेकिन आप देख लीजिए वह महिलाओं से आगे बढ़ ही नहीं रहा है। अब मेट्रोमैन के श्रीधरण भी इसमें कूद पड़े हैं। आज के अखबारों में इसपर तरह-तरह की प्रस्तुति है। इंतजार कीजिए जब पूरे पूरे मामले पर कायदे से चर्चा होगी।

Recent Posts

  • Featured

What Shakespeare Can Teach Us About Racism

William Shakespeare’s famous tragedy “Othello” is often the first play that comes to mind when people think of Shakespeare and…

20 hours ago
  • Featured

Student Protests Look Familiar But March To A Different Beat

This week, Columbia University began suspending students who refused to dismantle a protest camp, after talks between the student organisers…

21 hours ago
  • Featured

Free And Fearless Journalism In The Midst Of A Fight For Survival

Freedom of the press, a cornerstone of democracy, is under attack around the world, just when we need it more…

21 hours ago
  • Featured

Commentary: The Heat Is On, From Poll Booths To Weather Stations

Parts of India are facing a heatwave, for which the Kerala heat is a curtain raiser. Kerala experienced its first…

2 days ago
  • Featured

India Uses National Interest As A Smokescreen To Muzzle The Media

The idea of a squadron of government officials storming a newsroom to shut down news-gathering and seize laptops and phones…

2 days ago
  • Featured

What Do The Students Protesting Israel’s Gaza Siege Want?

A wave of protests expressing solidarity with the Palestinian people is spreading across college and university campuses. There were more…

2 days ago

This website uses cookies.